पशुओ से होने वाले रोग से मनुष्य कैसे बचे??
मनुष्य सदियों से अपनी आजीविका, भोजन, सुरक्षा आदि के लिए पशुओं को अपने साथ रखता आया है। बहुत से ऐसे कीटाणु (जीवाणु, विषाणु, परजीवी, फफूंद आदि) जनित रोग होते हैं जो पशुओं से मनुष्यों में फैल जाते हैं व उनमें रोग उत्पन्न कर सकते हैं। इन रोगों को प्राणिरुजा (जुनोटिक) रोग कहते हैं। पशुपालन से सम्बन्धित व्यक्ति जैसे पशुपालक, माँस बेचने वाले व पशु चिकित्सक में इन रोगों से ग्रसित होने का ज्यादा खतरा रहता है। पशुओं से मनुष्यों में होने वाले प्रमुख रोग व उनके लक्षण निम्नलिखित हैं:-
- माल्टा बुखार (बु्रसेलोसिस):
यह रोग बु्रसेला नामक जीवाणु से होता है जो मुख्यतः गाय, भैंस, भेड़, बकरी व कुत्तों में होता है। इस रोग से संक्रमित मादा पशुओं में गर्भपात व जेर न गिराने की समस्या होती है।
मनुष्य इस रोग से गर्भपात के समय संक्रमित मादा पशु के स्त्राव, जेर व बच्चे के सम्पर्क में आने से संक्रमित हो जाते हैं। रोगी व्यक्तियों में लम्बे समय तक ज्वर में उतार-चढ़ाव, सिर, माँसपेशियों व जोड़ों में दर्द रहता है।
प्रयोगशाला में परीक्षण व चिकित्सकीय परामर्श के बाद जीवाणु नाशक दवाओं के प्रयोग से इस बीमारी का इलाज सम्भव है। - तपेदिक रोग (टी॰बी॰):
यह पशुओं, पक्षियों तथा मनुष्यों में होने वाला एक भयंकर छूत का जीवाणु जनित रोग है, जो माइकोबक्टीरियम के विभिन्न प्रकारों से होता है। रोगी पशुओं में बेचैनी, ज्वर में उतार-चढ़ाव, खाँसी तथा शरीर कमजोर होना प्रमुख लक्षण हैं। आँतों तक रोगाणु के पहुँचने पर दस्त लग जाते हैं। इस बीमारी की अवधि कुछ महीनों से वर्षों तक होती है।
रोगी पशु के थूक व मल-मूत्र के सम्पर्क में आने से तथा कच्चा दूध प्रयोग करने से मनुष्यों में इस रोग का संक्रमण हो जाता है। मनुष्यों में इस रोग के लक्षण प्रायः आंतडियों, हड्डियों, ग्रन्थियों, चमड़ी व प्रजनन अंगों में दिखाई देते हैं। लम्बे समय तक जीवाणुनाशक दवाओं के प्रयोग से इस बीमारी का इलाज सम्भव है।
- चकरी रोग (लिस्टीरियोसिस):
यह रोग गाय, भैंस व बकरियों में पाया जाने वाला जीवाणुजनित रोग हैं जो लिस्टीरिया नामक जीवाणु से होता है। प्रभावित पशुओं में लड़खड़ाना, चक्कर काटना व मादा पशुओं में गर्भपात मुख्य लक्षण है। स मनुष्य में यह रोग कच्चा दूध, दूध से बने पदार्थ व माँस प्रयोग करने से फैलता है। रोगी मनुष्य को बुखार, भूख कम लगना, मांसपेशियों में शिथिलता तथा गर्भवती महिलाओं में गर्भपात भी हो सकता है। - लेपटोस्पाइरोसिस:
यह रोग गाय, भैंस व कुत्तों में होने वाला जीवाणु जनित रोग है जो लेपटोस्पाइरा नामक जीवाणु से होता है। रोगी पशु को बुखार, खून की कमी, पीलिया व लाल रंग का पेशाब आता है। गर्भवती पशु का गर्भपात भी हो जाता है। स मनुष्य में यह रोग कच्चा दूध या माँस प्रयोग करने से होता है जिसमें सर्दी-जुकाम जैसे लक्षण आते हैं। - लसामोनेलोसिस:
यह सालमोनेला नामक जीवाणु के विभिन्न प्रकारों से होने वाला रोग है जिसमें पशु को बुखार व दस्त हो जाते हैं। बछड़ों में इस बीमारी से बहुत अधिक मृत्यु होती है। स मनुष्य संदूषित पानी या दूध के इस्तेमाल से रोग ग्रसित हो जाते हैं जिसमें हल्का बुखार, उल्टी, दस्त व पेटदर्द होता है। प्राणिरुजा रोगों में मनुष्य में फैलने की सबसे ज्यादा व्यापकता इसी रोग की है। - क्यू ज्वर:
यह काॅक्सिएला बर्नेटाई नामक जीवाणु से होने वाला प्राणिरुजा रोग है जो कि गाय, भैंस, भेड़ व बकरियों में होता है। इस रोग का मुख्य लक्षण मादा पशुओं में गर्भपात है तथा थनेला रोग में अन्य रोगाणुओं के साथ भी पाया जाता है। स मनुष्यों में यह रोग एरोसोल, गर्भपात के दौरान सीधा सम्पर्क व कच्चे दूध के इस्तेमाल आदि से फैलता है। बुखार, रात को पसीना, खाँसी, दस्त, मांसपेशियों में दर्द व गर्भवती महिलाओं में गर्भपात या समय पूर्व प्रसव इस रोग के मुख्य लक्षण है। - गिलटी रोग (एंथ्रेक्स):
यह रोग खुर वाले ज्यादातर पशुओं मंे होता है जो बेसिलस एंथ्रेसिस नामक जीवाणु से होता है। इस रोग से ग्रसित पशुओं में अचानक मृत्यु होना, कँपकँपाना, साँस लेने में कठिनाई आदि लक्षण दिखाई देते हैं। मृत पशु के नाक, मुँह आदि से खून स्त्राव होता है। इस रोग के जीवाणु (सपोर्स) साँस, मुँह या जख्म के माध्यम से मनुष्य में प्रवेश कर बीमारी करते हैं। इस रोग के मुख्य लक्षण बुखार, ठण्ड लगना, माँसपेशियों में दर्द, खाँसी (श्वसन अवस्था में), बेचैनी, गले में सूजन, खूनी दस्त, पेट दर्द (पाचन तन्त्र अवस्था में) व घावों में खुजली, फफोले व छाले बनना (त्वचा अवस्था में) हैं। - रेबीज:
यह कुत्तों व अन्य जानवरों में होने वाला एक विषाणु जनित रोग है जो लाइशा वाइरस से होता है। कुत्तों के द्वारा यह रोग अन्य जानवरों व मनुष्यों में फैलता है। इसमें रोगी पशु का व्यवहार बदल जाता है (अत्याधिक खूँखार या एकदम शान्त होना), मुँह से अधिक लार टपकती है व किसी भी वस्तु को काटने लगता है। अन्त में रोगी पशु लकवाग्रस्त हो जाता है और मर जाता है। स पागल कुत्ते या अन्य जानवर द्वारा काटने से यह रोग मनुष्य में फैलता है। इसके अतिरिक्त पागल जानवर की लार घाव या आँख में गिरने से भी रेबीज हो सकता है। मनुष्यों में इस रोग के लक्षण सामान्यतः जानवरों जैसे ही होते हैं। स इस रोग का कोई इलाज सम्भव नहीं है इसलिए पागल कुत्ते के काटने पर घाव को तुरन्त साबुन व पानी से खूब धोयें व एंटीसेपटिक क्रीम लगाएं। डाॅक्टर की सलाह से तुरन्त रेबीजरोधी टीकाकरण करवायें।
9.सूअर फ्लू:
यह सूअरों में एन्फुलुएंजा नामक विषाणु से होने वाला रोग है जिसमें रोगी पशु में बुखार, उदासी, भूख न लगना, वजन कम होना, छींकना, खाँसी होना, साँस लेने में परेशानी आदि लक्षण दिखाई देते हैं। स सूअर फार्म पर काम करने वाले लोग इस बीमारी से ग्रसित हो सकते हैं जिसमें बुखार, खाँसी, जुखाम, सिरदर्द, उल्टी, दस्त आदि लक्षण दिखाई देते हैं।
- करिप्टोसपोरिडियोसिसः
यह करिप्टोसपोरिडियम नामक परजीवी से होने वाला रोग है जो ज्यादातर पशुओं, पक्षियों व मनुष्यों में होता है। रोगी पशु को बुखार, भूख न लगना, दस्त व पेट दर्द हो जाते हैं। स रोगी पशु द्वारा संदूषित पानी व खाने से मनुष्यों में यह रोग फैल जाता है, व बुखार, उल्टी, दस्त, माँसपेशियों व पेट में दर्द होने लगता है। कुछ अन्य प्राणिरुजा रोग भी हैं जैसे टोक्सोप्लाजमोसिस, कैम्पाइलो- बैकटीरियोसिस, दाद, पीलिया, लेकिन मनुष्यों में इनकी व्यापकता बहुत कम है।
प्राणिरुजा रोगों से बचाव:
* पशुओं से मनुष्यों में होने वाले ज्यादातर रोग संक्रामक होते हैं जिनसे बचाव के टीके उपलब्ध हैं। अतः जिन बीमारियों के टीके उपलब्ध हैं, पशुओं को उनके टीके नियमित लगवाने से बीमारियों को रोका जा सकता है।
बीमारी होने पर रोगी पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखें व उनका चारा-पानी भी अलग रखना चाहिए।
पशु चिकित्सक के परामर्श से रोगी पशुओं का जल्द ही इलाज शुरू करवाना चाहिए।
रोगी पशुओं का चारा, मल-मूत्र आदि जला या गहरे गड्ढ़े में दबा देना चाहिए।
गर्भपात होने वाले पशुओं के स्त्राव में रोगाणु अत्याधिक मात्रा में होते हैं। अतः मनुष्यों को विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं को इनके सम्पर्क में नहीं आना चाहिए।
मनुष्य में बीमारी होने पर अपने चिकित्सक को पशुओं में संक्रमण व उनसे सम्पर्क के बारे में अवश्य अवगत कराए ताकि सही निदान व इलाज किया जा सके।
पशुशालाओं में रोगाणुनाशक दवाओं का इस्तेमाल कर साफ-सफाई व संदूषण रहित रख कर व पशुओं का टीकाकरण करवाकर प्राणिरुजा रोगों का फैलना रोका जा सकता है।