विषैले पोधों (toxic/poisonous plants):
एक विषैला पोधा वह होता है जो सामान्य मात्रा या अधिक भूख की स्थिती मे खा लेने पर प्राणी विशेष मे हानिकारक प्रभाव (detrimental effects) पैदा करता है, जैसे- तनाव , रोगकारकता , मृत्यु आदि !
विषैलेपन की अवस्था विष के प्रकार , मात्रा ,विष पादप के प्रकार , पशु के प्रकार आदि पर निर्भर करती है तथा ये विष सामान्य , मध्यम ,विकराल विषैले प्रभावों को उत्पन्न करने के साथ -साथ प्राणी की मृत्यु भी कर सकते है ! इन सबके कारण अन्ततः नुकसान पशुपालक को होता है !
मुख्य रुप से पाये जाने वाले विषैले पौधे !
# सामान्य चिकित्सा /common therapy #
१. 6-8 अण्डे की छाल व 500gm दूध मुख द्वारा दे सकते है !
२. 15-20 बुंद Tr.iodine को 100-125ml. पीने वाले साफ पानी मे घोल के पीला दे !
३. पशु को खुली हवा मे रखना !
४. पशु द्वारा प्रकट किए जा रहे लक्षणो के आधार पर उसका उपचार करना !
1. अरण्डी/castor (ricinus communis)
यह अधिकांशतः सभी जगह है इसके बीजो मे ricin नाम का विषैला तत्व पाया जाता है जो एक शक्तिशाली पादप विष है !
क्रियाविधि (mechanism of action):
Ricin राइबोसोमस का खण्डन (hydrolytic fragmentation) कर देता है जिससे प्रोटीन संश्लेषण रूक जाता है !
लक्षण (symptoms):
इसके लक्षण प्रकट होने मे कुछ घण्टे से 2 से 3 दिन लग सकते है !
इसकी विषाक्तता से बैचेनी , उल्टी , पेट दर्द व दस्त हो सकते है !इसके पश्चात अधिक व रक्तयुक्त दस्त , निरजलीकरण व पीलिया हो सकते है ! इससे सुस्ती , चक्कर आना ,अधिक पसीना आना व मृत्यु तक हो सकती है !
उपचार (treatment):
इसका विशिष्ट उपचार anti-ricin serum का इंजेक्शन है ! परन्तु इसका सामान्य उपचार लक्षणात्मक व सहारात्मक ही है !
* रुमन से विषैले पदार्थो को हटाना !
* विषैले पादप से पशु को दूर करना !
* saline purgatives काम उपयोग !
* I/v fluid व electrolytic therapy .
* activated charcoal का उपयोग !
2. कनेर/oleander (nerium oleander)
यह एक आभूषणात्मक पादप है इसको पशु सामान्यतः ग्रहण नही करते है !
क्रियाविधि (mechanism of action):
इसमे cardiotoxins पाए जाते है जो सीधे ह्दय(heart) पर हमला करते है इससे myocardium की गतिविधि बाधित हो जाती है !
लक्षण (symptoms):
इसके विषैलेपन से पशुओ मे बेचैनी , उल्टी-दस्त , पेट का दर्द , ह्दय गति कम हो जाना , श्वसन गति व दर दोनो का बढ़ना , लकवा , चक्कर आना व मृत्यु हो सकती है !
उपचार (treatment ):
इसके विषैले का इलाज सामान्यतः सम्भव नही है क्योकि पशु की अधिकांशतः मृत्यु हो जाती है !
इसमे भी symptomatic व supportive उपचार किया जाता है !
3. रति (abrus precatorius)
रति जिसके लाल-काले बीज विभिन्न प्रकार के जवाहरात बनाने के काम मे लिए जाते है तथा इन्ही बीजो मे एक पादप विष ‘ Abrin’उपसंथित होता है !
लक्षण :
लार स्त्रावण , नाक से स्राव , गम्भीर पेट दर्द , तनाव , दस्त , चक्कर, लकवा , coma व मृत्यु जैसे लक्षण प्रदर्शित कर सकता है !
उपचार:
इसका कोई विशिष्ट उपचार नही है ! केवल लक्षणात्मक अर्थात पशु द्वारा प्रदर्शित लक्षणों के अनुसार व सहारे ही उपचार किया जाता है !
4.लंटाना कैमरा (lantana camara) :
यह विश्व की दस सर्वाधिक विषैली खरपतवारो मे से एक है जो भारत मे भी बहुत पाई जाती है व इसे lantana ,wild sage, bunch berry आदि कहते है !
विशेषकर इसकी पत्तियो मे पाया जाने वाला विष ‘lantadene ‘होता है जो मुख्यतः hepatotoxic होता है , इस पौधे की बदबू के कारण सामान्यतः इसे खाया नही जा सकता परन्तु खाध पदार्थो की कमी की स्थिती मे इसे मजबूरन खाना पड़ता है व इसी से इसका विषैलापन उत्पन्न होता है !
लक्षण :
गहरे हरे दस्त , प्रकाश के प्रति संवेदनशीलता , भूख नही लगना , श्लेष्म झिल्लियो का पीना होना , शरीर पर झुर्रियां पड़ना , हाइपोथर्मिया आदि जैसी परिस्थितियां पैदा हो जाती है !
उपचार:
I/v fluid व electrolyte therapy
Activated charcoal का उपयोग
मोलासेज युक्त भोज्य , एण्टी हिस्टामिन
पशु को छायादार वातावरण मे रखकर सूर्य की रोशनी से बचाना !
तथा लक्षणात्मक उपचार व सहारात्मक उपचार भी करे !
5. धतुरा (Datura):
solanaceae family के विभिन्न पौधो मे पाए जाने वाले alkaloids के प्रभाव समान होते है तथा वे सामान्यतः anti-cholinergic विषैले प्रभाव उत्पन्न करते है !
धतुरा -hyoscyamine ,atropine, hyoscine etc.
क्रियाविधि:
Atropine व अन्य सम्बन्धित alkaloids, parasympatholytic agents होते है जो कोशिकाओ के muscarinic receptors से क्रिया करके तंत्रिका तंत्र को प्रभावित करते है !
लक्षण :
तनाव , मुख श्लेष्म झिल्लियो का सुखना , भूख -प्यास लगना , रूमन की गतिविधि कम होना , कब्ज , चक्कर आना , श्वसन दर बढ़ना ,बेचैनी , कम्पन , लकवा व मृत्यु जैसे लक्षण दिखाई दे सकते है !
उपचार :
इसका भी कोई विशिष्ट उपचार नही है तथा केवल symptomatic व supportive उपचार ही किया जाता है !
सावधानी (precaution)
इसमे atropine antagonists का प्रयोग नही करना चाहिए !
6. आक (oak)
आक की विषाक्तता सामान्यतः सभी पशुओ मे ही हो सकती है जिसे भी पशु खाध पदार्थो की कमी के वक्त ही ग्रहण कर सकते है ! आक की विषाक्तता इसमे पाये जाने वाले ‘tannins’ के कारण होती है !
लक्षण :
गम्भीर पेट दर्द , खूनी दस्त , तनाव , चक्कर आना , मुख , लार व आँख से स्राव व मृत्यु भी हो सकती है !
उपचार :
इसका कोई विशिष्ट उपचार नही है और इसका भी लक्षणात्मक व सहारात्मक उपचार हि किया जाता है !
7. ज्वार (sorghum vulgare):
वर्षा होने से पूर्व इसे पशुओ को नही खिलाना चाहिए क्योकि इसमे धुर्रीन (dhurrin) नामक विषैला तत्व पाया जाता है !
बुआई के लगभग 2 माह बाद पशुओ को खिलानी चाहिए
लक्षण :
तनाव , गम्भीर पेट दर्द , चक्कर , लकवा आदि |
उपचार :
लाक्षणिक चिकित्सा
8. कपास के बीज (gossypium sp.)
विषैला तत्व गोसिपॉल होता है
लक्षण :
खुनी दस्त , सांस लेने मे परेशानी होना , ऐंठन , चमडी के नीचे चर्बी नही के बराबर (cachexia)
उपचार :
फ्लुड थेरेपी , लाक्षणिक चिकित्सा
अन्य विषैले पादप
बबुल , सफेदा, गन्ने की पत्तियां , मक्का आदि