बत्तख पालन-एक रोज़गार : आत्मनिर्भर बनने का एक प्रमुख साधन
डॉ निर्भय कुमार सिंह ,असिस्टेंट प्रोफेसर, डिपार्टमेंट ऑफ वेटरनरी एनाटॉमी, बिहार वेटरनरी कॉलेज, पटना
बत्तख पालन करने वालो को बहुत हीं अल्प लागत में अच्छा खासा benefit हो सकता है। क्योंकि बत्तख 6 month में हीं अंडे व मांस देने योग्य हो जाते है। बत्तख को पालने के 6 month के बाद वे रोजाना अंडा (egg) देने लगती है और आज के date में बत्तख के एक अंडे की कीमत market में लगभग10- 12 /- Rs है। बतख पालन का काम इस बेरोजगारी के दौर में बेरोजगार युवाओं के लिए आय का अच्छा साधन है. मुर्गी पालन के मुकाबले बतख पालन में कम जोखिम भी होता है. बतख के मांस और अंडों के रोग प्रतिरोधी होने के वजह से मुर्गी के मुकाबले बतख की मांग अधिक है. बतख का मांस और अंडे दोनों ही प्रोटीन से भरपूर होते हैं. बतखों में मुर्गी के मुकाबले मृत्यु दर बेहद कम है. इस का कारण बतख रोग प्रतिरोधी भी है. अगर बतख पालन का काम किसान भाई बड़े पैमाने पर करें तो यह बेहद लाभदायी साबित हो सकता है. बतख पालन का काम इस बेरोजगारी के दौर में बेरोजगार युवाओं के लिए आय का अच्छा साधन है. मुर्गी पालन के मुकाबले बतख पालन में कम जोखिम भी होता है. हिंदुस्तान ही नहीं अपितु दुनिया में भी बतख पालन बेहद प्रचलित एवं आकर्षक व्यवसाय है! इनकी खेती अंडे एवं मांस के उत्पादन के लिए किया जाता हैं! अंडा और प्रोटिन के अच्छा स्रोत माने जाते हैं! कुपोषण के खिलाफ लड़ाई में भी अंडे को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. यहीं कारण है कि शरीर में इसकी पूर्ति के लिए लोग अंडे और मांस का सेवन करते हैं! बतख पालन शुरू करने के लिए सबसे जरूरी आसपास में पानी के स्रोत का होना है. जहां पर बत्तख आसानी से प्रजनन कर अंडे दे सके और विचरण कर सके. किसान कृत्रिम तालाब बनाकर भी बत्तख पालन कर सकते हैं. कई शहरो में बत्तख के अंडे के साथ साथ इसके मांस का भी बहुत demand है। चूँकि बत्तख की मांस बहुत हीं कम मिलता है इसलिए इसकी मांस भी बहुत costly बिकता है।
बत्तख पालन में बत्तख के आहार, आवास, आदि सभी चीजो में बहुत कम खर्च लगता है, इसलिए इसे कोई भी अपनाकर अपना आर्थिक स्थिति सुधार सकता है। आज हम आपको बत्तख पालन कैसे की जाती है इसकी पूरी जानकारी देने जा रहे है।
बत्तख पालन से होने वाले लाभ –
भारत में बड़ी संख्या में बत्तख पाली जाती हैं। बत्तखों के अण्डे एवं मांस लोग बहुत पसंद करते हैं, अतः बत्तख पालन व्यवसाय की हमारे देश में बड़ी संभावनाएँ हैं। बत्तख पालने के निम्नलिखित लाभ हैं- उन्नत नस्ल की बत्तख 300 से अधिक अण्डे एक साल में देती हैं। बत्तख के अण्डा का वजन 65 से 70 ग्राम होता है। बत्तख अधिक रेशेदार आहार पचा सकती हैँ। साथ ही पानी में रहना पसंद होने से बहुत से जलचर जैसे–घोंघा वगैरह खाकर भी आहार की पूर्ति करते हैं। अतः बत्तखों के खान-पान पर अपेक्षाकृत कम खर्च करना पड़ता है । बत्तख दूसरे एवं तीसरे साल में भी काफी अण्ड़े देती रहती हैँ। अतः व्यवसायिक दृष्टि से बत्तखों की उत्पादक अवधि अधिक होती है। मुर्गियों की अपेक्षा बत्तखों की उत्पादक अवधि अधिक होती है। मुर्गियों की अपेक्षा बत्तखों में कम बीमारियाँ होती हैं। बहता हुआ पानी बत्तखों के लिए काफी उपयुक्त होता है, किन्तु अन्य पानी के स्त्रोत वगैरह में भी बत्तख पालन अच्छी तरह किया जा सकता है।
भारत में बत्तख पालन
हमारे देश में अंडा उत्पादन तालिका में मुर्गियों के पश्चात बत्तख का ही स्थान है वर्तमान समय में हमारे देश के पूर्वी तथा दक्षिणी क्षेत्रों में लम्बा समुद्र तट होने के कारण जल बहुल्य क्षेत्र बत्तखों के लिए प्राकृतिक आवास के रूप में उपलब्ध है,परंतु अभी भी लगभग 80 प्रतिशत बत्तख पालन ग्रामीण एवं लघु कृषक ही कर रहे हैं जो सुव्यवस्थित संचालन के तौर तरीकों से अनभिज्ञ हैं | इनके द्वारा पाली गई अधिकतर बत्तख देशी नस्ल की हैं जो प्राकृतिक विधि द्वारा आहार ग्रहण करती हैं और जिनकी अंडा उत्पादन क्षमता भी 130 से 140 अंडा प्रति पक्षी प्रतिवर्ष होती है वैज्ञानिक विधि द्वारा बत्तख पालन केवल कुछ ऐसी इकाइयाँ जो केंद्र सरकार द्वारा संचालित हैं और कृषि विश्वविद्यालयों द्वारा ही किया जा रहा है |यद्यपि अंडा मांस उत्पादन हेतु मुर्गी पालन का स्तर स्थिर रहा है फिर भी हमारे देश के कुल राष्ट्रीय उत्पादन में बत्तख पालन का योगदान प्रतिवर्ष लगभग चार करोड़ रूपये रहा है
- मुर्गी की अपेक्षा 40.50 अंडे अधिक देती है जिससे उद्योग के लाभांश में वृद्धि होती है
- बत्तख लम्बी अवधि तक अंडे देती है तथा जीवन के दूसरे एवं तीसरे वर्ष में भी लाभदायक उत्पादन देती है अतरू बत्तख की उत्पादन आयु अधिक है
- मुर्गी के अंडे की तुलना में बत्तख के अंडे का वजन 15.20 ग्राम अधिक होता है और प्रोटीन की मात्रा अधिक होती है
- आमतौर पर दलदलीए अधिक वर्षा वाला और कच्छ प्रदेश जिसमें नमी एवं पानी की अधिकता होती हैए मुर्गी पालन व्यवसाय के लिए अधिक उपयुक्त नहीं होता परंतु वहाँ बत्तख पालन अत्यंत सफलतापूर्वक किया जा सकता है अत: किसान इस प्रकार की भूमि को बत्तख पालन के लिए उपयोग करके लाभ प्राप्त कर सकते हैं|
- तालाब झील एवं अन्य जल बहुल्य क्षेत्रों में कवक ;फंजाईद्धए शैवाल;एल्गी. जल में उगने वाली घास घोंघे, मछलियाँए कीड़े इत्यादि बत्तखों के लिए प्रक्रितक आहार है अत: बत्तख के ऊपर किया जाने वाला आहार व्यय कम हो जाता है
- मुर्गियों के अंडे सांयकाल तक एकत्रित करने होते हैं जबकि बत्तख 98 प्रतिशत अंडे प्रात: 9 बजे से पूर्व ही दे देती हैं इससे मजदूरी की बचत तथा विपणन में सुविधा होती है
- बत्तख एक समझदार पक्षी है जो आवश्कतानूसार समय पर बाहर घूम फिर कर अपने निश्चित दड़बे में बिना किसी विशेष प्रयत्न के आ सकते हैं|
- मुर्गी की तुलना में बत्तख की देखरेख कम करनी पड़ती है एवं उसमें विशेष कुशलता की आवश्यकता नहीं होती है क्योकि बत्तख की प्रतिरोधक शक्ति स्वभावत: कुछ अधिक होती है एवं बत्तख को घर की आवश्यकता नहीं होती |साधारणतया रात्रि के समय बत्तख घर में रखे जाते हैं एवं दिन के समय अहाते में खुले छोड़ दिए जा सकते हैं |
- बत्तख के अंडे का छिलका मोटा होने का कारण इनके स्थानांतरण में टूट.फूट का भय कम रहता हैं एवं कम टूट.फूट के कारण ही इनसे होने वाले अंतत: लाभ में वृद्धि होती है
- बत्तख के अंडे तथा मांस हमारे देश के बड़े वर्ग द्वारा उपयोग किये जाते हैं और नकूच क्षेत्रों में इसकी दूसरे पक्षियों के मांस तथा अंडे की तुलना में अत्यधिक मांग है
- बत्तख में मुर्गियों के अपेक्षा रोगों की प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है,अत: इनमें मृत्युदर तथा रोग भी मुर्गी की अपेक्षा कम होती हैं|
- बत्तख मुर्गी की अपेक्षा अधिक शांत स्वभाव वाली पक्षी है तथा आसानी से पाली जा सकती है, जबकि मुर्गी से यह मर्यादा नहीं होती |मुर्गी में भक्षक प्रवृति होती है वे एक दूसरे को चोंच से मारती है और मांस तक खा लेती हैं |
उपर्युक्त तथ्यों के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि बत्तख पालन क्षेत्र का विकास हमारे देश में अंडे तथा मासं की न्यूनतम आवश्यकताओं को पूर्ण करने की दिशा में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है|
बत्तख जाति /नस्ल
बत्तख पालन आरम्भ करने से पूर्व अत्यंत आवश्यक है नस्ल का चुनाव जिस प्रकार मुर्गियों की विभीन्न जातियाँ हैं और उन्हें गुणों के आधार पर विभिन्न श्रेणियों में विभाजित किया गया है ,इसी प्रकार बत्तख को भी उनके गुण, रंग, जन्म स्थान आदि के आधार पर निम्नलिखित जातियों के अंतर्गत विभाजित किया गया है:
क .अंडा देने वाली जाति ;लेयर
- 1 इंडियन रनर ;उपजाति, सफेद, काला, हल्का पीला ;पान भूरा ;चोकलेटी
- 2 कैम्पबेल ;उपजाति खाकी सफेद और काला
ख .मासं वाली जाति ;ब्रोयलर
पेकिन, एलिसबरी, मस्कोवी ;6 उपजाति,आरफीगंटन ;5 उपजातिद्धए राउन इत्यादि
ग .शोभादायक जाति ;आरना मेंटल
काल मंडारिन,ईस्ट इन्डिय, डेका इत्यादि शोभादायक जाति आर्थिक कारणों को दृष्टिगत रखते हुए अधिक प्रचलित नहीं है |
बतखपालन शुरू करने के लिए शांत जगह बेहतर होती है | अगर यह जगह किसी तालाब के पास हो तो बहुत अच्छा होता है |क्योंकि बतखों को तालाब में तैरने के लिए जगह मिल जाती है,अगर बतखपालन की जगह पर तालाब नहीं है तो जरूरत के मुताबिक तालाब की खुदाई करा लेना जरूरी होता है| तालाब में बतखों के साथ मछलीपालन भी किया जा सकता है अगर तालाब की खुदाई नहीं करवाना चाहते हैं तो टीनशेड के चारों तरफ 2.3 फुट गहरी व चौड़ी नाली बनवा लेनी चाहिए, जिस में तैर कर बतखें अपना विकास कर सकती हैं| बतखपालन के लिए प्रति बतख डेढ़ वर्ग फुट जमीन की आवश्यकता पड़ती है इस तरह 5 हजार बतखों के फार्म को शुरू करने के लिए 3750 वर्ग फुट के 2 टीनशेडों की आवश्यकता पड़ती है इतनी ही बतखों के लिए करीब 13 हजार वर्ग फुट का तालाब होना जरूरी होता है|
प्रजाति का चयन
बतख पालन के लिए सब से अच्छी प्रजाति खाकी कैंपवेल है जो खाकी रंग की होती है ये बतखें पहले साल में 300 अंडे देती हैं ,2.3 सालों में भी इन की अंडा देने की कूवत अच्छी होती है तीसरे साल के बाद इन बतखों का इस्तेमाल मांस के लिए किया जाता है | इन बतखों की खासीयत यह है कि ये बहुत शोर मचाने वाली होती हैं |शेड में किसी जंगली जानवर या चोर के घुसने पर शोर मचा कर ये मालिक का ध्यान अपनी तरफ खींच लेती हैं|
इस प्रजाति की बतखों के अंडों का वजन 65 से 70 ग्राम तक होता है जो मुरगी के अंडों के वजन से 15.20 ग्राम ज्यादा है | बतखों के अंडे देने का समय तय होता है, ये सुबह 9 बजे तक अंडे दे देती हैं, जिस से इन्हें बेफिक्र हो कर दाना चुगने के लिए छोड़ा जा सकता है | खाकी कैंपवेल बतख की उम्र 3.4 साल तक की होती है जो 90-120 दिनों के बाद रोजाना 1 अंडा देती है
बतखों का आहार
बतखों के लिए प्रोटीन वाले दाने की जरूरत पड़ती है | चूजों को 22 फीसदी तक पाच्य प्रोटीन देना जरूरी होता है| जब बतखें अंडे देने की हालत में पहुंच जाएं तो उन का प्रोटीन घटा कर 18.20 फीसदी कर देना चाहिए |बतखों के आहार पर मुरगियों के मुकाबले 1.2 फीसदी तक कम खर्च होता है , उन्हें नालोंपोखरों में ले जा कर चराया जाता है, जिस से कुदरती रूप से वे घोंघे जैसे जलीय जंतुओं को खा कर अपनी खुराक पूरी करती हैं| बतखों से अच्छा उत्पादन प्राप्त करने के लिए उन्हें अलग से आहार देना जरूरी होता है|वे रेशेदार आहार भी आसानी से पचा सकती हैं | बतखों को 20 फीसदी अनाज वाले दाने,40 फीसदी प्रोटीन युक्त दाने ;जैसे सोयाकेक या सरसों की खली, 15 फीसदी चावल का कना 10 फीसदी मछली का चूरा 1 फीसदीए नमक व 1 फीसदी खनिजलवण के साथ 13 फीसदी चोकर दिया जाना मुनासिब होता है| हर बतख के फीडर में 100.150 ग्राम दाना डाल देना चाहिए |
इलाज व देखभाल
बतखों में रोग का असर मुरगियों के मुकाबले बहुत ही कम होता है| इन में महज डक फ्लू का प्रकोप ही देखा गया है, जिस से इन को बुखार हो जाता है और ये मरने लगती हैं |बचाव के लिए जब चूजे 1 महीने के हो जाएं तो डक फ्लू वैक्सीन लगवाना जरूरी होता है इस के अलावा इन के शेड की नियमित सफाई करते रहना चाहिए और 2.2 महीने के अंतराल पर शेड में कीटनाशक दवाआें का छिड़काव करते रहना चाहिए |
बतख के साथ मछलीपालन और लाभ
जिस तालाब में बतखों को तैरने के लिए छोड़ा जाता है, उस में अगर मछली का पालन किया जाए तो एकसाथ दोगुना लाभ लिया जा सकता है| दरअसल बतखों की वजह से तालाब की उर्वरा शक्ति में इजाफा हो जाता है| जब बतखें तालाब के पानी में तैरती हैं ,तो उन की बीट से मछलियों को प्रोटीनयुक्त आहार की आपूर्ति सीधे तौर पर हो जाती है जिस से मछलीपालक मछलियों के आहार के खर्च में 60 फीसदी की कमी ला सकते हैं|
इस तरह बतखपालन से काफी लाभ कमाया जा सकता है| बतख के अंडों को बेचने में किसी तरह की परेशानी नहीं होती है| इन्हें दवाएं बनाने के लिए भी खरीदा जाता है| बतख न केवल लाभ देती है, बल्कि यह सफाई बनाए रखने में भी योगदान देती है| मात्र 5.6 बतखें ही 1 हेक्टेयर तालाब या आबादी के आसपास के मच्छरों के लारवों को खा जाती हैं| इस तरह बतखें न केवल लाभदायी होती हैं, बल्कि ये मनुष्य की सेहत के लिए भी कारगर होती हैं |बतखपालन का काम बेरोजगार युवाओं के लिए आय का अच्छा साधन साबित हो सकता है |मुरगीपालन के मुकाबले बतखपालन कम जोखिम वाला होता है |बतख के मांस और अंडों के रोग प्रतिरोधी होने के कारण मुरगी के मुकाबले बतख की मांग अधिक है| बतख का मांस और अंडे प्रोटीन से भरपूर होते हैं |बतखों में मुरगी के मुकाबले मृत्युदर बेहद कम है, इस का कारण बतखों का रोगरोधी होना भी है| अगर बतखपालन का काम बड़े पैमाने पर किया जाए तो यह बेहद लाभदायी साबित हो सकता है |
कैसे करें बतख पालन की शुरुआत (How to start duck farming)
बतख पालन शुरू करने के लिए शांत जगह बेहतर होती है. अगर यह जगह किसी तालाब के पास हो तो बहुत अच्छा होता है, क्योंकि बतखों को तालाब में तैरने के लिए अच्छी जगह मिल जाती है. अगर बतख पालन की जगह पर तालाब नहीं है, तो जरूरत के मुताबिक तालाब की खुदाई करा लेना जरूरी होता है. इन बतखों की विशेषता यह है कि ये बहुत शोर मचाने वाली होती हैं. शेड में किसी जंगली जानवर या चोर के घुसने पर शोर मचा कर ये मालिक का ध्यान अपनी तरफ खींच लेती हैं. इस प्रजाति की बतखों के अंडों का वजन 65 से 70 ग्राम तक होता है, जो मुर्गी के अंडों के वजन से 15-20 ग्राम ज्यादा है. खाकी कैंपवेल बतख की उम्र औसतन 3-4 साल तक की होती है, जो 90-120 दिनों के बाद रोजाना 1 अंडा देती है.
तालाब में बतखों के साथ मछलीपालन भी किया जा सकता है. अगर तालाब की खुदाई नहीं करवाना चाहते हैं तो टीनशेड के चारों तरफ 2-3 फुट गहरी व चौड़ी नाली बनवा लें, जिसमें बतखें तैरकर अपना विकास कर सकती हैं. बतख पालन के लिए प्रति बतख डेढ़ वर्ग फुट जमीन की आवश्यकता पड़ती है. इस तरह 5 हजार बतखों के फार्म को शुरू करने के लिए 3750 वर्ग फुट के 2 टीनशेडों की आवश्यकता पड़ती है. इतनी ही बतखों के लिए करीब 13 हजार वर्ग फुट का तालाब होना जरूरी होता है.
ब्रूडिंग
ब्रूडिंग एक प्राकृतिक प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से पक्षी प्रजनन के बाद अपने बच्चो की देखभाल करता है। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिससे पक्षी अपने बच्चो को जन्म के बाद कुछ समय तक बाहरी तापमान से सुरक्षित रखती है। हालाकि बड़े पैमाने में बतख पालन में प्राकृतिक तरीके से ब्रूडिंग करना संभव नहीं है। इसीलिए हमें यह व्यवसाय शुरू करने से पहले आर्टिफीसियल ब्रूडिंग की इन पांच महत्वपूर्ण बिन्दुओ की जानकारी होनी चाहिए।
कई किसान इन बिंदुओं को जाने बिना इस व्यवसाय को शुरू करते हैं, परिणामस्वरूप, बतख के बच्चो की मृत्यु दर बढ़कर 70 से 80 प्रतिशत हो जाती है, और उन्हें अपने व्यवसाय में नुकसान उठाना पड़ता है।
‘ब्रूडिंग’ के 5 सबसे महत्वपूर्ण बिंदु – 5 most important points of ‘brooding’
तापमान: Temperature
ब्रूडिंग में सबसे महत्वपूर्ण बिंदु तापमान को माना जाता है। प्राकृतिक तरीके से ब्रूडिंग की प्रक्रिया में बतख अपने बच्चो को अपने पेट के निचले हिस्से में रखती है ताकि चूजों को उचित तापमान मिल सके। और यह प्रक्रिया तब तक चलती है जब तक चूजों के शरीर में फर न आ जाए। बतख पालन में ब्रूडिंग की प्रक्रिया हम प्राकृतिक तरीके से नहीं कर सकते है क्यूंकि इसमें चूजों की संख्या हजारो में होती है। ब्रूडर में हमें उचित तापमान की व्यवस्था करनी होती है, जो की हम बिजली के हीटर या बल्ब से कर सकते है।
जन्म के 2 से 3 दिन तक चूजों को किसी भी मैसम में 30 से 35 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। फिर धीरे धीरे आप तापमान को कम कर सकते है।
ब्रूडर का आकार: Shape of Brooder
ब्रूडर वो जगह है जहाँ हम चूजों को ब्रूडिंग के लिए रखते है। कई लोग इसका आकार आयताकार या वर्गाकार बनाते है, जो ब्रूडिंग के लिए बिलकुल भी सही आकार नहीं है।
ब्रूडिंग के दौरान चूजों को दौड़ने के लिए पर्याप्त जगह होनी चाहिए, जगह आयताकार होने से चूजे कोनों में फस सकते हैं, जिससे उनकी जान भी जा सकती है। ब्रूडर को हमेशा गोलाकार बनाये।
ब्रूडर को सूखा रखे : Keep brooder dry
ब्रूडर के अंदर चूजों को पानी पीने के लिए ड्रिंकर रखा जाता है, जिससे सभी चूजे पानी पीते हैं। पानी पीने के दौरान बहुत सारा पानी जमीन में गिर जाता है, जिसके कारण चूजों को नुक्सान हो सकता है। जमीन को सूखा रखने के लिए आप ड्रिंकर के निचे सूती का कपडा रख दे जिससे जमीन गीली होने से बच जाये।
फीडिंग का रखे ध्यान: Proper Feeding
जब आप अपने फार्म में नए चूजों को लाते है तो शुरुवात के सात दिनों तक उनके लगातार फीड कराते रहे, कारण यह है की सुरुवाती दिनों में बहुत से चूजे जब एक साथ ब्रूडर में रहते है तो सभी को खाना नहीं मिल पाता है। जिसके कारण चूजे कमजोर हो जाते है।
वैक्सीन का रखे ध्यान : Proper Vaccination
फार्मिंग के लिए चूजों का ब्रीडिंग मशीन में आर्टिफीसियल तरीके से किया जाता है। ब्रीडिंग दौरान उनको हाई टेम्परेचर में रखा जाता है। लगभग 37 डिग्री के तापमान से बाहर निकलने के बाद चूजों को होने वाली बीमारियों से बचा ने के लिए उचित तरीके से एंटीबायोटिक दिया जाना चाहिए। इसलिए आपको वक्सीनशन की सही जानकारी जरूर होनी चाहिए।
आपको यह जानकारी कैसी लगी, हमें कमेंट सेक्शन में जरूर बताये। बतख पालन से सम्बंधित और भी ढेरो जानकारी हम आपके लिए लाते रहेंगे।
बतखों का आहार (Duck diet)
बतखों के लिए प्रोटीन वाले दाने की जरूरत पड़ती है. चूजों को 22 फीसदी तक पाच्य प्रोटीन देना जरूरी होता है. जब बतखें अंडे देने की हालत में पहुंच जाएं, तो उन का प्रोटीन घटा कर 18-20 फीसदी कर देना चाहिए. बतखों के आहार पर मुर्गियों के मुकाबले 1-2 फीसदी तक कम खर्च होता है. उन्हें नालों पोखरों में ले जा कर चराया जाता है, जिस से कुदरती रूप से वे घोंघे जैसे जलीय जंतुओं को खा कर अपनी खुराक पूरी करती हैं. हर बतख के फीडर में 100-150 ग्राम दाना डाल देना चाहिए.
बतखों की प्रजाति का चयन (Duck species Special selection)
बतख पालन के लिए सब से अच्छी प्रजाति खाकी कैंपवेल है, जो खाकी रंग की होती है. ये बतखें पहले साल में 300 अंडे देती हैं. 2 – 3 सालों में भी ये अंडा देने के काबिल होती है. तीसरे साल के बाद इन बतखों का इस्तेमाल मांस के लिए किया जाता है.
इन बातों का रखें ध्यान
बत्तखों में रोगों से लड़ने की क्षमता मुर्गियों से ज्यादा होती है. लेकिन गर्मियों के मौसम में इन्हें खास देखभाल की जरूरत होती है. इसके लिए बत्तखों के रहने की जगह पर गंद पानी, गंदा दाना-पानी, दूसरे जानवरों से नजदीकी और गिला कूड़ा न रहे तो अच्छा होता है.
-आवास का फर्श सूखा व साफ रखें.
-बत्तखों के चूजे हमेशा रोहरहित व अच्छी नर्सरी से लें.
-बीमार बत्तखों को तुरंत अलग कर दें.
-मृत बत्तखों को जला दें या कहीं दूर लेजाकर दबा दें. -चिकित्सक से सलाह लेकर जरूरी टीके लगवाएं.
-इस व्यवसाय में नुकसान को कम करने के लिए चूजों पर विशेष ध्यान दें. चूजों की कमी का सीधा असर व्यवसाय पर पड़ता है.
चूजों का ऐसे रखें ध्यान
-चूजों को टिन गार्ड के घेरे में रखें.
-अंडों से निकले चूजों को फर्श पर रखने से पहले चटाई जरूर बिछा दें.
-5 से 6 हफ्तों तक हर 2 से 3 दिनों में चटाई को धूप में सुखाएं.
-चूजों को रोज दिन में 3 से 4 बार साफ पानी पिलाएं.
– चूजों को बारिक दाना दें.
-1 महीने बाद चूजों को तालाब में छोड़ें लेकिन शिकारी पशु-पक्षियों से उनकी रक्षा अवश्य करें.
बत्तख की नस्ले / Duck Breeds
बत्तख पालन करने से पहले उसके नस्लों(breeds) का selection कर लेना चाहिए। Business के purpose से बत्तख पालन करने के लिए बत्तख की दो नस्ले प्रमुख हैं एक अधिक अंडा देने वाली और दूसरी अधिक मांस देने वाली, जो की इस प्रकार है:
Common Duck Breeds in India
अंडा देने वाली नस्ले (लेयर / Egg)
इंडियन रनर
ये medium आकार के होते है और इनकी गर्दन (neck) पतली होती है। ये 6 month में अंडा देने लगते है। ये white, black, light yellow, और brown color में पाए जाते है। यह yearly 250 से 300 अंडा देती है।
कैम्पबेल
इस नस्ल के बत्तखो का body चौड़ा होता है। यह खाकी, सफेद व काले रंग में पाए जाते है। यह yearly 300 से ज्यादा अंडा देती है।
मासं वाली जाति (ब्रोयलर)
सफ़ेद पेकिन
इनका body चौड़ा होता है, यह ज्यादा शोर करने वाले और जल्दी डर जाने वाले बत्तख होते है।
एलिसबरी
इसमें हड्डी कम और मांस ज्यादा होती है।
मस्कोवी (6 उपजाति)
इन्हें “म्यूल बत्तख” भी कहा जाता हैं।
बत्तख के लिए गृह निर्माण / House Preparation of Duck
Duck Farm – बत्तख पालन में बत्तखो के लिए घर बनाना बहुत आसान होता है। आप इन्हें छोटा, बड़ा, गीला, शुष्क या किसी भी अन्य स्थानों पर रख सकते हैं।
बत्तख पानी वाले और गीला जगहो पर रहना ज्यादा पसंद करते है। आप एक बड़े फलों की टोकरी, लकड़ी या तेल के ड्रम का उपयोग करके अपने बतख के रहने के लिए एक उपयुक्त जगह बना सकते हैं।
बस इनके रहने के घरो में हमेशा एक प्रवेश और बाहर निकलने के लिए एक दरवाजा रहना चाहिए। दरवाजे थोड़े उचे होने चाहिए। आमतौर पर प्रत्येक बतख 2 से 3 square feet flooring space लेते है।
बत्तख को विशेष रूप से बिल्ली, लोमड़ी और कुत्ते जैसे जानवरों या शिकारियों से बचा कर रखने की अव्यश्कता होती है।
बत्तख का आहार / Food for Duck
मुर्गियों की तुलना में बतख रोजाना बहुत अधिक खाना खाते है। यदि आप बत्तख से उचित अंडे और मांस की उत्पादन करना चाहते हैं तो आपको उन्हें अच्छी तरह से संतुलित भोजन खिलाना होगा।
वैसे तो बतख मुर्गियों की तरह सभी प्रकार के भोजन खाते है, लेकिन इसके अतिरिक आप बत्तख के आहार में कुछ और भी जोड़ सकते है। कुछ बत्तख मुर्गियों की तुलना में अधिक अंडे देते हैं, तो आपको ऐसे बत्तखो को खिलाने में बहुत सावधान रहना होगा।
आपको इनके आहार में आवश्यक पोषक तत्व जोड़ने होंगे। बत्तख को आहार उनके नस्ल और उनके विकास के अनुसार दिया जाता है। यदि आप small scale पर batakh palan कर रहे है तो आप अपने बत्तख को खिलाने के लिए रसोई का कचरा, चोकर व घोंघे का इस्तेमाल कर सकते है।
चूँकि बत्तख पानी में रहता है इसलिए उन्हें सुखा आहार निगलने में काफी तकलीफ होती है। सुखे हुए आहार को वे अपने चोंच में दबा कर वापस उसे पानी में हीं उगल देते है जिससे सारा आहार बरबाद हो जाता है।
बत्तख में होने वाले रोग / Common disease in Duck
बत्तख में दो तरह के रोग ज्यादा पाए जाते है :-
- डक प्लेग
- वायरस हेपेटाईटिस.
इन दोनों रोगों से बचने के लिए बत्तखो को उपयुक्त टिके लगवाने का प्रबंध करना चाहिए।
बत्तख के बच्चे का लिंग निर्धारण / How to detect Duck’s Gender
यह नए पैदा हुए बत्तख़ के बच्चे के लिंग का पहचान करना इतना मुश्किल काम नहीं है। बत्तख़ के बच्चे की पूंछ को ऊपर उठा कर उसके निचे उँगलियों से दबा कर देखे यदि कांटे की तरह एक लिंग दिखाई दे तो समझ लीजिए यह पुरुष है और अगर नहीं है तो यह निश्चित रूप से एक महिला बतख होगी।
पुरुष बतख का निर्धारण करने के लिए एक और सबसे आसान तरीका यह है की पुरुष बतख की पूंछ के पंखों कर्ल (curled) रहते हैं।
बत्तख के अंडे का भंडारण / Egg Management
आप अंडे के भंडारण के लिए रेफ्रिजरेटर का use कर सकते हैं। इसके अलावा अंडा भंडारण के लिए नीबू पानी या pyraphine का इस्तेमाल किया जा सकता है।
Profit Margin
आप बत्तख के अंडे और मांस को भी बेच सकते है. परन्तु अगर आप अच्छा मुनाफा कमाना चाहते है तो आप केवल बत्तख के अंडे को बेचिये, ना की बत्तख को.
आपने वह कहावत तो सुनी ही होगी “सोने की मुर्गी जो रोज अंडा देती है”, ठीक उसी तरह अगर आप बत्तख को मांस के लिए बेच देंगे तो आपको आगे चलकर कोई खास फ़ायदा नहीं होगा.
बत्तख के अंडे के दाम / Price of Duck’s Eggs in India
Local market में आपको 9 से 11 रूपए का एक बत्तख का अंडा मिलेगा. और दर्जन (Dozens) के हिसाब से Rs 108 से ले कर 130 तक मिलेगा.
इसका मतलब है की, अगर उच्च नस्ल के बत्तखों के अंडे को बेचा जाये (एक average cost में) तो आपको केवल एक बत्तख से Rs 2,800 से Rs 3,000 आसानी से मिल जायेंगे.
ठीक उसी प्रकार अगर आपके पास 200 Ducks है तो आप Rs 5,60,000 कमाई कर सकते है. और अगर खाने पिने, दवा, लेबर इत्यादि को जोड़ दे तो भी आपको लगभग 1,50,000 तक का खर्चा आएगा. फिर भी आप एक साल में 4 लाख तक आसानी से कम सकते हैं.
विपणन / Marketing
बतख के अंडे की marketing से पहले अंडे का खोल की गंदगी को पूरी तरह से साफ कर लेना चाहिए। ध्यान रहे की अंडे को पानी से नहीं साफ किया जाता है इससे अंडे खराब हो सकते है। आप इसे साफ़ करने के लिए paper या towel का इस्तेमाल कर सकते हैं।
एक स्थान पर से दुसरे स्थान पर अंडे को ले जाने के लिए अंडे की टोकरी या गाड़ी का प्रयोग करें। अंडे को रखने के लिए इस तरह के कार्टून का चयन करना चाहिए जिसमे प्रत्येक कार्टून में (size के हिसाब से) कम से कम 2 दर्जन अंडे आ सके।
बाजार या अन्य गंतव्य के लिए अंडे के परिवहन हेतु बांस की टोकरी, लकड़ी के बक्से या फिर अन्य दूसरी चीजों का उपयोग किया जा सकता हैं। यदि आप अंडे को ले जाने के लिए इस तरह के बक्से का उपयोग करें तो बक्से में अंडे को रखने के बाद उसके चारो तरफ से पुआल या चावल की भूसी की मोटी परत बना कर रख देना चाहिए।
Note– बत्तख पालन व्यवसाय से अधिकतम मुनाफा बनाने के लिए, आपको बतख की देखभाल, उनके लिए चारा प्रबंधन, उनके रहने की आवास, विपणन की जानकारी लेने पर अधिक ध्यान देना होगा।
अगर आप ये सभी प्रक्रिया अच्छी तरह से कर लेंगे, तो आप इस व्यवसाय से बहुत हीं अच्छा आय कमा सकते हैं।
बत्तख पालन से लाभ
अगर आप मुर्गी पालन या मछली पालन करते है तो उसके वनिस्पत बत्तख पालन को शुरु करना और बड़े स्तर पर ले जाना आसान होता है. चलिए जानते है वो कौन कौन से मुख्या कारण और फायदे है जिनके कारण बत्तख पालन करना लाभदायक सिद्ध होता है :
- उच्च नस्ल वाली बत्तख जैसे की इंडियन रनर और कैम्पबेल yearly 300 से ज्यादा अण्डे (eggs) देती हैं।
- मुर्गियों की तुलना में बत्तखो में कम रोग पाए जाते है।
- बत्तख के एक अंडे का weight लगभग 70 g होता है।
- मुर्गियों के अंडे की comparison बत्तख के अंडे ज्यादा महंगे बिकते है।
- बत्तख के आहार में भी बहुत कम खर्च लगता है क्योंकि ये पानी में से घोंघे को खा कर भी अपना पेट भर लेते है।
- मुर्गियों की comparison में बत्तख की life भी ज्यादा होती है।
बत्तख पालने के फायदे ही फायदे
बत्तख पालने के बहुत से advantages है. मुर्गी के बाद meat और अंडे के business के लिए एक मात्र पक्षी बत्तख ही है. अत: बत्तख पालन businness की दृष्टी से बहुत ही फायदेमंद साबित हो सकता है. बत्तख पालन के कुच्छ फायदे निम्न है :-
बत्तख अंडे का दुसरा सबसे बडा श्रोत है. अच्छे नसल की बत्तख 1 साल में कम से कम 300 अंडे का उत्पादन करती है.
- बत्तख के अंडे का वजन और मुर्गियों के अंडो से ज्यदा होता है, साथ ही बत्तख के अंडो मी protine की मात्रा भी मुर्गियों के अंडो के मुकाबले अधिक होती है.
- जिन जगहों पर अधिक वर्षा हो और वह की मौसम में नमी ज्यादा होती हो उन जगहों पर मुर्गी पालन business sucess नहीं होता है, लिकिन उस जगहों पर बत्तख पालन बहुत ही लाभदायक सिद्ध होता है.
- बत्तख पानी में निकलने वाले घास, कीड़े, मकोड़े, घोंघे, मछली इत्यादि का सेवन करते है. इसलिए इन पर खाने का ज्यदा कर्च भी नहीं होता है.
- बत्तख बहुत ही समझदार पक्षी होती है उन्हें हमेशा guide करने के ज़रूरत नहीं होती है. वे समय होने पर अपने निश्चित जगहों पर खुद से आ जाते है.
- बत्तख में मुर्गियों की अपेक्षा प्रतिरोधक क्षमता बहुत अधिक होती है, इसलिए बत्तख मुर्गियों से ज्यादा दिन जिंदा रहते है.
- बत्तख शांत स्वभाव के पक्षी होते है वे झुण्ड में एक साथ रहना पसंद करते है इसलिए इनके गुम होनी की संभवाना कम होती है.
पहले घरों में अंडे के लिए पाले जाने वाले इस जीव के पालन को अब रोज़गार के रूप में देखा जा रहा है। पिछले दिनों से बत्तखों को घरों में विशेष रूप से पाला जा रहा है जो काफी फायदा भी देता है।
बत्तख पालन के लाभ
भारत में बड़ी संख्या में बत्तख पाली जाती हैं। बत्तखों के अण्डे एवं मांस लोग बहुत पसंद करते हैं, अतः बत्तख पालन व्यवसाय की हमारे देश में बड़ी संभावनाएँ हैं। बत्तख पालने के निम्नलिखित लाभ हैं-
- उन्नत नस्ल की बत्तख 300 से अधिक अण्डे एक साल में देती हैं।
- बत्तख के अण्डा का वजन 65 से 70 ग्राम होता है।
- बत्तख अधिक रेशेदार आहार पचा सकती हैँ। साथ ही पानी में रहना पसंद होने से बहुत से जलचर जैसे–घोंघा वगैरह खाकर भी आहार की पूर्ति करते हैं। अतः बत्तखों के खान-पान पर अपेक्षाकृत कम खर्च करना पड़ता है ।
- बत्तख दूसरे एवं तीसरे साल में भी काफी अण्ड़े देती रहती हैँ। अतः व्यवसायिक दृष्टि से बत्तखों की उत्पादक अवधि अधिक होती है।
- मुर्गियों की अपेक्षा बत्तखों की उत्पादक अवधि अधिक होती है।
- मुर्गियों की अपेक्षा बत्तखों में कम बीमारियाँ होती हैं।
- बहता हुआ पानी बत्तखों के लिए काफी उपयुक्त होता है, किन्तु अन्य पानी के स्त्रोत वगैरह में भी बत्तख पालन अच्छी तरह किया जा सकता है।
NB- इन बातों का रखें ध्यान- ▪️ बत्तखों के रहने की जगह पर गंद पानी, गंदा दाना-पानी, दूसरे जानवरों से नजदीकी और गिला कूड़ा न रहे तो अच्छा होता है. ▪️ बत्तखों के चूजे हमेशा रोहरहित व अच्छी नर्सरी से लें. ▪️ बीमार बत्तखों को तुरंत अलग कर दें. ▪️ मृत बत्तखों को जला दें या कहीं दूर लेजाकर दबा दें. ▪️ चिकित्सक से सलाह लेकर जरूरी टीके लगवाएं. ▪️ इस व्यवसाय में नुकसान को कम करने के लिए चूजों पर विशेष ध्यान दें. चूजों की कमी का सीधा असर व्यवसाय पर पड़ता है. चूजों का ऐसे रखें ध्यान- ▪️ चूजों को टिन गार्ड के घेरे में रखें. ▪️ अंडों से निकले चूजों को फर्श पर रखने से पहले चटाई जरूर बिछा दें.-5 से 6 हफ्तों तक हर 2 से 3 दिनों में चटाई को धूप में सुखाएं. ▪️ चूजों को रोज दिन में 3 से 4 बार साफ पानी पिलाएं. ▪️ चूजों को बारिक दाना दें. ▪️ 1 महीने बाद चूजों को तालाब में छोड़ें लेकिन शिकारी पशु-पक्षियों से उनकी रक्षा अवश्य करें.
बत्तख -मछली पालन समेकित पशुधन प्रणाली
बत्तख -मछली पालन समेकित पशुधन प्रणाली
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Compiled & Shared by- Team, LITD (Livestock Institute of Training & Development) Image-Courtesy-Google Reference-On Request.