रैबीज : एक के लिए सब , सबके लिए एक स्वास्थ्य
डॉ. जयंत भारद्वाज ,शोध छात्र ,विकृति विज्ञान विभाग ,
पशु चिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय , जबलपुर (म. प्र. )
सारांश : रैबीज एक प्राणीजन्य और प्राण घातक विषाणु जनित रोग है जो कि मुख्यतः श्वानों के काटने से मानवों मैं फैलता हैं I टीकाकरण ही इसका एक मात्र उपाय है I आज आवश्यकता है कि हम सभी मिलकर इस रोग के विश्व से उन्मूलन के लिए प्रयास करें I
मुख्य शब्द : रैबीज, पशु, मानव, जागरूकता, चिकित्सक, स्वास्थ्य I
रैबीज एक प्राणीजन्य और अत्यंत ही घातक रोग है I यह रोग लायसा वायरस नामक विषाणु से होता है I यह एक उपेक्षित उष्णकटिबंधीय रोग है I यह रोग पशु और मानव दोनों में होता है एवं तंत्रिका तंत्र को मुख्य रूप से प्रभावित करता है I इस रोग को ‘जलांतक रोग’ भी कहते हैं क्यूंकि इसमें गले और कंठ नली की मांसपेशियों में ऐंठन होने लगती है जिससे जल पीने पर पशु और मनुष्य दोनों को ही परेशानी होती है और ऐसा प्रतीत होता है कि मानो प्रभावित जीव को जल से भय लग रहा हो I भारत में प्रतिवर्ष १८ – २० हज़ार लोग इस रोग से प्रभावित होते हैं I ऐसा माना जाता है कि रैबीज के कारण विश्व की ३६ प्रतिशत मौत सिर्फ भारत में होती हैं I टाइम्स ऑफ़ इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार २०२२ में रैबीज के कारण भारत में ३०७ लोगों की मृत्यु हुई थी I यह रोग मुख्यतः प्रभावित पशुओं जैसे कि कुत्ता, बिल्ली, चमकादड़, बन्दर, लोमड़ी, नेवला इत्यादि के काटने से फैलता है I ९९% मामलों में मानवों को रेबीज कुत्ते के काटने से होता है I कभी – कभी त्वचा के घाव के प्रभावित पशु की लार के द्वारा संक्रमित होने से भी यह रोग फ़ैल सकता है I इसका कोई उपचार तो उपलब्ध नहीं है परन्तु टीकाकरण से रोकथाम अवश्य ही संभव है I इस रोग का पहला टीका फ्रांस के महान वैज्ञानिक लुइस पास्चर ने बनाया था, जिसके लिए हम सभी उनके अत्यंत ऋणी रहेंगे I विश्व स्वास्थ्य संगठन का स्वप्न है कि २०३० तक विश्व को रैबीज मुक्त करना है जो कि ‘ रैबीज : एक के लिए सब , सबके लिए एक स्वास्थ्य ‘ की नीति से ही संभव है I
रैबीज के पूर्णतः उन्मूलन के लिए आज आवश्यकता है कि सभी घटक हर एक व्यक्ति जो कि रैबीज से प्रभावित हो या हो सकता हो उसके लिए अपने – अपने स्तर पर प्रयासरत रहें I आमजन में जागरूकता भी इसे रोकने में अत्यंत महत्वपूर्ण है I हर क्षेत्र के लोग चाहे वो मानव चिकित्सा से जुड़े हों या पशु चिकित्सा से , चाहे प्रशासन से जुड़े हों या आम जन हों सभी को अपना कर्तव्य करना होगा I भारत विश्व भर में जनसँख्या के मामले में दूसरे स्थान पर है I ऐसे में हमारे पास मानव संसाधनों की कोई कमी नहीं है I इसलिए यदि हम सब मिलकर रैबीज मुक्त भारत के लिए प्रयास करेंगे तो एक दिन निश्चित ही सुदूर गांव के आखिरी कोने में बसा भारतवासी भी रैबीज से भय मुक्त हो सकता है I सरकार और गैर सरकारी संस्थाओं को एक साथ आगे आना होगा I हमें जागरूकता के लिए विद्यालय और महाविद्यालय स्तर पर भी कार्य करना होगा I इसके लिए विभिन्न कार्यक्रम और प्रतियोगिताएं आयोजित की जा सकती हैं, जिससे बचपन से ही लोग इसके प्रति जागरूक हो जाएं I विशेषज्ञों के साथ मंच साझा करने होंगे I लोकतंत्र के चतुर्थ स्तम्भ यानि मीडिया को भी अपना कर्तव्य निभाना होगा I ऐसा करके ही ‘एक के लिए सब’ की नीति का पालन हो सकेगा I
हम सभी यह जानते हैं कि धरती पर उपस्थित सभी घटक किसी न किसी प्रकार से एक दूसरे पर आश्रित रहते हैं I ऐसे में आवश्यक है कि हमारी योजनाएं भी ऐसी होवें कि वे सभी के स्वास्थ्य के लिए कारगर होवें और ‘सबके लिए एक स्वास्थ्य’ के विचार को सार्थक करने वाली हों I यदि हम श्वानों या ऐसे जीव जो कि रैबीज फैलाते हैं उनका टीकाकरण नियमानुसार कर देवें तो निश्चित रूप से यह मानवों या अन्य पशुओं में भी संक्रमण फैलने से रोक सकता है I इसके साथ ही ऐसे लोग जो कि श्वानों के संपर्क में ज्यादा रहते हैं जैसे कि श्वान मालिक, पशु चिकित्सक इत्यादि उनका हर वर्ष रैबीज के लिए टीकाकरण किया जावे तो भी इस रोग की रोकथाम की जा सकती है I
वर्तमान में सरकार द्वारा किये जा रहे प्रयास, पशु चिकित्सकों और अन्य पेशेवरों की इस रोग के प्रति गंभीरता और लोगों में बढ़ती जागरूकता यह साफ़ सन्देश दे रही हैं कि एक दिन अवश्य ही भारत रैबीज मुक्त होगा और हम गर्व से कह सकेंगे कि हाँ सच में भारत की भूमि शस्य श्यामला भूमि है I