लाभदायक डेयरी  पालन के लिए साइलेज ( silage )  कैसे बनायें

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लाभदायक डेयरी  पालन के लिए साइलेज ( silage )  कैसे बनायें

 

अच्छी गुणवत्ता वाले दूध का उत्पादन करने के लिए हमें पूरे वर्ष अच्छी गुणवत्ता वाले फ़ीड और चारे की आवश्यकता होती है, लेकिन ज्यादातर बार किसानों को उपलब्धता की कमी के कारण पशुओं को अच्छी गुणवत्ता वाला चारा उपलब्ध कराना मुश्किल हो जाता है.

उदाहरण के लिए जब आप हरी मक्का की खेती करते हैं, तो यह पोषक अवस्था में केवल 10 से 20 दिनों तक चलेगी और इसलिए पूरे साल हरा मक्का खिलाना मुश्किल हो जाता है, लेकिन साइलेज के साथ हम पौष्टिक मक्का और चारा अच्छी हालत में प्रतिदिन पशुओं को दे सकते हैं और पूरे वर्षभर खिला सकते हैं.

साइलेज का उपयोग करने से किसान के लिए श्रम लागत कम हो जाती है, क्योंकि हमें रोजाना खेतों में कटाई और परिवहन के लिए जाने की जरूरत नहीं होती. यह न केवल हमारे लिए श्रम समस्याओं को कम करता है, बल्कि श्रम उपलब्धता समस्याओं से निपटने में भी हमारी मदद करता है.

हमें अपने डेरी फार्म में चारे के लिए दैनिक काम करने के बजाय केवल 10 -12 दिनों के लिए काम करना है और पूरे वर्ष के लिए चारे को संरक्षित कर सकते हैं. साइलेज का उपयोग करने से हमें  अपने डेयरी फार्म के भविष्य को सुरक्षित करने में मदद मिलती है, क्योंकि हमने एक साल तक चारे की आपूर्ति का भण्डार बनाया होगा और हर दिन चारे के स्रोत खोजने की चुनौतियों का सामना नहीं करना पड़ेगा.

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि साइलेज का उपयोग करके पूरे वर्ष चारे की कीमत को बनाए रखकर दूध उत्पादन की लागत को कम किया जा सकता है, क्योंकि यह तब तैयार किया जाता है जब हरे चारे की कीमत सबसे कम होती है.

 

साइलेज बनाना

हम यह भली-भांति जानते हैं कि दुग्ध-उत्पादन के लिए गाय एवं भैसों को वर्ष भर बराबर हरे चारे उपलब्ध होने चाहिए, परंतु हमारे देश की जलवायु ऐसी है कि हम गर्मियों एवं जाड़े के दिनों में पूर्ण हरे चारे उगाने में असमर्थ होते हैं। अतः पशुपालक इस ओर ध्यान प्रारम्भ से ही देते आए हैं।

साइलेज बनाकर हरे चारे को सुरक्षित रखने का ढंग सर्वप्रथम कभी गत शताब्दी के आरम्भ में केंद्रीय यूरोप से आरम्भ हुआ। हमारे देश में साइलेज बनाना आधुनिक युग में ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने प्रारंभ किया।

वह विधि, जिसके द्वारा हरे चारे अपनी रसीली अवस्था में गड्ढे में दबाकर सुरक्षित रखे जाएं, साइलोइंग या इनसाइलिंग ( Siloing or ensiling ) कहलाती है और इस प्रकार जो वस्तु बनकर तैयार होती है उसे साइलेज या इनसाइलेज कहते हैं।

अथवा

वह विधि, जिसकी सहायता से सभी प्रकार के हरे चारों को उनकी रसीली अवस्था में ही सुरक्षित रखा जाता है उसे साइलेज अथवा इनसाइलिंग कहते हैं।

साइलेज बनाकर चारे को सुरक्षित रखने का ढंग, घास को सुखाकर रखने से अधिक अच्छा है। खराब मौसम में भी साइलेज बनाई जा सकती है। कड़े तनेदार पौधों से, जिनसे निम्न कोटि की सूखी घास बनती है, उनसे अच्छी साइलेज बनाई जा सकती है।

साइलेज की परिभाषा

साइलेज वह दबा हुआ चारा है, जिसमें हरे चारे के सभी तत्व मौजूद हो, इनमें किसी प्रकार की सड़न अथवा बुरी गन्ध न उत्पन्न हुई हो तथा चारों में रसीलापन भी हो। साइलेज बनाने की इस क्रिया को साइलोइंग अथवा इनसाइलिंग कहते हैं

साइलेज बनाने के लिए कुछ आवश्यक बातें

  1. जिनफसलोंमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा अधिक हो, जैसे – ज्वार, मक्का व जई, उनसे उत्तम किस्म की साइलेज बनाई जा सकती है।
  2. जिनफसलों से साइलेज बनानाहो उनमें शुष्क पदार्थ 30-40% से अधिक नहीं होना चाहिए।
  3. साइलोमें चारा अच्छी प्रकार से दबाया जा सके, इसके लिए आवश्यक है कि चारे की कुट्टी काट ली जाए।
  4. मिट्टी मेंसाइलोकी दीवारों व फर्श पर पुआल या सूखे भूसे की पर्त बिछा देनी चाहिए।
  5. साइलोमें चारा भरने में कम से कम समय लगाना चाहिए।
  6. साइलो भरते समय कटे हुएचारेको पूरे क्षेत्र में पतली व एक समान पर्तों में फैलाकर अच्छी प्रकार से दबा-दबाकर भरना चाहिए जिससे हवा बाहर निकल आए।
  7. साइलोभूमि के धरातल से काफी ऊपर तक भरना चाहिए जिससे बाद में किण्वन क्रिया के बाद बैठने पर भी भूमि धरातल से ऊपर ही रहे।
  8. साइलोभरने के बाद उस पर भूसे की मोटी तह या पॉलीथीन की चादर बिछाकर ऊपर से 30 सेंमी. ऊपर से मिट्टी की मोटी परत डालकर फिर इसके ऊपर लीप देते हैं।
  9. साइलोमें कहीं भी छेद नहीं होना चाहिए जिससे वर्षा का पानी अंदर न जा सके।
  10. फसलोंको साइलेज बनाने के लिए फूल आने की अवस्था में ही काट लेना चाहिए।
  11. साइलेजबनाने वाले चारे के तने काफी ठोस होने चाहिए।

साइलेज बनाने के लिए उपयोगी फसलें

साइलेज बनाने के लिए चारों वाली फसलों की आवश्यकता होती है। साइलेज बनाने वाले चारे में काफी मात्रा में कार्बोहाइड्रेट पथा नमी होना आवश्यक है। हमारे यहां मक्का एवं ज्वार साइलेज बनाने के लिए सर्वोत्तम चारे हैं। फलीदार फसलों से भी साइलेज बनाई जाती है। परन्तु इनमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा कम होती है, अतः ऊपर से शीरा अथवा खनिज ( Mineral acid ) अम्ल छिड़कना पड़ता है।

कार्बोहाइड्रेट की कमी पूरा करने से, फलीदार फसलों से भी अच्छी किस्म की साइलेज बन जाती है। इसके अतिरिक्त बाजरा, लोबिया, पुआल, लूसर्न, बरसीम, जई, घास-पात, अगौले इत्यादि हरे चारे से भी साइलेज बनाई जाती है। साइलेज बनाने के लिए फसलों को फूल आते समय ही काट लेना चाहिए क्योंकि इस समय इनमें पोषक तत्त्व अधिक मात्रा में होते हैं।

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सुबह ओस छूटने के बाद चारे को काटकर, दोपहर तक के लिये खेत पर फैलाकर छोड़ देते हैं, जिससे कि कुछ नमी इसमें से सूख जाती है। दोपहर के बाद इस चारे के बण्डल बांधकर एक क्रम से लगा लिए जाते हैं।

साइलेज बनाने की विधियां अथवा साइलेज बनाने की निर्माण विधि

साइलेज गड्ढों में बनाया जाता है उन्हें साइलो कहते हैं। जमीन के नीचे बनाए गये साइलो अच्छे रहते हैं और आसानी से बन जाते हैं। जमीन के नीचे साइलो को गोल बनाऐं  तो अच्छा रहेगा।

  1. साइलेजबनाने के लिए एक अच्छा व सूखा स्थान छाँट ले जो पशुशाला के पास हो, लेकिन यह स्थान पशुशाला के ज्यादा पास भी न हो नहीं तो साइलेज की बदबू दूध में आ जाएगी।
  2. शुरू में जमीन के तल में कुछघासफूंस बिछा दें और कुछ आसपास लगा दें। जिससे चारे में मिट्टी नहीं लगेगी।
  3. एक गोल गड्ढा खोदें जो 8 फुट से ज्यादा गहरा न हो, उसका घेरा इस पर निर्भर करता है कि आप कितनासाइलेजबनाते हैं।
  4. गड्ढे में रखने से पहलेचारेकी कुटी बना ले।
  5. कुटी को परतों में एक के ऊपर एक करके बिछाते जाएं। हर परत को खूँदकर अच्छी तरह दबा दें ताकि बीच में हवा न रहे। उसे तब तक भरें जब तक गड्ढे के मुंह से दो-तीन फुट ऊंची पढ़ते न चली जाए।
  6. ढेर को भूसे से ढक दें और बाद में मिट्टी पोत दें।
  7. चाराजैसे-जैसे बैठता जाएगा परतों में दरार पड़ती जाएगी, इन दरारों को मिट्टी से बंद करते जाएं।
  8. अगरचारागड्ढा के मुंह के नीचे तक बैठ जाए तो गड्ढे के मुंह से कुछ ऊंचाई तक मिट्टी भर देनी चाहिए तथा इसे पलस्तर करके ढक दें।
  9. साइलेज3 महीने में मवेशियों को खिलाने लायक तैयार हो जाता है तो उसके बाद गड्ढे को कभी भी खोल सकते हैं।
  10. अपने मवेशियों को खिलाने के लिए आपको जितनेसाइलेजकी जरूरत पड़े उतना ही गड्ढे में से बाहर निकाले।
  11. अगरसाइलेजअच्छा तैयार हुआ है तो उसका रंग चमकदार हरा होगा। अगर साइलेज बिगड़ गया होगा तो उसका रंग भूरा और मटमैला हो जाएगा। अच्छा बना साइलेज प्रति घन फुट 15 से 18 किलो तक वजन का होगा।

साइलो Silo किसे कहते हैं

जिन गड्ढों, नालियों अथवा बुर्ज में हरा चारा दबाकर भरा जाता है उन्हें साइलो Silo कहते हैं।

साइलो Silo निम्न प्रकार के होते हैं –

  1. साइलो बुर्ज ( silo tower ) – इसे जमीन के ऊपर बनाते हैं।
  2. साइलो खाई ( silo trench ) – इसे भूमि के नीचे बनाते हैं।
  3. साइलो गड्ढे ( silo pits ) – इसको गोल या चौकोर गड्ढों में बनाया जाता है।

1.साइलो बुर्ज ( silo tower ) – इसमें जमीन के ऊपर बुर्ज लकड़ी, ईट, सीमेन्ट की बनाई जाती है। इसका आकार पशुओं की संख्या के ऊपर निर्भर करता है। इसको बनाते समय यह विशेष रुप से ध्यान रखना चाहिए कि इसमें हवा अन्दर न जाए, क्योंकि इसमें जगह-जगह दरवाजे बनाए जाते हैं तथा ऊपर से छप्पर डाल दिया जाता है। जिन स्थानों पर पानी कम गहराई पर होता है, वहां परबुर्जका ही प्रयोग करना चाहिए।

 

  1. साइलो खाई ( silo trench ) – यह जमीन के अंदर बनाई जाती है। इसकी लंबाई, चौड़ाई व गहराई पशुओं की संख्या के आधार पर निर्भर होती है। इसकी गहराई पानी के तल पर निर्भर करती है। इसमें एक सिरे से दूसरे सिरे तक ढाल भी दी जाती है।

 

  1. साइलो गड्ढे ( silo pits ) – साइलोबनाने के कई तरीके हैं, किन्तु पर्वतीय ग्रामीण क्षेत्रों और लघु किसानों के लिए इसे गड्ढे के रूप में तैयार करना सबसे उपयुक्त है। 2.44 मी. ( 8 फुट ) व्यास के 3.66 मी. ( 12 फुट ) गहरे गड्ढे से चार डेरी पशुओं के लिए 3 माह का संरक्षितचारा मिल जाता है। गड्ढे की दीवारें धरातल से थोड़ी ऊपर उठी होनी चाहिए जिससे कि वर्षा का जल गड्ढे में प्रवेश न कर सके। इसके नजदीक पशुशाला भी हो तो पशुपालक को लाभकारी होगा।

 

साइलेज बनाने वाले गड्ढों में निम्नलिखित गुण वांछनीय है –

 

  1. गड्ढे की दीवारें हर तरफ से हवा बंद होनी चाहिए, जिससे कि चारे में हवा न पहुंचकरसाइलेजको नष्ट न कर पाए।
  2. दीवारें लम्बवत् तथा चिकनी होनी चाहिए।
  3. दीवारें काफी सुदृढ़ होनी चाहिए, ताकि वे किण्वन ( Fermentation ) के समय पैदा हुए दबाव को भली-भांति सहन कर सकें।
  4. गड्ढे की ऊंचाई उसके व्यास से दुगुनी होनी चाहिए, जिससेसाइलेजके ऊपर से हवा निकलने के लिए काफी दबाव पड सकें।

 

गड्ढे को भरना Filling of silo pit

गड्ढे को चारे से भरते समय इस बात का विशेष ध्यान रखना चाहिए कि चारा खूब दबा दबाकर भरा जाए, जिससे गड्ढे में हवा न रहने पाए। अतः जो चारा भरना हो उसको गड्ढे में सतह में लगाकर पैरों से खूब दबाते जाते हैं। इस प्रकार चारे की सतह लगाकर तथा खूब दबाकर कई बार में गड्ढे को पूरा भर लेते हैं। जब काफी मात्रा में चारा काटकर साइलेज बनाना होता है, तो कुट्टी काटने वाली मशीन को गड्ढे के ऊपर एक किनारे पर लगा देते हैं ताकि चारा कट-कट कर स्वयं ही गड्ढे में गिर जाए।

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ऐसे गड्ढे एक दिन में नहीं भरे जा सकते, बल्कि इनको भरने में कई दिन लग जाते हैं। नित्य भरे हुए चारे की सतह को तिरपाल से ढक देते हैं, ताकि यह सूख न जाए। ऐसे गड्ढे को विशेषकर धूप तथा वर्षा से बचाना पड़ता है। अतः गड्ढा भरते समय यदि मौसम खराब जान पड़े तो उस समय उस पर अस्थाई छप्पर या टीन डालकर छाया कर लेनी चाहिए। कभी-कभी वर्षा का पानी गड्ढा भरने में रुकावट डालता है, जैसा कि अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में देखा गया है। ऐसे समय में पानी से भीगा हुआ चारा भूसे की एक के बाद एक तह लगाकर भरते हैं, जब तक कि मौसम साफ न हो जाए।

गड्ढे का बहुत धीरे-धीरे बरना बहुत हानिकारक है। यदि गड्ढा शीघ्र भरा जाता है तो, चारा भली-भांति दब नहीं पाता और उसमें हवा रह जाती है, जो साइलेज को खराब कर देती है। गड्ढे को अधिक धीरे-धीरे भरने से चारा सूखने का भय रहता है, जिसके कारण अच्छी साइलेज नहीं बन पाती। गड्ढे को इतना भरना चाहिए कि उसमें दबने के बाद चारा पृथ्वी के धरातल से कम से कम 1/2 मीटर ऊंचा रहे।

अतः जब गड्ढा भर जाए तो उसके ऊपर 1 मीटर की ऊंचाई तक चारा भरकर ऊपर से घास-फूस या पुआल की तह बिछाकर, अंत में मिट्टी और पत्थरों से इसको ढक देते हैं। जब यह पूर्णतया दबकर नीचा हो जाता है, तो ऊपर से गीली मिट्टी और गोबर का लेप कर दिया जाता है, ताकि हवा अन्दर प्रवेश ना कर सके।

गड्ढे को खोलना 

लगभग 50 से 80 दिन गड्ढे में बंद रखने के पश्चात यह सारा अचार का रूप धारण कर लेता है, जो हरे चारे से बिल्कुल भिन्न होता है। इसी को साइलेज कहते हैं। जब साइलेज बनकर तैयार हो जाए तो इस गड्ढे से लगभग 5-10 सेंमी. नित्य निकालकर पशुओं को खिलाना चाहिए। पूरा गड्ढा न खोलकर, उससे एक किनारे से ही साइलेज निकालनी चाहिए। ऐसा न करने से गड्ढे की साइलेज के सड़ने-गलने का भय रहता है।

साइलेज का वर्गीकरण अथवा साइलेज की किस्में ( Classification of silage )

अ. अमेरिकन डेयरी एसोसियेशन द्वारा साइलेज का निम्न   प्रकार से वर्गीकरण किया गया है –

  1. बहुत अच्छी साइलेज ( very good silage ) –वहसाइलेज जिसमें स्पष्ट अम्ल की गंध तथा स्वाद हो । फफूंदी व ब्युटायरिक अम्ल बिल्कुल न हो, इसका पी.एच. 3.4 से 4.2 हो।
  2. अच्छी साइलेज ( good silage ) – अम्लत्व का स्वाद तथा महक मामूली पी.एच. 4.2 से 4.5, अमोनिया नाइट्रोजन 10 से 15% ।
  3. कुछ अच्छी साइलेज ( Fair silage ) –थोड़ा ब्युटायरिक अम्ल, पी.एच. 4.5 से 4.8, अमोनिया नाइट्रोजन 15 से 20% ।
  4. खराब साइलेज ( bad silage ) –अधिक ब्युटायरिक अम्ल के कारण बुरी महक ,पी. एच. 4.8 से अधिक तथा अमोनिया नाइट्रोजन 20% से ऊपर।

ब. स्वाद के आधार पर साइलेज का वर्गीकरण निम्न प्रकार किया होता है –

  1. मीठी साइलेज –इसमें दुग्धाम्ल की मात्रा अधिक तथा ऐसिटिक अम्ल की मात्रा कम होती है ।
  2. अम्लीय साइलेज –इसमें ऐसीटिक अम्ल की मात्रा अधिक एवं दुग्धाम्ल की मात्रा कम होती है।

स. रंग के आधार पर साइलेज का वर्गीकरण निम्न प्रकार  से होता हैं –

  1. बादामी गहरी मीठी साइलेज ( sweet, dark, brown silage )
  2. अम्लीय कम बादामी रंग की साइलेज ( Acid, light silage or yellow brown silage )
  3. हरी साइलेज ( green silage )
  4. अधिक खट्टी साइलेज ( sour silage )
  5. फफूंदीयुक्त साइलेज ( musty silage )
  6. बादामी गहरी मीठी साइलेज ( sweet, dark, brown silage )

 

यदि चारे को गड्ढे में ठीक प्रकार से नहीं भरा जाता है तो उसमें उपस्थित वायु के कारण किण्वन होने पर तापक्रम अधिक बढ़ जाता है, जिसके फलस्वरूप ऐसी साइलेज बन जाती है। इसमें ऑक्सीकरण होने के कारण आवश्यक तत्त्वों का ह्रास हो जाता है। इस प्रकार की साइलेज में प्रोटीन की पाचकता भी कम हो जाती है। अतः यह अच्छी साइलेज नहीं मानी जाती।

  1. अम्लीय कम बादामी रंग की साइलेज ( Acid, light silage or yellow brown silage )

यह उन कच्ची फसलों से तैयार होती है, जिनमें शुष्क पदार्थ की मात्रा 30% होती है। इसमें तापक्रम 100° फारेनहाइट से अधिक नहीं होने पाता। चूंकि पशु इसको बड़े चाव से खाते हैं, अतः यह सर्वोत्तम साइलेज मानी जाती है।

  1. हरी साइलेज ( green silage )

इस प्रकार की साइलेज बनाने में तापक्रम 90 डिग्री फारेनहाइट से अधिक नहीं होना चाहिए। इनमें कैरोटीन की मात्रा भी काफी होती है। चूंकि तापक्रम कम रखा जाता है, अतः आवश्यक तत्व भी अधिक नष्ट नहीं हो पाते। इसमें पशुओं को लुभाने वाली महक आती है, जिससे पशु इसे खूब चाव से खाते हैं।

  1. अधिक खट्टी साइलेज ( sour silage )

जब अधपकी हरी फसलें साइलेज बनाने के लिए प्रयुक्त होती हैं, तो वे गड्ढे की तली में दबकर बैठ जाती हैं तथा बहुत कम हवा अपने में शोषित कर पाती हैं। अतः किण्वन भली-भांति न होकर तापक्रम भी कम रह जाता है। इस प्रकार बनी हुई साइलेज अधूरी रह जाती है और खाने में इसका स्वाद खट्टा होता है।

  1. फफूंदीयुक्त साइलेज ( musty silage )
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इस तरह का साइलेज साइलो की सबसे ऊपरी सतह पर साधारणतया पाया जाता है, जब साइलेज को अच्छी तरह से नहीं दबाया जाता है तो अधिक हवा के कारण साधारण किण्वन नहीं हो पाता है और फफूंदी वाला हो जाता है तथा इसमें एक प्रकार की अमोनिया की गंध उत्पन्न हो जाती है, जिससे पशुओं के लिए इस प्रकार का चारा अस्वादिष्ट हो जाता है।

भारत में साइलेज के कम प्रचलन के कारण

  1. अनेक ग्रामीण क्षेत्रों में किसानसाइलेजका नाम तक नहीं जानते हैं तो साइलेज बनाएंगे क्या।
  2. जो किसानसाइलेजके बारे में जानते हैं तो वे किसान सीमित साधनों के कारण साइलेज नहीं बना पाते हैं।
  3. किसान अशिक्षित होते हैं, अतः उन्हेंसाइलेजबनाने का ज्ञान नहीं है।
  4. किसानचारेको खराब होने का जोखिम नहीं उठाना चाहता है।
  5. मौसम की आवश्यकता के कारण भी किसानसाइलेजनहीं बनाता है।
  6. हमारे देश में हरे चारों की उपलब्धता भी सीमित मात्रा में ही होती है।
  7. किसानों को अभी तक पशुओं कोसाइलेजखिलाने की आदत नहीं बन पायी है।
  8. साइलेजके प्रयोग के प्रकार के लिए पशुपालन विभाग के प्रयास नगण्य रहे हैं।

साइलेज बनाने से लाभ Advantages of silage

  1. हरे चारेके अभाव में साइलेज से कमी पूरी की जा सकती है तथा खर्चा भी कम होता है।
  2. वर्षा ऋतु में जबहे “बनाना कठिन होता है, तो साइलेज आसानी से बनाई जा सकती है।
  3. साइलेज सूखे चारोंकी अपेक्षा कम स्थान घेरती है। इस प्रकार डेरी फार्म पर स्थान की अधिक बचत होती है।
  4. साइलेजपौस्टिक अवस्था में अधिक समय तक रखा जा सकता है। यह जाड़े के दिनों में तथा चारागाहों के अभाव में पशुओं को खिलाया जा सकता है।
  5. साइलेजकी फसल के साथ-साथ खरपतवारों को भी नियंत्रण किया जा सकता है।
  6. साइलेजके लिए फसल को फूल आने से पहले काट लेने के कारण अगली फसल की तैयारी के लिए समय मिल जाता है।
  7. फसलपकने से पहले काट लेने से उसमें लगने वाले रोग व कीड़ों से सुरक्षा हो जाती है।
  8. साइलेजपशुओं को सालभर खिलाया जा सकता है।
  9. फसलके सड़ने व गलने तथा आग लगने का डर नहीं रहता।
  10. साइलेजअन्य चारों की अपेक्षा अधिक पाचक और पौष्टिक होने के कारण पशुओं की दुग्ध उत्पादन क्षमता बढ़ाता है। इसके साथ ही पशुओं को स्वस्थ भी रखता है।

साइलेज बनाने से हानियां Disadvantages from silage

  1. साइलेजबनाने के लिए तकनीकी ज्ञान की आवश्यकता होती है।
  2. साइलेजखराब हो जाने से धन और श्रम की हानि होती है।
  3. इसमें विटामिन डी” है “की अपेक्षा कम होती है।
  4. साइलेजबनाते समय उसमें कोई कमी आ जाने से उसमें दुर्गंध आने लगती है।
  5. साइलेजबनाने के लिए परिरक्षकों पर पर्याप्त व्यय करना पड़ता है।
  6. साइलेजबनाने के लिए आवश्यक उपकरणों की व्यवस्था करनी पडती है।

7.साइलोपिट के लिए उपयुक्त स्थान की आवश्यकता होती है।

  1. साइलेजमें पानी की अधिकता रह जाने पर इसका भार अधिक हो जाता है।

 

साइलेज बैग,गड्ढों और बंकरों को खोलने के बाद देखभाल की आवश्यकता

  1. साइलेज को निकालते सम यह में साइलेज की एक पूरी परत को बाहर निकालने की आवश्यकता होती है. यदि आप केवल एक तरफ से खुदाई करते हैं, तभी हवा के संपर्क में आने वाले अन्य पक्ष कवक द्वारा संक्रमित हो सकते हैं. यह साइलेज में हानिकारक विषाक्त पदार्थों के निर्माण को जन्म दे सकता है.
  2. जब तक बंकर या गड्ढे का पूरी तरह से उपयोग नहीं हो जाता, तब तक हमें रोजाना साइलेज का उपयोग करना होग. यदि हम उपयोग में अंतराल देते हैं, तो उजागर परतों को कवक या फंगस का विकास होगा, जो साइलेज को नष्ट कर सकते हैं.
  3. खोलने के बाद हमें 60 से 90 दिनों के भीतर सभी साइलेज को बाहर निकालने और उसका उपयोग करने की आवश्यकता है.
  4. प्रतिदिन साइलेज निकालने के बाद हमें बैग, गड्ढे और बंकर को बंद करने और इसे अच्छी तरह से कवर करने की आवश्यकता है.

साइलेज ( silage ) से मिलते-जुलते कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न-उत्तर

प्रश्न 1. अच्छी साइलेज का pH मान कितना होना चाहिए?

उत्तर – अच्छी साइलेज का pH मान 3.5 – 4.2 होना चाहिए।

प्रश्न 2. साइलेज बनाते समय चारे में शुष्क पदार्थ की कितने प्रतिशत मात्रा होनी चाहिए?

उत्तर – साइलेज बनाते समय चारे में शुष्क पदार्थ की 40 प्रतिशत मात्रा होनी चाहिए।

प्रश्न 3. साइलेज में कितने प्रतिशत शुष्क पदार्थ पाया जाता है?

उत्तर – साइलेज में 25 प्रतिशत शुष्क पदार्थ पाया जाता है।

प्रश्न 4. साइलेज बनाने के लिए कौन सी फसल उत्तम होती है?

उत्तर – साइलेज बनाने के लिए ज्वार की फसल उत्तम होती है।

प्रश्न 5. साइलेज बुर्ज का व्यास कितने फीट का रखते हैं?

उत्तर – साइलेज बुर्ज का व्यास 8 – 10 फीट का रखते हैं।

प्रश्न 6. चारा कितने प्रकार का होता है?

उत्तर – चारा दो प्रकार का होता है :-

  • सूखा चारा
  • हरा चारा

साइलेज संबंधित विशेष आर्टिकल पढ़ने के लिए आप निम्न पीडीएफ को डाउनलोड कर सकते हैं:

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