नवजात बछड़ों की मुख्य बीमारियाँ व रोकथाम
स्वीटी1, प्रदीप कुमार2
1पशु शरीर क्रिया एवं जीव रसायन विभाग, लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विशवविद्यालय, हिसार, हरियाणा,
2पशु औषधि विज्ञान विभाग, लाला लाजपत राय पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञान विशवविद्यालय, हिसार, हरियाणा
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नवजात बछड़ों का बीमारियों से बचाव करना बहुत आवश्यक है क्योंकि छोटी उम्र के बच्चों में कई बीमारियाँ उनकी मृत्यु का कारण बनकर पशुपालक को आर्थिक हानि पहुँचाती है। नवजात बछड़ों की प्रमुख बीमारियां निम्नलिखित है :
अतिसार:
छोटे बच्चों में दस्त उनकी मृत्यु का एक प्रमुख कारण है। बच्चों में दस्त लगने के अनेक कारण हो सकते हैं जिनमें अधिक मात्रा में दूध पी जाना, पेट में संक्रमण होना, पेट में कीड़े होना आदि शामिल हैं। बच्चे को दूध उचित मात्रा में पिलाना चाहिए। अधिक दूध पिलाने से बच्चा उसे हज़म नहीं कर पाता और वह सफेद अतिसार का शिकार हो जाता है। कई बार बच्चा खूंटे से स्वयं खुलकर माँ का दूध अधिक पी जाता है और उसे दस्त लग जाते हैं। ऐसी अवस्था में बच्चे को एंटीबायोटिक्स अथवा कई अन्य दवा देने की आवश्यकता पड़ती है। बच्चे के शरीर में पानी की कमी हो जाने पर ओ.आर.एस. का घोल अथवा इंजेक्शन द्वारा डेक्ट्रोज-सैलाइन दिया जाता है। कई बच्चों में कोक्सीडियोसिस से खूनी दस्त अथवा पेचिस लग जाते हैं जिसका उपचार कोक्सीडियोस्टेट दवा से किया जाता है।
पेट में कीड़े हो जाना :
प्राय: गाय अथवा भैंस के बच्चों के पेट में कीड़े हो जाते हैं जिससे वे काफी कमजोर हो जाते हैं। पेट के कीड़ों के उपचार के लिए पिपराजीन दवा का प्रयोग सर्वोतम हैं। गर्भावस्था की अंतिम अवधि में गाय या भैंस को पेट में कीड़े मारने की दवा देने से बच्चों में जन्म के समय पेट में कीड़े नहीं होते। बच्चों को लगभग 6 माह की आयु होने तक हर डेढ़ -दो महीनों के बाद नियमित रूप से पेट के कीड़े मारने कई दवा (पिपरिजिन लिक्किड अथवा गोली) अवश्य देनी चाहिए।
नाभि का सडऩा:
कई बार नवजात नवजात बछड़ों की नाभि में संक्रमण हो जाता है जिससे उसकी नाभि सूज जाती है। कभी-कभी तो मक्खियों के बैठने से उसमें कीड़े (मेगिट्स) भी हो जाते हैं। इस बीमारी के होने पर नजदीकी पशु चिकित्सालय से इसका ठीक प्रकार से ईलाज कराना चाहिए अन्यथा कई और जटिलतायें उत्पन्न होकर मृत्यु होने का खतरा रहता है। बच्चे के पैदा होने के बाद, उसकी नाभि को उचित स्थान से काट कर उसकी नियमित रूप से एंटीसेप्टिक ड्रेसिंग करने तथा इसे साफ स्थान पर रखने से इस बीमारी को रोका जा सकता है।
निमोनिया:
बच्चों का यदि खासतौर पर सर्दियों में पूरा ध्यान ना रखा जाए तो उसको निमोनिया रोग होने की संभावना हो जाती है। इस बीमारी में बच्चे को ज्वर के साथ खांसी तथा सांस लेने में तकलीफ हो जाती है तथा वह दूध पीना बंद कर देता है। यदि समय पर इसका इलाज ना करवाया जाय तो इससे बच्चे की मृत्यु भी हो जाती है। एंटीबायोटिक अथवा अन्य दवाईयों के उचित प्रयोग से इस बीमारी को ठीक किया जा सकता है।
बछड़ों में टायफाइड:
यह भयंकर तथा छूतदार रोग एक बैक्टीरिया से फैलता है। इसमें पशु को तेज़ बुखार तथा खूनी दस्त लग जाते हैं। इलाज के अभाव में मृत्यु दर काफी अधिक हो सकती है। इस बीमारी में एंटीबायोटिक्स अथवा कई अन्य दवा देने की आवश्यकता पड़ती है। प्रभावित पशु को अन्य स्वस्थ पशुओं से अलग रखकर उसका उपचार करना चाहिए। पशुशाला की यथोचित सफाई रख कर तथा बछड़े / बछडिय़ों की उचित देखभाल द्वारा इस बीमारी को नियंत्रित किया जा सकता है।https://fyi.extension.wisc.edu/dairy/calf-diseases-prevention/