पशुधन बीमा योजना : पशुपालन में जोखिम प्रबंधन का कारगर उपाय
राष्ट्रीय पशुधन मिशन के उद्देश्य निम्रवत है
- कुक्कुट पालन सहित पशुधन क्षेत्र का सतत विकास और उन्नयन |
- चारा और आहार का उत्पादन और उपलब्धता को बढाना |
- किसानों के लिए गुणवत्तापूर्ण विस्तार सेवाओं को सुनिश्चित करना |
- प्रौद्योगिकियों पर कौशल आधारित प्रशिक्षण और प्रचार-प्रसार को बढ़ावा देना |
- किसानों, कृषक समूहों, सहकारी समितियों, आदि के सहयोग से पशुधन की स्वदेशी नस्लों के संरक्षण के लिए पहल और नस्ल उन्नयन को बढ़ावा देना |
- छोटे और सीमांत पशुधन मालिकों को किसान समूह, सहकारी समितियों, उत्पादक कंपनी (प्रोडूसर कंपनी) समूहों के गठन के लिए प्रोत्साहित करना |
- विपणन, प्रसंस्करण और मूल्य वर्धन के लिए बुनियादी ढांचा और संपर्क उपलब्ध कराना |
- किसानों के लिए पशुधन बीमा सहित जोखिम प्रबंधन के उपायों को बढ़ावा देना |
एनएलएम किसान को पशु की मौत से होने वाले जोखिम और अनिश्चितता से बीमा के माध्यम से सुरक्षा प्रदान करता है | इसके अंतर्गत:
- स्वदेशी और संकर दुधारू पशुओं, ढ़ोने वाले जानवरों (घोड़े, गधे, खच्चर, ऊंट, टट्टू और नर मवेशी और भैंस) तथा अन्य पशुधन (बकरी, भेड़, सुअर और खरगोश) सभी का बीमा किया जा सकता है |
- भेड़, बकरी, सुअर और खरगोश को छोड़कर सभी जानवरों के लिए प्रति परिवार प्रति लाभार्थी के लिए अनुदान का लाभ पाँच पशुओं के लिए प्रतिबंधित है |
- भेड़, बकरी, सुअर और खरगोश के मामले में सब्सिडी का लाभ मवेशी यूनिट के आधार पर प्रतिबंधित है और एक मवेशी इकाई 10 पशुओं के लिए बराबर है | भेड़, बकरी, सुअर और खरगोश के लिए अनुदान का लाभ घर के प्रति लाभार्थी प्रति पाँच “मवेशी यूनिट” के लिए प्रतिबंधित किया जा रहा है | इस प्रयोजन के लिए ‘घर’ को महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 के अंतर्गत दी गयी परिभाषा के सामान रूप में परिभाषित किया गया है |
- पॉलिसी के अंतर्गत बीमा राशि (बॉक्स में उल्लेख किया है) जानवर का बाजार मूल्य है | हालांकि, ढ़ोने वाले जानवरों (घोड़े, गधे, खच्चर, ऊंट, टट्टू और मवेशी/भैंस) तथा अन्य पशुधन (बकरी, भेड़, सुअर और खरगोश) की बाजार की कीमत का एक पशु चिकित्सक की उपस्थिति में पशु के मालिक और बीमा कंपनी के प्रतिनिधि के बीच संयुक्त रूप से बातचीत द्वारा आकलन किया जाना है |
जानवरों के मूल्य की गणना कैसे करें?
एक जानवर का उसके वर्तमान बाजार मूल्य के लिए बीमा किया जाता है | बीमा करने के लिए पशु के बाजार मूल्य का लाभार्थी और पशु चिकित्सा अधिकारी या बीडीओ की उपस्थिति में अधिमानत: बीमा कंपनी के प्रतिनिधि संयुक्त रूप से आकलन करते है |
- गाय के लिए प्रति दिन उत्पादित दूध के प्रति लीटर के लिए रु.3000 और
- भैंस के प्रति दिन उत्पादित दूध के प्रति लीटर के लिए रु.4000
या स्थानीय बाजार में प्रचलित कीमत प्रति लीटर के रूप में (सरकार द्वारा घोषित) |
दुधारू पशु की कीमत की गणना इसकी उत्पादकता के आधार पर की जाती है |
अगर गाय प्रति दिन 4 लीटर दूध देती है तो, बीमा राशि 12000 रूपये या सरकार द्वारा निर्धारित बाजार मूल्य के अनुसार होगी |
- नीति के अंतर्गत क्षतिपूर्ति बीमा राशि या बीमारी से पहले बाजार मूल्य जो भी कम हो | अगर एक उत्पादक पशु गैर उत्पादक बन जाता है तो स्थायी पूर्ण विकलांगता (पिटीडी) दावा के मामले में, क्षतिपूर्ति बीमा राशि के 75 प्रतिशत तक सीमित है |
- सामान्य क्षेत्रों के लिए महाराष्ट्र पशुधन विकास बोर्ड द्वारा निर्धारित प्रीमियम दर क्रमश: एक और तीन साल के लिए क्रमश: 2.45 और 6.40 प्रतिशत है | वामपंथी उग्रवाद से प्रभावित क्षेत्रों के लिए वार्षिक और तीन साल की प्रीमियम दरें क्रमश: 2.90 और 8.1 प्रतिशत हैं | एक साल की बजाय कम से कम तीन साल के लिए पशुओं का बीमा करने के प्रयास किए जाने चाहिए |
- इस योजना में केंद्र सरकार, राज्य और लाभार्थी का योगदान क्रमश: 40, 30 और 30 प्रतिशत है |
पॉलिसी निम्न कारणों से मृत्यु के लिए क्षतिपूर्ति देगी:
- दुर्घटना (आग, बिजली, बाढ़, आंधी, तूफ़ान, हरिकेन, भूकंप, चक्रवात, टार्नेडो, टेम्पेस्ट और अकाल समावेशी) |
- बीमा की अवधि के दौरान होने वाले रोगों से |
- शल्यक्रिया (आपरेशन) |
- दंगे और हडताल |
जानवर की पहचान
जानवर की पहचान बीमा में महत्वपूर्ण है | इस संबंध में निम्नलिखित पहलू महत्वपूर्ण हैं:
- बीमा दावे के समय पर बीमाकृत पशु की ठीक से और विशिष्ट पहचान करनी होती है | इसलिए जहाँ तक संभव हो, कान को छेदना का पूर्ण प्रमाण होना चाहिए | पॉलिसी लेने के समय कान छेदने की पारंपरिक विधि या हाल ही में विकसित माइक्रोचिप्स लगाने की प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया जा सकता है |
- पहचान चिह्न लगाने के लागत का बीमा कंपनी द्वारा वहन किया जाएगा और इसके रखरखाव की जिम्मेदारी संबंधित लाभार्थियों की होगी |
- बीमा प्रस्ताव को तैयार करते समय मालिक के साथ जानवर की एक तस्वीर और स्पष्ट रूप से दिखाई देने वाले कान टैग से साथ जानवर की एक तस्वीर की आवश्यकता होगी |
- पशु चिकित्सक को पशु का बीमा करते समय 50 रुपए प्रति पशु और बीमा के दावे के मामले में पोस्टमार्टम के संचालन और पोस्टमार्टम प्रमाण पत्र जारी करने के लिये 125 रुपए के मानदेय का भुगतान किया जाता है | किसान को राशि का भुगतान करने की जरूरत नहीं है, इसका भुगतान सरकार द्वारा किया जता है (यह योजना में अंतर्निहित है) |
- जानवर की पहचान, पशु चिकित्सक द्वारा उसकी जाँच, उसके मूल्य का आकलन और टैगिंग के साथ बीमा कंपनी को प्रीमियम का भुगतान जैसी बुनियादी औपचारिकताओं को पूरा किया जाना चाहिए |
दावा प्रक्रिया
जानवर की मौत की घटना में बीमा कंपनी को तत्काल सूचना भेजी जानी चाहिए और निम्नलिखित सुनिश्चित किया जाना चाहिए:
- दावे के निपटाने के लिए बीमा कंपनियों को चार दस्तावेजों अर्थात बीमा कंपनी को सूचना, बीमा पॉलिसी के कागज, दावा प्रपत्र और पोस्टमार्टम रिपोर्ट की आवश्यकता होती है |
- बीमा पॉलिसी जारी करते समय जानवर की परीक्षा पंजीकृत पशु चिकित्सक द्वारा की जाती है|
- मृतक पशुओं का पोस्टमार्टम पंजीकृत पशु चिकित्सक द्वारा किया जाना चाहिए |
- विधिवत भरा गया दावा प्रपत्र |
- दावे का मामला बनने पर, अपेक्षित दस्तावेज प्रस्तुत करने के 15 दिनों के भीतर बीमित राशि का भुगतान किया जाना चाहिए | अगर बीमा कंपनी दस्तावेज प्रस्तुत करने के 15 दिनों के भीतर दावे का निपटान करने में विफल रहती है, तो वह लाभार्थी को प्रति वर्ष 12: चक्रवृद्धि ब्याज का भुगतान करने के दंड के लिए उत्तरदायी होगी |
- दावे के निपटान में देर या बीमा कंपनियों की ओर से सेवाओं में किसी भी प्रकार की कमी को बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (आईआरडीए), जो देश में एक प्रमुख प्राधिकरण है, की जानकारी में लाया जाना चाहिए |
- विवाद की स्थिति में कीमत निर्धारण ग्राम पंचायत/ बीडीओ द्वारा तय किया जाता है |
- पंजीकृत दुग्ध समितियों/यूनियनों को पशुओं के बीमे में शामिल किया जाना चाहिए |
- जानवरों की बिक्री या बीमा पॉलिसी की समाप्ति से पहले एक मालिक से दूसरे मालिक को अन्य प्रकार से जानवर के हस्तान्तरण के मामले में, नीति की शेष अवधि के लिए लाभार्थी के अधिकार नए मालिक को हस्तांतरित हो जाएँगे |
Compiled & Shared by- Team, LITD (Livestock Institute of Training & Development)
Image-Courtesy-Google
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पशुधन बीमा योजना : पशुपालन में जोखिम प्रबंधन का कारगर उपाय
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भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था में ग्राम पंचायत और पशु पालन समिति की भूमिका