बारिश के मौसम में बीमार पशु द्वारा मिट्टी और पानी भी संक्रमित हो जाते हैं जिस के संपर्क में आने से स्वस्थ पशुओं के संक्रमित होने की सम्भावना बड़ जाती है। इस लिये रोगी पशु को स्वस्थ पशु से अलग रखें। इस मौसम में पशुओं में होने वाले प्रमुख संक्रामक रोग जैसे गलघोटू, लंगड़ा बुखार, खुरपका मुँहपका, न्यूमोनिया आदि हैं। परजीवी रोगों में बबेसिओसिस, थैलेरिओसिस आदि प्रमुख रोग हैं।
पशुओं में होने वाले संक्रामक रोग जैसे खुरपका मुँहपका, गलघोटू तथा लंगड़ा बुखार प्रमुखता से बरसात के दिनों में गौवंश को प्रभावित करते है तथा कई बार पशुओं की जान भी चली जाती है। इन रोगों से बचाव हेतु बारिश से पहले टीकाकरण करना आवश्यक है टीकाकरण की जानकारी नीचे दी गई है ।
बारिश के मौसम में पशुओं के रखरखाव में सावधानियांउपरोक्त बीमारियों को ध्यान में रखने के साथ-साथ पशुपालकों को वर्षा ऋतु में पशु प्रबंधन सम्बंधी बातों पर भी गौर करें जो कि निम्नलिखित हैं।
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बारिश से पहले पशुओं में टीकाकरण
टीकाकरण के द्वारा विश्व में करोड़ों पशुओं में विभिन्न संक्रामक रोगों से बचाव संभव है इस तरह पशुपालकों अपने पशुओं का उचित टीकाकरण पशु चिकित्सक की सलाह पर शुरुआत में ही करें तथा प्रति वर्ष पुन: टीकाकरण दोहराना चाहिए। गाय एवं भैंसों में खुरपका मुँहपका, गलघोंटू, टंगिया रोग आदि का टीका बारिश से पहले लगाया जाता है। भेड़ और बकरियों में भी मानसून की शुरुआत में पीपीआर और गलघोंटू का टीका लगाया जाता है। टीकाकरण की विस्तृत जानकारी निम्नानुसार है
मानसून के समय में वातावरण में आद्र्रता बढ़ जाती है। पशुशाला के अंदर गरमी, जानवरों का मलमूत्र और निस्कासित हवा में जीवाणुओं की संख्या बडऩे से पशुओं में विभिन्न संक्रामक बीमारियों की संभावना बड़ जाती है। वातावरण में आद्र्रता की अधिकता होने के कारण पशुओं की आंतरिक रोगों से लडऩे की क्षमता पर भी असर पड़ता है परिणामस्वरूप पशु अनेक रोगों से ग्रसित हो जाता हैं। इसी मौसम के दौरान परजीवियों की संख्या में भी अत्यधिक वृद्धि हो जाती है जिससे पशुओं में परजीवी रोग भी हो सकते हैं। इन रोगों के प्रकोप से पशु का स्वास्थ्य बिगड़ जाता है जिससे पशुपालकों को भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ता है। |
परजीवियों का प्रकोप
बारिश के मौसम में प्राय: परजीवियों की संख्या में अत्यधिक वृद्धि हो जाती हैं। जिससे पशुओं को शारीरिक व्याधियों का सामना करना पड़ता हैं। परजीवी प्राय: दो प्रकार के होते हैं –
- अन्त: जीवी – जैसे पेट के कीड़े, कृमि आदि
- बाह्य जीवी – चीचड़, मेंज, जूं आदि
लक्षण – रोगग्रसित पशु में सुस्ती, कमजोरी, अनीमिया (खून की कमी) एवं दूध में कमी देखने को मिलती है। पशु को पाचन प्रक्रिया में शिकायत रहती है जिससे पेट में दर्द और पतला गोबर आता है।
उपचार- पशुचिकत्सक की सलाह से पशुओं को उनके वजन के अनुसार परजीवीनाशक दवा नियमित रूप से दो बार पिलायें।
बचाव- बारिश के मौसम में पशुओं को तालाब के किनारे न लेकर जाएं। इसके साथ-साथ तालाब की किनारों वाली घास न खिलाएं, क्योंकि ये घास कीड़ों के लार्वा से ग्रस्त होती हंै। जो कि पेट में जाकर कीड़े बन जाते हैं और अनेक विकार उत्पन्न करते हैं।
खाज-खुजली: बारिश के मौसम में अक्सर पशुओं में खाज-खुजली की शिकायत होती है इसका मुख्य कारण पशुशाला में गंदगी का होना है। इस रोग में पशु की त्वचा पर अत्यंत खुजलाहट होती है, जिसकी वजह से त्वचा मोटी होकर मुरझा जाती है एवं पशु के खुजली करने पर त्वचा छिल जाती है और उस जगह के सारे बाल झड़ जाते हैं। कभी-कभी इन जगह पर जीवाणुओं के संक्रमण से दुर्गन्ध भी आती है।
चीचड़: बारिश के मौसम में अक्सर पशुओं में चीचड़ लग जाते हैं ये चीचड़ पशु का खून चूसते हंै जिससे खून की कमी हो जाती है तथा कई प्रकार के रोग भी फैलाते हैं जैसे बबेसिओसिस, थैलेरिओसिस आदि।
उपचार- पशुचिकित्सक की सलाह से कीटनाशक दवा को पशु के ऊपर लगायें तथा पशुशाला में भी छिड़काव करायें।
मानसून से पहले गाय और भैंसों में लगाए जाने वाले टीके | |
टीका | समय |
गलघोंटू | मानसून से पहले |
ब्लेकक्वार्टर | मानसून से पहले |
खुरपका मुँहपका | मार्च … अप्रैल |
सितम्बर … अक्टूबर | |
सालाना दो बार | |
नोट: | |
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