अधिक मुनाफा प्राप्त करने के लिए दुधारू पशुओ का सही चुनाव कैसे करे
डेरी व्यवसाय में मुनाफा प्राप्त करने के लिए दुधारू पशुओ का सही चुनाव एक मुख्य मुद्दा है।गाय का यूं तो पूरी दुनिया में ही काफी महत्व है, लेकिन भारत के संदर्भ में बात की जाए तो प्राचीन काल से यह भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ रही है। चाहे वह दूध का मामला हो या फिर खेती के काम में आने वाले बैलों का। वैदिक काल में गायों की संख्याफ व्यक्ति की समृद्धि का मानक हुआ करती थी। गाय पालन कर दूध उत्पादन ने हमारे देश की अर्थव्यवस्था में बड़े स्तर पर भागीदारी की है और बहुत से गरीब किसानों को गाय पालन कर अपना व्यवसाय स्थापित करने में सहयोग किया है।
जब कभी भी आप गाय पालन का व्यवसाय करने को सोंचे तो आपके लिए ये जानना बहुत जरुरी है की कौन सी नस्ल की गाय सबसे ज्यादा दूध देती है। किस नस्ल की गाय का बछड़ा दूध का उत्पादन करने के जल्दी बढ़ता है हम आपको बताएँगे की आप अपने दुधारू पशुओ का चुनाव कैसे करे :-
पशु खरीद एक कला है। एक कुशल एवं अनुभवी पशुपालक को अधिक उत्पादक क्षमता वाला पशु सीधा एवं सरल स्वभाव का हो, कोई भी उसके पास चला जाए, दूध निकाल ले। पशु स्वस्थ हो रोग ग्रस्त ना हो, पशु को रोग निरोधक टीके जैसे- गलघोटू, पशुमाता, खुरपका, मुंहपका, टीबी (क्षय रोग) जोन्स तथा बुसेलोसिस के टीके लगे हैं या नहीं जानकारी कर ले। यदि ये टीके न लगे हो तो लगवा लेना चाहिए। दुधारू पशु खरीद के समय उसकी नस्ल की जानकारी होना आवश्यक है। जमीन, जलवायु तथा चारे की उपलब्धता के अनुसार नस्ल का चुनाव करना चाहिए। पशु को चला फिरा कर एवं समस्त अंग-प्रत्यंगों की भली भांति जांच कर लें। पशु को कोई दुर्व्यसन जैसे- मिट्टी खाना, दिवार चाटना, पेशाब पीना आदि तो नहीं है देख ले। गायों मे निम्नलिखित बातों की जानकारी करके उनकी दुग्ध उत्पादन क्षमता का काफी हद तक सही पता लगाया जा सकता है।
चुनाव का आधार———-
दुधारू गाय का चुनाव करना अन्य पशुओं की अपेक्षा सरल है। क्योंकि दुग्ध की उत्पादन क्षमता कुछ उसकी बाहरी शारीरिक बनावट से पता लग जाती है जिसे हम वैज्ञानिक भाषा में दृश्य रूप गुण या बाह्य दृश्य रूप गुण (Phenotype character) कहते हैं पर केवल दृश्य रूप गुण को ही देखकर किसी गाय की दुग्ध उत्पादन क्षमता का पता लगाना कठिन है और इसके लिए यह आवश्यक होगा कि हम इस गाय की समपैत्रिक बनावट (Genotype character) की सहायता लें क्योंकि गाय की उत्पादन क्षमता उसे अपने पूर्वजों से प्राप्त होती है। दुधारू गाय का सही मूल्यांकन दो बातों पर निर्भर करता है।
- दृश्य रूप गुण – ———-
अच्छी दुधारू गाय की पहचान में दृश्य रूप गुण काफी हद तक मदद् दे सकता है, बनावट की इस स्तर की मुख्य बातें नीचे दी गई है।
- समपैत्रिक गुणः ———-
दृश्य रूप गुण दुधारू गाय की दुग्ध उत्पादन क्षमता का अनुमान लगाने में काफी हद तक सहायक हो सकता है। लेकिन किसी भी गाय की सही उत्पादन क्षमता मालूम करने के लिए उसके कुल से सम्बन्धित सम्बन्धिओं की उत्पादन क्षमता पंजियों (production performance record) का सहारा लेना आवश्यक हो जाता है। वैज्ञानिकों ने यह खोज कर ली है कि गाय को दुग्ध उत्पादन क्षमता उसके पूर्वजों से मिलती है। यह भी स्थापित हो गया है कि इस क्षमता का 50 प्रतिशत मां की ओर से और 50 प्रतिशत बाप का अंश रहता है। जैसे यदि कोई गाय एक ब्यात में 500 किलो दूध देने वाली है और इसको गर्भित करने वाले सांड का प्रवरण देखना (Sire index) 600 किलो है तो इनसे उत्पन्न सन्तान (बछिया) से हम 550 किलो दूध प्राप्त करने की आशा करते हैं। इस तरह किसी भी गाय की औसत दुग्ध उत्पादन क्षमता का अनुमान निम्न तरीके से लगाया जा सकता है।
गाय की औसत दुग्ध उत्पादन क्षमता = सांड की दूध क्षमता + माताओं का औसत दूध
(प्रवरण देना)
अतः उपरोक्त दोनों गुणों से दुधारू गाय के छांटने में काफी मदद मिलेगी और पशुपालक आसानी से दुधारू पशुओं की चयन कर सकता है।
दुधारू पशु खरीदते समय ध्यान देने योग्य बातेंः—-
दुधारू पशु का मूल्याकंन उनके दुग्ध उत्पादन क्षमता, प्रतिवर्ष बच्चे देने की क्षमता तथा लम्बे, स्वास्थ्य एवं उपयोगी जीवन से किया जाता है। अच्छे दुधारू पशुओं को खरीदते समय किसान भाइयों को निम्नलिखित गुणों पर ध्यान दिया जाना चाहिये-
नस्ल———–
गाय / भैंस का चुनाव करने से पहले उनकी उम्दा नस्ल के बारे में जानना आवश्यक है। दुधारू गाय/ भैंस दूरस्थ स्थान से नहीं खरीदकर स्थानीय जलवायु को ध्यान में रखते हुए आसपास के ग्रामीण क्षेत्र से चयन करें। पशु उन्नत नस्ल का हो।
डेरी उद्योग के लिए उमदा देसी / विदेशी गाय की नस्ले :- गीर , कांकरेज ,सहिवाल, जर्सी , होल्स्टिन फ्राइजियन
डेरी उद्योग के लिए उमदा भैंस की नस्ले : -सुरति , महेसाणी मुर्राह जाफराबादी , बन्नी
ज्यादा दूध उत्पादन करती गाय और भैंस का ही चुनाव करना चाहिए जिसे आप ज्यादा मुनाफा प्राप्त कर सके।
शारीरिक संरचना-
दुधारू पशुओं का शरीर आगे से पतला तथा पीछे से चौड़ा, नथुना खुला हुआ, जबड़ा मजबूत पेशीवाला, आँखे उभरी एवं चमकदार, त्वचा पतली, पूँछ लम्बी, सींगों की बनावट नस्ल के अनुसार, कन्धा शरीर से भली-भाँति जुड़ा हुआ, छाती का भाग विकसित, पीठ चौड़ी एवं समतल तथा शरीर छरहरा होना चाहिये दुधारू गाय की जाँघ पतली एवं गर्दन पतली लम्बी एवं सुस्पष्ट होनी चाहिये। पेट काफी विकसित होना चाहिये। अयन (थन) की बनावट समितीय, त्वचा कोमल होना चाहिये। चारों चूचक एक समान लबें एवं मोटे, एक दूसरे से समान दूरी होना चाहिये।
. दुग्ध उम्पादन क्षमताः- खरीदने से पूर्व उसे स्वंय दो तीन दिन तक दुहकर भली-भाँति परख लेना चाहिये। दूहते समय दूग्ध की धार सीधी गिरनी चाहिये तथा दूहने के बाद थन सिकुड़ जाना चाहिये। अयन में दूध की शिराएँ उभरी हुई अच्छी तरह से विकसित दिखाई देनी चाहिये।
वंशावली-
यदि पशु की वंशावली उपलब्ध हो तो उनके बारे में सभी बातों की जानकारी प्राप्त की जा सकती है। लेकिन हमारे यहाँ वंशावली रिकॉर्ड रखने का प्रचलन नहीं है, जिसके कारण अनेक लक्षणों के आधार पर ही पशु का चुनाव करना पड़ता है। अच्छे डेरी फार्म से पशु खरीदने में यह सुविधा प्राप्त हो सकती है।
आयु-
सामान्यतः पशुओं की जनन क्षमता 10-12 वर्ष की आयु के बाद समाप्त हो जाती है। तीसरे-चौथे ब्याँत तक दुग्ध उत्पादन चरम सीमा पर रहता है जो धीरे-धीरेे घटते जाता है। अतः दुग्ध उत्पादन व्यवसाय के लिये 2-3 दाँत वाले कम आयु के पशु अधिक लाभदायक होते हैं। दुधारू पशुओं में स्थाई एवं अस्थाई दो प्रकार के होते है। स्थाई दाँत मटमैले सफेद रंग के उपर से नीचे की तरफ पतले गर्दन का आकार लिये हुए जबड़े से जुड़े होते हैं जबकि अस्थाई दाँत सफेद बिना गर्दन के जबड़े से लगे होते हैं। 6 (छः) साल के बाद मवेशियों के सामने के दो( इनसाइजर) दाॅत धीरे-धीरे घिसनें लगते हैं जिससे अपेक्षाकृत कम नुकीले एवं छोटे दिखाई देते हैं। 10-11 साल की आयु होने तक चारों इनसाइजर दाँत घिसकर छोटे हो जाते हैं। उम्र बढ़ने के साथ-साथ लगभग सभी दाँत घिसकर चौकोर हो जाते हैं तथा दो दाँतों के बीच में फर्क दिखाई देने लगता है।
स्वास्थ्य-
पशु का स्वास्थ्य अच्छा होना चाहिये तथा स्वास्थ्य के बारे में अगल-बगल के पड़ोसी से जानकारी भी अवश्य लेनी चाहिये। टीकाकरण एवं अब तक हुई बीमारियों के बारे में सही-सही जानकारी होने से उसके उत्तम स्वास्थ्य पर भरोसा किया जा सकता है।
जनन क्षमता-
आदर्श दुधारू गाय वही होती है जो प्रतिवर्ष एक बच्चा देती है। पशु क्रय करते समय उसका प्रजनन इतिहास अच्छी तरह जान लेना चाहिये। यदि उसमें किसी प्रकार की कमी हो तो उसे कदापि नहीं खरीदना चाहिये। क्योंकि ये कभी भविष्य में समय पर पाल न खाने, गर्भपात होने, स्वास्थ्य, बच्चा नही होने, प्रसव में कठिनाई होने इत्यादि कई प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।
दूध निकाल कर देखें—
पशु खरीद से पहले कम से कम 3 बार दूध निकाल कर देखें, क्योंकि पशु बेचने वाले कई बार एक समय का दूध छोड़ देते हैं या चीनी आदि खिला देते हैं, जिससे एक समय का दूध निकालने से उसकी मात्रा ज्यादा हो जाती है।
सिंग को देखकर पशु की उम्र का अनुमान ना लगाकर उसके दांतो से लगाना चाहिए। पशु स्वास्थ्य एवं चुस्त दिखाई देना चाहिए। उसके शरीर की बनावट अच्छी हो परंतु ज्यादा मोटी (चर्बी वाली) ना हो, क्योंकि बहुत मोटी खाल वाली गाय या भैंस ज्यादा दूध उत्पादन नहीं देती हैं तथा उन में प्रजनन की समस्याएं भी रहती है।
अच्छे एवं दुधारू पशुओं को निम्न लक्षण को देखकर पशु खरीद की जा सकती है।
- पशुओं के बाहर लक्षण देखकर।
- दूध उत्पादन पंजिका देखकर
- पशु की वंशावली पंजिका देखकर।
- गुणनखंड तालिका बनाकर
गाय या भैंस के बाहरी लक्षण देखकर पशु खरीद
एक अच्छे एवं दुधारू पशु के निम्न लक्ष्ण होने चाहिए।
सामान्य स्वरूप:-
गाय या भैंस का स्वरूप नस्ल के अनुसार हो उसके शरीर का विकास अच्छा हुआ हो तथा लंबाई एवं ऊंचाई प्राप्त हो।
स्वभाव:-
बहुत शांत एवं पालतू हो भड़कीला न हो।
डेयरी आकृति:-
शरीर आगे से पतला व पीछे से चौड़ा होना चाहिए ताकि शरीर तिकोना दिखाई दे।
सिर:-
सिर नस्ल के अनुसार होना चाहिए। सींग हल्के, छोटे,गुटठल तथा चिकना होना चाहिए। थूथन चौड़े, नथुने खुले, आंखे चमकदार होनी चाहिए। आँख से पानी तथा कीचड़ न निकलता हो। कान चौकन्ने तथा स्त्राव न आता हो। मजबूत मांसपेशी वाला होना चाहिए। दांत मजबूत दिखाई देने चाहिए।
त्वचा:-
हमेशा पतली त्वचा वाला पशु खरीदना चाहिए। त्वचा चिकनी, चमकदार, लचीली तथा चर्म रोग रहित होनी चाहिए। त्वचा पर बाल सुंदर कोमल और चमकदार होने चाहिए।
पीठ व कमर:-
पीठ सीधी, मजबूत और लम्बी तथा कमर चौड़ी एवं समतल होनी चाहिए।
पेट का घेरा:-
पेट बड़ा होना चाहिए। ऐसे पशु चारा अधिक खाने एवं पचाने का सूचक होता है। इससे अधिक दूध उत्पादन की संभावना होती है।
छाती:-
छाती चौड़ी वह गहरी हो तथा कन्धे दूरी पर स्थित हो। शरीर के इस भाग में ह्रदय एवं फेफड़े स्थित होते हैं। जिनका बड़ा आकार अधिक उत्पादन से संबंध रखता है। हड्डियां नहीं दिखनी चाहिए।
पुटठे:-
पुटठे लंबे चौड़े मजबूत व ढालदार होने चाहिए तथा यहां की हड्डियां समुचित दूरी पर होनी चाहिए ताकि वह आते समय पशुओं को तकलीफ ना हो उपस्थित इन बस्ती को दूर दूर होना चाहिए, ताकि ब्याते समय पशु को तकलीफ न हो।
उपलस्थि (पिन बोन):-
उपलस्थि को दूर-दूर होना चाहिए ताकि ब्याते समय पशु को तकलीफ न हो तथा आयन का आकार बड़ा होने की संभावना रहती है।
कुल्ले की हड्डियां (हिप कूल्हे की हड्डी):-
कुल्ले की हड्डियां भी दूर दूर हो, जिससे जननांगों को अधिक स्थान मिल सके।
पसलियां:-
पशु की पसलियां लंबी चौड़ी मोटी तथा उभरी हुई व दूर दूर हो हाथ लगाकर इन को सुगमता से देखा जा सकता है।
पूंछ:-
लंबी एवं निचे के सिर पर बाल का गुच्छा बड़ा हो।
अयन एवं थन का आकार : ——–
दुधारू गाय का अयन का अगला हिस्सा पुष्ट और वृहद होना उचित माना जाता है. पिछले भाग से अयन चौड़ी दिखनी चाहिए तथा शरीर से इस तरह जुड़ा हो ताकि उथला जैसा लगे. अयन को स्पर्श करने पर वह मुलायम प्रतीत होता है, जिसकी दुग्ध शिराएं विशेष रूप से विकसित होती हैं. गाय अथवा भैंस के अयन चार थनों में विभाजित रहते हैं. गाय का थन 5-6 से.मी. लम्बा और 20-25 मि.मी. व्यास का हो, वह गाय अच्छी समझी जाती है. समतल भूमि में खड़ी एक दुधारू गाय के थनों और जमीन के बीच 45-50 से.मी. या अधिक से अधिक 48 से.मी. की दूरी आदर्श मानी जाती है. झूलते या लपकते हुए अयन अच्छे नहीं माने जाते हैं, क्योंकि जब गाय व भैंस चरने हेतु छोड़ी जाती हैं तो कांटे या नुकीले पदार्थ से तन को जख्म होने की संभावना रहती है और थनैला रोग की समस्या बढ़ जाती है. अयन में थनों की स्थिति समान दूरी पर होना चाहिए. यदि थनों में सूजन या दर्द हो तो ऐसे गायों का चयन नहीं करना चाहिए.
अयन:-
अयन बड़े आकार का होना चाहिए। इसकी बनावट मुलायम एवं लचीली हो जिससे दूध निकालने के पश्चात वह सिकुड़कर पृष्ठ भाग में सलवटदार हो जाए। अयन सामने से अच्छा फैलाव लिए हो तथा शरीर से भली भांति जुड़ा हो। ज्यादा लटका हुआ ना हो।
थन:-
थन लंबे तथा बराबर होने चाहिए। चारों तक एक दूसरे से बराबर दूरी पर होना चाहिए तथा बहुत अधिक नहीं झूलने चाहिए। थान छूने पर मुलायम तथा स्पंज जैसा लगना चाहिए। इन में कोई गांठ न हो। थन छोटा-मोटा व लेवटी सख्त हो। उस पर हाथ लगाने से यदि पशु को कष्ट हो तो समझना चाहिए की पशु को थनेला रोग हैं।
दुग्ध शिराए:-
दुग्ध शिराए लंबी एवं टेडी-मेडी हो जिससे यह प्रकट होता है कि अयन में रक्त संचार पर्याप्त मात्रा में होता है, इसे दूध का उत्पादन अधिक होगा।
दुग्ध कूप:-
दुग्ध कूप बड़े आकर का होना चाहिए।
पांव : —-पशु के अगले पैर का निचला भाग लगभग खड़ा (सीधा) होता है तथा पिछले पैर बगल से देखने पर हासिये के आकार के होते हैं.
दूध उत्पादन पंजिका देखकर——
इस पंजिका द्वारा पशु के पहले वाले वर्तमान ब्यात का विवरण देखा जा सकता है। इस से यह ज्ञात किया जाता है कि पशु में एक ब्यात में कितने समय और कुल कितना दूध दिया है। इससे उसकी उत्पादन क्षमता का सही अनुमान लग सकता है।
गाय या भैंस की वंशावली पंजिका देखकर
वंशावली के आधार पर :
आर्थिक पहलू से गाय एवं भैंसों के गुणों को तीन क्रमों में बांटा गया है. (1) शारीरिक विकास, (2) दूध उत्पादन और (3) प्रजनन. दुधारू पशुओं की पहचान नस्ल के आधार पर अधिकांशत: की जाती है. प्रत्येक नस्ल के शारीरिक विकास उनकी वंशावली के आधार पर होता है. पशुओं के जनने के बाद दूध का उत्पादन बहुत कुछ अनुवांशिकता पर निर्भर करता है. माता-पिता से गुण बच्चों में जाते हैं, अत: दुधारू पशु के बच्चे भी अधिक दूध देने की क्षमता रखते हैं, बशर्ते उन्हें अच्छा आहार एवं उत्तम व्यवस्थापन प्राप्त हो. सांड को दुग्ध प्रक्षेत्र का आधा हिस्सा माना जाता है, क्योंकि एक सांड से बहुत से बच्चे पैदा हो सकते हैं. अत: सांड को प्रजनन हेतु लाने के समय ठीक से चयन करना बहुत आवश्यक है. जनक और जननी दोनों का ही प्रभाव संतान के लक्षणों पर होता है.
संतान के उत्पादन के आधार पर :
दुधारू पशुओं का चुनाव उनकी संतान के उत्पादन के आधार पर किया जाना अधिक लाभकारी होता है. इन संतान में माता-पिता दोनों के गुण सम्मिलित रहते हैं, अत: जिन पशुओं की संतान की उत्पादन क्षमता अधिक रहती है, उन्हीं के आधार पर चयन किया जा सकता है. दो ब्यातों का अन्तराल करीबन 15 माह होना चाहिए ब्याने के तीन माह पश्चात ही गाय का पुन: गर्भधारण कर लेना अच्छा माना जाता है. पशुओं के आहार एवं वातावरण पर पशुधन की उत्पादकता एवं पशुओं की गुणवत्ता निर्भर करती है. परन्तु अच्छी गुणवत्ता के पशुओं का उत्पादन, उनमें पाये जाने वाले अनुवंशीय गुणों पर आधारित होता है. पशुपालकों को सुझाव दिया जाता है कि दुधारू पशु का चुनाव करते समय उनकी शारीरिक बनावट, नस्ल, उत्पादन क्षमता, उम्र इत्यादि बिन्दुओं पर विशेषरूप से ध्यान दिया जाना चाहिए. इसके अतिरिक्त यह भी देखना चाहिए कि पशु पूर्णरूप से रोगमुक्त हो. जहां तक संभव हो, गर्भवती गाय, भैंसों का क्रय करना उचित रहता है.
इसके द्वारा पशु के पूर्वजों अर्थात माता-पिता, दादी, नानी का पूर्ण विवरण जाना जाता है। इसमें ब्यात की संख्या, बच्चों की संख्या, उनकी स्वास्थ्य और जन्म-मृत्यु संबंधी लेखा रखा जाता है। इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए उनके दूध उत्पादन के आधार पर पशु खरीद की जा सकती है।
गुणनखंड तालिका द्वारा——
इस विधि द्वारा गाय भैंस का चुनाव करना अन्य विधियों से सरल है। इसमें पशु को प्रत्येक या मुख्य अंगों के लिए निश्चित अंक होते हैं। इन्हीं निर्धारित अंकों में से अंक दिए जाते हैं। यदि पशु 50% अंक प्राप्त करता है तो साधारण, 51-74 प्रतिशत तक उचित एवं 75% यहां अधिक अंक प्राप्त करने पर सबसे उत्तम पशु माना जाता है।
सभार - लाइवस्टोक इंस्टीट्यूट आफ ट्रेंनिंग एंड डेवलपमेंट (LITD), टेक्निकल टीम