पशुओं में पूयगर्भाशयता रोग
डॉ निनाद शेंबेकर , डॉ मधु स्वामी, डॉ यामिनी वर्मा, डॉ अमिता दुबे
व्याधि विज्ञान विभाग, पशु चिकित्सा एवं पशु पालन महाविद्यालय, जबलपुर ( म . प्र . ) |
भारत विश्व का सबसे बड़ा दुग्ध उत्पादक देश है | दूध उत्पादन पशु की प्रजनन स्थिति पर निर्भर करता है। कई रोग स्थितियां हैं जो दूध उत्पादन में कमी का कारण बनती हैं। पूयगर्भाशयता रोग एक ऐसी स्थिति है जिसमें दूध की पैदावार काफी कम हो जाती है। कई बार यह जानवर के लिए भी घातक हो सकता है।अत: आज हम जानेंगे कि यह रोग क्या है, किससे होता है, इस रोग के लक्षण क्या हैं और यदि यह रोग हो जावे तो इसका निदान, उपचार तथा रोकथाम कैसे संभव है |
पूयगर्भाशयता रोग क्या है – गर्भाशय में मवाद का संचय ही पूयगर्भाशयता रोग है|। गायों को यह रोग होने का खतरा अधिक होता है। यह रोग पशु की प्रजनन स्थिति को प्रभावित करता है। अंतत: दूध उत्पादन को प्रभावित करता है।
कारण:- यह रोग गर्भाशय में जीवाणु संक्रमण के कारण होता है। स्ट्रेप्टोकोकी ,कॉर्नीबैक्टीरिया, ब्रुसेला, ट्राइकोमोनास जैसे जीवाणुओं से यह रोग हो सकता है |
ऐसी कई स्थितियां हैं जिनसे जीवाणु गर्भाशय में प्रवेश कर सकते हैं जैसे कि गर्भपात, कठिन प्रसव, प्लेसेंटा का प्रतिधारण, मेट्राइटिस, एंडोमेट्रैटिस, दोषपूर्ण कृत्रिम गर्भाधान तकनीकों के कारण संदूषण इत्यादि। पूयगर्भाशयता रोग से पहले मेट्राइटिस या एंडोमेट्राइटिस देखा जाता है। यदि एंडोमेट्राइटिस ठीक नहीं होता है , तो यह आगे जाकर पूयगर्भाशयता रोग का कारण बनता है।
लक्षण :-
इस रोग में बुखार , सुस्ती , दूध उत्पादन में कमी , भूख में कमी , असामान्य मद चक्र , गर्भाशय की ग्रीवा खुली होने पर उससे मवाद निकलता हुआ देखा जा सकता है तथा गर्भाशय ग्रीवा बंद होने पर गर्भाशय का आकार बढ़ा हुआ देखने को मिलता है | गर्भाशय की दीवार मोटी हो जाती है।
निदान :-
इस रोग का निदान लक्षणों के आधार पर, रक्त और मूत्र परीक्षण , एक्स-रे , अल्ट्रासाउंड इत्यादि द्वारा किया जा सकता है।
उपचार :-
इस रोग में संक्रमण को रोकने के लिए उचित एंटीबायोटिक दी जा सकती है | इसके अलावा हार्मोनल पद्धति से भी उपचार किया जा सकता है | गंभीर स्थिति में सर्जिकल उपचार पशु चिकित्सक द्वारा किया जा सकता है |
रोकथाम के उपाय :-
1) स्वच्छ और नियंत्रित प्रजनन कार्यक्रम।
2) कुँवारी बछिया केवल उन युवा सांडों के साथ मिलनी चाहिए जो पहले ट्राइकोमोनेसिस के संपर्क में नहीं आए हैं।
3) प्रजनन से पहले शारीरिक परीक्षण।
4) संक्रमित सांड को झुंड से हटा देना चाहिए।
5) प्रशिक्षित तकनीशियन द्वारा कृत्रिम गर्भाधान संदूषण से मुक्त होना चाहिए।
अत: उपर्युक्त बातों को ध्यान में रखकर हमारे पशुपालक भाई अपने पशुओं को पूयगर्भाशयता रोग से बचा सकते हैं तथा पशुओं से नियमित दुग्ध प्राप्त कर आनंद के साथ जीवन व्यतीत कर सकते हैं |
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