शूकर पालन

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शूकर पालन

सूअर पालन बढ़ते समय के साथ एक नए रोजगार के रूप में लोगों को आकर्षित कर रही है. गावों में इससे रोजगार के नए अवसर बन रहे है

संकर सूअर पालन संबंधी कुछ उपयोगी बातें

  • देहाती सूअर से साल में कम बच्चे मिलने एवं इनका वजन कम होने की वजह से प्रतिवर्ष लाभ कम होता है।
  • विलायती सूअर कई कठिनाईयों की वजह से देहात में लाभकारी तरीके से पाला नहीं जा सकता है।
  • विलायती नस्लों से पैदा हुआ संकर सूअर गाँवों में आसानी से पाला जाता है और केवल चार महीना पालकर ही सूअर के बच्चों से 50-100 रुपये प्रति सूअर इस क्षेत्र के किसानों को लाभ हुआ।
  • संकर सूअर, राँची पशु चिकित्सा महाविद्यालय (बिरसा कृषि विश्वविद्यालय), राँची से प्राप्त हो सकते हैं।
  • इसे पालने का प्रशिक्षण, दाना, दवा और इस संबंध में अन्य तकनीकी जानकारी यहाँ से प्राप्त की जा सकती है।
  • इन्हें उचित दाना, घर के बचे जूठन एवं भोजन के अनुपयोगी बचे पदार्थ तथा अन्य सस्ते आहार के साधन पर लाभकारी ढंग से पाला जा सकता है।
  • एक बड़ा सूअर 3 किलों के लगभग दाना खाता है।
  • इनके शरीर के बाहरी हिस्से और पेट में कीड़े हो जाया करते हैं, जिनकी समय-समय पर चिकित्सा होनी चाहिए।
  • साल में एक बार संक्रामक रोगों से बचने के लिए टीका अवश्य लगवा दें।
  • बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने सूअर की नई प्रजाति ब्रिटेन की टैमवर्थ नस्ल के नर तथा देशी सूकरी के संयोग से विकसित की है। यह आदिवासी क्षेत्रों के वातावरण में पालने के लिए विशेष उपयुक्त हैं। इसका रंग काला तथा एक वर्ष में औसत शरीरिक वजन 65 किलोग्राम के लगभग होता है। ग्रामीण वातावरण में नई प्रजाति देसी की तुलना में आर्थिक दृष्टिकोण से चार से पाँच गुणा अधिक लाभकारी है।

दिन में ही सूअर से प्रसव

गर्भ विज्ञान विभाग, राँची पशुपालन महाविद्यालय ने सूअर में ऐच्छिक प्रसव के लिए एक नई तकनीक विकसित की है, जिसे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् ने मान्यता प्रदान की है। इसमें कुछ हारमोन के प्रयोग से एक निर्धारित समय में प्रसव कराया जा सकता है। दिन में प्रसव होने से सूअर के बच्चों में मृत्यु दर काफी कम हो जाती है, जिससे सूअर पालकों को काफी फायदा हुआ है।

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सूअर की आहार प्रणाली

सूकरों का आहार जन्म के एक पखवारे बाद शुरू हो जाता है। माँ के दूध के साथ-साथ छौनों (पिगलेट) को सूखा ठोस आहार दिया जाता है, जिसे क्रिप राशन कहते हैं। दो महीने के बाद बढ़ते हुए सूकरों को ग्रोवर राशन एवं वयस्क सूकरों को फिनिशर राशन दिया जाता है। अलग-अलग किस्म के राशन को तैयार करने के लिए निम्नलिखित दाना मिश्रण का इस्तेमाल करेः

  क्रिप राशन ग्रोअर राशन फिनिशर राशन
मकई 60 भाग 64 भाग 60 भाग
बादाम खली 20 भाग 15 भाग 10 भाग
चोकर 10 भाग 12.5 भाग 24.5 भाग
मछली चूर्ण 8 भाग 6 भाग 3 भाग
लवण मिश्रण 1.5 भाग 2.5 भाग 2.5 भाग
नमक 0.5 भाग 100 भाग 100 भाग
कुल 100 भाग    

 

रोविमिक्स रोभिवी और रोविमिक्स रोविमिक्स
200 ग्राम/100 किलो दाना
मिश्रण
20 ग्राम/100 किलो दाना
मिश्रण
200 ग्राम/100 किलो दाना
मिश्रण

गर्भवती एवं दूध देती सूकरियों को भी फिनिशर राशन ही दिया जाता है।

दैनिक आहार की मात्रा

  • ग्रोअर सूअर (वजन12 से 25 किलो तक) : प्रतिदिन शरीर वजन का 6 प्रतिशत अथवा 1 से 5 किलो ग्राम दाना मिश्रण।
  • ग्रोअर सूअर (26 से45 किलो तक) : प्रतिदिन शरीर वजन का 4 प्रतिशत अथवा 5 से 2.0 किलो दाना मिश्रण।
  • फिनसर पिगः5 किलो दाना मिश्रण।
  • प्रजनन हेतु नर सूकरः0 किलो।
  • गाभिन सूकरीः0 किलो।
  • दुधारू सूकरी 0 किलो और दूध पीने वाले प्रति बच्चे 200 ग्राम की दर से अतिरिक्त दाना मिश्रण। अधिकतम 5.0 किलो।
  • दाना मिश्रण को सुबह और अपराहन में दो बराबर हिस्से में बाँट कर खिलायें।

घुंगरू सूअर: ग्रामीण किसानों के लिए देशी सूअर की एक संभावनाशील प्रजाति

सूअर की देशी प्रजाति के रूप में घुंगरू सूअर को सबसे पहले पश्चिम बंगाल में काफी लोकप्रिय पाया गया, क्योंकि इसे पालने के लिए कम से कम प्रयास करने पड़ते हैं और यह प्रचुरता में प्रजनन करता है। सूअर की इस संकर नस्ल/प्रजाति से उच्च गुणवत्ता वाले मांस की प्राप्ति होती है और इनका आहार कृषि कार्य में उत्पन्न बेकार पदार्थ और रसोई से निकले अपशिष्ट पदार्थ होते हैं। घुंगरू सूअर प्रायः काले रंग के और बुल डॉग की तरह विशेष चेहरे वाले होते हैं।  इसके 6-12 से बच्चे होते हैं जिनका वजन जन्म के समय 1.0 kg तथा परिपक्व अवस्था में 7.0 – 10.0 kg होता है। नर तथा मादा दोनों ही शांत प्रवृत्ति के होते हैं और उन्हें संभालना आसान होता है। प्रजनन क्षेत्र में वे कूडे में से उपयोगी वस्तुएं ढूंढने की प्रणाली के तहत रखे जाते हैं तथा बरसाती फ़सल के रक्षक होते हैं।

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रानी, गुवाहाटी के राष्ट्रीय सूअर अनुसंधान केंद्र पर घुंगरू सूअरों को मानक प्रजनन, आहार उपलब्धता तथा प्रबंधन प्रणाली के तहत रखा जाता है। भविष्य में प्रजनन कार्यक्रमों में उनकी आनुवंशिक सम्भावनाओं पर मूल्यांकन जारी है तथा उत्पादकता और जनन के लिहाज से यह देशी प्रजाति काफी सक्षम मानी जाती है। कुछ चुनिन्दा मादा घुंगरू सूअरों ने तो संस्थान के फार्म में अन्य देशी प्रजाति के सूअरों की तुलना में 17 बच्चों को जन्म दिया है।

 

संकर सूकर पालन

संकर सूकर पालन संबंधी जानकारी

  1. देहाती सूकर से साल में कम बच्चे मिलने एवं इनका वजन कम होने की वजह से प्रतिवर्ष लाभ कम होता है।
  2. विलायती सूकर कई कठिनाईयों की वजह से देहात में लाभकारी तरीके से पाला नहीं जा सकता है।
  3. विलायती नस्लों से पैदा हुआ संकर सूकर गाँवों में आसानी से पाला जाता है और केवल चार महीना पालकर ही सूकर के बच्चों से 50-100 रु. प्रति सूकर इस क्षेत्र के किसानों को लाभ हुआ।
  4. संकर सूकर राँची पशु चिकित्सा महाविद्यालय (बिरसा कृषि विश्वविद्यालय), राँची से प्राप्त हो सकते हैं।
  5. इसे पालने का प्रशिक्षण, दाना, दवा और इस सम्बन्ध में अन्य तकनीकी जानकारी यहाँ से प्राप्त हो सकती है।
  6. इन्हें उचित दाना, घर के बचे जूठन एवं भोजन के अनुपयोगी बचे पदार्थ तथा अन्य सस्ते आहार के साधन पर लाभकारी ढंग से पाला जा सकता है।
  7. एक बड़ा सूकर तीन किलो के लगभग दाना खाता है।
  8. इन्हें शरीर के बाहरी हिस्से और पेट में कीड़े हो जाया करते है, जिनकी समय-समय पर चिकित्सा होनी चाहिए।
  9. साल में एक बार संक्रामक रोगों से बचने के लिए टीका अवश्य लगवा दें।
  10. बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने सूकर की एक नई प्रजाति ब्रिटेन की टैमवर्थ नस्ल के नर तथा दशी सूकरी के संयोग से विकसित की है। यह आदिवासी क्षेत्रों के वातावरण में पालने के लिए विशेष उपयुक्त हैं। इसका रंग काला तथा एक वर्ष में औसत शारीरिक वजन 65 किलोग्राम के लगभग होता है। ग्रामीण वातावरण में नई प्रजाति दशी की तुलना में आर्थिक दृष्टिकोण से चार से पाँच गुणा अधिक लाभकारी है।
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दिन में ही सूकर से प्रसव

गर्भ विज्ञान विभाग, राँची पशुचिकित्सा महाविद्यालय ने सूकर में ऐच्छिक प्रसव के लिए एक नई तकनीक विकसित की है, जिसे भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद ने मान्यता प्रदान की हैं इसमें कुछ हारमोन के प्रयोग से एक निर्धारित समय में प्रसव कराया जा सकता है। दिन में प्रसव होने से सूकर के बच्चों में मृत्यु दर काफी कम हो जाती है, जिससे सूकर पालकों को काफी फायदा हुआ है।

सूकर की आहार प्रणाली

सूकरों का आहार जन्म के एक पखवारे बाद से शुरू ही जाता है। माँ के दूध के साथ-साथ छौनी (पिगलेट) को सूखा ठोस आहार दिया जाता है, जिसे क्रिप राशन कहते हैं। दो महीने के बाद बढ़ते हुए सूकरों को ग्रोअर राशन एवं वयस्क सूकरों को फिनिशर राशन दिया जाता है। अलग-अलग किस्म के राशन को तैयार करने के लिए निम्नलिखित दाना मिश्रण का इस्तेमाल करें:

  क्रिप राशन ग्रोअर राशन फिनिशर राशन
मकई 60 भाग 64 भाग 60 भाग
बादाम खली 20 भाग 15 भाग 10 भाग
चोकर 10 भाग 12.5 भाग 24.5 भाग
मछली चूर्ण 8 भाग 6 भाग 3 भाग
लवण मिश्रण 1.5 भाग 2.5 भाग 2.5 भाग
नमक 0.5 भाग
कुल 100 भाग 100 भाग 100 भाग
  रोविमिक्स रोभिवी और रोविमिक्स रोविमिक्स
  200 ग्राम/ 100 किलो दाना मिश्रण 20 ग्राम/ 100 किलो दाना मिश्रण 10 ग्राम/ 100 किलो दाना मिश्रण

 

दैनिक आहार की मात्रा

(1)ग्रोअर पिग (वजन 12 से 25 किलो तक) : प्रतिदिन शरीर वजन का 6 प्रतिशत अथवा 1 से 1.5 किग्रा. दाना मिश्रण। (2) ग्रोअर पिग (26 से 45 किलो तक): प्रतिदिन शरीर वजन का 4 प्रतिशत अथवा 1.5 से 2.0 किलो दाना मिश्रण। (3) फिनिशर पिग: 2.5 किलो प्रतिदिन दाना मिश्रण। (4) प्रजनन हेतु नर सूकर: 3.0 किलो। (5) गाभिन सूकरी: 3.0 किलो। (6) दुधारू सूकरी 3.0 किलो और दूध पीने वाले प्रति बच्चे 200 ग्राम की दर से अतिरिक्त दाना मिश्रण। अधिकतम 5.0 किलो।

दाना मिश्रण को सुबह और अपराह्न में दो बराबर हिस्से में बाँट कर खिलायें।

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