कारण: यह रोग एक रक्त परजीवी (प्रोटोजोआ) ‘ट्रिपैनोसोमा’ के कारण उत्पन्न होता है। यह विभित्र प्रकार की मक्खियों जैसे सी-सी टेबेनस और स्टोमोक्सिस के काटने से एक पशु से दूसरे पशु में फैलता है।
प्रभावित पशु: यह रोग गाय, भैंस, अश्व, भेड़, बकरी, कुत्ता, ऊंट व हाथी में देखने को मिलता है।
लक्षण: तेज बुखार या सामान्य से कम तापमान, तेज उत्तेजना सिर को दीवार या जमीन आदि पर दबाना, कांपना या थरथराना, छटपटाना या मुर्छित सा होना, पेशाब बार-बार व थोड़ा-थोड़ा करना, मुंह से लार बहना/टपकना, जुगाली न करना, खाना-पीना छोड़ देना/ गोलाई में चक्कर लगाना, गले में बंधी हुई रस्सी या जंजीर को खींच कर रखना, गिर जाने पर उठ न पाना या बैठ जाने पर उठ न पाना, लगातार कमजोर होते जाना, खांसी करना। 14-21 दिनों में मृत्यु या कभी -कभी ऐसे लक्षण रोगी पशु में 2-4 महीने तक भी देखे गये हैं। कुछ पशुओं में आँखें लाल हो जाती हैं। कई पशुओं में खाना-पीना ठीक-ठीक होता है लेकिन दिन-प्रति दिन कमजोर होते चले जाते हैं। ऐसे पशुओं में आँख की पुतलियाँ सफेद एवं पीली होनी शुरू हो जाते हैं।
मौसम में हो रहे बदलाव से आपके पशु को सर्रा रोग हो सकता है। सर्रा पशुओं की एक घातक बीमारी है। इसे ट्रिपैनोसोमिएसिस, अफ्रीकन निंद्रा रोग, दुबला रोग, तिबरसा के नाम से भी जाना जाता है। ऊंट में इस बीमारी का कोर्स तीन साल का होने के कारण इसे तिबरसा भी कहा जाता है।
ऐसे पशुओं में बुखार कभी हो जाता है व अपने आप ही ठीक भी हो जाते है। टांगें, गला, छाती, पेट के निचले हिस्से में सूजन आ जाती है। यदि ऐसे पशुओं का ईलाज नहीं होता है तो उनकी मृत्यु हो जाती है। कंपकंपी के साथ पशु गिरने लगे और नाक से लार आने लगे तो समझ लीजिए सर्रा का प्रभाव हो चुका है।
रोग निदान:
• लक्षणों से उपरोक्त लक्षणों के आधार पर।
• सूक्ष्मदर्शी परीक्षण- कान की वेन से रक्त लेकर।
• इनाकुलेशन
• मरक्युरिक क्लोराइड टेस्ट – ऊँटो में यह टेस्ट उपयुक्त होता है।
उपचार :
• क्यूनापाईरामिन (एण्ट्रीसाइड प्रोसाल्ट, ट्राक्यून आदि) सामान्य रूप में से उपलब्ध है। यह दवा 3.0 मिली ग्राम से 5.0 मिलीग्राम/ किलोग्राम शरीर के वजन पर चमड़ी के नीचे दी जाती है।
• डिमिनेजिनएसिटुरेट (बेरेनिल) को 3.5 मिली ग्राम से 5.0 मिलीग्राम/किग्रा गहरा इंटा मस्कयूलर इंजेक्शन के रूप में उपयोग किया जाता है।
• आईसोमेटामेडियम (समोरिन) का उपयोग 0.75 मिलीग्राम/किलोग्राम शरीर वजन पर इंट्रामस्क्यूलर इंजेक्शन के रूप में उपयोग किया जाता है।
• डेक्सट्राल 100 एम एल दोनों समय पशु को देना चाहिए।
बचाव :
• बचावी दवाओं के उपयोग से सर्रा को रोका जा सकता है।
• वर्तमान में मवेशियों के लिए प्रयुक्त बचावी/प्रोफाइलैक्टि दवा क्किनैप्रैरामिन प्रोसाल्ट हैं। जानवरों में ठीक से इंजेक्शन देने के बाद, ये दवा आमतौर पर तीन महीने की सुरक्षा प्रदान कर सकती है।
• एक और महत्वपूर्ण व प्रभावी नियंत्रण विधि मक्खियों को खत्म करने के लिए है। सी -सी मक्खियों को नियंत्रित करने के लिए कीटनाशक छिड़काव करना आवश्यक है।
• पशुओं के स्थान की नियमित सफाई के साथ चूने का छिड़काव करना रोग से बचाव का प्राथमिक उपचार है।
• पशु को गुड़ खिलाने से रोग में राहत मिलती है
• पशु के सिर के ऊपर ठंडा पानी गिराने से इस रोग में लाभ मिलता है।
• पशु को धूप व लू से बचाएं।
पशुपालक ससमय अपने पशुओं का समुचित ईलाज करा कर अपने होने वाले क्षति को कम कर सकते है।
• डॉ. प्रमोद प्रभाकर
• डॉ. मनोज कुमार भारती, सहा. प्रा. सह क. वैज्ञानिक, पशुपालन, मं. गां. कृ. महावि., अगवानपुर, सहरसा (वि.कृ. विश्वविद्यालय सवौर, भागलपुर
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