पशुओं में अपच: कारण, लक्षण एवं रोकथाम
एक पुरानी कहावत है कि मनुष्य में ज्यादातर रोगों की शुरूआत उसके पाचन तंत्र के खराब होने से होती है। यही बात पशुओं पर भी लागू होती है। पशुओं में पाचन क्रिया के बिगड़ने का मुख्य कारण अपच है। अपच की स्थिति में अधिक मात्रा में अपचित भोजन रूमेन में एकत्रित हो जाता है, जिसके कारण रूमेन की कार्य करने की क्षमता एवं वहाँ उपस्थित सूक्ष्म जीवाणु भी प्रभावित होते है। जब रूमेन सही तरीके से काम नहीं कर पाता तो जानवरों में इसके कारण अनेकों तरीेके की समस्याएँ जैसे हाजमा खराब होना अफरा आदि उत्पन्न करती है। फलतः उत्पादन क्षमता पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। अपच की समस्या सीधे डेयरी फार्म की आर्थिक स्थिति को प्रभावित करती है। अतः दुधारू गायों की सामान्य शारीरिक क्रिया एवं उत्पादन क्षमता में तालमेल बनाये रखने के लिए उनके भोजन एवं प्रबंधन में पर्याप्त ध्यान देने की आवश्यकता होती है।
अपच के लिए मुख्यतः 3 कारक-
1. प्रबंधन कारक-
खाने का प्रकार-अधिक मात्रा में दाना देने से पशुओं में अपच की समस्या आती है
कम गुणवत्ता वाला चारा खिलाना/या अधिक मात्रा में दलहनी हरा चारा एवं नयी पत्ती वाला हरा चारा खिलाना।
खाद्यान्न के प्रकार में अचानक परिवर्तन।
2. वातावरणीय कारक-
गरम तापमान-वातावरण का अधिक तापमान भी अपच का कारण होता है।
नम हरा चारा-इस तरह का चारा मुख्यतः मानसून के समय मिलता है जो कि पशुओं को खिलाने से उनमें अपच की समस्या उत्पन्न करता है।
3. पशुकारक-
ट्रांजिशन पीरियड (प्रसव अवस्था के पहले एवं बाद)
अधिक उम्र
जरका खाना
एक ही करवट लेटे रहने से, आँतों में रूकावट होने के कारण होता है।
दुधारू गायों में मुख्यतः तीन प्रकार का अपच होता हैः-
1. सामान्य अपच –
पशु द्वारा अपाचनशील, खराब, सड़ा हुआ या फफूंद लगा हुआ चारा खाना।
पशुपालक द्वारा पशु आहार में अचानक परिवर्तन करना।
पशु द्वारा अत्यधिक चारा खा जाना।
पशु के लिए पीने के पानी की कमी होना।
पशुपालक द्वारा पशु को संतुलित आहार नहीं देना।
पीड़ित/बीमार पशुओं में अधिक मात्रा में या लम्बे समय तक एंटीबोयोटिक्स या सल्फा औषधियों के प्रयोग से भी पेट (रूमन) के जीवाणु नष्ट होने से अपच हो सकती है।
2. अम्लीय अपच –
अम्लीय अपच का मुख्य कारण पशु द्वारा अत्यधिक कार्बोहाइड्रेट युक्त आहार खाना है।
पशु द्वारा दुर्घटनावष अत्यधिक मात्रा में गेहूं, जौ, मक्का, गन्ने की पत्तियां, आलु, चावल इत्यादि खा जाना।
पशुओं को शादियों व पार्टियों में बचा हुआ भोजन (जैसे रोटी, पूरी, छोले आदि) खिलाना।
3. क्षारीय अपच –
क्षारीय अपच का मुख्य कारण पशु द्वारा अत्याधिक प्रोटीन युक्त आहार खाना है।
पशु द्वारा किसी कारणवष अत्यधिक मात्रा में चना या अन्य दलहनी पदार्थ खाना।
पशु द्वारा दुर्घटनावष जेर का खा जाना।
लक्षण –
पशु की भूख में कमी आना या पशु द्वारा चारा-पानी लेना बंद कर देना।
पशु द्वारा जुगाली बंद कर देना।
पशु का सुस्त एवं मानसिक अवसाद से ग्रस्त हो जाना।
पशु को कब्ज या दस्त हो जाना।
पशु को अफारा आ जाना, सांस की गति बढ़ जाना एवं पेट दर्द की समस्या भी हो सकती है।
पशु के गोबर में बिना पचे हुए दाना/चारा आना।
पशु के दूध उत्पादन में कमी होना।
पशु सुस्त हो जाता है एवं सूखा तथा सख्त गोबर करता है।
बचाव एवं रोकथाम –
पशुओं को उच्च गुणवत्ता वाला, साफ-सुथरा एवं संतुलित आहार खिलाएं।
पशु आहार में अचानक परिवर्तन नहीं करें एवं आवष्यकता से ही अधिक चारा न खिलाएं।
अधिक मात्रा में रसोई से बचा हुआ भोजन या अन्य पदार्थ पशुओं को ना खिलाएं।
पशुओं को हमेषा साफ-सुथरा एवं भरपूर पानी पिलाएं।
चारे में परिवर्तन धीरे-धीरे लगभग 21 दिनों में करना चाहिये।
भोजन के साथ कैल्शियम प्रोपिओनेट, सोडियम प्रोपिओनेट, प्रोपायलीनग्लायकोल आदि को ऊर्जा के स्त्रोत के रूप में दिया जा सकता है।
गर्मी के मौसम में छायादार, हवादार एवं ठंडे स्थान में पशुओं को रखना चाहिए ताकि उनमें कम से कम गर्मी का दुष्प्रभाव पड़े।
पशुओं में उपरोक्त कोई भी लक्षण दिखाई देने पर तुरंत पशु चिकित्सक से सम्पर्क करें।
उपचार-
1. पहचान होने पर सर्वप्रथम इसके कारण का निवारण करना चाहिये जैसे यदि खराब चारा हो तो तुरंत बदल देना चाहिये या पेट में कृमि हो तो उपयुक्त कृमिनाशक दवा देनी चाहिए।
2. पेट की मालिश आगे से पीछे की ओर एवं खूँटे पर बंधे पशु को नियमित व्यायाम कराना चाहिए।
3. देशी उपचार- हल्दी, कुचला, अजवाइन, गोलमिर्च, कालीमिर्च, अदरक, मेथी, चिरायता, लोंग पीपर इत्यादि का उपयोग पशु के वजन के हिसाब से किया जा सकता हैं।
एलोपेथिक उपचार-
फ्लूड उपचार-अपच प्रभावित पशु को शरीर अनुसार पर्याप्त मात्रा में डी.एन.एस., आर.एल., एन.एस. देना चाहिए।
मैग्नीशियम हाइड्रोक्साइड- 100-300 ग्राम 10 लीटर पानी के साथ देना चाहिए।
मैग्नीशियम कार्बोनेट- 10-80 ग्राम
सोडियम बाई कार्बोनेट- 1ग्रा./कि. भार के अनुसार
विनेगार (शिरका) 5 प्रतिशत- 1 मि.ग्रा./कि. भार के अनुसार देना चाहिए।
एंटीबायोटिक जैसे पेनिसिलीन, टायलोसीन, सल्फोनामाइड, टेट्रासाइकिलिन का उपयोग किया जा सकता है।
इसके साथ ही-
एंटीहिस्टामिनिक (एविल, सिट्रीजिन) एवं बी.काम्पलेक्स इंजेक्शन दिया जा सकता हैं।
इन सभी एलोपेथिक दवाइयों का उपयोग पशुचिकित्सक की सलाह अनुसार ही किया जाना चाहिये।