बटेर पालन-एक रोज़गार

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बटेर पालन

यह भाग बटेर पालन पर आधारित है जिसे पहले घरों में मांस के लिए किया जाता था, या जिनका शिकार किया जाता था. परन्तु, इन सालों में इनकी मांग बढ़ी और इसलिए इन्हें एक आचे व्यवसाय में देखा जा रहा है।

जापानी बटेर

जापानी बटेर को आमतौर पर बटेर कहा जाता है। पंख के आधार पर इसे विभिन्न किस्मों में बाँटा जा सकता है, जैसे फराओं, इंगलिश सफेद, टिक्सडो, ब्रिटश रेज और माचुरियन गोल्डन। जापानी बटेर हमारे देश में लाया जाना किसानों के लिए-मुर्गी पालन के क्षेत्र में एक नये विकल्प के साथ-साथ उपभोक्ताओं को स्वादिष्ट और पौष्टिक आहार उपलब्ध कराने में काफी महत्तवपूर्ण सिद्ध हुआ है। यह सर्वप्रथम केन्द्रीय पक्षी अनुसंधान संस्थान, इज्जतदार,बरेली में लाया गया था।

यहाँ इस पर काफी शोध कार्य किए जा रहे हैं। आहार के रुप में प्रयोग किए जाने के अतिरिक्त बटेर में अन्य विशेष गुण भी हैं, जो इसे व्यवसायिक तौर पर लाभदायक अण्ड़े तथा मांस के उत्पादन में सहायक बनाते हैं।

जापानी बटेर की विशेषताएं

  1. बटेर प्रतिवर्ष तीन से चार पीढ़ियों को जन्म दे सकने की क्षमता रखती है।
  2. मादा बटेर 45 दिन की आयु से ही अण्डे देना आरम्भ कर देती है। और साठवें दिन तक पूर्ण उत्पादन की स्थिति में आ जाती है।
  3. अनुकूल वातावरण मिलने पर बटेर लम्बी अवधि तक अण्डे देते रहती हैं और मादा बटेर वर्ष में औसतन 280 तक अण्डे दे सकती है।
  4. एक मुर्गी के लिए निर्धारित स्थान में 8 से 10 बटेर रखे जा सकते है। छोटे आकार के होने के कारण इनका पालन आसानी से किया जा सकता है। साथ ही बटेर पालन में दाने की खपत भी कम होती है।
  5. शारीरिक वजन की तेजी से बढ़ोतरी के कारण ये पाँच सप्ताह में ही खानेयोग्य हो जाते है ।
  6. बटेर के अण्डे और मांस में मात्रा में अमीनो अम्ल, विटामिन, वसा और धातु आदि पदार्थ उपलब्ध रहते हैं।
  7. मुर्गियों की उपेक्षा बटेरों में संक्रामक रोग कम होते हैं। रोगों की रोकथाम के लिए मुर्गी-पालन की तरह इनमें किसी प्रकार का टीका लगाने की आवश्यकता नहीं है।
READ MORE :  भारत में जापानी बटेर की खेती की वर्तमान स्थिति, संभावनाएं और बाधाएं

स्रोत: बिरसा कृषि विश्वविद्यालय,

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