लू से बचायें अपने पशुओं को

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संकलन –डॉ ज्ञान रंजन मिश्रा ,भुवनेश्वरमौसम के प्रभाव का पशुओं की दिनचर्या से सीधा संबंध है. मौसम की विभिन्नता, इसके बदलाव की स्थिति में पशु के लिए विशेष प्रबंध करने के प्रयासों की आवश्यकता रहती है। हमारी भौगोलिक स्थिति के अनुसार मौसम में काफी विविधताएं हैं, वहीं देश के सभी भाग में गर्मी काफी तेज पड़ती है। जरा सी लापरवाही से किसानों को पशुधन की क्षति हो सकती है। अधिक गर्म समय में पशु के शारीरिक तंत्र में व्यवधान आ जाता है, जिसके कारण गर्मी पशु के शरीर में इकट्ठा हो जाती है तथा सामान्य प्रक्रिया के माध्यम से वह बाहर नहीं निकलती है, जिसकी वजह से पशु को तेज बुखार आ जाता है और बेचैनी बढ़ जाती है. यही रोग पशु में लू लग जाना कहलाता है. यह रोग अधिक गर्म मौसम जब वातावरण में नमी और ठंडक की कमी आ जाती है तथा तेज गर्म हवाएं चलती हैं, पशु आवास में स्वच्छ वायु नहीं आने के कारण होता है। कम स्थान में अधिक पशु रखने तथा अधिक मेहनत करने से उत्पन्न होने वाली गर्मी से भी यह रोग होता है। गर्मी के मौसम में पशु को पर्याप्त मात्रा में पानी नहीं पिलाना मुख्य कारण माना जाता है।लू के लक्षण:पशुु को लू लगने पर 106 से 108 डिग्री फेरनहाइट तेज बुुखार होता है सुस्त होकर खाना-पीना छोड़ देता है, मुंह से जीभ बाहर निकलती है तथा सही तरह से सांस लेने में कठिनाई होती है तथा मुंह के आसपास झाग आ जाता है. लू लगने पर आंख व नाक लाल हो जाती है. प्राय: पशु की नाक से खून आना प्रारंभ हो जाता है जिसे पशु के हृदय की धड़कन तेज हो जाती है और श्वास कमजोर पड़ जाती है जिससे पशु चक्कर खाकर गिर जाता है तथा बेहोशी की हालत में ही मर जाता है.पशुओं को आहार लेने में अरुचि, तेज बुखार, हांफना, मुंह से जीभ बाहर निकलना, मुंह के आसपास झाग आ जाना, आंख व नाक लाल होना, नाक से खून बहना, पतला दस्त होना, श्वास कमजोर पड़ जाना, उसकी हृदय की धड़कन तेज होना आदि लू-लगने के प्रमुख लक्षण है।उपचार:-लू से पशुओं को बचाने के लिए कुछ सावधानियां बरतनी चाहिये :-1. डेरी को इस प्रकार बनाये की सभी जानवरों के लिए उचित स्थान हो ताकि हवा को आने जाने के लिए जगह मिले, ध्यान रहे की शेड खुला हवादार हो
2. पशु को प्रतिदिन 1-2 बार ठंडे पानी से नहलाना चाहिए.
3. पशु के लिए पानी की उचित व्यवस्था होनी चाहिए
4. मवेशियों को गर्मी से बचाने के लिए पशुपालक उनके आवास में पंखे, कूलर और फव्वारा सिस्टम लगा सकते हैं
5. दिन के समय में उन्हें अन्दर बांध कर रखें ।
6. लू की चपेट में आने पर पशु को तुरंत चिकित्सक को दिखाएं ।
7 पशुओ को नियमित रूप से नमक दे
8 खाने मे लगभग 50 ग्राम खानेवाला सोडा दे
9 संभव हो तो प्रतिदिन पीने वाला पानी मे एक नीबू का पनि दे
10 हारा चारा यदि उपलब्ध हो तो अति उतम
11 अथाईल तथा चमोकन का प्रकोप न हो उसके लिए पशुचिकित्सक का सलाह ले
12 मिनरल मिक्सचर नियमित रूप से आहार मे देसावधानियां-इस रोग से पशुओं को बचाने के लिये कुछ सावधानियां बरतनी चाहिये. पशु आवास में स्वच्छ वायु जाने एवं दूषित वायु बाहर निकलने के लिये रोशनदान होना चाहिए. तथा गर्म दिनों में पशु को दिन में नहलाना चाहिए खासतौर पर भैंसों को ठंडे पानी से नहलाना चाहिए. पशु को ठंडा पानी पर्याप्त पिलाना चाहिए। संकर नस्ल के पशु जिनको अधिक गर्मी सहन नहीं होती है उनके आवास में पंखे या कूलर लगाना चाहिए. पशुओं को इस रोग से बचाने में उसके आवास के पास लगे पेड़-पौधे बहुत सहायक होते हैं। लू लगने पर पशु के शरीर में पानी की कमी हो जाती है, इसकी पूर्ति के लिये पशु को ग्लूकोज की बोतल ड्रिप चढ़वानी चाहिए तथा बुखार को कम करने व नक्सीर के उपचार की विस्तार से जानकारी लेने व चिकित्सा के लिए तुरन्त पशु चिकित्सक से सलाह लें।पशु आहार:गर्मी के मौसम में दुग्ध उत्पादन एवं पशु की शारीरिक क्षमता बनाये रखने की दृष्टि से पशु आहार का भी महत्वपूर्ण योगदान है. गर्मी के मौसम में पशुओं को हरे चारे की अधिक मात्रा उपलब्ध कराना चाहिए. इसके दो लाभ हैं, एक पशु अधिक चाव से स्वादिष्ट एवं पौष्टिक चारा खाकर अपनी उदरपूर्ति करता है, तथा दूसरा हरे चारे में 70-90 प्रतिशत तक पानी की मात्रा होती है, जो समय-समय पर जल की पूर्ति करता है. प्राय: गर्मी में मौसम में हरे चारे का अभाव रहता है. इसलिए पशुपालक को चाहिए कि गर्मी के मौसम में हरे चारे के लिए मार्च, अप्रैल माह में मूंग , मक्का, काऊपी, बरबटी आदि की बुवाई कर दें जिससे गर्मी के मौसम में पशुओं को हरा चारा उपलब्ध हो सके. ऐसे पशुपालन जिनके पास सिंचित भूमि नहीं है, उन्हें समय से पहले हरी घास काटकर एवं सुखाकर तैयार कर लेना चाहिए. यह घास प्रोटीन युक्त, हल्की व पौष्टिक होती है.पानी व्यवस्था:इस मौसम में पशुओं को भूख कम लगती है और प्यास अधिक. इसलिए पशुओं को पर्याप्त मात्रा में दिन में कम से कम तीन बार पानी पिलाना चाहिए. जिससे शरीर के तापक्रम को नियंत्रित करनेे में मदद मिलती है. इसके अलावा पशु को पानी में थोड़ी मात्रा में नमक एवं आटा मिलाकर पानी पिलाना चाहिए। पशुओ को सुबह शाम ठंडे पानी से नहलवाना चाहिए ।

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