By Dr. Manoj Shukla
मित्रों,आजकल मीडिया और सोशल मीडिया पर एक मुद्दा चर्चा का विषय बना हुआ है,और मुद्दा है भारतीय पोल्ट्री उद्योग में उपयोग हो रहे *कोलिस्टिन सल्फेट* नामक एंटीबायोटिक,जिसे मानव जीवन रक्षा हेतु अंतिम जीवन रक्षक एंटीबायोटिक की संज्ञा दी जा रही है,के उपयोग और उसके अवशेषों का अंडे एवं चिकन में पाए जाने को लेकर तथाकथित बुद्धिजीवियों के बीच हाहाकार मचा हुआ है, कि ये अवशेष मनुष्य में इस जीवन रक्षक एंटीबायोटिक के प्रति प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर देंगे जिसके कारण मृत्यु शय्या पर पड़े व्यक्ति को नहीं बचाया जा सकेगा… किंतु यदि हम इस तथ्य की विवेचना करें कि मनुष्य को जीवन रक्षक एंटीबायोटिक दवाओं की आवश्यकता क्यों पड़ती है…??? तो एक साधारण सा उत्तर मिलेगा “क्योंकि जीवन संकट में आ जाता है इसलिए जीवन बचानें के लिए जीवन रक्षक एंटीबायोटिक दवाओं की आवश्यकता पड़ती है”….अब यदि यह प्रश्न किया जाए कि जीवन संकट में पड़ता ही क्यों है…??? तो इसका उत्तर हमारे सामने ही यक्ष प्रश्न बनकर खड़ा हो जाता है !
क्योंकि मानव जीवन को संकट में डालने का काम स्वयं मानव ने ही किया है… चहुँ ओर प्रदूषण फैला कर…आज हमारी प्राणवायु (ऑक्सीजन) प्रदूषित है, अन्न प्रदूषित है, जल प्रदूषित है, फल प्रदूषित हैं,सब्जियां प्रदूषित हैं, समूची प्रकृति प्लास्टिक और ई-कचरे से प्रदूषित है…ऐसा बचा ही क्या है जो प्रदूषित नहीं है…???और यह प्रदूषण ही मानव जीवन को संकट में डाल रहा है,और यह प्रदूषण इतना भयानक है कि मनुष्य की रोग प्रतिरोधक क्षमता (Immune system/Immunity power) को खोखला कर रहा है,जिसके कारण जीवन रक्षा की कोई भी दवा असर नहीं करेगी…इस तथ्य का सबसे भयानक उदाहरण है पंजाब से राजस्थान के बीच चलने वाली “कैंसर एक्सप्रेस”…इस ट्रेन की क्या जरूरत पड़ी यदि इसकी विवेचना करें तो पाएंगे कि पंजाब में अनाज की अधिक से अधिक पैदावार बढ़ाने के लिए अनियंत्रित स्वरूप में कीटनाशक दवाओं और रासायनिक खादों का उपयोग हुआ और आज भी हो रहा है,जिसके कारण वहाँ की जमीन प्रदूषित हो गई और ये अत्यंत हानिकारक रसायन इसी भूमि से भूजल तक एवं अनाज के दानों तक पहुँचे और फिर इन्हीं अनाज के दानों से और भूजल से मनुष्यों के शरीर में पहुंचे,जहाँ रोग प्रतिरोधक क्षमता को नष्ट करके कैंसर जैसी महामारी को जन्म दिया,पंजाब और देश के कई गांवों में कुछ परिवार तो ऐसे हैं जहाँ परिवार का हर सदस्य कैंसर पीड़ित है… जब यह कैंसर
ट्रेन राजस्थान पहुँचती है और इसकी धुलाई होती है तो बल्टियाँ भर-भर के मानव रक्त निकलता है… फलों में मोम की परत (wax coating) लगाई जाती है जो मानव स्वास्थ्य के लिए कितनी हानिकारक है हम सब जानते हैं…इसी प्रकार सब्जियों में कीटनाशक दवाओं का छिड़काव किया जाता है जो हमारे स्वास्थ्य के लिए अत्यंत हानिकारक है… तम्बाकू और उससे बने पदार्थों का सेवन कितना हानिकारक है इस बात का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि यदि कोई व्यक्ति अपना जीवन बीमा (टर्म प्लान) करवाना चाहे और यदि वह तम्बाकू या सिगरेट का सेवन करता हो तो उसकी वार्षिक बीमा किश्त कई गुना बढ़ जाती है क्योंकि बीमा कम्पनियों को भी यह पता है कि तम्बाकू का सेवन करने वालों के शरीर में निकोटिन की मात्रा इतनी ज्यादा बढ़ जाती है कि आपातकाल में कोई भी जीवन रक्षक दवा काम ही नहीं करती है…ऐसे अनेकों उदाहरण हैं जिनसे यह साबित होता है कि मनुष्य ने स्वयं अपने लिए ही जीवन संकट पैदा किया है…
अब यदि हम भारतीय पोल्ट्री उद्योग की बात करें तो हम पाएंगे कि इस उद्योग का आधारभूत सिद्धांत ही “Prevention is better than Cure” है अर्थात बीमारियों को आने
ही ना दिया जाए इस बात का विशेष ध्यान रखा जाता है…भारत आयुर्वेद का विश्व गुरु है, आयुर्वेद मनुष्य में जितना उपयोग होता है उससे कई गुना ज्यादा पोल्ट्री उद्योग में उपयोग होता है,क्योंकि यह एक सस्ता और सटीक उपचार होता है… एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग अत्यंत मंहगा होता है और बिना डॉक्टरी सलाह के कोई भी पोल्ट्री फार्मर एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग नहीं करता है… पोल्ट्री उद्योग में आज एंटीबायोटिक दवाओं का स्थान प्रोबायोटिक, प्रिबायोटिक, पादप तेल,ऑर्गेनिक एसिड तथा हर्बल दवाओं नें ले लिया है ये सस्ती होने के साथ-साथ अत्याधिक असरदार होती हैं…भारत की कई आयुर्वेदिक दवा निर्माता कम्पनियाँ विदेशों में अपनी दवाओं का अच्छा खासा निर्यात कर रही हैं…भारत एक बहुत बड़ा बाजार है और कुछ विदेशी बहुराष्ट्रीय कंपनियां भारतीय पोल्ट्री उद्योग में एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल की बात को एक भ्रम के रूप में फैला रही हैं जिससे भारत मे उत्पादित होने वाले
अंडों और चिकन का उपभोग कम हो जाये और ये कम्पनियाँ अपने विदेशी अंडे और चिकन भारत में बेच सकें…क्योंकि यह बात इन बहुराष्ट्रीय कम्पनियों को अच्छी तरह से पता है कि हम भारतीयों की मानसिकता यही है कि विदेशी होगा तो अच्छा ही होगा…एक सत्य यह भी है कि *भारत में आज तक जितने भी अंडे और चिकन के सैम्पल टेस्ट हुए हैं उनमें एंटीबायोटिक दवाओं के अवशेष अमेरिकन एवं यूरोपियन मानक स्तरों से बहुत कम पाए गए हैं….जबकि अनाजों,सब्जियों और फलों में हानिकारक रसायनों के अवशेष मानक स्तरों से बहुत ज्यादा पाए गए हैं…*
इसलिए मेरा भारतीय बुद्धिजीवियों से अनुरोध है कि अपने स्वतः के विवेक का उपयोग करें और किसी भ्रम में ना पड़ें…।