By-Dr.Savin Bhongra
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हरे चारे का विकल्प साइलेज
गाय एवं भैंस अपने वजन का 2.5 से 3 % शुष्क पदार्थ एक दिन में खा सकती हैं l
एक 400 कि.ग्रा. वजन के पशु को लगभग 10 कि. ग्रा. शुष्क पदार्थ की आवश्यकता होती है l
पशु के आहार का मुख्य भाग (शुष्क पदार्थ का 67%) चारा होता है l जैसे की हरा चारा, घास या भूसा l
यदि हरा चारा पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध हो तो 30-40 कि.ग्रा. प्रति पशु प्रति दिन अवश्य खिलाना चाहिए l
हरा चारा हमेशा कुट्टी करके ही खिलाना चाहिए इससे उसका पाचन अच्छा होता है और चारा व्यर्थ भी नहीं होता l
इसके अलावा दुधारू पशुओं को दाने, खल, चोकर इत्यादि के मिश्रण से बना पशु आहार भी खिलाना चाहिए l
पशु को उसकी यथास्थिति बनाये रखने के लिए कम से कम 4-6 कि. ग्रा. भूसा और 14-16% प्रोटीन युक्त 1-2 कि.ग्रा. पशु आहार देना चाहिए l
दूध देने वाले पशु को इसके अतिरिक्त प्रति लीटर दूध पर 400-500 ग्राम पशु आहार दिया जाना चाहिए l
पशुओं को आवश्यकता से अधिक पशु आहार या दाना नहीं खिलाना चाहिए अन्यथा उनका पेट फूल जाता है l
अधिक दूध देने वाले जानवरों के लिए कम से कम 10 कि.ग्रा. हरा चारा जरूरी होता है|
हर समय पशुओं को उचित चारा उपलब्ध कराना सबसे कठिन कार्यो में से एक है। इसके साथ ही सब जानते हैं कि दुधारू पशुओं को संतुलित आहार के रूप में हरा चारा खिलाना पशुओं की स्वास्थय की दृष्टि से बेहद ही आवश्यक व महत्वपूर्ण हैं। किसान भाईयों को यह बात जानना बेहद आवश्यक है कि हरा चारा पशुओं के लिए पौष्टिक आहार होने के साथ — साथ यह आपके पशुओं को निरोग रखता है। पशुपालक हरे चारे के रूप में बरसीम, नैपियर घास, जई, मक्का, बाजरा, लोबिया, उड़द व मूंग आदि का इस्तेमाल पशुओं को खिलाने के लिए करते हैं। लेकिन इस तरह का हरा चारा साल भर नहीं मिल पाता है। गरमी के मौसम में पशुपालक अपने पशुओं को सिर्फ सूखा चारा व दाना खिलाने पर मजबूर होते है इस से दुधारू पशु कम दूध देने लगते हैं। ऐसी स्थिति में किसान यह सोच कर परेशान होते हैं कि अपने पशुओं को हरे चारे की जगह क्या खिलाएं।
जी हाँ हम आपको बताने जा रहा है हरे चारे के विकल्प साइलेज के बारे में। हरे चारे की तरह इसमें सभी पोषक व जरूरी तत्व मौजुद होते हैं। इसकी सहायता से पशुपालक अपने पशुओं के आसानी से साल भर हरे चारे की कमी के बाद भी पौष्टिक आहार दे सकता है। जिससे पशुओं के दुध उत्पादन औऱ स्वास्थ्य दोनों पर सकारात्मक प्रभाव रहता है। वहीं साइलेज के रूप में हरे चारे का भंडारण भी लंबे समय तक किया जा सकता है.
सबसे पहले बात करते हैं कि साइलेज क्या है –
साइलेज ज्वार, मक्का, नैपियर घास, बरसीम आदि हरे चारों को छोटे — छोटे टुकड़ो में काट कर उसे नमक व अन्य जरूरी पोषक तत्वों के मिश्रण से बनाया जाता है। साइलेज में भी हरे चारे की तरह ही उचित मात्रा में कार्बोहाइड्रेट व सूक्ष्म पोषक मात्रा सही हो, इसलिए पशुपालक को मक्का, ज्वार, जई, लूटसन, नेपियर घास, लोबिया, बरसीम, रिजका, लेग्यूम्स, जवी, बाजरा, गिन्नी व अंजन का खासा ध्यान रखना जरूरी हैं। ये दाने दूधिया हों तो तभी इसे काटना चाहिए। अगर पानी अधिक है, तो चारे को थोड़ा सुखा लेना चाहिए ताकि नमी की मात्रा 60 से 65 फीसदी तक आ जाए, क्योंकि अधिक नमी न होने से साइलेज सड़ता नहीं है।
सुरक्षित भंडारण के बारे में
साइलेज बनाने के लिए साइलोपिट का निर्माण किस तरह से किया जाए और इस के लिए जगह चुनने में किन चीजों का ध्यान रखा जाना चाहिए। वहां बरसात के पानी के अच्छे निकास का इंतजाम होना चाहिए और जमीन में जल स्तर काफी नीचे होना चाहिए। कोशिश करें कि साइलोपिट पशुओं को चारा खिलाने के स्थान के नजदीक बनाया जाए। साइलेज बनाने के लिए साइलोपिट का साइज चारे की मात्रा व मौजूदगी के हिसाब से होना चाहिए। वैसे 20 किलोग्राम चारे के लिए 1 घन फुट जगह की जरूरत पड़ती है। साइलोपिट कई प्रकार के हो सकते हैं। 8 फुट गहराई वाले गड्ढे में 4 पशुओं के लिए 3 महीने तक का साइलेज बनाया जा सकता है। गड्ढा ऊंचा होना चाहिए और उसे अच्छी तरह से कूट कर सख्त बना लेना चाहिए।
गुणवत्ता की जांच कैसे करें?
साइलेज की तैयार होते समय आक्सीजन न मिलने की वजह से पशुओं के पोषक व आवश्यत सूक्ष्म जीवाणूओं का निर्माण होते हैं। अच्छी गुणवत्ता की परख पशुपालक साइलेज के रंग से किया जाता है। यदि इसका रंग हरा, सुनहरा, हलका सोने के रंग जैसे या हरेभूरे रंग का हो तो वो साइलेज पशुओं को खाने व पचने में आसानी होती है।
साइलेज का जानवरों पर कोई बुरा प्रभाव नहीं पड़ता है। अच्छे साइलेज में खास तरह की खुशबू होती?है और जायका तेजाबी होता है। बरसीम, रिजका और लोबिया में घुलनशील कार्बोहाइड्रेट की मात्रा मक्का और ज्वार की तुलना में कम होती है और नमी व प्रोटीन की मात्रा ज्यादा होती है, इसलिए इन से अपनेआप साइलेज नहीं बनता।
लिहाजा बरसीम, रिजका और लोबिया का साइलेज बनाने के लिए 4 भाग हरे चारे में 1 भाग धान का पुआल मिला कर साइलेज बनाया जा सकता है। ऐसा करने से धान का पुआल हरे चारे की नमी को सोख लेता है, जिस से हरा चारा सड़ता नहीं है और पुआल का पचनीय तत्त्व भी बढ़ जाता है। बनाए जा रहे साइलेज चारे में शीरा 2 फीसदी के हिसाब से मिला दें ताकि घुलनशील कार्बोहाइड्रेट की मात्रा बढ़ जाए. बरसीम, रिजका, लोबिया आदि के चारे को मक्का, ज्वार, जई वगैरह के चारों के साथ मिला कर बनाए गए साइलेज का रंग पीला हो, तो यह सब से अच्छा साइलेज माना जाता है।
पशुओं को इसे पचाने में आसानी होती है। अगर साइलेज की पाचकता ज्यादा हो, तो दूध उत्पादन में भी बढ़ोतरी होती है। इसके अलावा पशुपालक को ध्यान रखने की जरूरत साइलेज को बनाने के बाद तीन महीनें बाद ही उस गड्ढ़ों को खोलना चाहिए। गड्ढा खोलने के बाद साइलेज को जितनी जल्दी हो सके पशुओं को खिला कर खत्म करना चाहिए। कई दफा उचित साफ-सफाई के अभावों में गड्ढे के ऊपरी भागों और दीवारों के पास में अकसर फफूंदी लग जाती है। यह ध्यान रखें कि ऐसा साइलेज पशुओं को नहीं खिलाना चाहिए
जैसा कि हमने आपको पहले ही बताया कि साइलेज हरे चारे का अच्छा विकल्प है व इसका कोई नकारात्मक असर भी पशुओं पर नहीं पड़ता तो अब देर किस बात की सभी पशुपालक जल्द से जल्द हरे चारे के रूप में साइलेज अपने पशुओं को दे सकते हैं।
पशुओं की नाद में डाली गई साइलेज के बचेखुचे हिस्से को हर बार हटा कर साफ कर देना चाहिए। चूंकि साइलेज की पूरी मात्रा पचनीय होती है, लिहाजा इसे भूसे के साथ मिला कर खिलाने से भूसे के पचने की उम्मीद भी बढ़ जाती है। एक दुधारू पशु जिस का औसत वजन 550 किलोग्राम हो, उसे 25 किलोग्राम की मात्रा में साइलेज खिलाया जा सकता है।