गौ-मूत्र एवं औषधीय पौधों से कीटनाशक

0
696

गौ-मूत्र एवं औषधीय पौधों से कीटनाशक

डॉ नवल सिंह रावत, डॉ.शैलेन्द्र सिंह, डॉ. गिर्राज गोयल, डॉ.सोमेश मेश्राम एवं डॉ.शुलोचना सेन

(सहायक प्राध्यापक)

पशुचिकित्सा विज्ञान एवं पशुपालन महाविद्यालय रीवा म.प्र.

Email of corresponding author -: drnawal13@gmail.com

        प्रस्तावना-: पशु गणना 2019 के अनुसार भारत में कुल गौवंशीय पशुओं की आबादी लगभग 192 मिलियन है जिसमें 142 मिलियन देशी एवं 52 मिलियन विदेशी/संकर नस्ल है। जिससे लगभग 2600 लीटर गौमूत्र तथा 4300 किलोग्राम गोबर प्रतिदिन उत्पादित होता है। एक गाय प्रतिदिन ओसत 13 लीटर गौमूत्र एवं 22 कि.ग्रा. गोबर का निष्कासन करती है। जटिल शारिरिक एवं रासायनिक संरचना के कारण इस अपषिष्ट का निपटान करना मुष्किल है, केवल 2-5 प्रतिषत ही अपषिष्ट का वैज्ञानिक तरीके से निपटान होता है। जिस कारण यह पर्यावरण प्रदूषण को बढ़ावा देता है। जैसे- ग्रीन हाउस गैस उर्त्सन तथा सतह एवं भू-जल का प्रदूषण आदि। अतः जैव कीटनाषक के रुप में उपयोग कर इस समस्या से निदान पा सकते हैं और साथ ही पर्यावरणीय दुष्प्रभाव को भी कम किया जा सकता है।

भारत में औषधीय पौधें

भारत में अनुमानित 7500 पौधों की प्रजातियों का उपयोग औषधीय पौधें के रुप में किया जाता है जिसमें से हमने जैव कीटनाशक तैयार करने के लिए मात्र 3 औषधीय पौधे नीम, लैंटाना कैमरा एवं लहसुन का प्रयोग किया है। यह बहुत आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं तथा पशुओं के बाह्य परजीवियों एवं सब्जियों, खाद्यान्न, दलहन और तिलहन फसलों के हानिकारक कीटों के नियंत्रण में सकारात्मक प्रभाव देखे गये है।

गौ-मूत्र एवं उपयोगी औषधिय पौधों में सक्रीय योगिक हैं

गौ मूत्र में यूरिया, यूरिक एसिड, हिप्पुरिक एसिड, एवं क्रियेटीनिन योगिक पाये जातें है जो कीटनाशक का काम करतें हैं। गोबर लिग्निन, सेल्युलोज एवं हेमीसेल्युलोज का बना होता है इसमें लगभग 24 प्रकार के खनिज विशेषकर नाइट्रोजन एवं पोटेशियम पाया जाता है। नीम की पत्ती में आजेदिरेक्टिन पाया जाता है जो प्रमुख कीटनाशक तत्व है। लहसुन में मोजूद एलोसिन एवं लगभग 33 सल्फर योगिक है जो कीटों के सम्पर्क में आते ही झुनझुनी पैदा करता है और कीट पेड़ से गिर जाते है। लैंटाना कैमरा की पत्ती के अर्क में रोगाणुरोधी, कवकनाशी एवं कीटनाशक गुण होते हैं।

READ MORE :  गाय एक चिकित्सा शास्त्र

 

जैव कीटनाशक एवं प्रकार

जैव कीटनाशक प्राकृतिक पदार्थों जैसे पशु उत्पाद, वनस्पिति, जीवाणु एवं कुछ खनिज पदार्थों के द्वारा तैयार किये गये कीटनाशकों को जैव कीटनाशक कहते हैं। व्यापक रुप से जैव कीटनाशक को सक्रीय घटकों के आधार पर 3 प्रमुख वर्गों में विभाजित किया गया है-1) जैव-रासायनिक कीटनाशक 2) माइक्रोबियल कीटनाशक 3) प्लांट इनकॉर्पोरेटेड प्रोटेक्टेंट्स

जैव कीटनाशक के उपयोग के फायदे

  1. जैव कीटनाशक रासायनिक कीटनाशकों की तुलना में कम बिषैले होते है।
  2. जैव कीटनाशक केवल लक्ष्य कीट एवं निकट संबंधी को प्रभावित करते हैं यह अन्य जीव-जन्तुओं एवं पर्यावरण पर हानिकारक प्रभाव नहीं डालते।
  3. यह कम मात्रा में भी अत्यधिक प्रभावी होते है।
  4. यह जल्दी से विघटित होते हैं तथा अपने अवशेष नहीं छोड़ते और फसल की उपज भी बढ़ाते हैं।
  5. जैव कीटनाशक पशुओं के मल-मूत्र का एक अच्छा उपयोग है एवं ग्रीन हाउस गैस का उत्सर्जन भी कम होगा।
  6. यह लगभग मुफ्त है एवं आर्थिक रुप से मॅहंगे रासायनिक कीटनाशकों पर हो रहे किसानों के व्यय को बचाता है।
  7. आज कल अनुपयोगी पशु जो पशुपालकों के लिए अतिरिक्त बोझ होते जा रहे हैं एसे पशुओं का प्रबंधन अच्छे से हो सकेगा।

जैव कीटनाशक के लिए आवश्यक सामग्री एवं तैयार करने की प्रक्रिया

  1. सर्वप्रथम देशी गाय का ताजा मूत्र और गोबर सुबह एकत्र कर लें।
  2. ताजा वनस्पति उत्पाद (नीम के पत्ते, लैंटाना कैमरा के पत्ते और लहसुन) एकत्रित कर लें।
  3. नीम के पत्ते, लैंटाना कैमरा के पत्ते और लहसुन को अलग-अलग पीस लें।
  4. गौमूत्र, गोबर तथा पीसे हुए नीम के पत्ते, लैंटाना कैमरा के पत्ते और लहसुन को क्रमशः 10:10:2:2:1 या 10:10:4:4:2 में मिलावें।
  5. मिश्रण को किण्वन के लिए 20 दिनों की अवधि के लिए छायादार स्थान पर ढक कर रखें जिससे मिश्रण की कीटनाषक क्षमता बढ़ेगी एवं हानिकारक जीवाणु एवं बिषाणु भी समाप्त हो जायेंगे।
  6. मिश्रण को प्रतिदिन 2 बार लकड़ी की सहायता से चलाएं।
  7. 21वे दिन मिश्रण को पतले कपड़े की सहायता से छान लें। यह मिश्रण छिड़काव के लिए तैयार है।
  8. इसमें 10-20 गुना पानी मिलाकर या एक लीटर मिश्रण के साथ 5-6 लीटर पानी मिलाकर छिड़काव किया जा सकता है।
  9. पत्ते की सतह एवं पषुओं के शरीर पर जैव कीटनाषक की बेहतर पकड़ के लिए डिटर्जेंट का उपयोग किया जा सकता है।
READ MORE :  बबुल के औषधीय गुण एवं उपयोगिता

जैव कीटनाशकों का प्रयोग

दुनिया की लगभग 80 प्रतिशत पशु आबादी पर बाह्य परजीवियों का खतरा होता है। विश्व स्तर पर किलनी/बाह्य परजीवी को सबसे हानिकारक पशुधन कीट माना जाता है। चीन के बाद भारत 75 मिलियन टन सब्जियों के उत्पादन के साथ दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है परन्तु कुछ वर्षों से सब्जी उत्पादन में लगभग 40 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई जो लगातार पारम्परिक कीटनाषक के प्रयोग के कारण कीटों में प्रतिरोधकता आ चुकी है। अतः इस परिस्थिति से निपटने के लिए जैव कीटनाशक एक अच्छा विकल्प हो सकता है। जैव कीटनाशक का पशुओं पर बाह्य परजीवियों के नियंत्रण एवं सब्जियों, खाद्यान्न, दलहन और तिलहन फसलों पर इसका प्रयोग कीट नियंत्रण के लिए किया जा सकता है।

  • पालतु पशुओं में बाह्य परजीवियों के लिए 2-3 बार 15 दिनों के अंतराल में शरीर पर प्रयोग कर लगभग 55 से 60 प्रतिषत नियंत्रण प्राप्त कर सकते हैं। बाह्य परजीवियों की सघनता/प्रकोप की स्थिति अनुसार प्रयोग की बारम्बारता बढ़ा कर बाह्य परजीवियों पर पूरी तरह नियंत्रण पा सकते हैं।
  • फसलों पर बुबाई के 20 दिन बाद से 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव करने से कीट-व्याधि तो दूर रहती है साथ ही साथ फसल का उत्पादन भी बढ़ता है।

गौ-मूत्र

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON