बकरियों में कृत्रिम गर्भाधान: पशुपालकों की आय दोगुनी करने का सबसे सशक्त माध्यम
डॉ राजेश कुमार सिंह ,पशुधन विशेषज्ञ, जमशेदपुर
पशुओं में कृत्रिम गर्भाधान एक ऐसी कला है, जिसमें बकरा से वीर्य लेकर उसको विभिन्न क्रियाओं के माध्यम से संचित किया जाता है। यह संचित किया हुआ वीर्य तरल नाइट्रोजन में कई वर्षों तक सुरक्षित रखा जा सकता है। इस संचित किए हुए वीर्य को मादा यानी की बकरी के गर्भाशय में रखने से मादा / बकरी का गर्भाधान किया जाता है। गर्भाधान की इस क्रिया को कृत्रिम गर्भाधान कहा जाता है।
बकरीओं में गर्मी के लक्षण
अधिकतम बकरियां ठंड के मौसम में (अगस्त से जनवरी) गर्मी के लक्षण प्रदर्शित करती है एवं बकरिओं में गर्मी के लक्षण 21 दिनों का होता है एवं बकरिओं में गर्मी के लक्षण 24 से 36 घंटे तक रहता है जिसमे इनके अंडाणु का स्त्राव गर्मी के अंत में होता है ।अधिकतम बकरियां 6 से 8 माह के उम्र में प्रथम बार गर्मी के लक्षण प्रदर्शित करती है
बकरियां अधिकतम गर्मी के दौरान पर अग्रेशिव उत्तेजित हो जाती है साथ ही आवाज करती है एवं अधिकतम क्रियाशील हो जाती है बकरियां गर्मी के दौरान एक जगह प्रजणन के लिए खडी हो जाती है बकरियां गर्मी के दौरान दूध कम देती है साथ खाना कम कर देती है ,बकरियों के योनी द्वार से चिपचिपा द्रव स्स्त्रवित होता है बार बार पेशाब करना ।
कृत्रिम गर्भाधान के पूर्व आवश्यक सामग्रियां
तरल नत्रजन पात्र
वेज़ायनल स्पेकुलम (25 x 175 mm)
प्रकाश हेड लाइट
वेज़ायनल स्पेकुलम फिसलन द्रव (स्टेराईल) जो शुक्राणुओं का नुकसान न करे
स्ट्रॉ कटर
कृत्रिम गर्भाधान गन
थर्मामीटर इत्यादी
बकरीओं का कृत्रिम गर्भाधान
जैसा की पूर्व में बताया गया है की अधिकतम बकरियां ठंड के मौसम में (अगस्त से जनवरी) गर्मी के लक्षण प्रदर्शित करती है जिसमे गर्मी के लक्षण 21 दिनों का होता है एवं 24 से 36 घंटे तक रहता है जिसमे इनके अंडाणु का स्त्राव गर्मी के अंत में होता है|
बकरिओं में कृत्रिम गर्भाधान हर 12 घंटे के अन्तराल में 2 से 3 बार करना चाहिये
सर्व प्रथम बकरी को अछि तरह से काबू में कर सुरक्षित कर लेना चाहिए बकरी का पिछला हिस्सा ऊपर की ओर उठा हुआ होना चाहिए
वेज़ायनल स्पेकुलम को अछि तरह से साफ कर लेना चाहिए एवं फिसलन द्रव से लेप करना चाहिए ताकि स्पेकुलम आसानी से योनी द्वार में चला जाय
वीर्य का संचय दो तरीको से किया जा सकता है पहला नर बकरे से तुरंत एकत्रित किये वीर्य के द्वारा या फिर तरल नत्रजन में एकत्रित वीर्य स्ट्रा के माध्यम से किया जाता है ।
कृत्रिम गर्भाधान के पूर्व योनी द्वार को अछि तरह से साफ कर लेना चाहिए ताकि कृत्रिम गर्भाधान करते समय किसी भी प्रकार से गन्दगी भीतर न जा सके ।
वीर्य स्ट्रॉ का सामान्य तापमान में लाने के लिए थाईग (95°F) पर 30 सेकंड के लिए किया जाता है , फिर कृत्रिम गर्भाधान के लिए वीर्य स्ट्रॉ को कृत्रिम गर्भाधान गन में तैयार जाता है ।
वेज़ायनल स्पेकुलम के माध्यम से हम आसनी से ग्रीवा को देखा जा सकता है
कृत्रिम गर्भाधान के लिए बकरों का चयन:
कृत्रिम गर्भाधान के लिए आवश्यक है कि एक अच्छी नस्ल व उच्च कोटि के बकरे का चयन किया जाए। बकरा नस्ल के अनुसार रूप रंग एवं कद का काठी हो ।शारीरिक रूप से पूर्ण स्वस्थ एवं चुस्त हो ।स्वभाव से उत्तेजक हो ।दोनों अंडकोष पूर्ण रूप से विकसित हो। उनमें कोई विकार ना हो ।बकरे की मां में वांछित लक्षण हो ,उसकी उत्पादकता अच्छी हो।
बिज एकत्र के लिए 1.5 से 4 वर्ष आयु के बकरों का चयन करें ।जिस नस्ल की बकरियों को रखना हो तो उसी नस्ल के बकरे का चयन करना चाहिए ।
बकरियों में हीट /मद काल का पता लगाना :
बकरिया सामान्यतः विचलित होती है तथा दाना चारा कम खाती है ,बकरियों का बार बार पेशाब करना तथा बार-बार तेजी से पूछ हिलाना, मदकाल में बकरियों की योनि लाल हो जाती है योनि मार्ग में पारदर्शी कचरा गिरता है ।झुंड की दूसरी मादा बकरियों के ऊपर चढ़ना तथा बकरे को इसकी स्वीकृति देना ।
बकरियों के झुंड में मदकाल का पता लगाना :
यदि बकरियों की संख्या अधिक हो तो मदकाल का पता करने के लिए एक बकरी के पेट पर कपड़ा बांधकर बकरियों के झुंड में प्रतिदिन सुबह-शाम घुमाने पर मदकाल में आई बकरियों का पता चल जाता है ।मद काल में आई बकरियां बकरे के प्रति आकर्षित होती है एवं अपने ऊपर चढ़ने देती है ।
बकरे से वीर्य का संग्रहण :
बकरे से वीर्य संग्रहण विभिन्न विधियों द्वारा किया जाता है लेकिन कृतिम योनी विधि का अधिक प्रचलन है ।कृतिम योनी वीर्य संग्रह करने के लिए एक ऋतुमई बकरी का प्रयोग किया जाता है तत्पश्चात चुने हुए नर प्रजनन बकरे को उसके पीछे खुला छोड़ दिया जाता है ।बकरा बकरी के ऊपर चढ़ता है तो बकरी के शिशुनको हाथ में लेकर कृतिम योनी के अंदर कर देते हैं ,इस तरह बकरा वीर्य को स्खलित योनि के अंदर कर देता है ।कृत्रिम योनि के दूसरे सीरे पर कांच की वीर्य संग्रह प्याली में आ जाता है। एक बकरा एक बार में 0 .5 से 1.5 ml बीज गिराता है । बकरे में वीर्य प्रदान करने की क्षमता बकरे के नस्ल, उम्र, ऋतु ऊपर निर्भर करती है। हिंमी करण एवं प्रजनन के लिए अच्छी गुणवत्ता का वीर्य प्राप्त करने के लिए वीर्य का संग्रह एक दिन छोड़कर करना अच्छा रहता है। व्यस्क की तुलना में युवा बकरे कम मात्रा में और निम्न श्रेणी का वीर्य प्रदान करते हैं ।
गर्भाधान का उचित समय:
बकरियां 24 से 40 घंटे तक मदकाल में रहती है, इसी सीमित अवधि में बीजू बकरे से गर्भ धारण करने पर गर्भ धारण करती है ।अगर बकरी साय को मदकाल में आए तो उसे दूसरे दिन सुबह और शाम को गैविन कराएं अर्थात बकरियों को गर्मी में आने के 12 घंटे बाद ही पाल खिलवाऐ। प्रजनन काल में बकरियों पर व्यक्तिगत ध्यान रखें तथा गर्भाधान के बाद अगर बकरी पुनः मध्यकाल के लक्षण प्रकट करें तो पुनः ऊपर बताई विधि से पाल खिलवाऐ।
बकरियो का गर्भकाल
1) अधिकतम बकरियो का गर्भकाल 145 से 155 दिनों का होता है या 150 दिन ( 5 माह ) का होता है 2) बकरियां अधिकतम 2 या 3 बच्चों को जन्म देती है
कृत्रिम गर्भाधान के लाभ :
प्राकृतिक गर्भाधान की तुलना में कृत्रिम गर्भाधान के अनेक लाभ है जिनमें मुख्य लाभ इस प्रकार है:-
- कृत्रिम गर्भाधान बहुत दूर यहाँ तक कि दूसरे देशों में रखे श्रेष्ठ नस्ल व गुणों वाले बकरे के वीर्य को भी भारत के विभिन्न नस्ल की बकरियों में प्रयोग करके लाभ उठाया जा सकता है।
- इस विधि में उत्तम गुणों वाले बूढ़े या असहाय बकरा का प्रयोग भी प्रजनन के लिए किया जा सकता है। 3. कृत्रिम गर्भाधान द्वारा श्रेष्ठ व अच्छे गुणों वाले बकरे को अधिक से अधिक उपयोग किया जा सकता है। 4. प्राकृतिक विधि में एक बकरे द्वारा एक वर्ष में 600–700 बकरियों को गर्भित किया जा सकता है, जबकि कृत्रिम गर्भाधान विधि द्वारा एक बकरे के वीर्य से एक वर्ष में हजारों बकरियों को गर्भित किया जा सकता है।
- अच्छे बकरे के वीर्य को उसकी मृत्यु के बाद भी प्रयोग किया जा सकता है।
- इस विधि में धन एवं श्रम की बचत होती है क्योंकि पशु पालकों को बकरे पालने की आवश्यकता नहीं होती।
- इस विधि में पशुओं के प्रजनन सम्बंधित रिकार्ड रखने में आसानी होती है।
- इस विधि में विकलांग या असहाय बकरे का प्रयोग भी प्रजनन के लिए किया जा सकता है।
- कृत्रिम गर्भाधान में बकरे के आकार या भार का बकरी के गर्भाधान के समय कोई फर्क नहीं पड़ता।
- कृत्रिम गर्भाधान विधि में नर से मादा तथा मादा से नर में फैलने वाले संक्रामक रोगों से बचा जा सकता है।
कृत्रिम गर्भाधान की विधि की सीमायें :
कृत्रिम गर्भाधान के अनेक लाभ होने के बावजूद इस विधि की कुछ सीमाएँ हैं जो मुख्यतः निम्न प्रकार हैः-
कृत्रिम गर्भाधान के लिए प्रशिक्षित अथवा पशु चिकित्सक की आवश्यकता होती है तथा तक्नीशियन को मादा पशु प्रजनन अंगों की जानकारी होना आवश्यक है।
इस विधि में विशेष उपकरणों की आवश्यकता होती है।
इस विधि में असावधानी बरतने तथा सफाई का विशेष ध्यान ना रखने पर गर्भधारण देर में कमी आ जाती है।
इस विधि में यदि पूर्ण सावधानी न बरती जाए तो दूर क्षेत्रों अथवा विदेशों से वीर्य के साथ कई संक्रामक बीमारियों के आने की भी संभावना होती है।
कृत्रिम गर्भाधान के दौरान कुछ जरूरी सावधानियांः-
- मादा ऋतु चक्र में हो।
- कृत्रिम गर्भाधान करने से पहले गन को अच्छी तरह से लाल दवाई से धोये एवं साफ करें।
- वीर्य को गर्भाशय द्वार के अंदर छोडे़। कृत्रिम गर्भाधान गन प्रवेश करते समय ध्यान रखें, कि यह गर्भाशय हाॅर्न तक ना पहुँचे।
- गर्भाधान के लिए कम से कम 10–12 मिलियन सक्रिय शुक्राणु जरूरी होते है।
- सभी पशु पालक कृत्रिम गर्भाधान संबंधित रिकार्ड रखें।
बेहतर गर्भधान दर के लिए निम्न बातें ध्यान रखेः-
- वीर्य उच्च श्रेणी का हो।
- कृत्रिम गर्भाधान की विधि का सही से अमल हो।
- मादा ऋतु चक्र में हो, उसकी पहचान हो।
- गर्भाधान के स्थान पर साफ-सफाई रखें।
बकरियों में कृत्रिम गर्भाधान विधि:
कृत्रिम गर्भाधान के लिए संग्रहित हिमीकृत वीर्य को तरल नाइट्रोजन से निकालकर 40 डिग्री सेल्सियस तापमान वाले पानी में 40 सेकंड के लिए डालकर पिघला लिया जाता है फिर वीर्य से भरी एस्ट्रा को वीर्य सेचन पिचकारी की नली में रख देते हैं ,सिल को काट देते हैं अंत में सीथ को उसके ऊपर रखकर सेचन कर देते हैं। ब्रिज को गर्भाशय की ग्रीवा ओज पर जमा करने का प्रयास किया जाता है । वीर्य को ग्रीवा के अंत भाग में डालने के लिए गहरी ग्रीवा ब्रिज सेचन पिचकारी का इस्तेमाल करने से अच्छे परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।
बकरों के विर्य मिलने का स्थान :
भारतीय कृषि अनुसंधान प्रशिक्षण केंद्र बकरी अनुसंधान संस्थान मथुरा उच्च कोटि के बकरों का वीर्य उपलब्ध कराता है ।
कृत्रिम गर्भाधान पशु चिकित्सक के परामर्श अनुसार प्रशिक्षित व्यक्ति से कराएं ।केंद्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान में इसके लिए प्रशिक्षण कराए जाते हैं ।इच्छुक बकरी पालन से संबंधित जानकारी के विषय में केंद्रीय बकरी अनुसंधान के वैज्ञानिकों से संपर्क कर सकते हैं