भैसों में असफल गर्भधारण के कारण व उनका निदान

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भैसों में असफल गर्भधारण के कारण व उनका निदान

हरियाणा के आर्थिक विकास व उन्नति में पशु पालन का महत्वपूर्ण योगदान है। मुर्रा भैंस हरियाणा की आन-बान शान है। मुर्रा को काला सोना भी कहा जाता है। भैंसों की सभी प्रजातियों में मुर्रा प्रजाति की भैंस सबसे ज्यादा दूध देती है इसलिए इसके पालन पोषण व लगभग 14 महीने में एक बच्चा लेने के लिए खानपान के साथ-साथ प्रजनन प्रबंधन भी जरूरी है। प्रायः देखा गया है कि पशु पालकों को प्रजनन संबंधी समस्या का समुचित ज्ञान नहीं है। इसलिए हम आज इस लेख के माध्यम से कृत्रिम गर्भाधान में असफलता या बांझपन से उत्पन्न होने वाली समस्या के कारण व उनके निदान के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। प्रायः देखा गया है कि भैंसे गर्मी के मौसम में मद में नहीं आती तथा गर्मी ऋतु में प्रसव कम होने के कारण दूध की कीमत बढ़ जाती है तथा पशु ऊष्मीय ऊर्जा ज्यादा होने के कारण गूंगा हो जाता है मतलब मद के लक्षण कम दिखाता है, जिसके कारण पशुओं को कृत्रिम असफल गर्भाधान करवाने में कठिनाई आती है।

कृत्रिम गर्भाधान या बांझपन एक प्रजनन संबंधी समस्या है जिसमें पशु के गर्भ धारण करता है/करने में समस्या आती है। बांझपन की वजह से पशुपालक को आर्थिक हानि काफी ज्यादा होती है। पशु के गर्भधारण ना करने की समस्या के कई कारण हैं जिसमें कुछ महत्वपूर्ण तथ्य निम्नलिखित हैंः-

1. बच्चेदानी व अन्य प्रजनन अंगों की बीमारी की वजह से।

2. संक्रमित बिमारी के कारण।

3. पशु का मद में न आना, बार-बार फिरना, गूंगापन।

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4. शरीर के प्रजनन अंगों में दोष।

5. गलत तरीके से कृत्रिम गर्भधारण करना।

6. पोषक में कीम के कारण।

1. बच्चेदानी व अन्य प्रजनन अंगों की बिमारी जैसे बच्चेदानी में सूजन, संक्रमण व ओवेरियन सिस्ट की वजह से पशु गर्भ धारण नहीं करता है। ओवेरियन सिस्ट पशु में हारमोन के अंसुतन की वजह से होती है। फेलोपियन ट्यूब के बंद होने या संक्रमित होने के कारण भी पशु बार-बार मद में आता है परन्तु गर्भधारण नहीं करता।

2. संक्रमित बीमारी जैसे कि बुसिक्रोसिस, हरपीज विषाणु बोवाईन वायरल डायरिहिया, ट्राईकोमानास संक्रमण इत्यादि की वजह से बांझपन की समस्या आती है। इनके इलावा कुछ जीवाणु, विषाणु व अन्य जैसे कि ई.कोलाई स्तेफाइसोकोकस सट्रोपोटोकॉकस कोराइनिबेकिरियम आदि।

3. पशु का मद में न आना, गूंगापन व बार-बार फिरना प्रायः यह देखा गया है कि गर्मी कि ऋतु में भैंसे मद में न आना व गूंगापन ज्यादा दिखाती है। यह गर्मी कि वजह से उत्पन्न होने वाले तनाव के कारण हो सकता है। मद में न आने के कारण पीत पिण्ड का ना जाना, अंडाशय पर किसी भी संरचना का ना होना व बार-बार मद में आकर नमी ना धारण करना के कारण हैं। समय पर गर्भाधान ना होना, बच्चे का अंदर सूख जाना, बच्चेदानी में संक्रमण का होना, समय पर अण्डे का ओवरी से बाहर न आना व सिस्टिक ओवरी व कुछ महत्वपूर्ण कारण है जिनकी वजह से पशु बार-बार मद में आता है।

4. पशु के प्रजनन अंगों में दोष जैसे कि ओवेरियन हाइपोपलेजिया मतलब अंडाशय का छोटापन, सरवाईकल के नाल का टेढ़ापन परसिस्टेन्ट हाइसन, झिल्ली का न टूटना दो विर्सजन के होने के कारण इत्यादि कि वजह से भी पशुओं में बांझपन की समस्या आती है।

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5. गलत तरीके से कृत्रिम गर्भाधान करने के कारणः इसमें सबसे महत्वपूर्ण तथ्य यह है कि कई पशुपालकों व इस व्यवसाय से जुड़े लोगों को मद के लक्षणों के पूर्ण ज्ञान नहीं होने के कारण मद के सही समय पर पहचान ना होने पर बांझपन की समस्या आती है। इसके अलावा कृत्रिम गर्भाधान करते समय सीमन को सही तापमान पर द्रवित करना व कृत्रिम गर्भाधान करते समय गोबर, पेशाब व बाहरी पदार्थों से कृत्रिम गर्भाधान से बच्चेदानी में संक्रमण करना इत्यादि शामिल है व कृत्रिम गर्भाधान करने वाला व्यक्ति इस कार्य में निपुण ना हो।

6. पोषक तत्वों की कमी के कारणः संतुलित आहार बांझपन की समस्या का बहुत बड़ा निदान है। प्रायः देखा गया है कि पशु पालक अपने पशुओं को संतुलित आहार नहीं देते, जिसके कारण पशुओं में बांझपन की शिकायत हो जाती है। इसलिए पशु पालकों को संतुलित आहार के बारे में पूर्ण जानकारी होनी चाहिए क्योंकि जब पशु ब्यांत के समय दूध देता है तो उसकी पोषण की जरूरत बढ़ जाती है।

1. बांझपन की समस्या से निजात पाने के लिए कुछ महत्वपूर्ण बातों का ध्यान रखना चाहिए। पशु को संतुलित आहार दें। पशु को समय-समय पर परजीवियों की दवाई दें।

2. पशु के आहार में खनिज मिश्रण उचित मात्रा में देना चाहिए व उसमें खनिज लवणों का अनुपात सही होना चाहिए।

3. पशु का सही समय पर व कुशल पशु चिकित्सक से कृत्रिम गर्भाधान करवायें।

4. यदि पशु सुबह मद में आता है तो कृत्रिम गर्भाधान शाम को करवाये व यदि शाम को आता है तो सुबह। पहले कृत्रिम गर्भाधान के लगभग 12 घंटे के अंतराल पर दूसरी बार कृत्रिम गर्भाधान करवायें।

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5. भैंसों को गर्मी ऋतु में ऊष्मीय ऊर्जा से बचा कर रखे व पशु के नहाने के लिए तालाव या साफ जोहड़ का प्रबंध करे व पशु को दिन में छायादार पेड़ के नीचे बांधे व पशु के पीने का पानी साफ व उचित तापमान पर होना चाहिए।

6. पशु अगर लगातार 3 बार कृत्रिम गर्भाधान के बाद मद में आ जाए तो किसी अच्छे पशु चिकित्सक से पशु की जांच करवायें व उसके द्वारा दी गयी सलाह का पालन करें।

7. पशु यदि किसी संक्रमित बिमारी से ग्रसित है ता उसका पहले इलाज करवायें।

8. बनावटी दोष के पशुओं की जांच करवानी चाहिए तथा उनका अपने फार्म से निकाल देनी चाहिए।

9. पशु की सुबह व शाम को मद की जांच करनी चाहिए व मद के लक्षण दिखाई देने पर पशु चिकित्सक से कृत्रिम गर्भाधान करवायें।

उपरोक्त बातों को ध्यान में रखकर पशुपालक अपने पशुओं की असफल गर्भधारण की समस्या से निजात पा सकता है।

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