बदलते मौसम मे कैसे रखे अपने पशुओ का ख्याल
जब मौसम बदल रहा हो तो मनुष्य ही नहीं पशु पक्षी भी बीमारी की चपेट में आ जाते हैं सुबह शाम तो ठंड रहती है लेकिन दोपहर में गर्मी। जिस कारण पशु कई प्रकार की बीमारियों की जद में आ जाते हैं।
पशुओं में ठंड के कारण रोग प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती ही।
जिन पशुओं ने अभी जन्म लिया है उन्हें हाइपोथर्मिया, निमोनिया और डायरिया आदि रोग् होने की संभावना रहती है। ऐसे में पशुओं की सही देखभाल करना बहुत आवश्यक हो जाता है।
पशुओं में बीमारी के लक्षण —–
० सर्वप्रथम जब पशु बीमार होता है तो वह चारा खाना बंद कर देता है।
० जुगली करना छोड़ देता है।
० सुस्त रहने लगता है।
० चलने फिरने में पशु को परेशानी होती है।
० शरीर के तापमान में लगातार गिरावट रहने लगती है।
बदलते मौसम में होने वाले रोग
अफ़रा
ठंड के मौसम में पशुओं को आवश्यकता से अधिक दलहनी हरा चारा जैसे बरसीम व अधिक मात्रा अन्न व आटा, बचा हुआ बासी भोजन खिलाने के कारण यह रोग होता है इसमें जानवर के पेट में गैस बन जाती है बांयी कोख फूल जाती है। रोगग्रस्त होने पर ग्रोवेल का ग्रोविल फोर्ट दें इस दवा से तुरंत लाभ होता है।
** निमोनिया **
ठंड में दूषित वतावरण व बंद कमरे में पशुओं को रखने के कारण तथा संक्रमण से यह रोग होता है। उपचार के लिए ग्रोवेल का ग्रेविट- ए देने से आराम मिलता है।
** ठंड लगना **
पशु को ठंड लगने पर आँख व नाक से पानी आने लगता है, भूख कम लगती है, शरीर के रोयें खड़े हो जाते हैं।
उपचार के लिए एक बाल्टी खोलते हुए पानी पर सूखी घास रख दें, पशु का चेहरा बोरे या मोटे चादर से ढक दें फिर बाल्टी पर रखी सूखी घास पर बूंद बूंद तारपीन का तेल टपकाएं। इससे जो भाप उठेगी उससे पशु को आराम मिलता है। दवा में ग्रोवेल का ऐमिनो पावर दें, यह विटामिन, प्रोटीन, और मिनरल्स की कमी को पूरा करता है।
** दस्त **
ठंड के मौसम में दस्त की शिकायत होती है अतः दस्त होने पर ग्रोवेल का ग्रोविल फोर्ट दें और साथ में नियोक्सिविटा फोर्ट दें इस से पशु को आराम मिलेगा।
त्वचा रोग
बदलते मौसम में गायों और भैंसो में त्वचा रोग बहुत जल्दी होते हैं कई प्रकार के जीवाणु और कृमि के कारण पशुओं में त्वचा रोग होते हैं इसमें पशुओं की खाल में मवाद पड़ जाती है त्वचा लाल हो जाती है।
इसके उपचार के लिए एंटीबायोटिक शेम्पु से नहलाना चाहिए तथा ओलिनोल और प्रेडनीसोलान दवा का प्रयोग करना चाहिए।
** खुरपका और मुंह पका रोग **
गर्मी का आगमन हो या सर्दी की शुरुआत यह रोग बहुत तेजी से फैलता है इससे पशुओं की जान तक चली जाती है। यह रोग वायरस से फैलता है। ये विषाणु हवा में होते हैं तथा हवा के द्वारा ही जीभ, मुँह, आंत, खुर, थन, खुले घाव से पशु के खून् में पहुँच जाते हैं। इस रोग का कोई निश्चित उपचार नहीं है। मुँह और खुरों के घावों को पोटाश व फिटकरी के पानी से धोना चाहिए एंटीबायोटिक देनी चाहिए।
** संक्रमण **
सर्दी का असर कम होने पर पशुओं में संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है इस समय मच्छर, मक्खी, कीड़े, मकोड़े आदि बहुत तेजी के साथ पनपते हैं जिनसे ऐनाप्लास्मोस, थाईलेरिओसिस, बबेओसिस आदि रोग फैलने की संभावना रहती है। इसके उपचार के लिए लवण मिश्रित दाना देना चाहिए।
पशु को ठंड से व रोगग्रस्त्त होने से बचाने के उपाय —–
• सर्वप्रथम पशुओं को ठंड से बचाने के तरीके अपनाएं।
• संतुलित आहार दें।
• तालाब से पशुओं को दूर रखें।
• खीस पिलाकर बच्चों की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाएं।
• ब्याये पशुओं को खाड़िया पिलाएं।
• लवण मिश्रण पिलाएं।
• व्यस्क व बच्चों को पेट के कीडे की दावा पिलाएं।
• बाहिय परजीवी से बचाव के लिए गुनगुने पानी में दवा मिलाकर नहलायें।
• गौशाला को नमी व सीलन से बचाएं।
• सूर्य की रोशनी भरपूर आगे दें।
• जहां तक संभव हो गुनगुना व ताजा पानी पिलाएं।
• बीछावन में पुआल का प्रयोग करें।
• गर्मी के लिये अलाव का प्रबंध करें।
• छोटे बच्चों को ऐमिनो पावर अवश्य पिलाएं।
• ठंड से प्रभावित पशु के शरीर में कंपकपी, बुखार के लक्षण हों तो चिकित्सक की सलाह लें।
इस प्रकार बदलते मौसम में पशु की देखभाल की जा सकती है।