विषय:-भारतीय कृषि में पोल्ट्री उद्योग की भूमिका।
सन्दर्भ:- भारतीय कृषकों की आय दोगुनी करने की आपकी विचारधारा एवं 19-20 फरवरी को इसी संदर्भ में दिल्ली की कार्यशाला।
PASHUDHAN PRAHAREE NETWORK,
माननीय प्रधानमंत्री जी,हम समस्त भारतवासी इस सारगर्भित सत्य से भलीभांति परिचित हैं कि भारत एक कृषि प्रधान देश है।कृषक के जीवन में कृषि के साथ ही उसको सहयोग प्रदान करते हुए चलता है पशुपालन, और आज पशुपालन के क्षेत्र में पोल्ट्री फार्मिंग ने एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है।यदि हम भारतीय पशुपालन पर नजर डालें तो पाएंगे कि पोल्ट्री व्यवसाय ही एक ऐसा व्यवसाय रहा है जो अन्य पशुपालन व्यवसायों की तुलना में,विगत वर्षों में तीव्र गति से बढ़ा है और आज भी बढ़ रहा है।किंतु आज इस व्यवसाय को विभिन्न प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है और यदि समय रहते इन परेशानियों का समाधान नहीं हो पाया तो भारतीय कृषक इस व्यवसाय को बंद करते चले जायेंगे।कालांतर में बंद होता यह व्यवसाय कृषकों की आमदनी भी कम कर देगा।मैं आपका ध्यान कुछ मुख्य बिंदुओं पर आकर्षित करना चाहूँगा…
१- कृषकों नें जब अपना पोल्ट्री फार्म अपनी कृषि भूमि पर बनाया तब ये सभी फार्म शहरी तथा ग्रामीण आबादियों से दूर उनके खेतों में थे।ये समस्त फार्म ग्रामपंचायतों से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेकर बनाये गए थे।किंतु धीरे-धीरे जनसंख्या बढ़ी और भूमाफियाओं नें आसपास की कृषि भूमि खरीदकर उसे आवासीय भूमि में डायवर्सन करवाकर वहाँ रहवासी कालोनियां बनानी शुरू कर दीं।अब ये भूमाफिया तथा इन कॉलोनियों में रहने वाले लोग इन पोल्ट्री किसानों पर,प्रदूषण को मुद्दा बनाकर विभिन्न माध्यमों से दबाव बनाते हैं कि फार्म बंद कर दो,ऐसे कई प्रकरण न्यायालयों में भी विचाराधीन हैं।महत्वपूर्ण बात यह है कि आज यह पोल्ट्री व्यवसाय उस किसान तथा उसके आश्रित परिवार के जीविकोपार्जन का मुख्य स्रोत है, इसे वह कैसे बन्द कर दे…?जबकि उसनें पशुपालन के अंतर्गत आने वाले समस्त नियमों का पालन करते हुए अपना पोल्ट्री फार्म खोला था।आज उससे पूछा जाता है कि…
*तुमनें पोल्ट्री फार्म खोलने हेतु अपनी कृषि भूमि का व्यवसायिक भूमि में डायवर्सन करवाया है कि नहीं…? जबकि नियम तो यह है कि पोल्ट्री व्यवसाय कृषि-सह कार्य (Allied Agriculture) के अंतर्गत आता है और उसके लिए कृषि भूमि का व्यवसायिक भूमि में डायवर्सन करवाना आवश्यक ही नहीं है।
*तुमनें अपना पोल्ट्री फार्म खोलने से पहले “ग्राम तथा नगर निवेश” से अनुमति ली थी कि नहीं…? जबकि जब ये फार्म खुले थे तब ये शहरी आबादी तथा नगर निगम क्षेत्रों से बाहर थे,और नियम यह है कि 1लाख मुर्गियों से कम क्षमता का पोल्ट्री फार्म खोलने हेतु किसी से अनुमति की आवश्यकता ही नहीं है।
*तुमनें अपना पोल्ट्री फार्म खोलने से पहले प्रदूषण विभाग से अनुमति ली थी कि नहीं…? जबकि यहाँ भी यही नियम है कि पोल्ट्री व्यवसाय एक कृषि सह-कार्य है जिससे वातारण को कोई नुकसान नहीं होता है तथा 1लाख मुर्गियों से कम क्षमता वाले पोल्ट्री फार्मों को इसकी आवश्यकता ही नहीं है।
महोदय, अब मैं आपसे एक प्रश्न करना चाहता हूँ, कि जिस तरह अपनी कृषि भूमि पर अपना पोल्ट्री फार्म खोलने हेतु ग्रामपंचायत का अनापत्ति प्रमाण पत्र लेना होता है,ठीक उसी तरह किसी पोल्ट्री फार्म के आसपास रहवासी कॉलोनी बनाने से पहले स्थानीय पोल्ट्री संगठनों का अनापत्ति प्रमाण पत्र नहीं लेना चाहिए…?
एक अन्य बात यह भी है जो कि विचारणीय है,जितने भी केंद्रीय कुक्कुट अनुसंधान केंद्र (CPDO)हैं या शासकीय कुक्कुट पालन केंद्र हैं वे सभी शहर के बीचोंबीच हैं तो क्या उनसे कोई नुकसान नहीं है…?
२-भारत एक विशाल राष्ट्र है,दुनिया के कई देश तो इसके एक-एक राज्य के बराबर भी नहीं हैं,ऐसी परिस्थिति में यह कहाँ तक तर्कसंगत एवं न्यायसंगत है कि केरल के किसी एक गाँव में दो चार देशी मुर्ग़ियों में बर्ड-फ्लू का वाइरस पाया जाए और पूरे भारत में अलर्ट जारी कर दिया जाए कि अंडे और चिकन का सेवन ना किया जाए।इससे एक ओर जहाँ पोल्ट्री उत्पादों का निर्यात बन्द हो जाता है वहीं दूसरी ओर अफवाहों के कारण देश में भी इनकी खपत बन्द हो जाती है,इस दोहरी मार से पोल्ट्री किसानों को जबरदस्त आर्थिक नुकसान पहुँचता है।इस आर्थिक त्रासदी से बचने के लिए क्या भारत को 8 या 9 पोल्ट्री जोन में नहीं बांट देना चाहिए, ताकि यदि किसी एक जोन में बर्ड-फ्लू की शिकायत मिलती भी है तो सिर्फ उसी क्षेत्र को निगरानी में रखा जाए शेष जोन इससे अप्रभावित रहें।यदि ऐसा हो पाया तो भारतीय पोल्ट्री व्यवसाय के लिए यह वरदान होगा।
३- अमेरिकन चिकन लेग पीस को भारत मे आयात होने से रोका जाए नहीं तो भारतीय पोल्ट्री उद्योग को बड़ी आर्थिक क्षति होगी।अनुमानतः ये आयातित चिकन लेग पीस भारत का लगभग 40% व्यवसाय छीन लेंगे।
४-भारतीय पोल्ट्री उद्योग में सालाना लगभग 120 लाख टन मक्का एवं 40 लाख टन सोयामील की खपत होती है जो प्रत्यक्ष रूप से भारतीय कृषि उद्योग को सहायता प्रदान करता है।
५-विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) नें माँ के दूध के बाद अंडे के प्रोटीन को “उच्च प्रोटीन जैविक गुणांक” के साथ प्रकृति में उपलब्ध सर्वोत्तम प्रोटीन का स्रोत माना है।अंडे में प्रोटीन के साथ साथ अन्य पोषक तत्व भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं।यदि अंडे को समूचे भारतवर्ष की आंगनबाड़ी केंद्रों तथा स्कूलों के मध्यान्ह भोजन में शामिल कर दिया जाए तो कुपोषण हटाने में हमें एक बड़ी जीत प्राप्त हो सकती है।
६-पोल्ट्री को कृषि सह-कार्य की जगह पूर्ण कृषि का दर्जा दिया जाए ताकि पोल्ट्री किसानों को कृषि में मिलने वाली सहायता मिल सकें।
महोदय,इसके अतिरिक्त भी कई अन्य बिंदु हैं किंतु वर्तमान में उपरोक्त वर्णित तथ्यों पर यदि आपका सकारात्मक ध्यानाकर्षण हो जाये तो भारतीय पोल्ट्री व्यवसाय से जुड़े हुए किसानों का उद्धार हो जाएगा।
धन्यवाद।
डॉ. मनोज शुक्ला
पोल्ट्री विशेषज्ञ एवं विचारक
रायपुर, छत्तीसगढ़