पशुओं को जाड़े में होने वाली बीमारियाँ तथा पशुओं को सर्दी से बचाव के उपाय
DR. JITENDRA SINGH, KANPUR DEHAT
हमारे देश में खेती के साथ पशुपालन मुख्य सहायक धंधा है। पशु की उत्पादन क्षमता को तापक्रम काफी प्रभावित करता है। पशुओं को सर्दी से बचाव के लिए उनके भोजन तथा रहन-सहन, आदि पर ध्यान देना चाहिए। अधिकतर पशुपालक इस बात को नहीं जानते कि पशुओं से अच्छा कार्य, दुग्ध उत्पादन, अच्छा मांस उत्पादन तभी लिया जा सकता है जब उनकी समय-समय पर अच्छी देखभाल व आहार व्यवस्था हो एवं मौसम के कुप्रभावों से बचाया जाये।
पशुओं को सर्दी से बचाने के लिए निम्न बातों को ध्यान रखें
पशुशाला की बनावट व आवास व्यवस्था – खासतौर से दिसम्बर-जनवरी माह में ठण्डी हवाओं के चपेट में आ जाने से पशु बीमार हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में पशुओं को सीधे ठण्डी हवा के प्रकोप से बचाना चाहिए। इसके लिए जहां पशु बांधे जाते हैं, उस आवास के द्वार पर बोरे-पट्टी लटका देना चाहिए। टीन शेड से निर्मित पशु आवास गृह को मक्के या ज्वार की कड़वी या घास-फूंस के छप्पर से चारों ओर से ढक देना चाहिए। पशुुशाला की लंबाई पूर्व-पश्चिम दिशा में होनी चाहिए। यदि फर्श पक्का हो तो चारा, बाजड़े की तूतड़े, धान की पराली, गन्ने की सूखी पत्ती, आदि काम में ले सकते हैं। फर्श कच्चा होने पर समय-समय पर ऊपर की मिट्टी हटाकर खेत में डाल देनी चाहिए तथा उसकी जगह साफ एवं सूखी मिट्टी डालनी चाहिए। बिछावन के लिए बालू मिट्टी अच्छी रहती है। पशुुशाला के उत्तरी दिशा के पेड़ छोड़कर बाकी दिशाओं में पेड़ों की छंटाई कर देनी चाहिए, ताकि सूरज की रोशनी पशुुशाला पर अधिक समय तक रहे।
सर्दी के लक्षण
- पशु, सुस्त, थका हुआ सा बैठा रहना।
2. आँख से पानी बहना।
3. पशु की नाक से पानी और बलगम का बहना।
4. पशु का जुगाली न करना।
5. खान-पान में कमी या बिल्कुल ही नहीं खाना।
6. दुग्ध उत्पादन में कमी।
7. संक्रमण होने पर शरीर के तापमान में कमी होना।
ठण्डी हवा से बचाव
सर्दी के मौसम में अधिकतर उत्तरी हवा चलती है। इस कारण प्रशाला की उत्तरी दीवार पूरी तरफ पैक होनी चाहिए। कच्चे छप्पर होने की दशा में उन पर खींप, सणियां आदि की एक मजबूत परत और लगा दें ताकि ठंडी हवा से बचाव हो सके। ठण्डी हवा चल रही हो तो इस समय पशुओं के पास कंडे की आग जलाकर अजवाइन का धुआं करना लाभदायक रहता है। अधिक सर्दी के दिनों में पशुओं के शरीर पर जूट की बोरी का झूल बनाकर डाल देना चाहिए। झूल पशु के गर्दन से पूंछ तक लम्बा तथा दोनों तरफ से लटका हुआ होना चाहिए। झूल दिन में उतारकर धूप में सुखा देना चाहिए ताकि उसमें पेशाब, आदि की सीलन सूख जाये।
पशुओं का पोषण प्रबंधन
पशुओं को संतुलित पोषण देना चाहिए। सूखे चारे के साथ हरा चारा व दाना पशु के उत्पादन के अनुसार देना चाहिए। पशु को अधिक ऊर्जा पैदा करने वाले अवयव जैसे गुड़, आदि आहार खिलाना चाहिए, जिससे पशु का शरीर गर्म रहता है। पशुओं को स्वच्छ एवं ताजा पानी पिलाना चाहिए ज्यादा ठण्डा पानी नहीं पिलाना चाहिए।
सर्दी लगने पर पशुओं का प्राथमिक उपचार
ऐसी दशा में निम्न घरेलू उपचार करना चाहिए –
अजवाइन – 50 ग्राम,
साजी – 2 ग्राम
धनियाँँ – 25 ग्राम
मेथी – 25 ग्राम
पानी – 0.5
अजवाइन, धनियाँँ व मेथी कूटकर पानी में उबालें। कुछ ठण्डा होने पर साजी मिला दें तथा हल्का गर्म रहने पर पशु को पिलाने से आराम मिलता है। भेड़-बकरियों तथा बछड़े-बछियों में इसकी चौथाई मात्रा काम में लायें।
पशुओं को जाड़े में होने वाली बीमारियाँ
पशुओं को जाड़े में होने वाली बीमारियाँ व उनका उपचार इस प्रकार है-
1. निमोनिया
पानी में लगातार भींगते रहने या सर्दी के मौसम में खुले स्थान में बांधे जाने वाले पशुओं को निमोनिया रोग हो जाता है। अधिक बाल वाले पशुओं को यदि नहलाने के बाद ठीक से पोछा न जाए तो उन्हें भी यह रोग हो सकता है। जिसमें पशु सुस्त, आंख-नाक से पानी आना, बुखार आदि लक्षण दिखाई देते हैं।
बचाव
पशुओं को शाम को देर रात तक खुले आसमान के नीचे नहीं रहने दें।
2. मौसम गर्म अथवा तेज धूप निकलने के बाद ही नहलाएं।
3. रात को सोने के स्थान पर हवा रोकने के उचित साधनों का इस्तेमाल करें।
4. सुबह को बाहर निकालने से पहले पशुओं के ऊपर मोटा कपड़ा अवश्य डाल लें।
उपचार
- रोग ग्रसित पशु को नौसादर, सौंठ एवं अजवायन की एक-एक तोला को अच्छी तरह से कूट कर 250 ग्राम गुड़ के साथ दिन में 2 बार देने से यह रोग नियंत्रित हो जाता है।
2. टीकाकरण एवं एंटीबायोटिक्स इंजेक्शन।
2. खुरपका-मुंहपका रोग
दिसम्बर से फरवरी माह में इस रोग का प्रकोप सबसे अधिक होता है। खुरपका व मुंहपका रोग में पशुओं के मुंह में छाले पड़ जाते हैं। ये छाले जीभ के सिवा मुंह के अंदर अन्य हिस्सों पर दिखाई देते हैं। छालों की वजह से पशु चारा खाना बंद कर देता है, नतीजतन पशु की सेहत बिगड़ जाती है और दूध का उत्पादन कम हो जाता है।
रोग से बचाव
1.पशुओं में प्रतिवर्ष टीकाकरण करायें।
2. यह एक संक्रमित बीमारी है, अतः रोगी पशु को स्वस्थ पशु से अलग कर दें व चारे-पानी का प्रबंध अलग से ही करें।
4. रोगी पशुओं को नदी तालाब, पोखर, आदि सार्वजनिक स्थानों में पानी न पीने दें।
5. पशु को सूखे स्थान पर बांधे।
6. रोगी पशु की देखभाल करने वाले व्यक्ति को बाड़े से बाहर आने पर हाथ-पैर साबुन से अच्छी तरह धो लेने चाहिए।
7. जहां रोगी पशु की लार गिरि वहां पर कपड़े धोने का सोडा/चूना या फिनाईल डालें।
मुंह एवं खुर के छालों का उपचार
मुंह एवं खुर के घाव की प्रतिदिन सुबह-शाम लाल दवा या फिटकरी के हल्के घोल से सफाई करें। लाल दवा या फिटकरी उपलब्ध नहीं हो तो नीम के पत्ते उबालकर ठण्डे किये पानी से घावों की सफाई करें।
- खुरों के घाव में कीड़े पड़ने पर फिनाईल तथा मीठे तेल की बराबर मात्रा मिलाकर लगायें।