पशुओं में टिटेनस

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पशुओं में टिटेनस

टिटेनस मांसपेशियों में ऐंठन होने की एक अवस्था को कहा जाता है। यह सभी पालतू पशुओं एवं मनुष्यों का एक अत्यंत घातक एवं संक्रामक रोग है, जिसमें कंकालपेशियों को नियंत्रित करने वाली तंत्रिका कोशिकाएं प्रभावित होती हैं। यह रोग एक जीवाणु क्लोस्ट्रीडियम टिटेनाई (Clostridium tetani) के बहिः आविष (Exotoxin) टिटेनोलायसीन और टिटेनोस्पाजमीन के कारण होता है। अति संवेदिता (Hyperaesthesia) अपतानिका/ऐंठन और आक्षेप (Convulsions) इस रोग की विशेषताएं हैं।

कारण व संक्रमण:

यह रोग मिट्टी में रहने वाले बैक्टीरिया (क्लोस्ट्रीडियम टिटेनाई) से घावों के संक्रमित होने के कारण होता है। यह जीवाणु पूरे वातावरण में, आमतौर पर मिट्टी, धूल और जानवरों के मल में पाया जाता है। यह मिट्टी में लंबे समय तक छिपा रह सकता है। शरीर में जीवाणु का प्रवेश आमतौर पर फटे हुए गहरे जख्म से होता है। इस जीवाणु की वृद्धि की संभावना ऑक्सीजन के अभाव से अधिक होती है और अधिक मात्रा में आविष निर्मित होता है।

पशुओं में यह रोग पूंछ काटने, आपरेशन से बधिया करने, बाल काटते समय असावधानी की वजह से हो सकता है। नवजात बछड़ों के नाभि संक्रमण से या आपरेशन से बच्चा निकालने (cesarean) से भी टिटेनस हो सकता है। आमतौर पर पशुपालक जख्म पर रोगाणुनाशक दवा का प्रयोग न करके मिट्टी व राख इस्तेमाल करते है जो पशुओं में संक्रमण का कारण बन सकती है। बोझा ढोने वाले जानवरों में कंधों पर रस्सी की वजह से बने जख्म का संक्रमण भी टिटेनस का कारण हो सकता है।

अश्व में टिटेनस होने की संभावना अधिक होती है। दुषित सुई, जंग लगे लोहे की नुकीली तार व कील के गड़ने से यह जीवाणु शरीर में प्रवेश कर सकता है।

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लक्षण :

पशुओं में उद्भवन अवधि 3 दिन से 4 सप्ताह के बीच होती है। सभी पशुओं में टिटेनस के लक्षण लगभग एक समान होते हैं। बीमारी की शुरूआत मांसपेशियों में अकड़न से होती है जो धीरे-धीरे कंपन में बदल जाती है। अकड़न सिर से शुरू होके निचले शरीर में आती है। पशु के जबड़े जकड़ जाते हैं इसलिए इस बीमारी को लॉक जॉ (Lock jaw) भी कहा जाता है। कान सीधे सख्त खड़े हो जाते हैं। अकसर चेहरे की मांसपेशियां सबसे पहले प्रभावित होती हैं। पशुओं में आँख की तीसरी पलक दिखने लगती है। धीरे-धीरे मांसपेशियों की जकड़न आगे बढ़ती है और पीठ की मांसपेशियों में खिंचाव व दर्द होता है। पिछले पैरों की जकड़न की वजह से पशु को चलने फिरने में दिक्कत होती है, पशु की पूंछ में भी कड़ापन आ जाता है जिसकी वजह से पूंछ को हिलाने में दिक्कत होती है।

आरम्भ में पश खाना पीना जारी रखता है किन्त चेहरे की मांसपेशियों में अकड़न की वजह से पशु को चबाने व निगलने में दिक्कत होती है। मुंह से लगातार लार चलता रहता है। घोड़ों में गर्दन व पीठ की मांसपेशियों में अकड़न की वजह से जानवर की आकृति लकड़ी जैसी कठोर प्रतीत होती है। इस स्थिति को “कठ घोड़ा” (Saw horse) कहा जाता है। पशु में नाड़ी गति तथा श्वसन गति सामान्य से तेज हो जाती है। पशु हाँफ के सांस लेता है। पेट व आंत की मांसपेशियों में खिंचाव के कारण जानवर में अफारा एवं कब्ज की शिकायत मिलती है। धीरे-धीरे खिंचाव बढ़ने के कारण जानवर को चलने में अत्यधिक कठिनाई होती है तथा पशु गिरने की स्थिति में आ जाता है। गिरने के उपरान्त पशु का उठना एवं बैठना असंभव हो जाता है।

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गर्दन व पूंछ वाला भाग ऊपर की मुड़ जाते हैं। पशु धनुष के आकार में प्रतीत होता है। इसलिए इस रोग को “धनुस्तंभ” भी कहा जाता है। शरीर का तापमान बढ़ने लगता है तथा पशु को अत्यधिक पसीना आने लगता है। उचित उपचार न मिलने पर पशु 5 से 10 दिन के अंदर मर जाता है।

उपचार :

पशु में टिटेनस के लक्षण जैसे की मांसपेशियों में अकड़न एवं कंपन, चलने-फिरने एवं निगलने में दिक्कत इत्यादि दिखाई देते ही तुरन्त पशु चिकित्सक से संपर्क करें।
प्राथमिक उपचार में पशु के शरीर पर अगर कोई जख्म है तो उसको तुरन्त रोगाणुनाशक द्रव जैसे लाल दवाई या डिटॉल से साफ करें।
टिटनेस रोग की चिकित्सा के 3 मुख्य सिद्धांत हैं –

1. रोगाणुओं का नाश

2. आविष (Exotoxin) को निष्प्रभावी करना

3. मांसपेशियों की ऐंठन को नियंत्रित करना ।

रोग के रोगाणु/जीवाणु को नष्ट करने के लिए एंटीबायोटिक का प्रयोग करना चाहिए। पेनीसीलिन का उपयोग लाभकारी होता है।
जख्म को तुरंत रोगाणुनाशक दवा से साफ कर दें। विष के प्रभाव को खत्म करने के लिए 12 घन्टे के अंतराल पर जहररोधी टिका एंटीटिटेनस सीरम (A.T.S.) 3,00,000 I.U. के 3 टीके लगवाएं।
मांसपेशियों में अकड़न को कम करने के लिए क्लोरपराजीन एवं डाइजेपाम दवा को पशु चिकित्सक की निगरानी में प्रयोग कर सकते हैं।
अगर पशु खाने एवं पीने में असमर्थ है तो ग्लूकोस (DNS) की बोतल नस में लगवा लें।
घोड़ों में किसी प्रकार का जख्म, लोहे की जंग लगी कील व तार आदि चुभने एवं किसी चीर-फाड़ जैसी गतिविधि होने पर टिटेनस टॉक्साइड (T.T.) का उपयोग अवश्य करें।

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Savin Bhongra
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Dr. Savinbhongra@gmail.com

बचाव :

टीकाकरण द्वारा टिटेनस से बचाव संभव है। सक्रिय प्रतिरक्षा के लिए टिटेनस टॉक्साइड (Tetanus toxoid) नामक टीका लगवाएं। घोड़े के बच्चे में यह 3 से 4 माह की उम्र में लगाया जाता है। गर्भवती घोड़ी में इसका उपयोग अंतिम 6 सप्ताह के दौरान करना चाहिए। प्राथमिक टीकाकरण के लिए 4-8 महीने के अंतराल पर दो खुराक की आवश्यकता है। उसके बाद घोड़ों में प्रतिवर्ष एक टीका देना चाहिए।
पशु के शरीर पर किसी भी प्रकार का जख्म होने पर तुरंत रोगाणुनाशक दवा से साफ करें।
जख्म को मिट्टी एवं मल-मूत्र के सम्पर्क में आने से बचाएं।
नवजात बछड़ों में नाभि के द्वारा संक्रमण फैलने से बचाएं । नाभि पर जख्म होने पर उसको लाल दवाई या बीटाडिन से साफ करते रहें तथा मिट्टी से दूर रखें। बीमार पशु को अंधेरे कमरे में रखना चाहिए जहां आवाज कम से कम पहुंचे । अत्यधिक आवाज से पशु में कंपन व बेचैनी बढ़ जाती है। घोड़ों में आवाज से बचाव के लिए कान में रूई का प्रयोग भी किया जाता है।
मरे हुए पशु को तुरंत जमीन के अंदर गड्ढा खोद कर दबा दें या शव को जला देना चाहिए।
रोगी पशु के प्रयोग किए हुए बिछावन, चारा व मिट्टी को भी नष्ट कर दें।

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