विषम मौसम में चारा फसल की खेती लाभप्रद : कुलपति
पशुधन प्रहरी संवाददाता
रांची: बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ आरएस कुरील ने शनिवार को पशु चिकित्सा संकाय स्थित चारा फसल अनुसंधान प्रक्षेत्र का निरीक्षण किया। राज्य में चारा फसल की खेती में संभावनाओं को देखते हुए कुलपति ने बताया कि मानसून में देरी एवं अपर्याप्त वर्षापात की स्थिति में चारा फसल की खेती किसानों के लिए लाभकारी होगा। उन्होंने कहा कि कम सिंचाई एवं कम अवधि में ही चारा फसलों में ज्वार, बाजरा, राजमूंग एवं वार्षिक दीनानाथ की सफलतापूर्वक खेती से राज्य के किसान बढ़िया आय अर्जित कर सकते है। राज्य में मानसून की परिस्थिति को देखते हुए चारा फसल विशेषज्ञ डॉ वीरेंद्र कुमार सिंह ने चारा फसलों में ज्वार की एसएसजी एवं यूपी चेरी प्रभेद, बाजरा की जियांट बाजरा और राजमूंग का विधान-2 प्रभेद की खेती करने की सलाह दी। ये सभी चारा फसल की किस्में काफी शुष्करोधी तथा 50 – 60 दिनों में तैयार हो जाती है। इन किस्मों से उत्पादित हरे चारे की गुणवत्ता काफी अच्छी और उत्पादन क्षमता करीब 350-800 क्िंवटल प्रति हेक्टेयर होती है, जो मौसमी सूखे घासों एवं सूखे चारे जैसे कुट्टी, बिचाली और भूसा से काफी अधिक है। डॉ सिंह बताते है कि ऊपरी खेतों (टांड) एवं मध्य ऊपरी जमीनों में एवं बरसात के समय में भी परती बचे खेतों में, एकल कटाई या बहु कटाई वाले खरीफ की चारा फसलों लाभकारी होगी। सितंबर माह के आखरी सप्ताह में जई, बरसीम, अल्फा – अल्फा, मक्खन घास (राई घास) आदि फसलों की खेती की जा सकती है। रबी मौसम की खेती से पहले खेतों में मौजूद नमी का इस्तेमाल कर कम पानी और कम लागत में चारा फसलों से बेहतर उत्पादन एवं लाभ प्राप्त किया जा सकता है। चारा फसल के उपयोग को वैकल्पिक खेती के रूप में अपनाया जा सकता है। मवेशियों के संतुलित आहार के लिए दलहनी, गैर दलहनी एवं बहुवार्षिक चारा फसलों की खेती पर ध्यान रखना एक समझदारी भरा कदम होगा।