पोल्ट्री केज बैन…पशु-पक्षी प्रेम या सोची समझी साजिश..
मित्रों,हम भली भांति जानते हैं कि भारत वैश्विक अर्थव्यवस्था के परिदृश्य में तेजी से उभरता हुआ एक विकासशील राष्ट्र है,और यह बात कई विकसित देशों के गले से नहीं उतर रही है।भारत एक कृषि प्रधान देश है तथा कृषि एवं पशुपालन इसके अभिन्न अंग हैं।यदि हम भारतीय पशुपालन का आंकलन करें तो पाएंगे कि मुर्गीपालन नें सभी पशुपालनों में शीर्षस्थ स्थान प्राप्त कर लिया है।हमारे देश में मुर्गीपालन नें एक सशक्त संगठित उद्योग का स्वरूप ले लिया है और निरंतर प्रगति पथ पर अग्रसर रहते हुए वैश्विक मानचित्र में अंडा उत्पादन में तीसरा तथा ब्रॉयलर उत्पादन में पाँचवाँ स्थान अर्जित कर लिया है।बस यही बात विकसित देशों के आँखों की किरकिरी बनकर इस कहावत को चरितार्थ कर रही है कि “समंदर को बस इतनी सी बात खल गई कि नाव एक कागज की कैसे मुझपर चल गई”…।
यदि हम भारतवर्ष की शुरुआती दौर का मुर्गीपालन देखें तो पायेंगे कि यह डीप लिटर/free range poultry farming ही थी,और तब इन्हीं विदेशियों नें हल्ला मचाना शुरू किया कि…अरे बाप रे आप भारतीय लोग इतने गन्दे तरीके से मुर्गीपालन करते हो,अरे ये तो बहुत unhygienic है…इससे मुर्गियों को कई बीमारियां होंगी और इनके अंडे और मांस खाने सेआदमियों को भी बीमारियों का शिकार होना पड़ सकता है…आप लोग ये जमीन पर मुर्गीपालन बन्द कीजिये और केज/पिंजरे में मुर्गीपालन कीजिये।विदेशियों ने हमें समझाया कि केज में मुर्गीपालन करने पर अंडे एवं माँस बीमारी रहित तथा साफ सुथरा रहेंगे जिसके सेवन से मनुष्यों को भी बीमारियों का खतरा नहीं रहेगा। भारतीय मीडिया और सरकारों नें भी अंग्रेजों की बात मानी “क्योंकि हम धोती-कुर्ता पहनने वाले भारतीय तो यही मानते हैं ना कि सूट-कोट-टाई पहनने वाला अंग्रेज झूठ थोड़ी ना बोलेगा और खासकर तब जब हमारा मीडिया और हमारी सरकार भी उनकी बातों का समर्थन करे” हम भारतीयों नें उनकी बात मानी और केज में मुर्गीपालन शुरू कर दिया।
हम भारतीयों के सपने में भी यह बात नहीं आई कि ये अंग्रेज हमें अपनी तकनीकि और केज बेचना चाहते हैं ताकि वो हमसे अच्छा खासा मुनाफा कमा सकें,और हमनें अपना पूरा मुर्गीपालन डीप लिटर (जमीन) से हटाकर केज में शुरू कर दिया।मुर्गीपालन के क्षेत्र मेंधीरे-धीरे नई नई वैज्ञानिक तकनीकियां भारत में भी विकसित होने लगीं,और इन विकसित तकनीकियों नें भारतीय मुर्गीपालन को नई ऊंचाइयां और नए आयाम दिए।भारत में भी कई कम्पनियां केज बनाने लगीं और देश में केज लगाने के साथ साथ विदेशों में भी अपनी तकनीकि तथा केज निर्यात करने लगीं।निस्संदेह भारत में विकसित ये तकनीकियां उत्तम किस्म की तथा सस्ती थीं,बस यही बात विदेशी कंपनियों को चुभ गई,क्योंकि एक बड़ा बाजार उनकी पकड़ से छूटने लगा था,और उन्होनें एक नया षड़यंत्र रचना शुरू किया कि केज में मुर्गीपालन मुर्गियों के साथ एक अमानवीय कृत्य है।अपने इस षडयंत्र में उन्होंनें सबसे पहले अपने साथ में लिया कुछ तथाकथित भारतीय पशुप्रेमी NGO’s को तथा भारतीय मीडिया को,जो कि सिर्फ और सिर्फ नकारात्मक पहलुओं को उज़ागर करने में माहिर हैं लेकिन कभी भी सकारात्मक पहलुओं को उज़ागर नहीं करते हैं।इन दोनों ने विदेशियों के प्रति अपनी स्वामिभक्ति दिखाई और एक NGO की सदस्य ने भारतीय मुर्गीपालन को “केजविहीन” करने हेतु न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर दी।इस जनहित याचिका का सबसे हास्यास्पद पहलू यह है कि जिसे बैटरी ऑपरेटेड केज तथा बैटरी केज में अंतर ही पता नहीं है वो जनहित याचिका दायर कर रही है।
हम इस विषय पर आगे बात करें उससे पहले हमें यह बात समझनी होगी कि वैश्विक परिदृश्य में भारत एक बहुत बड़ा उपभोक्ता बाजार है।प्रत्येक विदेशी कम्पनियों की नजर अपने उत्पादों को बेचने के लिए भारत पर ही रहती है चाहे वह उत्पाद किसी भी श्रृंखला का हो।यदि हम अंडे तथा चिकन (मुर्गी माँस) की बात करें तो भारत में दिन प्रतिदिन इनके उपभोग बढ़ते जा रहे हैं।कई विदेशी कम्पनियों की नजर इस क्षेत्र में है और वो चाहते हैं कि येन केन प्रकारेण यदि इस बात को सिद्ध कर दिया जाए कि भारत में उत्पादित होने वाले अंडे तथा चिकन उत्तम किस्म के नहीं हैं तो ये उत्पाद वो अपने देशों से भारत में निर्यात कर सकेंगे और अच्छा खासा मुनाफा कमा सकेंगे।विदेशी कम्पनियों को भी यह बात भली भांति पता है कि भारतीय लोग शारीरिक रूप से भले ही आजाद हो गए हों लेकिन मानसिक रूप से वो आज भी गुलाम हैं और इस बात को मानते हैं कि विदेश में बनी हुई चीज भारत में निर्मित चीजों की तुलना में उत्तम होती हैं।बस इसी भारतीय मानसिकता का लाभ उठाकर वे अपने यहाँ उत्पादित अंडे तथा चिकन को भारतीय उपभोक्ताओं को ऊंचे दामों में बेचकर अच्छा मुनाफा कमाना चाहते हैं।विदेशी कंपनियां यह भी भली भांति जानती हैं कि समूचे विश्व में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जो सबसे सस्ते अंडों का एवं चिकन का उत्पादन करता है,इस पर गुणवत्ता का प्रश्न चिन्ह लगाकर वे अपने महँगे अंडे एवं चिकन भारतीय बाजार में बेचना चाहते हैं।
हम भारतीय मुर्गीपालक किसान वर्तमान में वैज्ञानिकों द्वारा निर्धारित किये गए अंडे एवं चिकन के उत्पादन मापदंड को केज में नियमित स्वरूप से प्राप्त कर रहे हैं।उदाहरण स्वरूप यदि वैज्ञानिकों ने अपने शोधों के आधार पर एक ऐसी लेयर ब्रीड बनाई है जो अपने एक जीवन काल (52 सप्ताह) में 330 अंडे देगी तो समस्त लेयर मुर्गीपालक उससे 52 सप्ताह में 330 अंडे प्राप्त कर रहे हैं।अब यदि इसी मुर्गी को डीप लिटर में पाला जाएगा तो इसका अंडा उत्पादन एक तिहाई रह जायेगा।अब तथाकथित बुद्धिजीवी ये बताएं कि क्या उत्तम है,क्योंकि यदि मुर्गी केज में आरामदायक परिस्थितियों में नहीं है तो वो कैसे अपना सर्वश्रेष्ठ उत्पादन दे सकती है…? और यदि वो डीप लिटर में पूर्ण आरामदायक परिस्थितियों में रहेगी तो अपना सर्वश्रेष्ठ उत्पादन क्यों नहीं दे पाएगी…???
मित्रों,डीप लिटर में मुर्गीपालन करके सिर्फ अंडा उत्पादन ही नहीं घटेगा बल्कि मुर्गियों में कई संक्रामक बीमारियां भी बढ़ेंगी जिनके ईलाज में दवाईयों का खर्च भी बढ़ेगा जो कि अंडों की उत्पादन लागत बढ़ायेगा और मानव स्वास्थ्य के लिए भी ठीक नहीं होंगा।दाने की खपत (दाना बर्बाद होने के कारण) भी बढ़ेगी,जितनी मुर्गियाँ केज में पाली जा रही हैं उतनी मुर्गियों को डीप लिटर में पालने के लिए तीन गुना ज्यादा जमीन लगेगी।कुल मिलाकर अंडों की तथा चिकन की उत्पादन लागत बढ़ेगी और ये आम भारतीय उपभोक्ता की पहुँच से बाहर हो जाएगा।
भारत कई अन्य राष्ट्रों की तरह प्रोटीन कुपोषण से जूझ रहा है और विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार अंडा कुपोषण से लड़ने का सबसे सशक्त माध्यम है।इन परिस्थितियों में जबकि भारतीय मुर्गीपालक सबसे सस्ता एवं उत्तम किस्म का अंडा उत्पादित कर रहे हैं जो कि धीरे धीरे समूचे भारतवर्ष में स्कूलों तथा आंगनबाड़ियों के मध्यान्ह भोजन में सम्मिलित होता जा रहा है और कुपोषण की भयावह परिस्थितियों को कम करता जा रहा है,मुर्गीपालकों के समक्ष “केज बैन” जैसी परिस्थितियों को उतपन्न करके उनके मनोबल को तोड़ने जैसा है।केज बैन जैसी स्थिति में भारतीय मुर्गीपालन उद्योग कई वर्षों पीछे चला जायेगा,इस उद्योग से करोड़ों लोगों को रोजगार प्राप्त है,उनके समक्ष रोजगार का संकट पैदा हो जाएगा।
यह प्रकरण माननीय न्यायालय में विचाराधीन है अतः हम समस्त मुर्गीपालक किसान माननीय न्यायाधीशों से गुहार लगाते हैं कि राष्ट्रहित तथा मुर्गीपालक किसानों के हित में निर्णय लेंगे ऐसी हम सब की आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है।
जय हिंद जय भारत…✍️
डॉ. मनोज शुक्ला
पोल्ट्री विशेषज्ञ एवं विचारक
रायपुर,छत्तीसगढ़