ब्रायलर मुर्गी पालन :जीविकोपार्जन का सबसे उत्तम साधन

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ब्रायलर मुर्गी पालन :जीविकोपार्जन का सबसे उत्तम साधन

डॉ दीपक सिन्हा, पोल्ट्री कंसलटेंट, पटना

भारत में ब्रायलर मुर्गी पालन बेरोजगारी दूर करने का सबसे बड़ा जरिया है ।इस व्यवसाय को पढ़े लिखे नौजवान युवक अपना रहे हैं तथा अपने जीवकोपार्जन का एक अच्छा जरिया बना रहे हैं। यह व्यवसाय बहुत ही तेजी से बढ़ रहा है। अगर कोई भी पशुपालक इस को व्यवस्थित तरीके से करता है तो इसमें घाटा होने का चांस बहुत कम होता है। कोरोना काल खंड के बाद यह व्यवसाय अन्य कृषि आधारित व्यवसाय में सबसे तेजी से बढ़ रहा है और इसको पढ़े लिखे लोग अपना रहे हैं।
भारत में पोल्ट्री फार्मिंग में ब्रायलर चिकन सबसे लोकप्रिय पक्षी है, इन मुर्गियों का पालन माँस उत्पादन के लिए किया जाता हैं.

ब्रायलर छोटी मुर्गीयां होती हैं जो 5 से 6 सप्ताह की होती हैं. ब्रायलर प्रजाति के मुर्गा या मुर्गी अंडे से निकलने के बाद 40 से 50 ग्राम के ग्राम के होते हैं जो सही प्रकार से दाना- दवा खिलाने और सही रख-रखाव के बाद के बाद
6 हफ्ते में लगभग 1.5 किलो से 2 किलो के हो जाते हैं। आज ब्रायलर पोल्ट्री फार्मिंग एक सुविकसित व्यवसाय के रूप में उभर चूका है.

ब्रायलर मुर्गी पालन कम समय में अधिक से अधिक पैसे कमाने का व्यवसाय है, इसे छोटे किसान भी छोटे गाँव में कर सकते हैं.

ब्रायलर पोल्ट्री फार्म के लिए बहुत कम निवेश की आवश्यकता होती है क्योंकि उन्हें छह सप्ताह के भीतर विकसित कर बेचा जा सकता है।

कुछ महत्वपूर्ण जानकारियां ब्रायलर मुर्गीपालन शुरू करने से पहले:

ब्रायलर मुर्गी पालन करने के लिए पहले इसे छोटे स्तर के रूप शुरू करें। फिर बाद में बड़े पोल्ट्री फार्म में विकसित करें।
चूजे हमेशा विश्वसनीय और प्रमाणित हेचरी से ही लें।
हमेशा उच्चतम गुणवत्ता वाले और अच्छी कंपनी की दवा और टीका का प्रयोग करें।
ब्रायलर मुर्गी पालन में Bio-security (जैविक सुरक्षा के नियम) का पालन करें।

  1. मुर्गी पालन के लिए जगह का चुनाव करना:
    मुर्गी पालन के लिए सही जगह का चुनाव करना आवश्यक हैं.

जगह समतल हो और कुछ ऊंचाई पर हो, जिससे की बारिश का पानी फार्म में न जा सके.
मुर्गी पालन की जगह आवासीय क्षेत्र व मुख्य सड़क से दूर होनी चाहिए.
मुख्य सड़क से बहुत अधिक दूर भी न हो जिससे की आने जाने मे परेशानी ना हो.
बिजली व पानी की उचित सुविधा उपलब्ध होना चाहिए.
मुर्गियों के शेड व बर्तनों की साफ सफाई नियमित रूप से करते रहें.
चूज़े, दवाई, वैक्सीन, एवं ब्रायलर दाना आसानी से उपलब्ध हों.
फार्म की लंबाई पूरब से पश्चिम की ओर होना चाहिए.
एक शेड में केवल एक ही ब्रीड के चूजे रखने चाहिए.

  1. ब्रायलर पोल्ट्री फार्म के लिए शेड का निर्माण:
    शेड हमेशा पूर्व-पश्चिम दिशा में होना चाहिए और शेड के जाली वाला साइड उत्तर-दक्षिण में होना चाहिए
    जिससे की हवा सही रूप से शेड के अन्दर से बह सके और धुप अन्दर ज्यादा ना लगे.
    शेड की चौड़ाई 30-35 फुट और लम्बाई ज़रुरत के अनुसार आप रख सकते हैं.
    ब्रायलर पोल्ट्री फार्म शेड का फर्श पक्का होना चाहिए.
    पोल्ट्री फार्म शेड की साइड की ऊँचाई फर्श से 8-10 फूट होना चाहिए और बीच (Center) की
    ऊँचाई फर्श से 14-15 फूट होना चाहिए.
    शेड के अन्दर मुर्गी दाना व पानी के बर्तन, पानी की टंकी और बिजली के बल्ब की उचित व्यवस्था होनी चाहिए.
    आप चाहे तो लबे शेड की बराबर भाग मे बाट (Partition) सकते हैं.
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Broiler Chicken

  1. ब्रायलर चूज़े के लिए दाना और पानी के बर्तनों की जानकारी.
    प्रत्येक 100 चूज़ों के लिए कम से कम 3 पानी और 3 दाने के बर्तन होना बहुत ही आवश्यक है.
    दाने और पानी के बर्तन आप मैन्युअल या आटोमेटिक किसी भी प्रकार का इस्तेमाल कर सकते हैं.
    मैन्युअल बर्तन साफ़ करने में आसान होते हैं लेकिन पानी देने में थोडा कठिनाई होती है, पर
    आटोमेटिक वाले बर्तनों में पाइप सिस्टम होता है जिससे टंकी का पानी सीधे पानी के बर्तन में भर जाता है.
  2. बुरादा या लिटर: Litter Management:

लिटर (Litter) क्या होता हैं?
ब्रायलर पोल्ट्री फार्म में जो फर्श पर बिछावन की जाती हैं उसे हम लिटर कहते हैं.

बुरादा या लिटर के लिए आप लकड़ी का पाउडर, मूंगफली का छिल्का या धान का छिल्का का उपयोग कर सकते हैं.
चूज़े आने से पहले लिटर की 3-4 इंच मोटी परत फर्श पर बिछाना आवश्यक है.
लिटर पूरा नया होना चाहिए एवं उसमें किसी भी प्रकार का संक्रमण ना हो.

  1. ब्रूडिंग (Brooding) :
    ब्रूडिंग क्या होता हैं?

जिस प्रकार मुर्गी अपने चूजों को अपने पंखों के नीचे रखकर गर्मी देती हैं उसी प्रकार
हम कृत्रिम रूप से चूजों को तापमान देते हैं उसे ब्रूडिंग कहते हैं.

चूज़ों के सही प्रकार से विकास के लिए ब्रूडिंग सबसे ज्यादा आवश्यक है,
ब्रायलर फार्म का पूरा व्यापार पूरी तरीके से ब्रूडिंग के ऊपर निर्भर करता है.
अगर ब्रूडिंग में गलती हुई तो आपके चूज़े 7-8 दिन में कमज़ोर हो कर मर जायेंगे.
या आपके सही दाना के इस्तेमाल करने पर भी उनका विकास सही तरीके से नहीं हो पायेगा.

ब्रूडिंग के प्रकार:
बिजली के बल्ब से ब्रूडिंग
गैस ब्रूडर से ब्रूडिंग
अंगीठी या सिगड़ी से ब्रूडिंग
बिजली के बल्ब से ब्रूडिंग :
इस प्रकार के ब्रूडिंग के लिए आपको नियमित रूप से बिजली की आवश्यकता होती है.
गर्मी के महीने में प्रति चूज़े को 1 वाट की आवश्यकता होती है जबकि सर्दियों के महीने
में प्रति चूज़े को 2 वाट की आवश्यकता होती है.
गर्मी के महीने में 4-5 दिन ब्रूडिंग किया जाता है और सर्दियों के महीने में ब्रूडिंग 12-15
दिन तक करना आवश्यक होता है.
चूजों के पहले हफ्ते में ब्रूडर को लिटर से 6 इंच ऊपर रखें और दूसरे हफ्ते 10-12 इंच ऊपर.
गैस ब्रूडर से ब्रूडिंग :
जरूरत और क्षमता के अनुसार बाज़ार में गैस ब्रूडर उपलब्ध हैं, उदाहरण के लिए 1000 और 2000 क्षमता वाले.
गैस ब्रूडर ब्रूडिंग का सबसे अच्छा तरिका है इससे शेड केा अन्दर का तापमान एक समान रहता है.
अंगीठी या सिगड़ी से ब्रूडिंग :
ये खासकर उन क्षेत्रों के लिए होता हैं जहाँ बिजली उपलब्ध ना हो या बिजली की बहुत ज्यादा कटौती वाले जगहों पर.
इसमें ध्यान रखना बहुत ज्यादा जरूरी होता है क्योंकि इससे शेड में धुआं भी भर सकता है या आग भी लग सकती है।

  1. ब्रायलर मुर्गी दाना की जानकारी:
    ब्रायलर फार्मिंग में 3 प्रकार के दाना की आवश्यकता होती है,
    यह दाना ब्रायलर चूजों के उम्र और वज़न के अनुसार दिया जाता है.
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प्री स्टार्टर :0-10 दिन तक के चूजों के लिए
स्टार्टर :11-20 दिन के ब्रायलर चूजों के लिए
फिनिशर :21 दिन से मुर्गे के बिकने तक
मुर्गी पालन में सबसे ज्यादा खर्च उनके दाने पर होता है, दाने में प्रोटीन और इसकी गुणवत्ता का
भी ध्यान रखना जरूरी है.

इसके अलावा आप चूजों को मक्का, सूरजमुखी, तिल, मूंगफली, जौ और गेूंह आदि को भी दे सकते हो.

  1. ब्रायलर मुर्गी के पीने का पानी की जानकारी:
    ब्रायलर मुर्गा 1 किलो दाना खाने पर 2-3 लीटर पानी पीता है,गर्मियों में पानी का पीना दोगुना हो जाता है.
    जितने सप्ताह का चूजा उसमें 2 का गुणा करने पर जो मात्र आएगी, वह मात्र पानी की प्रति 100 चूजों पर खपत होगी,
    जैसे-

पहला सप्ताह = 1 X 2 = 2 लीटर पानी/100 चूजा
दूसरा सप्ताह = 2 X 2 = 4 लीटर पानी /100 चूजा

  1. ब्रायलर मुर्गीपालन के लिए जगह की कैल्क्युलेशन:
    पहला सप्ताह – 1 वर्गफुट/3 चूज़े

दूसरा सप्ताह – 1 वर्गफुट/2 चूज़े

तीसरा सप्ताह से 1 किलो होने तक – 1 वर्गफुट/1 चूज़ा

1 से 1.5 किलोग्राम तक – 1.25 वर्गफुट/1 चूज़ा

1.5 किलोग्राम से बिकने तक 1.5 वर्गफुट/1 चूज़ा

सही प्रकार से चूजों को जगह मिलने पर चुज़ो को विकास अच्छा होता है और
कई प्रकार की बिमारियों से भी उनका बचाव होता है.

  1. ब्रायलर मुर्गी पालन के लिए लाइट या रोशनी का प्रबंध :
    वैसे तो Broiler Poultry Farm में 24 घंटे लाइट देने की सिफारिश की जाती हैं,
    लेकिन चूजों को 23 घंटे ही लाइट देना चाहिए और 1 घंटा लाइट बंद रखना चाहिए.
    ताकि अंधेरे मे चूजे डरे नहीं और कभी अचानक बिजली कटौति होने पर अंधेरे के
    लिए तैयार रहे. पहले 2 सप्ताह तक रोशनी कम नहीं होनी चाहिए क्योंकि इससे
    चूजे तनाव मुक्त रहते हैं और दाना पानी भी अच्छे से खाते हैं.
  2. मुर्गियों में बीमारियां :
    मुर्गियों मे कई तरह की बीमारियाँ पाई जाती हैं, जैसे-
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रानीखेत (Newcastle Disease)
पुलोराम (Pullorum Disease)
मेरेक्स (Marek’s Disease)
हैजा (Fowl Cholera)
टाइफॉइड (Fowl Typhoid)
परजीविकृमि (Parasitic Disease) इत्यादि

  1. टीकाकरण:
    मुर्गियों मे बीमारी से हर साल मुर्गीपालकों को भारी नुकसान उठाना पड़ता हैं,
    बीमारियों से बचाव के लिए समय समय पर टीकाकरण करना बहुत जरूरी हैं.

कुछ टीकाकरण जो हैच के पहले दिन से से 28वे दिन तक लगाए जाते हैं-

उम्र टीका
पहला दिन मेरेक्स (Marek’s)
5 वे -7 वे दिन आर.डी.वी.-एफ 1 (RDV F1)
14 वे दिन आई.डी.बी का टीका ( IBD Vaccine)
21 वे दिन आर.डी.वी. ला सोटा ( RDV La Sota)
28 वे दिन आई.डी.बी बूस्टर ( IBD booster dose)

  1. नर व मादा मुर्गियों का पृथक्करण:
    नर व मादा ब्रॉयलर मुर्गियों की वृद्धि दर अलग अलग होती हैं, नर मुर्गीय मादा के मुकाबले अधिक तेजी
    से विकसित होती हैं. उन्हे मादा के मुकाबले अधिक फर्श पर जगह व दाना पानी भी अधिक लगता हैं.
    नर ब्रॉयलर मुर्गियों को अधिक प्रोटीन व कार्बोहाइड्रेट की जरूरत होती हैं,इसलिए नर व मादा मुर्गियों
    को पहले दिन से ही अलग अलग पालना चाहिए. उन्हे उनकी दैनिक आवश्यकता के अनुसार अलग-अलग
    आहार भी दिए जाने चाहिए।
  2. गर्मी में ब्रायलर मुर्गीपालन :
    गर्मियों के समय में ब्रायलर मुर्गीपालन करने वाले लोगों को चाहिए कि वे मुर्गियों को तेज तापमान
    और अधिक गर्मी से बचाय जाए. मौसम में बदलाव की वजह से मुर्गियों की मौत तक हो सकती है,
    इस वह से मुर्गी पालन करने वालों को अधिक हानि हो सकती है. इसलिए मुर्गियों की छत का गर्मी से
    बचाने के लिए छत पर घास व पुआल आदि को डाल सकते हैं। या छत पर सफेदी करवा सकते हैं।
    सफेद रंग की सफेदी से छत ठंडी रहती है, साथ ही आप मुर्गियों के डेरे पर पंखा आदि को भी लगा सकते हैं।

गर्मियों में चूजों के लिए पानी के बर्तनों की संख्या को बढ़ा दें, क्योंकि गर्मियों में पानी न मिलने से हीट स्ट्रोक लगने से मुर्गियों की मौत हो जाती है।
जब तेज गर्मी होती है तब शेड की खिड़कियों पर टाट को गीला करके लटका दें, लेकिन इस बात का ध्यान जरूर रखें कि टाट खिड़कियों से न चिपके.

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