कड़कनाथ नस्ल का मुर्गा पालन
अनुपम सोनी1 शरद मिश्रा2 निष्मा सिंह3 रूपल पाठक3 एमडी बोबडे4 नीतू सोनकर1 और सुधीर भगत1 पशुधन उत्पादन और प्रबंध्नन विभाग सीजीकेवी दुर्ग छत्तीसगढ़ 491001 भारत 1 शोध छात्र पशुधन उत्पादन प्रबंध्नन विभाग सीजीकेवी दुर्ग छत्तीसगढ़ 2 प्राध्यापक और विभागाध्यक्ष पशुधन उत्पादन प्रबंध्नन विभाग सीजीकेवी दुर्ग छत्तीसगढ़ 3 सहायक प्राध्यापक पशुधन उत्पादन प्रबंध्नन विभाग सीजीकेवी दुर्ग छत्तीसगढ़ 4 पीएचडी छात्र पशुधन उत्पादन प्रबंध्नन विभाग सीजीकेवी दुर्ग छत्तीसगढ़
कड़कनाथ पश्चिम मध्यप्रदेश के झबुआ एवं धार और छत्तीसगढ़ के बस्तर जिला एवं गुजरात तथा राजस्थान के समिपवर्ती क्षेत्रों में पाया जाने वाला एक महत्वपूर्ण भारतीय नस्ल का मुर्गा है। विश्व में काला मांस वाले मुर्गा की मात्र तीन जाति पायी जाती है। जिसमें भारत में पायी जाने वाली एक मात्र नस्ल कड़कनाथ है। इस नस्ल की उत्तपत्ति विकास भारतीय कृषि परिस्थिति परिवेश में प्राकृतिक चयन के द्वारा हुआ है। जिसमें स्थानिय वातावरण के अनुकुल है। कड़कनाथ नस्ल के मुर्गो में रोग प्रतिरोधक क्षमता विदेशों नस्ल की तुलना में काफी अच्छा है। कड़कनाथ पक्षी पर अति अनुपयुक्त वातावरण जैसे ग्रीष्मकालीन उष्मा और शीत कालीन ठंड का प्रभावशुन्य होता है। यह प्रतिकुल परिस्थिति जैसे अपर्याप्त आवास और प्रबंधन एवं आहार में भी कुशलता पूर्वक विकास करता है। कड़कनाथ की मुख्यतः तीन प्रजाति है।
- स्याह काला कड़कनाथ सम्पुर्ण शरीर का पंख काला होता है।
- पेन्सीन कड़कनाथ – गर्दन पर पंख उजला तथा अन्य हिस्सा में करना होता है।
- सुनहरा कड़कनाथ – सिर एवं गर्दन पर सुनहरा पुख तथा अन्य हिस्सा में काला होता है। सभी प्रजाती में त्वचा और चोंच तथा पिण्डली तथा अंगंली और तलवा गहरा काला होता है। जबकि जीभ गहरा ये हल्का होता है। कुक्कुटशिखा गलचर्म तथा कर्णपाली हल्का से गहरा धुसर वर्ण का होता है। कभी कभी कुक्कुटशिया गलचर्म तथा कर्णपाली बैगनी रंग का भी पाया जाता है कड़कनाथ कम अंड़ा उत्पादन करने वाला नस्ल है लेकिन इसका मांस काफी स्वादिष्ट एवं संहतमंद गुणों के लिए बहुत अधिक होने के मॉस का मुल्य बहुत अधिक होने के कारण इसका पालन अत्यधिक लाभकारी है। इसके मांस का उपयोग अिउवासियों के द्वारा नर में कामोन्तेजक एवं मादा में स्वाभाविक गगर्भपात के उपचार में किया जाता है।
कड़कनाथ मुर्गा के मॉस की विशेषता –
- कड़कनाथ के मॉस में वसा की मात्रा (0-73 से 1-03 प्रतिशत) अन्य नस्लों में पायी जाने वाली मात्रा (13-15 प्रतिशत) से काफी कम है।
- प्रोटीन की मात्रा (25 प्रतिशत) अन्य नस्ल में पायी जाने वाली (18 से 20प्रतिशत) से अधिक पायी जाती है।
- इसमें 18 अमीनों अम्ल अधिक मात्रा में पाया जाता है जिसमें मनुष्य के लिए 8 आवश्यकता अमीनों अम्ल के क्षेणी में आता है। इसके अलावे अधिक मात्रा में हार्मोन एवं विटामिन, बी -1 बी-2 बी-12 सी ई नीयासीन कैल्शियम लौह एवं निकोटिनिक अन्य पाया जाता है जिस कारण यह अधिक पौष्टिक है।
- कोलेरूट्रल की मात्रा (184 मी.ग्रा./100 ग्राम मॉस) अन्य सफेद मुर्गी में पाया जाने वाला मात्रा (218 मीग्रा./100 ग्राम मॉस) से कम होता है।
- लीनोलेइक अम्ल की मात्रा (24 प्रतिशत) अन्य मुर्गी (21प्रतिशत) से काफी अधिक होता है।
कड़कनाथ मुर्गी का प्रदर्शन
एक दिन के चूजे का वनज 28 से 31 ग्राम
ग्राम 8 सप्ताह में शरीर भार 800 से 100 ग्राम.
एक कि.ग्रा. शरीर भार प्राप्त करने का औसत काल 14 सप्ताह
उत्तर जीविता 94 प्रतिशत
व्यस्क नर का औसत शरीर भार 2200 से 2500 ग्राम.
व्यस्क मादा का औसत शरीर भार 1500 से 1800 ग्राम.
त्वचा रिक्षत मॉस की प्रतिशत 65 प्रतिशत
अंड़ा उत्पादन आरम्भ 24 सप्ताह
प्रति माह अंड़ा उत्पादन 11 से 13 नग
वार्षिक अंड़ा उत्पादन 90 से 120 नग
अंड़ा का औसत वनज 47 ग्राम
जनन क्षमता 55 प्रतिशत
अंड़ा से चूजे का उत्पादन 52 प्रतिशत
आवास – आवास स्थानीय उपलग्ध संसाधन से बनाया जा सकता है। प्रति पक्षी 1-5 से 2-0 वर्ग फीट सतही क्षेत्रफल की आवश्यकता होती हैं फर्श पर 2-3 ईंच मोती बिछाली का प्रयोग किया जाता है। बिछाली के लिए चावल भूसी मुंगफली का छिलका लकड़ी छिलन का उपयोग किया जा सकता है। मुर्गी बाड़ा लम्बाई पूर्व पश्चिम रखा जाता है। आवास में 100 चूजों पर 2 से 3 (60 से 70 से.मी. रेखिय) आहार पात्र की व्यवस्था रखी जाती है। आवास में 24 घंटे स्वस्छ जल का प्रबंन्ध रखा जाता है। आवास में उचित वायु संचार, प्रकाश एवं परभक्षी से सुरक्षा की वूर्ण व्यवस्था रखी जाती है। 3 से 4 अंड़ा देने वाली मुर्गी पर एक घोसला का निर्माण बॉस, लकड़ी सर मिट्टी के बर्तन से किया जाता है। कड़कनाथ एक जगह अंड़ा नहीं देती है। इसलिए विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
आहार – आरम्भ में बिछाली पर अखबार बिछा कर मक्का टूट दिया जाता है। एक सप्ताह की उम्र से स्ट्राअर आहार (उपापचयी उर्जा 2600 कि.ग्रा) एवं कच्ची प्रोटीन 18 प्रतिशत) दिया जाता है। 9 वें. सप्ताह से 25 सप्ताह तक ग्रोवर आहार (उपापचयी उर्जा 2500 कि.ग्रा. एवं कच्ची प्रोटीन 16 प्रतिशत ) दिया जाता है। 25 वें सपताह अंड़ा देने वाली मुर्गी को लेयर आहार (उपापचयी उर्जा 2600 कि.ग्रा. एवं कच्ची प्रोटीन 16 प्रतिशत प्रादन किया जाताहै। अंड़ा देने वाली मुर्गी को कैलशियम श्रोत्र जैसे बजरी, कंकड़ चूना पत्थर डी.सी.सी. आदि से प्रति पक्षी प्रति दिन 3 से 4 ग्राम अंड़ा उत्पादन के दौरान दिया जाता है।
ब्रूड़िग – चूजों में ताप नियंत्रण प्रकिया विकसित नहीं होता है। अत आरम्भ के 4 सप्ताह तक ब्रूड़िग किया जाता है। चूजों की ब्रूड़िग इन्फा्रॅरेड बल्बों या ब्रड़िग सिस्तमों द्वारा किया जा सकता है।
खूला विचरण प्रबंधन – आरम्भ के 2 दिनों तक अखबार पर मक्का टूट देने के बाद 4 सप्ताह की उम्र तक विटामिन खनिज लवण युक्त संतंलित आहार उनके सर्वोत्कृष्ट वृद्धि के लिए प्रदान किया जाता है। 4 सप्ताह के बाद मुर्गी को खुला विचरण के लिए छोड़ते है ताकि वह चराये कर सके। रात्री में विश्राम के लिए आवास में ले आते हैं जहॉ उन्हें रसोई अवशेष,अनाज या आहार उवशेष एवं उपलब्ध वनस्पति प्रदान करते है। खुला विचरण पालन में अन्त कृमि से कृमि नाशक का प्रयोग किया जाता है। कोक्सिडिया से बचाव के लिए 4 से 6 सप्ताह में रोधत्मक एवं कोक्सिडियोसिस रोग होने पर उपचारात्मक चाराक दिया जाताहैं।
टीकाकरण कार्यक्रम
उम्र (दिन में) टीका का नाम स्ट्रेन खुराक मार्ग
1 दिन मैरैक्स रोग एच.मी.टी 0-2 मीली अधोत्वचित
7 से 10 दिन रानीखेत एफ-1बी-1 एक बूंद मॅुह या ऑख के द्वारा
14 दिन आई बी डी आई बी डी —- ——
28 दिन रानीखेत ल्सोटा लीमींग आइन्ड पीने के जल के साथ