पशुपालन में वर्षभर के कार्यो की सारणी

0
498

पशुपालन में वर्षभर के कार्यो की सारणी

पशुपालन के विभिन्न कार्यो को योजनाबव तरीके से सम्पन्न करना ही पशु-प्रबन्धन का मुख्य उद्देश्य है। उचित समय व
सही तरीके से कार्य पूर्ण न कर पाना पशुपालकों के लिए कई प्रकार की समस्याए उत्पन्न कर देता है जैसे कि विभिन्न बीमारिया और उत्पादन क्षमता में कमी आदि। इस प्रकार से पशुपालकों को आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है। पशुपालकों के लाभ के
लिए वर्ष भर की गतिविधियों को सारणीगत करने का प्रयास किया गया है।

जनवरी माह
1. पशुओं को ठंड से बचाने के लिए उचित प्रबन्ध करे ।
2. पशु-आवास एवं बिछावन को साफ-सुथरा एवं सूखा रखे ।
3. पशुओं के लिए ताजा व स्वच्छ पीने का पानी सुनिश्चित करें।
4. ठंड लगने की स्थिति में अथवा अन्य किसी बीमारी की आशंका होने पर पशुचिकित्सक से तुरन्त सम्पर्कं करें।
5. अधिक बरसीम खिलाने से पशुओं में अफारा हो सकता है।
6. पशु-आवास में धूप का आगमन सुनिश्चित करना चाहिए।

फरवरी माह
1. तापमान परिवर्तन के प्रभाव से पशुओं का बचाव करें।
2. चारे की फसलों जैसे बरसीम, जई आदि की उपयुक्त अवस्था पर कटाई करें।
3. चारा-फसल की अच्छे उत्पादन के लिए समयानुसार सिंचाई करें।
4. पशुओं को रात्रि में भूसा/तूड़ी अवश्य दे, जिससे शारीरिक तापमान नियंत्रण में सहायता मिलती है।
5. पशुशाला में हवा का आगमन सुचारू रूप से होना चाहिए।

मार्च माह
1. पशु-आवास में कीचड़ अथवा नमी से बचाव करना चाहिए।
2. खरीफ में हरा चारे की उपलब्धता सुनिश्चित करने हेतु फसलों की बिजाई करें।
3. चारा-फसलों से अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए अच्छी किस्म के बीज का ही प्रयोग करें।

READ MORE :  अपनी दुधारू गाय खुद तैयार कीजिये-भाग 8

अप्रैल माह
1. पशु का तेज धूप से बचाव करें।
2. मु°ह-खुर के रोग का टीकाकरण करवायें।
3. गेहू° के भूसे को यूरिया से उपचारित करके उसकी पौष्टिकता बढ़ा सकते हैं।
4. हरे चारे का संरक्षण साइलेजद्ध आदि में किया जा सकता है जो हरे-चारे की कमी के समय उपयोगी होते हैं।

मई माह
1. गलघोटू रोग से बचाव के लिए पशुओं में टीकाकरण करवायें।
2. पशुओं का लू से बचाव करें।
3. पशुओं को ठंडी जगह पर रखें तथा आस-पास वृृक्ष होने चाहिए।
4. दुग्ध उत्पादन की क्षमता बनाये रखने के लिए नियमित संतुलित आहार व खनिज़ मिश्रण दें।

जून माह
1. पशु के शरीर का तापमान नियंत्रित रखने के लिए भैंसों को दिन मेें 2-3 बार नहलाए°।
2. पशुओं को आहार सुबह जल्दी तथा शाम को या रात को देना चाहिए।
3. पीने का पानी ठंडा व छायादार जगह पर होना चाहिए।
4. पशुशाला खुली व हवादार होनी चाहिए।
5. गर्मियों में मादा-भैंसों को सुबह-शाम गर्मी ;मदद्ध के लिए जरूर देखना चाहिए।

जुलाई माह
1. ब्याने वाले पशु का विशेष ध्यान रखें।
2. दुधारू पशुओं का ब्याने के बाद दुग्ध ज्वर, कीटोसिस आदि से बचाव करें।
3. पशुओं एवं नवजात बच्चों का आन्तरिक एवं बाह्य परजीवियों से बचाव करें।
4. पशुशाला में कीटाणुनाशक दवा का इस्तेमाल करें।

अगस्त माह
1. बरसात के मौसम में पशु-आवास में साफ-सफाई पर विशेष ध्यान दें।
2. पशुओं को पीने का साफ पानी सुनिश्चित करवाना चाहिए।
3. पशुओं के खुरो की जाच करते रहे व 5-7 दिन के अन्तराल पर लाल-दवाई से साफ करें।
4. मक्खी, मच्छर व अन्य परजीवियों का उपचार व दवाई का छिड़काव पशु-चिकित्सक की सलाह पर समय-समय पर करें।

READ MORE :  ब्रुसेलोसिस एक संक्रामक रोग

सितम्बर माह
1. पशुओं में गर्मी के लक्षणों पर गौर करना चाहिए तथा उचित समय पर गाभिन करायें।
2. पशुओं को एक सप्ताह से ज्यादा बना हुआ तथा नमी वाला चारा न खिलायें।
3. नवजात पशु के खान-पान पर विशेष ध्यान दें व उपचार पशु-चिकित्सक की देख-रेख में करें।

अक्तूबर माह
1. गलघोटू से बचाव के लिए पशुओं का टीकाकरण करवाये ।
2. वातावरण परिवर्तन के कारण पशुओं का बीमारी के लक्षणों या बिगड़ते स्वास्थ्य के लिए दैनिक जा°च की जानी चाहिए।
3. सर्दी प्रारम्भ होने से पहले स्वास्थ्य प्रबन्धन, पोषक व्यवस्था, खाद्य-सामग्री की लागत और पशुओं की उचित देखभाल
सुनिश्चित करें।

नवम्बर माह
1. मुह-खुर की बीमारी से बचाव के लिए पशुओं का टीकाकरण करवायें।
2. हवा, बरसात या ठंड की अवस्था में भूसे को बिछावन के रूप में इस्तेमाल कर सकते हैं।
3. गीले स्थान में बछड़े-बछड़िया°/कटड़े-कटड़िया° ठंड के तनाव से प्रभावित हो सकते हैं।

दिसम्बर माह
1. सर्दी से पशुओं का बचाव करने के लिए उत्तम प्रबन्ध करें।
2. पशुशाला का तापमान नियंत्रित रखें।
3. पशु के शरीर को बोरी/कंबल से ढ़क कर रख सकते हैं।
4. ठंड के मौसम के दौरान पैदा हुए नवजात पशुओं का विशेष ध्यान रखना चाहिए।

पशुधन संबंधित वर्षभर ध्यान देने योग्य कार्य
– पशुओं को आयु एवं आवश्यकता के अनुसार संतुलित आहार प्रदान करें।
– दुधारू पशुओं का थनैला रोग से बचाव के लिए उचित प्रबन्ध करें।
– आंतरिक एवं बाह्य परजीवियों से बचाव के लिए नियमित अन्तराल पर दवा का प्रयोग करें।
– पशु के गर्मी के लक्षणों पर विशेष ध्यान दे तथा समय पर प्राकृतिक अथवा कृत्रिम गर्भाधान करवायें।
– दूध दोहने के लिए पूर्ण-हस्त विधि का ही प्रयोग करें।
– पशुओं को आहार में खनिज मिश्रण अवश्य दे ।
– ब्याने वाले पशुओं का विशेष ध्यान रखें।
– नवजात पशु को जन्म के 1-2 घंटे के भीतर खीस अवश्य पिलायें।
– नवजात बच्चे की नाल को 1.5 से 2.0 इंच की दूरी पर बा°ध कर काटना चाहिए तथा उस पर टिंक्चर आयोडिन का प्रयोग करे ।
– गाभिन पशुओं का तीन माह बाद पशुचिकित्सक से परीक्षण करवायें।
– तीन बार से ज्यादा गर्मी में आने पर भी गाभिन न होने वाले पशुओं की जा°च पशुचिकित्सक से करवायें।
– पशुशाला में महीने में एक बार कीटनाशक दवाओं से छिड़काव करना चाहिए। चरी तथा पानी की टंकी/होद को रोजाना साफ
करना चाहिए तथा सप्ताह में एक बार चूना डालना चाहिए।
– बीमारी आने पर प्रभावित पशुओं को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए।
– गाभिन पशुओं को उचित व्यायाम करवाना चाहिए।
– शारीरिक भार-वृि की दर ज्ञात करने के लिए कटड़े-कटड़िया°/बछड़े-बछड़ियों का वजन मापना आवश्यक है।
– दूध निकालने से पहले थनों को जीवाणुनाशक दवा जैसे ;लाल दवाद्ध से धोकर साफ कपड़े से पोंछना चाहिए।
– भैंसों के खानपान का समय और आहार जब तक आवश्यक न हो परिवर्तित नहीं करना चाहिए और यदि आवश्यक हो तो
धीरे-धीरे बदलें।
– किसी भी आपात स्थिति से निपटने के लिए पशु-चिकित्सक या पशु वैज्ञानिक से संपर्क करें।

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON