पशुओं में खनिज लवण की कमी के लक्षण
पशुओं के शरीर में पाये जाने वाले विभिन्न अंगों के सुव्यवस्थित संचालन के लिए खनिज लवणों का महत्वपूर्ण स्थान है। पशुओं के खिलाये जाने वाले चारे व दाने के माध्यम से पशुओं में इनकी पूर्ति हो जाती है परन्तु कुछ जानवर जोकि अत्यधिक दूध देने वाले तथा ग्याभिन पशुओं में इन तत्वों की अधिक आवश्यकता होती है जो सामान्य चारे से पूरी नहीं हो सकती है। कुछ बिमारियों में भी खनिज लवणों का अवशोषण कम हो जाता है जिससे इनकी कमी के लक्षण पशु में नजर आने लगते हैं। कैल्शियम, फास्फोरस, सोडियम, क्लोरीन, पोटेशियम, मैग्नीशियम और सल्फर पशुओं में रखरखाव, विकास, उत्पादन और प्रजनन के लिए आवश्यक खनिज लवण है।
कुछ महत्वपूर्ण खनिज लवण
कैल्शियम: हड्डियों के सुचारु रुप से काम करने के लिए इस खनिज लवण का महत्व अधिक होता है। शरीर में कैल्शियम की कमी के कुछ मुख्य कारण है:- पशुओं का अत्यधिक दूध देना, चारे में विटामिन डी की कमी होना, चारे में कैल्शियम तथा फाॅस्फोरस में संतुलन न होना, बाढ़ग्रस्त इलाकों में मृदा में खनिज तत्वों की कमी का होना। रिकेट्स तथा ऑस्टियोपोरोसिसनाम बिमारियाँ कैल्शियम की कमी से होती है जिससे जानवर की अस्थ्यिाँ कमजोर हो जाती है और उनमें हड्डियाँ टूटने का डर रहता है।
लक्षण –
शारीरिक वृद्धि रुक जाना।
परिपक्वता में समय लगना।
फर्टीलिटी कम होना।
कम दूध देना।
हड्डियों का कमजोर होना।
लकवाग्रस्त जैसी स्थिति।
फाॅस्फोरस: दुधारु जानवर, ग्याभिन तथा अव्यस्क जानवरों में इस तत्व की कमी मुख्य रुप से पाई जाती है। इस तत्व की कमी तब ही होती है जब चारे में उपयुक्त मात्रा में फाॅस्फोरस उपस्थित नहीं हो।
लक्षण –
धीमी गति से शारीरिक विकास।
दूध तथा माँस उत्पादन में कमी।
फर्टीलिटी का कम होना।
भूख कम लगना।
दीवारों को चाटना।
मैग्नीशियम –
इस तत्व की कमी मुख्य रुप से व्यस्क तथा अव्यस्क गाय में देखने को मिलती है। जब जानवर केवल चरागाह में चरता है तब शरीर में मैग्नीशियम की कमी हो जाती है।
लक्षण –
लड़खड़ा कर चलना।
असाधारण चाल।
अतिसंवेदनशीलता।
मिर्गी जैसे दौरे पड़ना।
सोडियम तथा पोटेशियम – जब चारे में नियमित रुप से नमक न दिया जाए अथवा अत्यधिक पसीना आने से, दस्त लगने से तथा अत्यधिक उल्टी होने की अवस्था में शरीर में सोड़ियम और पोटेशियम की कमी देखने को मिलती है।
लक्षण –
दुधारु जानवरों का जल्दी वजन घटना।
भूख कम लगना।
चमकविहीन आँखे।
त्वचा का खुरदरा होना।
निर्जलीकरण।
आयरन –
शरीर में खून के निर्माण में आयरन का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। जिन पशुओं में अत्यधिक चिचड़ों की मौजूदगी रहती है या जो बछड़े केवल दूध के सहारे जीवित हो अथवा लम्बे समय तक दस्त हो रहे हो तो ऐसे पशुओं में आयरन की कमी देखी जा सकती है।
लक्षण –
खून की कमी होना।
म्यूक्स झिल्ली का पीला होना।
दुग्ध उत्पादन में गिरावट।
पशु का कमजोर होना।
काॅपर – इस तत्व का हिमोग्लोबिन निर्माण मंे अहम योगदान होता है तथा इस तत्व की कमी उन जानवरों में पाई जाती है जो उस जमीन पर उपलब्ध घास को खाते हैं जिस जमीन में काॅपर की कमी होती है।
लक्षण –
खून की कमी।
दस्त होना।
वजन में कमी होना।
काॅबाल्ट – इस तत्व की कमी मुख्य रुप से उन जानवरों में होती है जो जुगाली करने वाले होते हैं जैसे गाय, भैंस आदि।
लक्षण –
एनीमिया।
भूख न लगना।
जानवर का धीरे-धीरे वजन कम होना।
त्वचा के बालों का रुखा होना।
म्यूक्स झिल्ली का पीला होना।
आयोडीन – इस तत्व की कमी मुख्य रुप से गाय भैंस को देखने को मिलती है। जिन पशुओं के चारे व पानी में आयोडीन की कमी होती है उनमें इसकी कमी पाई जाती है। हिमालय क्षेत्र में रहने वाले जानवरों में भी इसकी कमी पाई जाती है।
लक्षण –
इसकी कमी से थाॅयराईड ग्रंथि आकार में बड़ी हो जाती है जिसे गाॅयटर या गलकण्ड रोग कहा जाता है।
बालों का झड़ना तथा बछड़ों में उच्च मृत्यु दर का कारण।
व्यस्क पशुओं में पाचन सम्बन्धी समस्याएँ होती है तथा जानवर सुस्त रहता है।
जिंक – इस तत्व की कमी उन पशुओं में पाई जाती है जिनके चारे में कैल्शियम व फाॅस्फोरस की मात्रा अधिक होती है।
लक्षण –
त्वचा मोटी हो जाती है तथा झुर्रिया पड़ जाती है।
बांझपन की समस्या।
सेलेनियम – जो पशु क्षारीय मृदा मंे उत्पादित चारा खाते हैं या जिन खेतों में सल्फेट उर्वरक का अधिक उपयोग होता है वहाँ के पशुओं में इस तत्व की कमी पाई जाती है।
लक्षण –
व्यस्क गाय में बांझपन की समस्या।
नवजात बछड़े की मृत्यु दर का अधिक होना।
बछड़ों में क्रोनिक डायरिया।