‘ब्रूसीलोसिस एक अत्यंत संक्रामक रोग है, जो ब्रूसेला जाति के जीवाणु द्वारा उत्पन्न होता है।’
इसे ‘लहरदार बुखार’, ‘भू-मध्यसागरीय ज्वर’, ‘माल्टा ज्वर’ के नाम से भी जाना जाता है।
ब्रूसीलोसिस मुख्यत: मवेशियों शूकर, बकरी, भेड़ और कुत्तों को होने वाला पशुजन्य रोग है।
संक्रमण मनुष्य में संक्रमित सामग्री जैसे कि जन्म के समय निकलने वाले पदार्थ के साथ पशुओं के प्रत्यक्ष संपर्क या पशु उत्पाद सेवन से अप्रत्यक्ष रूप या हवा में उपस्थित वातानीत एजेंटों को सांस के भीतर लेने से फैलता है।
मनुष्य में संक्रमण का प्रमुख स्रोत कच्चे दूध का सेवन एवं कच्चे दूध से निर्मित पदार्थ हैं।
कारण:
ब्रूसीलोसिस बैक्टीरिया ब्रूसेला की प्रजातियों जैसे कि ब्रूसेला अबोर्टस, मेलिटेंसिस, सुईस, केनिस के कारण होता है।
ये संक्रमित जानवरों के मूत्र, दूध एवं गर्भनालीय तरल पदार्थों में अधिक संख्या में निकलते हैं।
ब्रूसेला प्रजाति धूल, गोबर, पानी, गाढ़े घोल, गर्भपात भ्रूण, मिट्टी, मांस और डेयरी उत्पादों में लंबी अवधि तक जीवित रह सकते हैं।
उष्मायन अवधि अधिक परिवर्तनशील होती हैं। आमतौर पर उष्यामन अवधि दो से चार सप्ताह होती है। लेकिन एक सप्ताह से दो महीने या उससे अधिक समय तक हो सकती है।
लक्षण: शुरूआती लक्षणों में बुखार, कमजोरी, बेचैनी, आहार, सिरदर्द, भूख में कमी, मांसपेशियों और जोड़ों और पीठ में दर्द, थकान शामिल है।
कुछ संकेत और लक्षण लंबे समय तक रह सकते हैं जैसे कि- आवर्तक बुखार, गठिया, अंडकोष और अंडकोष के क्षेत्र की सूजन, कोनिक थकान, अवसाद, यकृत और तिल्ली की सूजन। जटिलताएं शरीर की किसी भी अंग प्रणाली को प्रभावित कर सकती है। रोग द्वारा मृत्यु की संख्या अधिक नहीं है, किन्तु रोग शीघ्र दूर नहीं होता है।
निदान : इसलिए निदान के लिए प्रयोगशाला परीक्षणों के सहयोग की आवश्यकता होती है।
संभावित नैदानिक परीक्षण 2 तरह का होता है। पहला रोज़ बंगाल टेस्ट (क्रक्चक्कञ्ज) और दूसरा स्टैंडर्ड एग्लूटीनेशन टेस्ट (स््रञ्ज) स्क्रीनिंग के लिये रोज़ बंगाल टेस्ट (क्रक्चक्कञ्ज) यदि संभावित नैदानिक परीक्षण सकारात्मक है, तो नैदानिक पुष्टि परीक्षण के तहत दो परीक्षणों में से एक रोग पुष्टि के लिये किया जाता है।
पुष्टि नैदानिक परीक्षण : रक्त या अन्य नैदानिक नमूने से ब्रूसेला प्रजाति को अलग किया जाता हैं।
संभावित प्रयोगशाला नैदानिक परीक्षण एग्लोटिनेटिंग एंटीबॉडी (आरबीटी, एसएटी) संख्या पता लगाने पर आधारित है। उनको गैर-एग्लोटिनेटिंग एंटीबॉडी का पता लगाने वाले परीक्षण के साथ एलिसा आईजीजी परीक्षण और कूम आजीजी के माध्यम से किया जाता है।
इस रोग के तथा इंन्फ्लुएंजा मलेरिया, तपेदिक, मोतीझिरा आदि रोगों के लक्षण आपस में मिलने के कारण विशेष समूहन परीक्षण तथा त्वचा में टीका परीक्षण से भी रोग का निदान होता है।
पशुओं का छूनदार गर्भपात :
जीवाणुजनित इस रोग में गोपशुओं तथा भैंसों में गर्भावस्था में अंतिम त्रैमास में गर्भपात हो जाता है। मनुष्यों में यह उतार चढ़ाव वाला बुखार (अन्ड्यूलेण्ट फीवर) नामक बीमारी पैदा करता हैं। पशुओं में गर्भपात से पहले योनी से अपारदर्शी पदार्थ निकलता है तथा गर्भपात के बाद पशु की जेर (क्कद्यड्डष्द्गठ्ठह्लड्ड) रूक जाती है। इसके अतिरिक्त यह जोड़ों में आथ्रायटिस (जोड़ों की सूजन) पैदा कर सकता है।
उपचार एवं रोकथाम :
अब तक इस रोग का कोई प्रभावकारी इलाज नहीं है।
इसकी रोकथाम के लिए बछियों में 3-6 माह की आयु में ब्रूसेल्ला अबोर्टस स्ट्रेन-19 के टीके लगाए जा सकते हैं।
पशुओं में प्रजनन की कृत्रिम गर्भाधान (्रढ्ढ) पद्धति अपनाकर भी इस रोग से बचा जा सकता है।
रोग प्रतिषेध के लिए पाश्चुरीकृत दूध को काम में लाना चाहिए।
चिकित्सा में उचित परामर्श तथा सल्फोनामाइड, स्ट्रोटोमाइसिन आदि का प्रयोग होता है।