लंगड़ा बुखार (black quarter)
इस रोग को जहरबाद ,black leg , quarter ill , emphysematous gangrene , clostridial myositis of skeletal muscles इत्यादि नामों से भी जाना जाता है ! यह एक जीवाणुजनित संक्रामक रोग (infectious bacterial disease) है जो गौवंश , भैस , भेड़ों व कभी-कभी घोड़ों को भी प्रभावित कर सकता है ! इस रोग के मुख्य लक्षण प्रभावित पैर से लंगड़ाना ( lameness) ,शोथ (inflammation) और अचानक मृत्यु हो जाना है !
रोगकारक (etiology):
इस रोग का विशिष्ट कारक एक जीवाणु (bacteria) क्लोस्ट्रीडियम चौवाई (clostridium chauvoei ) है !
लक्षण (symptoms):
1. तेज बुखार 105°F – 107°F , खाना-पीना एवं जुगाली बंद कर देता है !
2. # रोगी पशु के कन्धे , गर्दन ,जाँघ अथवा पूठ्ठे पर सूजन आ जाती है !
3. आँख लाल हो जाती है !
4. # इस सूजन वाले हिस्से को दबाने पर चट-चट की आवाज (crepitating sound) आती है , भेड़ों मे कई बार आवाज नही आती है !
5. रोगी पशु अचानक बुरी तरह लंगड़ाने लगता है और उसकी चाल मे अकड़न आ जाती है जिसके साथ ही वह एक स्थान से आगे बढ़ने की कोशिश भी नही करता !
6. सूजन मे यदि चीरा लगाया जावे तो उसमे से झागदार काला , दुर्गन्धयुक्त स्त्राव निकलता है !
7. अन्त मे पशु का तापमान गिरने लगता है तथा पशु की मृत्यु हो जाती है !
8. कई बार रोगी पशु बगैर कोई लक्षण दिखाये भी मर सकते है !
निदान (diagnosis):
* लक्षणों के आधार से !
* रोगी पशु के सूजन से निकाले गये स्राव की प्रयोगशाला मे जांच करवाकर !
विभेदिय पहचान ( differential diagnosis) :
√ Malignant oedema
√ Anthrax
√ lightning strike
√ Bacillary haemoglobinura etc.
उपचार (treatment) :
इस रोग का उपचार हालांकि बहुत मुश्किल है क्योंकि यह रोग बहुत जल्दी फैलता है ! फिर भी समय पर उपचार उपलब्ध करा देने से रोगी प्राणी सही हो सकता है ! इसके लिए निम्न प्रकार उपचार किया जा सकता है –
* रोगी पशु को स्वस्थ पशुओ से अलग कर दें !
* पशु को Long acting antibiotic लगावे ! जैसे – Terramycine L.A. , Longacillin , आदि अथवा penicillin , Ampicillin , Amoxycillin , oxytetracycline etc. ( 3 -5 day )
* NSAIDs ( inj- Nimovet , melonex )
* Antihistaminics ( inj- CPM , zeet )
* Corticosteroids ( inj- dexona)
* सूजन वाले भाग को चीरा लगाकर उसका काला झागदार , बदबूदार रक्त को निकाल दे , परन्तु यह बहुत ही सावधानीपूर्वक व साफ तरीके से करना चाहिए !
* इसके अलावा रोगी पशु को उसकी आवश्यकता के अनुसार लक्षणात्मक व सहारात्मक उपचार भी प्रदान करने चाहिए !
रोकथाम व नियंत्रण ( prevention and control ) :
चूंकि यह रोग एक infectious disease है इस कारण रोगी पशु के पास रहने वाले सभी पशु संक्रमण के शिकार हो सकते है तथा साथ ही इस रोग का जीवाणु मिट्टी मे भी रहता है ! अतः रोगी पशु को स्वस्थ पशुओ से दूर रखना चाहिये तथा अलग रखकर ही उपचार करना चाहिए !
* वर्षा शुरु होने के पूर्व पशुओ का टीकाकरण कर वाले ! ( 3 माह के बाद टिका लग वाले )