पशुओं मैं एक जानलेबा संक्रमण गलघोटू
पशुपालकों को आर्थिक नुकसान पहुँचाने वाला व पशुओं के स्वास्थ्य को बहुत अधिक हानि पहुँचाने का एक महत्वपूर्ण रोग गलघोटू है। इसे धुरखा, घोटुआ, असडिया व डकहा आदि नामों से भी जाना जाता हैं, यह भैंसो में होने वाले प्रमुख रोगों में से एक है। तीव्र रोग से ग्रसित पशुओं की मृत्यु हो जाती है व इसके इलाज पर भी बहुत अधिक पैसा खर्च हो जाता है।
यह रोग बरसात के मौसम में अधिक फैलता हैं। बरसात के मौसम में यह रोग महामारी का रूप ले सकता है। कुछ प्रवर्तनपूर्व कारणों से यह बीमारी महामारी का रूप ले सकती है, जो निम्नलिखित है-
1. गर्म मौसम से अचानक ठण्डे मौसम में परिवर्तन होना।
2. पशुओं को उचित मात्रा में चारा व पानी दिए बिना लम्बे परिवहन पर ले जाना।
3. पशुओं में कीड़ो के संक्रमण होने से एवं कुछ विषाणु जनित रोग भी पशु को गलघोटू के लिए ग्रहणक्षम बनाते हैं।
कारण एवं परिचयः
1.यह रोग पाश्पास्चुरेला मल्टोसिडा नामक जीवाणु के कारण होता है। इस रोग के लिए उत्तरदायी जीवाणु प्रभावित पशु से स्वस्थ पशु में दूषित चारे, संक्रमित लार अथवा श्वास द्वारा फैलता है।
2.स्ंक्रमण के दो से पाँच दिन तक जीवाणु सुषुप्त अवस्था में रहते हैं, परन्तु पाँच दिन के बाद पशु के शरीर का तापमान अचानक बढ़ जाता है और साथ ही रोग के अन्य लक्षण भी दिखाई देने लगते हैं।
3. इस रोग से प्रभावित पशुओं में मृत्यु दर (80 प्रतिशत) से भी अधिक पाई गई है।
4. भैंस एवं गाय में यह रोग अधिक घातक होता है, किन्तु भेड़, बकरी ऊँट आदि में भी यह रोग देखा गया है।
लक्षणः
1.रोग से प्रभावित पशु का उच्च बुुखार 106-107 डिग्री फा. मिलता है और पशु खाना पीना छोड़ देता है। 2. रोगी पशु को सांस लेने में कठिनाई होती है और सांस लेते समय घुर्र-घुर्र की आवाज आती है।
3. रोगी पशु के नाक से स्त्राव, अश्रुपातन, मुख से लार एंव झूल के साथ-साथ गुदा के आस-पास (पेरिनियम) सूजन मिलती है।
4. रोग की घातकता कम होने पर पशु में निमोनिया, दस्त या पेचिस के लक्षण मिल सकते है।
5. अति प्रभावित पशुओं में गर्दन के निचले हिस्से में व पशु की छाती में शेफ (ऐडिमा) की वजह से सूजन हो जाती है।
6. कालान्तर में पशु धराशायी हो जाता है।
7. गंभीर अवस्था में या समय पर उपयुक्त इलाज न मिलने से पशुओं में मृत्यु दर बढ़ जाती है।
चिकित्साः
1.पशु में रोग के लक्षण दिखने पर तत्काल पशु चिकित्सक से सम्पर्क करें।
2. रोग से ग्रसित पशु को या उसके सम्पर्क में रहने वाले स्वस्थ दिखने वाले पशुओं को लम्बे परिवहन पर न ले जाएं।
3. 4 मि.ली. युकेलिप्टस तेल, 4 मि.ली. मेन्था तेल, 4 ग्राम कपूर तथा 4 ग्राम नौसादर एवं 46 ग्राम कुटी सौंठ को 2 लीटर उबलते हुए पानी में डालकर पशु को भपारा दे। ऐसा दिन में दो बार करें। भाप देने के बाद पशु को सीधी हवा से बचाएं।
4. 30 ग्राम अमोनियम कार्बोनेट, 30 ग्राम खाने का सोड़ा, 10 ग्राम कपूर एवं 50 ग्राम कुटी सौंठ को एक कि.ग्रा. गुड़ के साथ पशु की जीभ पर चाटने के लिए लगाएँ।
5. पशु को चरने के लिए नरम व पौष्टिक चारा दें। पीने का पानी भी हल्का गरम होना चाहिए।
रोकथामः
1.चार से छह माह की आयु में गलघोटू से बचाव के लिए प्रथम टीकाकरण लगवाएं तथा बरसात के मौसम के प्रारंभ से एक माह पहले प्रत्येक वर्ष टीकाकरण लगवाए। जिन क्षेत्रों में गलघोटू स्थानिक बीमारी हैं, उन क्षेत्रों में प्रत्येक ६ महीने के बाद गलघोटू से बचाव के लिए टीकाकरण किया जाता हैं.
2. इस बात का ध्यान रखें कि गलघोटू की महामारी के समय स्वस्थ पशुओं का टीकाकरण करवाने पर भी कुुछ स्वस्थ पशुओं में यह रोग हो सकता हैं ऐसा इसलिए होता है क्योंकि इन पशुओं में जीवाणु पहले से ही ऊष्मायन अवधि में उपस्थित होता है।
3. रोगी पधुओ को तुरंत प्रभाव से स्वस्थ पशुओ से अलग करे.
4. महामारी के समय पशुओं को पानी पिलाने के लिए जोहड़ पर न ले जाए व घर पर ही पानी पिलाएं।
5. लम्बे परिवहन से पशुओं को बचाएँ तथा परिवहन के समय पशुओं के लिए उचित आराम, चारे व पानी का प्रबंध करें।
6. बाडे़ में सफाई की समुिचत व्यवस्था रखें एवं बाड़ें को १० प्रतिशत कास्टिक सोडा या ५ प्रतिशत फिनाईल या २ प्रतिशत कॉपर सल्फेट के घोले से विसंक्रमित करें
7. गलघोटू के कारण मरे हुए पशु के शव को भलीभाँति चूने या नमक के साथ छह फीट गहरे गडढ़े में विसर्जित करे।