बर्ड फ्लूः कारण, लक्षण एवं बचाव

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BIRD FLU
BIRD FLU:cause,symptoms & prevention

बर्ड फ्लूः कारण, लक्षण एवं बचाव

डॉ0 राकेश कुमार सिंह, डॉ0 नरेश चन्द्र एवं डॉ0 हर्षित वर्मा

पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान महाविद्यालय,सरदार वल्लभभाई पटेल कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्विद्यालय, मेरठ, उत्तर प्रदेश

बर्ड फ्लू  या एवियन इंफ्लुएंजा एक विषाणु जनित संक्रामक रोग है । यह विषाणु जिसे एवियन इंफ्लुएंजा ए या टाइप ए विषाणु कहते हैं । आम तौर पर यह पक्षियों में पाया जाता है लेकिन कभी कभी मानव सहित अन्य कई स्तनधारियो को भी संक्रमित कर सकता है। भारत में यह विषाणु मुख्यतः बंगला देश से सटे असम व पश्चिम बंगाल मे ज्यादातर पाया जाता  है और हर छः महीने के अंतराल पर इसके पुनः पाये जाने की खबर आती रहती है । अब तो देश के हर कोनो से इसके होने की यदा कदा पुष्टि होती रहती है ।  विश्व मे सर्वप्रथम 1878 में इटली मे एक पक्षी में इस बीमारी के होने की पुष्टि हुयी थी। वर्तमान में बर्ड फ्लू का यह विषाणु इंफ्लुएंजा ए का एक उप प्रकार एच5एन1 प्रकृति का है जो सर्वप्रथम 1997 में हाँग काँग मे पाया गया था । भारत में करीब 14 साल पहले 2006 में पहली बार बर्ड फ्लू ने दस्तक दी थी । तब से अब तक 30 से भी ज्यादा बार बर्ड फ्लू के मामले सामने आ चुके है । हमारे देश में अब तक इसके प्रसार को सीमित रखने के लिए लाखो पक्षियो को भी मारा जा चुका है । इस बार साल 2021 के आगाज में ही बर्ड फ्लू देश के अलग अलग हिस्सो मे फैलने लगा है ।

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विषाणु एच5एन1 के बारे में चिंता का विषय यह है कि यह लगातार बहुत तेज गति से फैलता है और कभी भी महामारी का रूप ले सकता है । दुनिया भर कि सरकारें इस समस्या से निपटने के लिए अरबों डालर खर्च कर रहीं है । यह खर्च मुख्यतः एच5एन1 के अध्ययन, टीकों कि खोज, फ्लू प्रतिरोधी दवाओ के उत्पादन व भंडारण, महामारी से निपटने के उपायो का अभ्यास आयोजित करने हेतु है ।

होस्ट एवं प्रभावित स्पीशीजः

प्राकृतिक होस्ट: वॉटर फाउल (जल मुर्गी )

अन्य प्रभावित स्पीशीज ( टर्की, बटेर, बत्तख, गीज ), सूकर , अश्व एवं मानव इत्यादि ।

रोग संचरण के माध्यम: यह रोग मुख्यतः पक्षियो के बीट, सांस के हवा (ऐरोसोल ) एवं मुंह से एक दूसरे जीवो में फैलता है । विषाणु के पक्षी में प्रवेश करने के कुछ घंटे से 6 दिन के अंदर पक्षी बीमार पड़ जाता है । यह अवधि विषाणु कि प्रकृति , मात्रा , प्रवेश का मार्ग तथा पक्षी के स्वस्थ्य पर निर्भर करता है ।

पक्षियो में रोग का प्रसार: यह रोग मुख्यतः पक्षियो की आँख , श्वास नलिका , बीट  के संपर्क में आने से फैलता है । संक्रमित पक्षियो व कुक्कुट प्रक्षेत्र के प्रयोग में आने वाली समस्त सामग्रियों के संपर्क में आने से यह रोग फैलता है । विदेशी , प्रवासी व जंगली पक्षीयों द्वारा दूसरे देश मे फैली यह बीमारी हमारे देश मे आ जाती है।

पक्षियो मे मुख्य लक्षणः 

  1. पक्षी को ज्वर आना ।
  2. पैरो तथा कलगी का बैगनी या लाल होना ।
  3. पक्षियों के गर्दन व आँखों के निचले हिस्से पर सूजन का आना ।
  4. हरे या लाल रंग की बीट होना ।
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मानव में मुख्य लक्षण

  1. सर्दी , जुकाम व खासी का होना ।
  2. गले में खराश , मांस पेशियो मे सूजन , एवं दर्द का होना ।
  3. सांस लेने मे तकलीफ का होना ।
  4. यकृत , गुर्दा व फेफड़ो का कार्य बंद होना ।

मृत पक्षियो मे लक्षण:

  1. सांस की नली में फाइब्रिनस द्रव का भरना ।
  2. पैरो का बैगनी तथ कलगी का लाल होना ।
  3. यकृत, किडनी व गुर्दे पर नेक्रोटिक फोकाई का पाया जाना ।

संदेहास्पद या रोग के आउटब्रेक की स्थिति में किसी भी प्रकार का शव विक्षेदन न करते हुये इसे सील बंद कर कोल्ड चेन में रखकर डिजीज लैबोरेटरी में भेजा जाना चाहिए ।

पछियों में रोग से बचाव हेतु सुझाव:

  1. पोल्ट्री फार्म को पक्षी अभ्यारण, जलाशय व झील के पास नही होना चाहिए ।
  2. पोल्ट्री फार्म के आस पास सूकर पालन ना करें ।
  3. फार्म के आस पास साफ सफाई रखें तथा कूड़ा कर्कट व गंदगी न इकठ्ठा होने दे ।
  4. मृत पक्षियो का निस्तारण गड्ढे में दबाकर किया जाये।
  5. नियमित रूप से फार्म का लिटर बदलते रहें तथा समय समय पर (लगभग 15 दिन पश्चात ) विसंक्रमण या फूमिगेशन की कार्यवाही करते रहें ।

बर्ड फ्लू से हम अपना बचाव कैसे करें:

  1. संक्रमित पक्षी, पशु या सामानो के संपर्क मे आने से बचें ।
  2. संक्रमित पक्षी को अपनी फूड चेन में आने से रोके ।
  3. कच्चे या अधपके मांस का सेवन न करे ।
  4. कच्चे या अधपके अंडे न खायें, यदि खाना है तो उसे भली प्रकार से उबाल कर खाये।
  5. पक्षियों मे इस रोग के लक्षण दिखाई दें तो नजदीक के पशुचिकित्सालय को सूचित करें।
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विदेशी व प्रवासी पक्षीयों का झुण्ड

 

बर्ड फ्लू संक्रमित मृत पक्षियाँ

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