हरे चारे के लिए सहजन/ मोरिंगा की खेती कैसे करें ?

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हरे चारे के लिए सहजन/ मोरिंगा की खेती कैसे करें ?

DR. RAJESH KUMAR SINGH

सहजन,इसे हम अलग अलग नामों से जानते हैं  इसे मोरिंगा, ड्रम स्टिक के नाम से भी जाना जाता है, इस के फल और पत्तियां दोनों का उपयोग कई तरह की बीमारियों को दूर करने में किया जाता हैं।

ड्रमस्टिक या मोरिंगा प्रसिद्ध सब्जी की फसल है जो भारत में पाई जाती है। देश भर में इसे विभिन्न नामों से जाना जाता है, यह फसल डेयरी मवेशियों के लिए हरा चारा और पोषण के एक अच्छे स्रोत के रूप में कार्य करती है। यही कारण है कि डेयरी किसान दूध उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए मवेशियों को खिलाने के लिए मोरिंगा को सबसे अच्छा स्रोत मानते हैं। ऐसा माना जाता है कि गर्मी में घास के साथ मोरिंगा प्रदान की जाने वाली गायों में अन्यथा की तुलना में अधिक दूध उत्पादन होता है।

इसलिए, मोरिंगा जानवरों के लिए एक उत्कृष्ट पोषण पूरक और चारा है। जो आर्थिक रूप से व्यवहार्य भी यानि कि कम कीमत पर उपलब्ध है क्योंकि पूरे वर्ष इसकी कटाई की जाती है।

 

मोरिंगा क्यों?

डेयरी मवेशियों की प्रोटीन आवश्यकताओं को पूरा करने के अलावा, इसमें ऊर्जा और अन्य महत्वपूर्ण पोषक तत्व भी पाए जाते हैं।

इस पौधे के लगभग हर हिस्से में पोषक तत्व होता है, क्योंकि इसमें पोटेशियम, फॉस्फोरस, कैल्शियम, मैग्नीशियम और तांबे सहित महत्वपूर्ण खनिज होते हैं। जो जानवरों को अन्यथा किसी दूसरे रूप में नहीं मिल पाते हैं।

इसके अलावा, इसमें विटामिन ई, बी, और सी, प्रो-विटामिन ए, केरातिन तेल, और एमिनो एसिड भी पाए जाते हैं। इन सभी पोषक तत्वों का सेवन डेयरी मवेशियों के बीच दूध की आपूर्ति में वृद्धि करने में मदद करता है।

मोरिंगा में हरे पत्ते होते हैं जिन्हें जानवरों को बार्ज करना पसंद है। यह रसायनों से मुक्त है और यह इतना फायदेमंद है कि इसलिए अक्सर इसका विभिन्न रूपों में उपयोग किया जाता है।

 

महत्वपूर्ण मुद्दा (टेकअवे)

 

नेशनल डेयरी डेवलपमेंट बोर्ड (एनडीडीबी) मुरिंगा के बेहतर विकास के बारे में महत्वपूर्ण ज्ञान साझा करके किसानों को सहायता प्रदान करता है। माल्मा के मालाबार दूध संघ एक ऐसा संगठन है जो मोरिंगा के विकास के लिए भूमि तैयार करने के लिए एनडीडीबी से सहायता प्राप्त कर रहा है।

खुले बाजार में 1000 रुपये प्रति किलोग्राम की लागत वाले मोरिंगा बीज प्लांटर्स को मुफ्त में उपलब्ध कराए जाते हैं।

डेयरी मवेशियों की प्रोटीन आवश्यकताओं को पूरा करने के अलावा, इसमें ऊर्जा और अन्य महत्वपूर्ण पोषक तत्व भी पाए जाते हैं।

  • इस पौधे के लगभग हर हिस्से में पोषक तत्व होता है क्योंकि इसमें पोटेशियम, फॉस्फोरस, कैल्शियम, मैग्नीशियम और तांबे सहित महत्वपूर्ण खनिज होते हैं। जो जानवरों को अन्यथा किसी दूसरे रूप में नहीं मिल पाते हैं।
  • इसके अलावा, इसमें विटामिन ई, बी, और सी, प्रो-विटामिन ए, केरातिन तेल, और एमिनो एसिड भी पाए जाते हैं। इन सभी पोषक तत्वों का सेवन डेयरी मवेशियों के बीच दूध की आपूर्ति में वृद्धि करने में मदद करता है।
  • मोरिंगा में हरे पत्ते होते हैं जिन्हें जानवरों को बार्ज करना पसंद है। यह रसायनों से मुक्त है और यह इतना फायदेमंद है कि इसलिए अक्सर इसका विभिन्न रूपों में उपयोग किया जाता है।

 

सहजन की उन्नत किस्में

सहजन की फसल सालभर में सिर्फ एक बार ही, वह भी कुछ ही महीने के लिए मिल पाती है, लेकिन कृषि वैज्ञानिकों ने कुछ ऐसी प्रजातियों को ईजाद करने में कामयाबी पाई हैं, जो साल में 2 बार फसल देने में सक्षम हैं. इन प्रजातियों में रोहित 1, धनराज, केएम 1, केएम 2, पीकेएम-1 और पीकेएम-1 प्रमुख हैं ।

रोपाई के 4-6 महीने बाद ही सहजन की रोहित 1 प्रजाति के पौधे से पैदावार मिलनी शुरू हो जाती है. इस से 10 साल तक व्यावसायिक उपज ली जा सकती है. यह प्रजाति सानभर में 3 बार फसल देती है. इस की फलियां गहरे हरे रंग की होती हैं, वह क्वालिटी में बहुत अच्छी होती हैं यह प्रजाति अच्छी उपज देने वाली है।

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सहजन के कोयंबटूर 2 प्रजाति में फलियों की लंबाई 25 से 35 सेंटीमीटर होती है. यह रंग में गहरा हरा और स्वादिष्ट होती है. पीकेएम-1 किस्म से साल में 2 बार उपज ली जा सकती हैजबकि पीएम 2 किस्म का कच्चा लिका रंग में हरा है और अच्छा स्वाद देता है, इस का भी उत्पादन अच्छा होता है।

सहजन की खेती के लिए नर्सरी तैयार करना

सबसे पहले नर्सरी तैयार करनी पड़ती है, नर्सरी के लिए पौली बैग में हलकी दोमट मिट्टी में गोबर की सड़ी खाद मिला कर भर देनी चाहिए. इस के बाद इस में सहजन के बीज को डाल कर नर्सरी के लिए बनाई गई क्यारियों में रख देना चाहिए।

नर्सरी में बीज के उचित जमाव के लिए बीज को पौली बैग में रोपने से पहले बीज के ऊपर से छिलके उतार लेते हैं और छिलके जाने के बाद इस की गुठलियों को रातभर पानी में भिगो देते हैं भिगोए हुए इन। बीजों को सुबह मिट्टी भरे गएपौली बैग में रोप देते हैं।

बीज को नर्सरी में डालने से पहले वीजशोधन कर लेना उचित होता है. इस के लिए दाईकोडर्मा या कार्बडाजिम कवकनाशी की 5 से 10 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए, इस तरह से बीजशोधन करने से अंकुरण अच्छ होता हैं और जड़ों में बीमारियों के लगने की संभावना कम हो जाती है।

सहजन की नर्सरी में बीजों के उचित जमाव और बड़वार के समय सही नमी बनाए रखना जरूरी होता है, सहजन की फसल लेने के। लिए इसे सीधे बिनानर्सरी में डाले ही बीज या कलम द्वारा खेतों में रोषा जा सकता है, लेकिन इस में पौधों के मरने का डर रहता है।

अगर फसल से अच्छी फलन और साल में बार फलन चाहते हैं तो चीज से नर्सरी तैयार करना ज्यादा मुफीद होता हैं. बीज से नर्सरी तैयार करने के लिए एक हेक्टेयर खेत में पौधों को रोपाई के लिए 2 किलोग्राम से 4 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है, अगर सहजन की खेती पशुओं के चारे के लिए की जा रही हैं तो इस के बीज को सीधे खेत में बोया जा सकता है, इस के लिए प्रति हेक्टेयर 100 किलोग्राम बीज की जरूरत पड़ती है।

सहजन की नर्सरी तैयार करने का सही समय फरवरी से मार्च माह तक का होता है नर्सरी में पीली वैग में तैयार किए गए पीथ एक महीने में लगाने लायक हो जाते हैं पीधे को रोपने से पहले पौली बैग के निचले हिस्से में छेद कर देना चाहिए, जिस से जड़े बाहर अच्छी तरह से निकल सकें।

सहजन की खेती के लिए सभी तरह की मिट्टी अच्छी होती हैं. इसे खाली पड़ी जमीनों, बंजर व कम उपजाऊ वाली जमीनों में भी आसानी से उगाया जा सकता है, फिर भी ज्यादा उत्पादन के लिए काली, लैटराइट, गहरी बलई, बलुई दोमट या दोमट मिट्टी ज्यादा उपज देने वाली होती है।

नर्सरी में तैयार सहजन के पौधों को खेत में रोषने से पहले जोत कर मिट्टी को भुरभुरी बना लेना चाहिए. खेत की अच्छी तैयारी के लिए एक गहरी जुताई करने के बाद हैरो या कल्टीवेटर से 2 से 3 गहरी जुताइयां कर देनी चाहिए. इस से सहजन की जड़ों का मिट्टी में फैलाव सही होता है। खेत से खरपतवारों को निकाल देना चाहिए, इस के बाद 2.5*2.5 मीटर की दूरी पर 45x45x45 सैंटीमीटर के आकार में गड्ढे खोद लेने चाहिए पौधों के उचित विकास को ध्यान में रखते हुए इन गड्ढों में मिट्टी के साथ गोबर की सडी खाद मिला कर भर देते हैं, गोबर की खाद को खेत में सीधे भी मिलाया जा सकता है ।

सहजन के पौधों की रोपाई

नर्सरी में तैयार सहजन के पौधों को रोपने का सब से मुफीद समय जून से सितंबर माह का होता है, सहजन के पौधों से पौधों की दूरी व लाइन से लाइन की दूरी 3 मीटर रखते हुए रोपाई करनी चाहिए,रोपे गए पौधे जब 75 सैंटीमीटर के हो जाएं तो इस के मुख्य कल्ले की कटिंग कर देनी चाहिए, इस से पौध में अधिक कल्ले निकल आते हैं।

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खाद व उर्वरक

सहजन की फसल में प्रति हेक्टेयर के हिसाब से 150 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 किलोग्राम फास्फोरस, 40 किलोग्राम पोटाश, 30 किलोग्राम सल्फर और 10 किलोग्राम जिंक सल्फेट की जरूरत होती है. बोआई से पहले 30 किलोग्राम नाइट्रोजन व बाकी उर्वरक की पूरी मात्रा को मिट्टी में मिला देना चाहिए. बची हुई नाइट्रोजन की आधी मात्रा बोआई के 30 दिन बाद वे बाकी बची । मात्रा 45 दिन बाद देनी चाहिए.

सिंचाई

खेत में पौधों की रोपाई के तुरंत बाद पहली सिंचाई कर देनी चाहिए. पहली सिंचाई के एक हफ्ते बाद दूसरी सिंचाई व बाकी सिंचाई हर 15 दिन के अंतराल पर करनी चाहिए. फूल लगने के दौरान खेत ज्यादा सूखा नहीं रहना चाहिए या ज्यादा नमी रहने पर फूल के झड़ने की समस्या होती है।

खरपतवार नियंत्रण

सहजन की फसल में उगे खरपतवारों के नियंत्रण के लिए 1.25 लिटर प्रति हेक्टेयर की दर से पेंडीमिथेलिन का छिड़काव करना चाहिए. इस के अलावा 25 से 30 दिन के अंतराल पर गुड़ाई करने से खरपतवारों के नियंत्रण के साथ ही फसल की बढ़वार अच्छी होती है।

कीट

सहजन की फसल में आमतौर पर पत्तों को खाने वाली इल्लियां व बालदार इल्लियों का हमला होता है जो अकसर बारिश में फसल को ज्यादा नुकसान पहुंचाती हैं. ये इल्लियां सहजन की पत्तियों को खा कर नष्ट कर देती हैं, इन इल्लियों की रोकथाम के लिए घर पर तैयार किए गए जैव कीटनाशी या नीम तेल का छिड़काव कर नियंत्रण किया जा सकता है।

पशुओं के लिए हरा चारा

सहजन न केवल इनसानों के लिए, बल्कि दुधारू पशुओं के लिए भी फायदेमंद है और दूध बढ़ाने वाला है. यह अन्य चारा फसलों से कई गुना ज्यादा खूबियों वाला होता है. सहजन की पत्तियों और नरम तने का काटा गया चारा सूखे चारे के साथ मिला कर दिया जा सकता है सूखे की दशा में सहजन सहनशील व बहुवर्षीय चारा देने वाली फसल के तौर पर इस्तेमाल में लाया जा सकता है।

ऐसे लें उपज

साल में 2 बार फसल देने वाले सहजन की किस्मों की तुड़ाई आमतौर पर फरवरीमार्च और सितंबरअक्तूबर माह में होती है इस के अलावा उन्नत किस्म की प्रजातियों से फलियों और पत्तियों का अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है. साल में 2 बार फसल देने वाली प्रजातियां पीकेएम 1, पीकेएम 2, कोयंबटूर 1 व कोयंबटूर 2 में रोपाई के बाद 90-100 दिनों में इस में फूल आना शुरू हो जाता है जिस से पौधे लगाने के 160-170 पर फलियों की तुड़ाई की जा सकती है एक साल में एक पौधे से 65-70 सैंटीमीटर लंबा और औसतन 6.3 सैंटीमीटर मोटा, 200-400 फल 40-50 किलोग्राम की उपज मिलती है।

 

 

 

FAQ

 

Q1-सहजन के चारा में पाए जाने वाले पोषक तत्व:

Nutrients found in drumstick feed:

 

 

मोरिंगा चारा डेयरी पशुओं के लिए पोषक तत्वों का समृद्ध स्रोत है। प्रोटीन और खनिजों के अलावा यह प्रो-विटामिन ए, विटामिन बी, विटामिन-सी और ई, कुछ कैरोटीनॉयड का भी बहुत अच्छा स्रोत है

मोरिंगा का हरा चारा 2 से 3 महीने के अंतराल पर की जाने वाली फ़सल है जिसमें (16%) , क्रूड प्रोटीन होता है, (16%) , ईथर अर्क (2.%) , क्रूड फाइबर (35.%) , सिलिका (1.02%) ,

कैल्शियम (0.8%) , फास्फोरस (0.28%) , मैग्नीशियम (0.51%) , पोटेशियम (1.43%) , सोडियम (0.24%) , इसके अलावा इसमें कॉपर, जिंक, मैंगनीज और आयरन भी पाया जाता है।

 

Q2-कैसे करें सहजन के चारे कि खेती:

How to cultivate drumstick fodder:

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** मोरिंगा कि खेती के लिए, रेतीली दोमट मिट्टी और रेतीली मिट्टी आदर्श हैं।

** 30 सेंटीमीटर से अधिक मिट्टी कि जुताई करनी चाहिए।

** जल निकासी की सुविधा खेत में अनिवार्य है। मोरिंगा कि खेती में जल जमाव नहीं होना चाहिए. जल जमाव के कारण बारिश के मौसम में फ़सल पूरी तरह से नष्ट हो जाती है।

** मोरिंगा को वसंत और शरद ऋतु के मौसम में बोया जाना चाहिए। क्योंकि इस मौसम में सहजन का बीज अच्छा अंकुरण करता है।

** बरसात के दौरान मोरिंगा कि बुवाई से बचना चाहिए, अधिक नमी और पानी के ठहराव के कारण अंकुर की क्षति हो सकती है।

** डिस्क, रिवर्सेबल या एम.बी का उपयोग करके गहरी जुताई-जुताई करके खेत को लेवल करना चाहिए।

** मोरिंगा एक बारहमासी फ़सल है, गहरी जुताई से जड़ मिट्टी के गहराई तक पहुँचती है।

** मोरिंगा कि फ़सल को 150 किग्रा नाइट्रोजन, 60 किग्रा फास्फोरस, 40 किग्रा पोटाश, 30 किग्रा एक हेक्टेयर भूमि के लिए प्रयोग करें।

** बुवाई से पहले 30 किलोग्राम नाइट्रोजन और अन्य रासायनिक उर्वरकों की पूरी खुराक डालें

मिट्टी में अच्छी तरह से डालें।

** सहजन का चारा प्राप्त करने के लिए हर साल जैविक और अकार्बनिक उर्वरकों की पूरी खुराक

उत्पादन करें।

** बीजों को रात भर पानी में भिगो दें। बीज को बुवाई से पहले फुफुन्दी नाशक दवाओं का प्रयोग करें। यह अंकुरण में सहयोग करता है

जड़ को फंगल रोगों से बचाता है।

** 100 किग्रा / हेक्टेयर मोरिंगा बीज की बुवाई करें।

** 10 सेमी की दूरी पर मिट्टी में 3-4 बीज बोएँ।

** नियमित 25-30 दिनों के अंतराल पर हाथ से निराई / गुड़ाई करें।

** पहली सिंचाई बुवाई के ठीक बाद और दूसरी सिंचाई एक सप्ताह बाद करनी चाहिए.

खेत में उचित अंकुरण सुनिश्चित करने के लिए बुआई के 15-20 दिनबाद फिर से सिंचाई करें।

** गर्मियों के दौरान पत्ती खाने वाले कैटरपिलर जैसे कीट संक्रमण को नियंत्रित करने के लिए दवा का छिड़काव करें।

** खेतों को जंगली जानवरों से सुरक्षा करें।

कटाई और उपज

** फ़सल बुवाई के 85-90 दिनों में पहली फ़सल के लिए तैयार हो जाती है।

** 5 से 6 फीट की ऊंचाई तक फ़सल की वृद्धि होने दें।

** प्रत्येक कटाई के बाद, प्रति हेक्टेयर 30 किलोग्राम नाइट्रोजन उर्वरक का छिरकाव करें। फिर से फ़सल-फ़सल के विकास के लिए यह आवश्यक है।

 

Q3-मोरिंगा हरे चारे कि कितनी उपज होती है ?

What is the yield of moringa green fodder?

 

 

  • मोरिंगा हरे चारे की उपज लगभग 100-120 टन / हेक्टेयर / वर्ष देता है।

 

 

Q4-मोरिंगा हरे चारे को कैसे पशु को खिलाएं ?

How to feed Moringa green fodder to animals?

 

 

मोरिंगा हरे चारे को कुट्टी कल के माध्यम से 2-3 सेमी आकार के छोटे टुकड़ों में काट लें और

डेयरी पशुओं को खिलाएं।

मोरिंगा के 5-10 किलोग्राम हरे चारे को एक जानवर को सूखा भूसा के साथ मिलाकर रोजाना खिलाया जा सकता है।

 

 

मोरिंगा हरे चारे का लाभ :

 

अगर आप अपने पशु धन के लिए मोरिंगा हरे चारे का प्रयोग करतें है तो आपको निम्नलिखित लाभ होंगे :-

  • यह एक बारहमासी हरे चारे का स्रोत है जो आसानी से पैदा किया जा सकता है।
  • कच्चे प्रोटीन, खनिज और विटामिन जैसे पोषक तत्वों से भरपूर होता है मोरिंगा हर चारा।
  • मनुष्यों के साथ-साथ पशुधन द्वारा उपयोग किया जाता है। अगर आपका पशु इतना पौष्टिक चारा खायेगा तो निश्चित ही इसका सुखद असर आपके परिवार पर परेगा ।
  • आपके बच्चे और पूरा परिवार उच्च कोटि का दूध खायेगा तो स्वस्थ रहेगा और ज्यादा दूध होने से आपकी आमदनी भी बढ़ेगी।

 

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