पशुपालकों के सवाल और डॉक्टर का जबाब
प्रश्न: साईलेस क्या होता है? इसका क्या लाभ है?
डॉक्टर का जबाब :
साइलेज संरक्षित हरा चारा है जिसमें नमी की मात्रा 60 से 70 फीसदी होती है। इसमें घुलनशील शर्करा से भरपूर चारे की फसलों को छोटे-छोटे काटकर 40 से 45 दिनों तक वायुरहित भंडारित किया जाता है। बेहतर साइलेज बनाने के लिए शुष्क पदार्थ की मात्रा 25 से 30 प्रतिशत होनी चाहिए। अगर पानी की मात्रा ज्यादा हो तो एक तिहाई भाग में भूसा मिला लिया जाता है। जिसमें प्रक्रिया के तहत मौजूद शर्करा लैक्टिक अम्ल में प्रवर्तित हो जाते हैं जो कि पशु की अामाशय में मौजूद जीवाणुओं के लिए किण्वन योग्य शर्करा का काम करता है। मक्का, ज्वार, जई, बाजरा आदि को बेहतर साइलेज बनाने के लिए उपयुक्त पाया गया है। साइलेज की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए एक तय मात्रा में गुड़, नमक एवं यूरिया आदि का इस्तेमाल किया जा सकता है। दलहनी फसलों का साइलेज अच्छा नहीं बनता है, लेकिन दाने वाली फसलों के साथ मिलाकर उसकी गुणवत्ता में सुधार किया जा सकता है। दलहनी फसलों का साइलेज बनाने के लिए शीरा या गुड़ का प्रयोग किया जाता है। किसानों को चाहिए कि वे साइलेज तब ही बनाएं जब उनके पास काफी हरा चारा उपलब्ध हो इससे चारे का सदुपयोग होगा।
साईलेस के लाभ :
- साईलेस सूखे चारे कि अपेक्षा कम जगह घेरता है।
- इसे पौष्टिक अवस्था में अधिक समय तक रखा जा सकता है।
- साईलेस से कम खर्च पर उच्च कोटि का हरा चारा प्राप्त होता है।
- जड़े के दिनों में तथा चरागाहों के अभाव में पशुओं को आवश्यकता अनुसार खिलाया जा सकता है।
प्रश्न:कैसे घर पर तैयार करें साइलेज
डॉक्टर का जबाब —पशुपालक 30-35 किलोग्राम का खाली बैग या प्लास्टिक बैग लेकर उसमें कटे हुए चारे को डालकर अच्छी तरह से दबाएं। ताकि उसके अंदर शेष हवा बचने पाए। बैग के ऊपर अतिरिक्त प्लास्टिक भी लगाई जा सकती है। बैग का मुंह अच्छी तरह से बांध कर रखना है। बैग को किसी छायादार स्थान पर या फिर पशु आवास में स्टोर करें। स्टोर करने के बाद 40-45 दिन बाद बैग को दोबारा खोलकर देखें अगर हरे रंग का चारा मिले तो पशु इसे चाव से खाएगा।
प्रश्न: साईलेस बनाने की प्रक्रिया बतायें।
डॉक्टर का जबाब : हरे चारे जैसे मक्की, जवी, चरी इत्यादि का एक इंच से दो इंच का कुतरा कर लें। ऐसे चारों में पानी का अंश 65 से 70 प्रतिशत होना चाहिए। 50 वर्ग फुट का एक गड्डा मिट्टी को खोद कर या जमीन के ऊपर बना लें जिसकी क्षमता 500 से 600 किलो ग्राम कुत्तरा घास साईलेस की चाहिए। गड्डे के नीचे फर्श वह दीवारों की अच्छी तरह मिट्टी व गोबर से लिपाई पुताई कर लें तथा सूखी घास या परिल की एक इंच मोती परत लगा दें ताकि मिट्टी साईलेस से न् लगे। फिर इसे 50 वर्ग फुट के गड्डे में 500 से 600 किलो ग्राम हरे चारे का कुतरा 25 किलो ग्राम शीरा व 1.5 किलो यूरिया मिश्रण परतों में लगातार दबाकर भर दें ताकि हवा रहित हो जाये घास की तह को गड्डे से लगभग 1 से 1.5 फुट ऊपर अर्ध चन्द्र के समान बना लें। ऊपर से ताकि गड्डे के अंदर पानी व वा ना जा सके। इस मिश्रण को 45 से 50 दिन तक गड्डे के अंदर रहने दें। इस प्रकार से साईलेस तैयार हो जाता है जिसे हम पशु की आवश्यकता अनुसार गड्डे से निकलकर दे सकते हैं।
प्रश्न: सन्तुलित आहार से क्या अभिप्राय है?
डॉक्टर का जबाब : ऐसे भोजन जिसमें कार्बोहाइड्रेट्स, प्रोटीन वसा खनिज लवणों उचित मात्रा में उपस्थित हों सन्तुलित आहार कहलाता है। पशुओं के आहार को संतुलित बनाने के लिए उनके चारे में नियमित रूप से मिनरल मिलकर दें ।
प्रश्न: गर्भवती गाय को क्या आहार देना चाहिए?
डॉक्टर का जबाब : गर्भवती गाय को चारा शरीर के अनुसार एवं सरलता से पचने वाला होना चाहिए। दाना 2 – 4 कि॰ग्राम॰ प्रतिदिन तथा दुग्ध हेतु दाना अतिरिक्त देना चाहिए। पशु चिकित्सक से सम्पर्क अति आवश्यक है।
प्रश्न: पशु कमज़ोर है क्या करें?
डॉक्टर का जबाब : निकट के पशुपालन अस्पताल में जा कर पशु चिकित्सा अधिकारी से सम्पर्क करना चाहिए। उसके पेट कीड़े भी हो सकते हैं। जिसका उपचार अति आवश्यक है।
प्रश्न: पशुओं की स्वास्थ्य की देख रेख के लिए क्या कदम उठाना चाहिए?
डॉक्टर का जबाब : किसानों को नियमित रूप से पशुओं कि विभिन्न बीमारियों के रोक थम के लिए टीकाकरण करवाना, कीड़ों की दवाई खिलाना तथा नियमित रूप से उनकी पशु चिकित्सा अधिकारी से जांच करवाना।पशुशाला को नियमित रूप से सफाई करनी चाहिए और विषाणुरहित रखनी चाहिए ।
पशुरोग सम्बन्धित सामान्य प्रश्न
1) मिल्क फीवर या सूतक बुखार क्या होता है?
ये एक रोग है जो अक्सर ज्यादा दूध देने वाले पशुओं को ब्याने के कुछ घंटे या दिनों बाद होता है। रोग का कारण पशु के शरीर में कैल्शियम की कमी। सामान्यतः ये रोग गायों में 5-10 वर्ष कि उम्र में अधिक होता है। आम तौर पर पहली ब्यांत में ये रोग नहीं होता।
2) मिल्क फीवर को कैसे पहचान सकते है?
इस रोग के लक्षण ब्याने के 1-3 दिन तक प्रकट होते है। पशु को बेचैनी रहती है। मांसपेशियों में कमजोरी आ जाने के कारण पशु चल फिर नही सकता पिछले पैरों में अकड़न और आंशिक लकवा की स्थिती में पशु गिर जाता है। उस के बाद गर्दन को एक तरफ पीछे की ओर मोड़ कर बैठा रहता है। शरीर का तापमान कम हो जाता है।
3) खूनी पेशाब या हीमोग्लोबिन्यूरिया रोग क्यों होता है?
ये रोग गायों-भैसों में ब्याने के 2-4 सप्ताह के अंदर ज्यादा होता है ओर गर्भवस्था के आखरी दोनों में भी हो सकता है। भैसों में ये रोग अधिक होता है। ओर इसे आम भाषा में लहू मूतना भी कहते है। ये रोग शरीर में फास्फोरस तत्व की कमी से होता है। जिस क्षेत्र कि मिट्टी में इस तत्व कि कमी होती है वहाँ चारे में भी ये तत्व कम पाया जाता है। अतः पशु के शरीर में भी ये कमी आ जाती है। फस्फोरस की कमी उन पशुओं में अधिक होती है जिनको केवल सूखी घास, सूखा चारा या पुराल खिला कर पाला जाता है।
4) खुर-मुँह रोग(मुँह-खुर रोग?कि रोक थम कैसे कर सकते है?
इस बीमारी की रोकथाम हेतु, पशुओं को निरोधक टीका अवश्य लगाना चाहिये। ये टीका नवजात पशुओं में तीन सप्ताह की उम्र में पहला टीका, तीन मास की उम्र में दूसरा टीका और उस के बाद हर छः महीने में टीका लगाते रहना चाहिये।
5) गल घोंटू रोग के क्या लक्षण है?
तेज़ बुखार, लाल आँखें , गले में गर्म/दर्द वाली सूजन गले से छाती तक होना, नाक से लाल/।झागदार स्त्राव का होना।
6) पशुओं की संक्रामक बीमारियों से रक्षा किस प्रकार की जा सकती है?
(क) पशुओं को समय-समय पर चिकित्सक के परामर्श के अनुसार बचाव के टीके लगवा लेने चहिये। (ख) रोगी पशु को स्वस्थ पशु से तुरन्त अलग कर दें व उस पर निगरानी रखें। (ग) रोगी पशु का गोबर , मूत्र व जेर को किसी गढ़ढ़े में दबा कर उस पर चूना डाल दें। (घ) मरे पशु को जला दें या कहीं दूर 6-8 फुट गढ़ढ़े में दबा कर उस पर चूना डाल दें। (ड़) पशुशाला के मुख्य द्वार पर ‘फुट बाथ’ बनवाएं ताकि खुरों द्वारा लाए गए कीटाणु उसमें नष्ट हो जाएँ। (च) पशुशाला की सफाई नियमित तौर पर लाल दवाई या फिनाईल से करें।
7) सर्दियों में बछड़े- बछड़ियों को होने वाली प्रमुख बीमारियों के नाम बताएं।
(क) नाभि का सड़ना (ख) सफेद दस्त। (ग) न्यूमोनिया (घ) पेट के कीड़े (ड़) पैराटाईफाइड़
8) बछड़े- बछड़ियों में पैराटाईफाइड़ रोग के बारे में जानकारी दें।
यह रोग दो सप्ताह से 3 महीने के बछड़ों में होता है। यह रोग गंदगी और भीड़ वाली गौशालाओं में अधिक होता है। इस के मुख्य लक्षण – तेज़ बुखार, खाने में अरुचि, थंथन का सूखना, सुस्ती। गोबर का रंग पीला या गन्दला हो जाता है व बदबू आती है। रोग होते ही पशु चिकित्सक से संपर्क करें।
9) बछड़ों में पेट के कीड़ों (एस्केरियासिस) से कैसे बचा जा सकता है।
इस रोग की वजह से बछड़े को सुस्ती, खाने में अरुचि, दस्त हो जाते हैं। व इस रोग की आशंका होते ही तुरन्त पशु चिकित्सक से संपर्क करें।
10) पशुओं में अफारा रोग के क्या-क्या कारण हो सकते है।
(क) पशुओं को खाने में फलीदार हरा चारा, गाजर, मूली,बन्द गोभी अधिक देना विशेषकर जब वह गले सड़े हों। (ख) बरसीम, ब्यूसॉन , जेई, व रसदार हरे चारे जो पूरी तरह पके न हों व मिले हों। (ग) भोजन में अचानक परिवर्तन कर देने से। (घ) भोजन नाली में कीड़ों, बाल के गोले आदि से रुकावट होना। (ड़) पशु में तपेदिक रोग का होना। (च) पशु को चारा खिलाने के तुरन्त बाद पेट भर पानी पिलाने से।
पशु आहार सम्बन्धित सामान्य प्रश्न
1 पशुओं को कितना आहार देना चाहिये?
दूधारू पशुओं में क्षमता अनुसार दूध प्राप्त करने के लिए लगभग 40-50 कि.ग्रा. हरे चारे एवम 2.5 कि. दाने की प्रति किलोग्राम दूध उत्पादन पर आवश्यकता होती है।
2 यदि हरा चारा पर्यापत मात्रा में उपलब्ध न हो तो क्या दाने की मात्रा बढाई जा सकती है?
हाँ, यदि हरा चारा पर्यापत मात्रा में उपलब्ध न हो तो दाने की मात्रा बढाई जा सकती है|
3 क्या पशु का आहार घर में बनाया जा सकता है?
हाँ। घर पर दाना मिश्रण बनाने के लिए निम्न छटकों की आवश्यकता होती है:- (क) खली = 25-35 किलो (ख) दाना(मक्का, जौई , गेहूं आदि) = 25-35 किलो (ग) चोकर = 10-25 किलो (घ) दालों के छिलके = 05-20 किलो (ङ) खनिज मिश्रण = 1 किलो (च) विटामिन ए, डी-3 = 20-30 ग्राम
4 पशुओं के लिए रोज़ घर में दाना मिश्रण बनाने की कोई सामान्य विधि बताएं?
दाना मिश्रण बनाने की घरेलू विधि इस प्रकार है:- 10 किलो दाना मिश्रण बनाने के लिये: अनाज, चोकर और खली की बराबर मात्रा (3. 3 किलो ग्राम प्रति) डाल दें। इस में 200 ग्राम नमक और 100 ग्राम खनिज मिश्रण डालें। दाना बनाने के लिए पहले गेहूं, मक्का आदि को अच्छी दरड़ लें। और खली को कूट लें। यदि खली को कूट नहीं सकते तों एक दिन पहले खली को किसी बर्तन में डालकर पानी में भिगो लें। अगले दिन उसमें बाकि अव्यवों को (दाना,चोकर,नमक,खनिज मिश्रण) इस में मिलाकर हाथ से मसल दें। इस दाने को कुतरे हुए चारे/घास में मिलाकर पशु को खिला सकते हैं।
5 दुधारू पशुओं को संतुलित आहर कितनी मात्रा में और कब दिया जाए? इस विषय पर जानकारी दें।
दुधारू पशुओं को आहार उनकी दूध आवश्यकता के अनुसार ही दिया जाना चाहिए। पशुओं का आहार संतुलित होगा जब उसमें प्रोटीन , उर्जा,वसा व खनिज लवण सही मात्रा में ड़ाल दें। देसी गाय को प्रति 2.5 किलो दूध उत्पादन पर आमतौर से 1 किलो अतिरिक्त्त दाना-मिश्रण देना होता है। यह आहार निर्वाह ( शरीर को बनाए रखने के लिए) के अतिरिक्त होना चाहिए। उदाहरण के लिए:- गाय का वज़न = 250 कि. ग्रा (लगभग) दूध उत्पादन = 4 किलो प्रति दिन दी जाने वाली खुराक = भूस/प्राल ४ कि. दाना मिश्रण = 2.85 कि.(1.25 कि. शरीर के निर्वाह के लिए और 1.6 किलो दूध लें)
6 गाभिन गाय के लिए कितना आहार आवश्यक है?
गाय का वज़न = 250 कि. ग्रा (लगभग) (क) भूस = 4 किलो (ख) दाना मिश्रण= 2.5 किलो (1.25 कि.शरीर के निर्वाह के लिये और 1.5 किलो अन्दर बन रहे बच्चे के लिये)
7 पशुओं के आहर व पानी की दिनचर्या कैसी होनी चहिये?
(क) चारा बांट कर दिन में 3-4 बार खिलना चहिये। (ख) दाना मिश्रण भी 2 बार बराबर- बराबर खिलाना चहिये। (ग) हरा और सूखा चारा (भूस और घास) मिश्रित कर खिलाना चाहिये। (घ) घास की कमी के दिनों साइलेज उपलब्ध कराना चाहिये। (ङ) दाना, चारे के उपरांत खिलाना चाहीये। (च) प्रतिदिन औसतन गाय को 35-40 लीटर पानी कि आवश्यकता होती है।
8 नवजात बछड़ों का पोषण कैसे करें?
अच्छा पोषण ही बछड़ों- बछड़ियों को दूध / काम के लिये सक्षम बनाता है। नवजात बछड़ों के लिये कोलोस्ट्रल (खीस) का बहुत महत्व है। इस से बिमारियों से लड़ने की क्षमता बढ़ती है। और बछड़े- बछड़ियों का उचित विकास होता है।
9 बछड़ों- बछड़ियों को खीस कितना और कैसे पिलाना चाहिये।
सबसे ध्यान देने योग्य बात है कि पैदा होने के बाद जितना जल्दी हो सके खीस पिलाना चाहिये। इसे गुनगुना (कोसा) कर के बछड़े के भार का 10 वां हिस्सा वज़न खीस कि मात्रा 24 घंटों में पिलाएं। जन्म के 24 घंटों के बाद बछड़े की आंतों की प्रतिरोधी तत्व (इम्यूनोग्लोब्यूलिन) को सीखने की क्षमता कम हो जाती है। और तीसरे दिन के बाद तों लगभग समाप्त हो जाती है। इसलिए बछडों को खीस पिलाना आवश्यक है।
1० बछड़ों- बछड़ियों को खीस के इलावा और क्या खुराक देनी चाहिये?
पहले तीन हफ्ते बछडों को उनके शरीर का दसवां भाग दूध पिलाना चाहिये। चौथे और पांचवे हफ्ते शरीर के कुल भाग का 1/15 वां भाग दूध पिलाएं। इसके बाद 2 महीने की उम्र तक 1/20 वां भाग दूध दें। इसके साथ-साथ शुरुआती दाना यानि काफ स्टार्टर और उस के साथ अच्छी किस्म का चारा देना चाहिये।