पशु टीकाकरण करवाने का उपयुक्त समय है मई-जून
डॉ. योगेश आर्य
अभी पशुओ मे टीकाकरण करवाने का उपयुक्त समय चल रहा हैं| पशुओ मे टिकाकरण करवाने के बाद रोगों के प्रति प्रतिरक्षा उत्पन्न होने में 2-3 सप्ताह तक का समय लग सकता हैं| अतः मानसून आने से 2-3 सप्ताह पहले टीके लगवाना सुनिश्चित करे| मानसून आते ही गाय-भैंस और भेड़-बकरी में गलघोटू, लंगड़ा बुखार और फडकिया रोग का प्रकोप देखा जाता है| अतः सभी पशुओ का मानसून से पूर्व ही गलघोटू, लंगड़ा बुखार और फडकिया रोग से बचाव के लिए टीकाकरण आवश्यक रूप से करवा लेना सही रहता हैं|
कम्बाइन्ड (एफ.एम.डी. + एच.एस.) टिकाकरण अच्छा विकल्प:-
पशुओं का बार बार टिकाकरण करवाने की बजाय एक Combined FMD (मुहपका खुरपका रोग) + HS (गलघोंटू रोग) Vaccination अच्छा विकल्प हो सकता हैं|
गलघोटू, लंगड़ा बुखार और फडकिया रोग को निम्न लक्षणों के आधार पर पहचाना जा सकता हैं–
-:गलघोटू रोग:-
गलघोटू रोग जीवाणु (पाश्चुरेला मल्टोसीडा) से होता हैं| यह एक संक्रामक रोग है जिसका फैलाव हवा द्वारा, या बीमार पशु के झूठे पशुआहार, पानी और दूषित पदार्थो के संपर्क में आने से स्वस्थ पशुओ में हो सकता है| बछड़ो में बीमार मादा पशु के दूध से हो सकता है| यह रोग लम्बी दूरी की यात्रा से थके पशुओ में भी हो जाता है|
रोग के लक्षण:-
- तेज बुखार (104-107 डिग्री फॉरेनहाइट)
- सूजी हुई लाल आँखे
- मुँह से अधिक लार और आँख-नाक से स्त्रवण
- पशु खाना पीना और जुगाली बंद कर देता है
- पेट दर्द और दस्त
- सिर ,गर्दन या आगे की दोनों टांगो के बीच सूजन
- पशु के श्वास लेते समय घुर्र–घुर्र की आवाज आना
- श्वास लेने में कठिनाई के चलते दम घुटने से पशु की मौत
रोग से बचाव:-
हर साल मानसून से पूर्व ही, 3 माह से बड़े सभी पशुओं का गलघोटू रोग का टीकाकरण जरूर करवाए| पशुओ को लम्बी यात्राओं पर ले जाने से पूर्व भी टिका अवश्य लगवाए| बीमार पशु को अन्य स्वस्थ पशुओ से दूर रखे|| गलघोटू रोग होते ही बिना देरी किये बीमार पशु का वेटरनरी डॉक्टर से उपचार करवाए| मृत पशु का निस्तारण गहरा गड्डा खोदकर उसमे चूना या नमक डालकर करे|
-:लंगड़ा बुखार:-
लंगड़ा-बुखार रोग जीवाणु (क्लोस्ट्रीडियम चौवोई) से होता है| यह एक संक्रामक रोग है जो बीमार पशु से दूषित पशुआहार, के सेवन से हो सकता है| यह रोग खुले घाव द्वारा भी पशुओ में फेल जाता हैं| इस रोग में बीमार पशु के शरीर से मांस पेशियों की मोटी परत वाले भागों जैसे- कंधे, पुट्ठे और गर्दन पर “गैस से भरी सूजन” आ जाती है|
रोग के लक्षण:-
- तेज बुखार (106-108 डिग्री फॉरेनहाइट)
- पशु खाना पीना और जुगाली बंद कर देता है
- बढ़ी हुई श्वास-दर
- लाल आँखे
- शरीर के विभिन्न भागो में जकड़न
- बीमार पशु के शरीर से मांस पेशियों की मोटी परत वाले भागों जैसे– कंधे, पुट्ठे और गर्दन पर “गैस से भरी सूजन” जिसको दबाने पर चट–चट की आवाज होना
- पशु पहले तो लंगड़ाने लगता है फिर चलने में पूर्णतया असमर्थ हो जाता हैं
- अंत में पशु के शरीर का तापमान गिर जाता है और पशु मर जाता हैंरोग से बचाव:-
हर साल मानसून से पूर्व ही, 3 माह से बड़े सभी पशुओं का लंगड़ा-बुखार रोग का टीकाकरण जरूर करवाए| बीमार पशु को अन्य स्वस्थ पशुओ से दूर रखे|| लंगड़ा-बुखार रोग होते ही बिना देरी किये बीमार पशु का वेटरनरी डॉक्टर से उपचार करवाए|
-:फड़कीया:-
फड़कीया रोग जीवाणु (“क्लॉस्ट्रीडियम परफ्रीजेंस टाइप-डी”) से होता है| इस रोग को “पल्पी किडनी रोग” भी कहते हैं|
रोग के लक्षण:-
- भेड़-बकरी का चक्कर काटना
- शरीर में ऐंठन आना, कंपकंपी
- सांस लेने में दिक्कत, आफरा आना और दस्त लगना
रोग से बचाव:-
फड़कीया रोग से बचाव हेतु 4 माह से बड़ी भेड़-बकरी का हर वर्ष मानसून से पूर्व टीकाकरण करवा लेना चाहिए| फडकिया रोग हो जाने पर भेड़-बकरी को तुरंत वेटरनरी डॉक्टर को दिखाना चाहिए|