सूकर ज्वर का उपचार घरेलू नुस्खा से
by-DR. RAJESH KUMAR SINGH, (LIVESTOCK & POULTRY CONSULTANT), JAMSHEDPUR, JHARKHAND,INDIA
9431309542, rajeshsinghvet@gmail.com
“सूकर जंवर या सवाईन फीवर एक विषाणु जनित रोग है। यह बीमारी बहुत जल्दी फैलती है, जिससे पशुपालक को काफी नुकसान होता है। ज्यादातर पशुपालक इसके लक्षण नहीं समझ पाते है।
आमतौर पर सूकरों के शरीर का तापमान 101 डिग्री F होता है। लेकिन जब बीमारी का संक्रमण होता है तो शरीर का तापमान 106 डिग्री F हो जाता है। सूअर खाना नहीं खाता है और काफी कमजोर भी हो जाता है। शरीर चकत्ते पड़ जाते है। अगर ये लक्षण दिखें तो पशुचिकित्सक की सलाह से एंटीबायोटिक दिलाएं बुखार कम करने की दवा दिलवाएं। इसके साथ विटामिन का सप्लीमेंट देना चाहिए ताकि शरीर में ताकत आ जाए। सूकर ज्वर बीमारी का कोई समय नहीं होता है। यह सूकरों को कभी भी हो सकती है। किसी भी उम्र में हो जाती है। इसलिए शुरूआत में ही पशुपालक को टीकाकरण करा लेना चाहिए। अगर किसी गार्भित सूकर को यह बीमारी होती है तो वो बच्चे भी मर जाते है।
लक्षण————–
*सूकरों को तेज बुखार।
*साँस लेने में कठिनाई।
*बरताव बदल जाता है।
*शरीर का तापमान बढ़ जाता है 106 से 107 डिग्री तक तथा ये 7 से 8 दिन तक रहता है , उसके बाद सुकर की मृतु हो जाती है ।
*पशु शिथिन , तनवग्रस्त तथा शांत दिखता है
*भूख नहीं लगना , उल्टी करना, उपच , पतला पैख़ाना ।
*शरीर मे पानी की कमी , वजन घटना ,निमोनिया
*चमड़ा लाल होने लगता है ।
*नथुन, कान ,पेट , पैर के अंदर वाला भाग बैगनी होने लगता है
*कान ,पूछ होठ और गुप्तांग सूखने लगते है
*आंखे लाल हो जाती है
*आँख ,नाक से पानी का रिसाव होनेलगता है
*आगे चल के दिमाग भी ईससे प्रभावित हो जाता है और पगलापन के लछन जैसे की सिर घुमाना, ईधर उधर उछलना ,परालिसिस और कोमा भी हो जाता है ।
*गर्भवती सुकर से मृत अथवा असामान्य सुकर पैदा होते है ।
रोग का हस्तांतरण ———
*स्वषण तथा भोजन द्वारा ।
*रोगी पशुओ का स्वस्थ पशुओ से संपर्क
*संक्रमित टिकाकरण द्वारा
*साफ सफाई के अभाव मे ।
उपचार———
ईसके लिए कोई बिशेस दवाई नहीं बनी है । इसी को देखते हुए ईसके वैक्सीन ‘स्वाईन फिभर’ को तैयार किया गया। इस वैक्सीन को जन्म के छह महीने बाद अगर पशुपालक लगवा लें तो ये बीमारी नहीं होती है
सूकरों को साफ और ताजा पानी दें। इस बीमारी से ग्रसित सूकर को स्वस्थ सूकरों से अलग रखें। उनके बाड़े में साफ-सफाई का ध्यान रखें। उनका अच्छे से रख-रखाव करें। बीमारी होने पर पशुचिकित्सक को संपर्क करें।
घरेलू उपचार ————
चावल/भात के माड़ मे 50 ग्राम हल्दी पाउडर , निम का तेल 20 मिली. लि.,20 ग्राम नमक ,20 ग्राम लहसुन , 20 ग्राम अदरक , 50 ग्राम प्याज , 50 ग्राम साबुदाना , 500 ग्राम पपीता , 20 ग्राम खानेवाला सोडा, 50 ग्राम गुर , 50 ग्राम दही, 10 ग्राम सफ़ेद चुना , शहद 20 एमएल , नीम पता 100 ग्राम , शाहजन पता 100 ग्राम (पेस्ट बनाकर ) सुबह शाम खिलावे। ये येक दिन का डोज़ है । कम से कम 7 दिन तक ईसको खिलावे ।
रोग से बचाने के लिए उपरयुक्त नुस्खा महीने मे 3 से 4 दिन खिलाने से सुकर मे रोग प्रतिरोधक छमता बढ़ जाती है ।
रोकथाम ———
*समय समय पर सुकर का टिकाकरण करवाए
*साफ सफाई मे ध्यान रखे
*भरपूर पीने का साफ पानी पिलाये
*खाना साफ जगह पर खिलाये
*रोगी पशु को स्वस्थ पशु से अलग रखे
*जिन पशुओ को रोग द्वारा मृतु होगयी हो उसे दफना दिया दे अथवा जला दे ।