व्यवसायिक मुर्गी पालन के सिद्धांत

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व्यवसायिक मुर्गी पालन के सिद्धांत
डॉक्टर दीपक प्रसाद सिन्हा, कुकुट विशेषज्ञ ,पटना ,बिहार

मुर्गियों में टीकाकरण विधि, सावधानियां एवं टीकाकरण तालिका 

कुक्‍कुट पालन व्‍यासाय की सफलता उनकी उचित देखभाल, रहने का स्‍थान, खाद्य व्‍यवस्‍था एवं नियमित स्‍वच्‍छता के साथ ही बिमारियों के रोकथाम पर निभर्र करती है । बीमारियाँ जीवाणु , विषाणु, परजीवी द्वारा होती है इनमें विषाणु जनित रोगो का इलाज दवाइयों से संभव नही होता है एवं टीकाकरण ही बचाव का एकमात्र उपाय होता है। विषाणु जनित रोग प्रमुखत: रानीखेत, गम्‍बोरो, ब्रोंकाइटिस , इसेफेलो माइलाटिस आदि होते है । मुर्गियों में सफल प्रभावी टीकाकरण के लिये आवश्‍यक बातों का ज्ञान होना जरूरी है अन्‍यथा टीकाकरण के बाद भी समूह के पक्षी रोगग्रस्‍त हो जाते है व मृत्‍यु दर बड़ जाती है एवं उत्‍पादन / वृद्धि पर विपरीत प्रभाव पड़ने से काफी नुकसान होता है ।

सावधानियां 

  1. टीका हमेशा विश्‍वसनीय विक्रेता से ही खरीदे । टीका रेफ्रीजरेटर में 2-40से.ग्रे. पर उचित तरीके से रखा रहना चाहिए ।
  2. टीका लेते समय उसमें टूट-फूट , खराब दिखने व निधारित उपयोग की अवधी की जॉच कर ले ।
  3. टीके को हमेशा थर्मस में रखकर लाये यदि लाकर रखा जाना है तो रेफ्रीजरेटर में या थर्मस में 2-40 से.ग्रे. पर रखे। सामान्‍य ताप में टीके की क्षमता गिर जाती है । टीका लगने पर उचित रोग प्रतिरोध क्षमता नही बनती है ।
  4. टीकाकरण के लिए दिये गये निर्देश को भलीभांति पड़ ले एवं उसी अनुसार टीका लगाये ।
  5. टीकाकरण दिन के ठंडे समय में किया जाना चाहिये अर्थात सुबह शाम टीका देना उचित होगा ।
  6. तैयार किये गये टीके को एक ही बार में समूह के सभी पक्षियों में लगाये ।
  7. टीकाकरण में बचे हुये टीके को गड्डे में दबा देना चाहिये । फार्म पर खुला न फेंके ।
  8. आंख नाक से टीका देते समय अतिशीघ्रता न करें एवं टीका चूजों के गले से उतरने पर पक्षीयों को छोड़े ।
  9. टीकाकरण करते समय टीके की शीशी को ठंडे में रखे ।
  10. बिमार पक्षीयों में टीकाकरण न करें
  11. टीकाकरण के समय 1-2 दिन कोई दवाई न दें ।
  12. टीकारण के उपकरण स्‍वच्‍छ रहना चाहिये

टीकाकरण विधि :- 

आंख या नाक से टीकाकरण 

रानीखेत, गम्‍बोरो, ब्रोंकाइटिस के चूजो में किये जाने वाले टीके आंख/नाक द्वारा लगाये जाते है हीमीकृत टीका पाउडर की 100, 200, 500, 1000, 2000 खुराक के टीके उपलब्‍ध है । इसके साथ ही टीका घोलक की शीशी रहती है । इस विधी में इंजेक्‍शन द्वारा टीका घोलक की थोड़ी सी मात्रा लेकर टीका शीशी में मिलाते है एवं धीमें हिलाकर घोल लेते है । अब इस घुले हुए टीके को इंजेक्‍शन द्वारा निकाल घोलक की पूरी शीशी में मिला लेते है । अब इस तैयार टीके को ड्रापर में लेकर चूजों की आंख या नाक में एक बूंद छोड़ते है जो गले से नीचे उतर जाती है ।  टीकाकरण में अतिशीघ्रता न करें । यदि इंजेक्‍शन न हो तो घोलक एवं हीमीकृत पाउडर के ठक्‍कन को खोलकर शीघ्र ही घोलक को पाउडर में छोड़कर मिला लेवे फिर इसे वापस पूरे घोलक में डालकर मिलाये । एवं ड्रापर में लेकर टीकाकरण करें ।

पानी द्वारा टीकाकरण 

सुबह पीने के पानी के बर्तनों को खाली कर स्‍वच्‍छ कर ले । टीका तैयार करने के लिये 35-40 ग्राम दूध पाउडर को एक बड़ी प्‍लास्टिक बाल्‍टी में घोले अब दिये गये घोलक को ऊपर बताये अनुसार टीका पाउडर में मिलाये एवं इसे वापस पूरे घोलक में छोड़कर मिला ले । अब इस तैयार टीके को दूध पाउडर मिले पानी में छोड़े ।  500 पक्षी है तो 500 खुराक की टीका ले । पीने का पानी कितना लगना है यह निश्चित कर ले तदानुसार टीका तैयार करें । दूध पाउडर से टीके की क्षमता अच्‍छी बनी रहती है । गर्मी के मौसम में पानी के साथ बर्फ मिलाये जिससे टीके की क्षमता अच्‍छी बनी रहेगी और घ्‍यान रहे सभी पक्षी पानी पी ले । इसके लिए सुबह पानी के बर्तन एक घंटा खाली रखें एवं दाना डाल दे। पश्‍चात पानी देने से सभी पक्षी जल्‍द ही पानी पी लेते है ।

सुई द्वारा टीकाकरण 

मेरेक्‍स का टीका, रानीखेत आर टू बी  एवं अन्‍य 8-10 सप्‍ताह बाद किये जाने वाले कुछ टीके त्‍वचा या मांस से सुई द्वारा दिये जाते है । टीके को दिये गये घोलक में तैयार करते है । स्‍वचलित टीकाकरण यंत्र (वेक्‍सीनेटर) भी बाजार में मिलते है । जिनसे टीके की दी जाने वाली मात्रा पहले निर्धारित कर टीकाकरण किया जाता है जिससे हर बार टीकाकरण डोज देखने की आवश्‍यकता नही होती है । इस विधी में जांघ की मांसपेशी या गर्दन की त्‍वचा पर टीके लगाये जाते है  ।

फुहार द्वारा टीकाकरण 

इस विधी में टीका घोल को स्‍वच्‍छ स्‍प्रे संयंत्र में भरकर छिड़काव द्वारा टीकाकरण किया जाता है । स्‍प्रेयर के नोजल को पक्षीयों के सामने 50-100 सेमी. की दूरी पर रखकर स्‍प्रे करे जिससे टीका श्‍वासनली में अवशोषित हो जाता है एवं पक्षियों में प्रतिरोध तंत्र सक्रीय होकर रोग प्रतिरोध क्षमता निर्मित हो जाती है ।

प्रमुख रोगों के लिये टीकाकरण तालिका

अंडे वाली मुर्गियों का टीकाकरण 

रोग  टीका  उम्र  खुराक  विधि 
मेरेक्‍स मेरेक्‍स टीका प्रथम टीका हेचरी में 0.2 मि.ली. गर्दन की त्‍वचा में
रानीखेत रानीखेत एफ-1 या बी -1 टीका 4-7 दिन के चूजों में एक बूंद (0.03 मि.ली.) आंख या नाक द्वारा
गम्‍बोरो गम्‍बोरो/आई.बी.डी. टीका मध्‍य तीव्रता 15 वे दिन एक बूंद (0.03 मि.ली.)अर्थात 500 खुराक का टीका 500 मुर्गियों के लिये आंख या नाक द्वारा
रानीखेत रानीखेत लसोटा टीका 21-22 वे दिन (0.03 मि.ली.) अर्थात 500 खुराक का टीका 500 मुर्गियों के लिये तैयार टीके को पीने के पानी के साथ मिलाकर
गम्‍बोरो आई बी डी गम्‍बोरो/आई.बी.डी. टीका मध्‍य तीव्रता 30-35 वे दिन (0.03 मि.ली.) अर्थात 500 खुराक का टीका 500 मुर्गियों के लिये तैयार टीके को पीने के पानी के साथ मिलाकर
रानीखेत रानीखेत आर टू बी 10 वे सप्‍ताह 0.5 मि.ली. जांघ की मांसपेशी में
रानीखेत रानीखेत मृत्‍य टीका 18 वे सप्‍ताह 0.5 मि.ली. गर्दन की त्‍वाचा में
रानीखेत रानीखेत लसोटा टीका 35 वे सप्‍ताह से प्रति दो माह बाद (0.03 मि.ली.) अर्थात 500 खुराक का टीका 500 मुर्गियों के लिये तैयार टीके को पीने के पानी के साथ मिलाकर

यदि रानीखेत मृत्‍य टीका नही दिया गया है तब रानीखेत लसोटा टीका 18 सप्‍ताह से प्रति 2 माह बाद लगाये यदि इंफेक्शियस ब्रोन्‍काइटिस का उस क्षेत्र में प्रकोप है तब इसका सम्मिलित टीका रानीखेत बी-1 के साथ एवं दूसरा टीका 10 से 12 सप्‍ताह में दें ।

ब्रायलर पक्षीयों के टीकाकरण 

रोग  टीका  उम्र  खुराक  विधि 
रानीखेत रानीखेत एफ-1 या बी -1 टीका 4-7 दिन में एक बूंद (0.03 मि.ली.) आंख या नाक से
गम्‍बोरो आई.बी.डी. गम्‍बोरो/आई.बी.डी. टीका मध्‍य तीव्रता का 15 वे दिन एक बूंद (0.03 मि.ली.) पीने के पानी से
रानीखेत रानीखेत लसोटा टीका 21-22 वे दिन (0.03 मि.ली.) पीने के पानी से
गम्‍बोरो गम्‍बोरो/आई.बी.डी. टीका मध्‍य तीव्रता 28 वे दिन (0.03 मि.ली.) पीने के पानी से

 

ब्रायलर में टीकाकरण एंव सावधनियाॅं –

मुर्गियों में टीकाकरण का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। विषाणुओं द्वारा फैलने वाील बीमारीया जैसे कि रानीखेत बीमारी,मैरेक्स बीमारी,मुर्गियों कि चेचक तथा गम्बोरो बीमारीयों में इसका महत्व बहुत अधिक है। यह बहुत जरुरी है कि किसान मुग्यिों की इन बीमारीयों में टीकाकरण के उपयुक्त समय,विधि,मात्रा तथा खुराक के बारें में जाने मथा उसका सही से उपयोग करे जिसका इन बीमारीयों से उनकी मुर्गियों का सही रुप से पूर्णतया बचाव हीे सके ।

मुर्गियों में इन खतरनाक बीमारीयों से बचाव के लिए टीकाकरण करने के लिए निम्नलिखित सावधानियाॅ बरतनी चाहिए:-
टीकाकरण का उपयुक्त समय, विधि तथा खुराक के बारे में पशु चिकित्सा अधिकारी से जानकारी लेना चाहिए।

  • टीके के बारे में सही जानकारीयाॅं जैसे उनका स्रोत,बैच नं0 व नाम आदि नोट करना चाहिये।
  • टीका और उनका घोल बनाने में इस्तेमाल होने वाले पदार्थ को रेफ्रीजरेटर में रखना चाहिये।
  • रेफ्रीजरेटर न होने की स्थिति में टीके को फ्लास्क में बर्फ डालकर रखा जा सकता है।
  • टीके को निर्माता कम्पनी के निर्देशानुसार प्रयोग करना चाहिए।
  • टीेकरण बीमार मुर्गियों में नहीं करना चाहिए।
  • टीकाकरण करने पर कुछ प्रतिक्रिया या तनाव हो सकता है। इससे बचने के लिए टीकाकरण के तीन दिन पहले तथा तीन दिन बाद मल्टीविटामिन का घोल पिलाना चाहिये।
  • टीके के घोल को 1-2 घंटे के अंदर इस्तमाल कर लेना चाहिए।
  • टीकाकरण के साथ मुर्गियों को एन्टीबायोटिक्स नहीं देनी चाहिए।

ब्रायलर हेतु टीकाकरण कार्यक्रम
0 दिन भ्टज् 0.2 ैध्ब् गले में मरेक्स बीमारी
5-7 दिन थ्ण्1 या लासोटा एक बूँद नाक या आँख में रानीखेत बीमारी
14 दिन स्नामतज वत ळमवतहपं ेजतंपद एक बूँद नाक या आँख मे गुम्बोरो बीमारी

 

प्रकाश व्यवस्था – रोशनी के लिये बिजली प्वाइंट जमीन की सतह से 7-8 फीट की ऊँचाई पर बनवाना चाहिए। इनके बीच की दूरी 10 फीट होनी चाहिए। फर्श के प्रत्येक 100 वर्ग फीट जगह में एक बिजली प्वाइंट के लिए 60 वाट का बल्ब आवश्यक है। मुर्गी घर में बल्ब इस तरह लगायें कि प्रति मुर्गी एक वाट की दर से प्रकाश उपलब्ध हो। सफेद प्रकाश मुर्गी घर के लिये उपयुक्त है और लाल रंग के प्रकाश का उपयोग केनाबाल्जिम को रोकने में किया जाता है।
ब्रायलर को फर्श से 3.5 फुट केंडल का 23 घंटे का प्रकाश तथा 1 घंटे का अंधकार उपलब्ध कराना चाहिए। 3.5 वाट का एक बल्ब ब्रूडिंग, पहले दो दिन के लिए 4ेु मिमज स्थान के लिए होना चाहिए। फिर 4ेु मिमज क्षेत्रफल के लिये 1विवज केंडल तक प्रकाश धीरे-धीरे कम किया जा सकता है।

तापक्रम व्यवस्था – मुर्गीघर में निम्नानुसार होनी चाहिए।
0-5 दिन 35 डिग्री सेल्सियस
5-7 दिन 32 डिग्री सेल्सियस
7-14 दिन 29 डिग्री सेल्सियस
14-21 दिन 26 डिग्री सेल्सियस
21 दिन और अधिक 18-24 डिग्री सेल्सियस

ब्रूडिंग इकाई – इससे छोटे चूजों को गर्मी प्रदान की जाती है।

होवर – यह सबसे अधिक प्रयोग किया जाने वाला ब्रूडर है। यह गर्मी उत्पन्न करने वाली इकाई धातु के गोल या एंगुलर टुकड़े से ढका होता है, जो फर्श की ओर गर्मी फेंकता है। इसमें ऊष्मा प्रदान करने के लिए गैस, इन्फ्रारेड बल्ब, मिट्टी का तेल या विद्युत का उपयोग किया जाता है।
यदि चूजे हावर के नीचे समान रूप से वितरित हो तो तापमान सही समझना चाहिए। जब तक चूजोें के पंख पूरी तरह नहीं निकल आयें, बाह्य ऊष्मा स्रोत न हटायें।

ब्रूडर गार्ड – इसका उपयोग चूजों को दाना, पानी एवं गर्मी के पास बने रहने हेतु किया जाता है। ब्रूडर गार्ड सर्दी के समय ठोस-धातु या गर्मी के समय तार की जाली का बना होना चाहिए। ब्रूडर गार्ड की ऊँचाई 40-50बउ और ब्रूडर से दूरी 75 बउ होनी चाहिए।

ब्रायलर कुक्कुट उत्पादन एंव उसका महत्व

  1. ब्रायलर कुक्कुट पालन –
  2. ब्रायलर कुक्कुट पालन के लाभ –
  3. ग्रामीण क्षेत्र में ब्रायलर कुक्कुट प्रजाति का चयन
  4. ब्रायलर मुर्गी पालन में सुधार हेतु आवश्यक सुझाव-
  5. ब्रायलर के मांस में पोषक तत्व मूल्य
  6. कुक्कुट गृह निर्माण में आवश्यक बातें –
  7. डीप लिटर (गहरी बिछावन) पद्धति
  8. ब्रायलर में टीकाकरण एंव सावधनियाॅं
  9. गर्मियों में ब्रायलर की देखभाल
  10. प्रकाश व्यवस्था
  11. तापक्रम व्यवस्था
  12. ब्रूडिंग इकाई
  13. ब्रूडर गार्ड
  14. ब्रायलर च्ूजों की देखभाल
  15. ब्रूडर हाउस को तैयार करना
  16. सफल ब्रूडिंग का परीक्षण
  17. 1000 चूजों को रखने के लिए आवश्यक सामग्री
  18. ब्रायलर के रहने की जगहदाना व पानी के लिए आवश्यक जानकारी

ब्रायलर कुक्कुट पालन-

भारतवर्ष में घर के मुर्गीपालन का कार्य आदिकाल से होता रहा है। 70 प्रतिशत से अधिक उत्पादित अंडों एवं ब्रायलर की खपत शहरों एवं कस्बों में होती हैजबकि भारत की 70 प्रतिशत से अधिक आबादी गावों में निवास करती है। तेजी से विकसित होने वाले ब्रायलर कुक्कुट प्रजातियों में रोग प्रतिरोधक क्षमतावातावरण के प्रति अनुकूलन कम पाया जाता है तथा इनके तेज विकास के लिये विशिष्ट रूप में निर्मित एवं समस्त पोषक तत्वों से सम्पूर्ण कुक्कुट आहार की आवश्यकता होती है।

कुक्कुट पालन आज एक उधोग के रूप मे स्थापित हो चुका है तथा पिछले कुछ दशको मे ग्रामीण क्षेत्रो मे भी यह व्यवसाय के रूप मे अपनाया जाने लगा है। ग्रामीण विकास मे कुक्कुट पालन की दो विभिन्न भूमिकाए है। प्रथमः छोटे व सीमांत किसानोभूमिहीन मजदूरबेरोजगार शिक्षित युवको आदि  के लिए एक सम्मानिय व लाभप्रद व्यवसाय प्रदान करता है। तथा दूसरा यह कि कुक्कुट एक पौश्टिक आहार प्रदान करता है।

व्यवसायिक ब्रायलर फार्मिग का मुख्य आधार  उन्नत नस्ल के चुजे तथा चुजो का समुचित प्रबंधन है। क्योकि चूजे ही बडे होकर आय का स्त्रोत बनते है। अतः अधिक आय के लिए ब्रायलर चूजो का पालन ध्यानपुर्वक एव वैज्ञानिक ढं़ग से करना चाहिए।

ब्रायलर पालन निम्न कारणो से लोकप्रिय एवं लाभप्रद व्यवसाय के रूप मे स्थापित होता जा रहा है।

1 कम भूमि की आवश्यकता

2 कम प्रारंभिक लागत

3 पैसे की शीघ्र वापसी

4 व्यापार मे लचिलापन

ब्रायलर द्वारा दाने को मास मे परिवर्तित करने मे  अधिक संक्षमता

ब्रायलर कुक्कुट पालन के लाभः-

  1. स्वरोजगार प्रदान करने में।
  2. ब्रायलर का मांस प्रोटीनविटामिन व खनिज लवण का अच्छा स्रोत है।यह गर्भवती महिलाओं और बढ़ते बच्चों में कुपोषण की समस्या दूर करता है। इस तरह यह सीमांत व लघु कृषकों के सामाजिक व आर्थिक उन्नति में सहायक है।

ब्रायलर मुर्गी पालन में सुधार हेतु आवश्यक सुझाव-

  1. उचित जनन द्रव्य का उपयोग –  अज्ञात कुल के देशी कुक्कुट में स्थानीय वातावरण के अनुकूल, आहार प्रबंध के प्रत्याबल, अधिक गर्म तापमान व रोग प्रतिरोधी क्षमता अधिक होती है। परंतु इनसे शरीर भार में बढ़ोतरी धीरे होती है। अतः इनके स्थान पर संकर तथा विदेशी नस्लों का उपयोग किया जाए।

उदाहरण 

विदेशी प्रजाति – प्लाई माउथराॅक व कार्निस एंव उसकी संकर नस्ले।

उन्नत देशी क्रास – कैरी रैनब्रो, कैरीब्रो, विशाल कैरी, धनराज कैरीब्रो मृत्युन्जय कैरीब्रो, ट्रापीकाना।

द्विकाजी कुक्कुट – कैरी देवेंद्र कैरी निर्भीक कैरी श्यामा उपकारी हितकारी आदि संकर नस्लें।

भारतीय प्रजाति ( बैकयार्ड ग्रामीण ब्रायलर हेतु ) –

मुर्गियों की भारत में मुख्यतः 19 देशी प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनका उत्पत्ति स्थान निम्न हैः-

आंध्र प्रदेश – असील, डेन्की, कालास्थी, घागस।

महाराष्ट्र – अंकेलेश्वर एवं बर्सा।

आसाम – चीतगांव, डेवोथिगिर, फ्रिजल फाऊल एवं मीरी।

पश्चिम बंगाल – हरिंगहाटा।

उत्तर प्रदेश – ब्राउन देशी।

पंजाब – पंजाब ब्राउन।

काश्मीर – फेवरेला।

केरल – टीलीचेरी।

निकोबार – निकोबारी।

म. प्र. – कड़कनाथ।

इसके अलावा टीनी प्रजाति पूरे भारत में पाई जाती है। गर्म एवं आद्र स्थानों में नेकेड नेक एवं फ्रिजल फाऊल पाई जाती है। उपरोक्त सभी कुक्कुट प्रजातियाँ अपने भौगोलिक वातावरण हेतु अनुकूलित हैं।

  1. संतुलित आहार संपोषण
  2. बीमारियों की रोकथाम – खासकर मरक्सरानीखेत और गुम्बोरो बीमारी के अनिवार्य टीकाकरण की व्यवस्था की जाए।

ब्रायलर के मांस में पोषक तत्व मूल्य –

प्रोटीन 19-21 प्रतिशतजबकि पकाये हुए में 25-35 प्रतिशत

वसा 3-5 प्रतिशत

जल 74-76 प्रतिशत

ऊर्जा 125-150 कैलोरी/100 ग्राम

कोलेस्टराल 70 mg/100 ग्राम

सामान्यतः प्रतिदिन 200-300 उह कोलेस्टराल ग्रहण करने की मात्रा सुरक्षित मानी जाती है और ब्रायलर मांस में कोलेस्टराल की मात्रा 70 उह /100 ग्राम होती है और ब्रेस्ट मांस में वसा की मात्रा 1.3 प्रतिशत मात्र होती है जो कि अन्य पशु व कुक्कुट प्रजातियों की तुलना में अत्यंत कम है। अतः ब्रायलर मांस का सेवन उच्च रक्तचाप व डाइबिटिज मरीजों के लिये भी उच्च गुणवत्ता युक्त प्रोटीन का अच्छा स्रोत है।

कुक्कुट गृह निर्माण में आवश्यक बातें –

घर की दीवारें दोनों तरफ से तीन फीट उठी होनी चाहिए और इसके ऊपर पाँच फीट की ऊँचाई तक ळण्प्ण् तार की जाली होनी चाहिए। इस प्रकार दीवारों की कुल ऊँचाई 8 फुट और बीच में छत की ऊँचाई 11 फीट होनी चाहिए। घर का फर्श जमीन से 2-2.5 फीट ऊँचा होना चाहिए। छत एस्बेस्टस या ऐल्युमिनियम की चादर की होनी चाहिए। जो शेड के चारों तरफ 3-4 फीट छज्जे के रूप में बाहर निकली हो। इससे बारिश घर के अंदर प्रवेश नहीं कर पायेगी और सूर्य के प्रकाश का ताप कम पड़ेगा। मुर्गी घर का लंबवत पक्ष पूर्व-पश्चिम की ओर होना चाहिए जिससे सूर्य की गर्मी का प्रभाव कम से कम पड़े। घर की चैड़ाई में पक्की दीवारें पूरी ऊँचाई तक होनी चाहिए। कमरे के कोनों को गोलाई में बनाना चाहिए ताकि चूजे एक साथ इकट्ठे न हों और कुचलने में न मरें। मुर्गी घर के दरवाजे की लंबाई 6 फीट, चैड़ाई 3 फीट होनी चाहिए।

आवास के फर्श निर्माण हेतु मिट्टी, ईंट व पत्थर का चूरा का उपयोग किया जा सकता है, जबकि छत हेतु छप्पर, टाइल, डामरशीट, ऐल्युमिनियम या पालीथीन की शीट का उपयोग स्थानीय उपलब्धता के आधार पर किया जा सकता है।

कुक्कुट गृह निर्माण में अन्य आवश्यक बातें –

  • छोटे फार्म से शुरु करके धीरे धीरे विकास द्वारा बड़ा फार्म खोलना अच्छी नीति है।
  • फार्म खोलने के लिए सबसे प्रमुख है जगह का चुनाव, जो बाढ़ या जल जमाव से प्रभावित न हों, जिसमें पानी की सुलभता हो तथा बारह महीने विक्रय केन्द्र को जोडने वाली सड़क से जुड़़ा हो।
  • चूजे हमेशा विश्वसनीय हैचरी ,जिसे रेण्डम सेम्पल टेस्ट द्वारा प्रमाणित किया गया हो, से ही लेने चाहिए। ब्रॅायलर के लिए व्हाइट कार्निस या राॅक या उनके क्राॅस अच्छे होते है।
  • एक एकड़ भूमि में 10 से 12 हजार ब्राॅयलर रखे जा सकते हैं।
  • मुर्गी घर का निर्माण ऊँची भूमि पर होना चाहिए ,जहाँ पानी नहीं रुके तथा हवादार हो। फर्श जमीन से एक फीट ऊँर्चाइ पर हो । बारिश की बौछार रोकने के लिए 1 मीटर का छज्जा ओवर हैंग होना चाहिए।
  • ब्राॅयलर के लिए एक वर्ग फीट प्रति किलो ब्राॅयलर की जगह देनी चाहिए ।
  • एक मुर्गी घर से दूसरे मुर्गी घर की दूरी कम से कम 20-30 फीट होनी चाहिए।
  • फार्म में छोटे पेड़ जैसे शहतूत, नीम आदि छाया के लिए होनी चाहिए।
  • मोटे तौर पर 1000 लेयर अण्डे देने वाली मुर्गियों और 2000 ब्राॅयलर पर एक वर्ष में बराबर पूँजी लगानी पड़ती है तथा बराबर लाभ मिलता है।
  • ब्राॅयलर माँस वाली नस्ल के चूजे होते है, जिनका वजन 4 सप्ताह में 1 किलो होता है। मुर्गी घर बनाते समय उसके प्राकृतिक  शत्रु जैसे सर्प, बिल्ली, कुत्ते, चूहा आदि से बचाव का पूरा ध्यान रखकर आवश्यक उपाय करना चाहिए।

मुर्गी घरों का आकार –

  1. 100 मुर्गियों के लिये = लंबाई 6 मीटर, चैड़ाई 4.5 मीटर, ऊँचाई 3 मीटर
  2. 200 मुर्गियों के लिये = लंबाई 9 मीटर, चैड़ाई 6 मीटर, ऊँचाई 3 मीटर
  3. 500 मुर्गियों के लिये = लंबाई 30 मीटर, चैड़ाई 7.5 मीटर, ऊँचाई 3 मीटर4. 1000 मुर्गियों के लिये = लंबाई 30 मीटर, चैड़ाई 9 मीटर, ऊँचाई 3 मीटर

केन्‍दीय कुक्‍कुट विकास संगठनों में जैवसुरक्षा के लिए सामान्‍य मार्ग-निर्देश

कार्यकारी सारांश

जैवसुरक्षा एक एकीकृत संकल्‍पना है जिसमें सम्‍बद्ध पर्यावरणीय जोखिम सहित पशु स्‍वास्‍थ्‍य और खाद्य सुरक्षा के क्षेत्रों में जोखिमों का विश्‍लेषण और प्रबंधन करने के लिए नीति और विनियामक फ्रेमवर्क शामिल किए गए हैं। नब्‍बे के दशक से कृषि में वैश्विक व्‍यापार के उदारीकरण से संवृद्धि और विविधीकरण के लिए नए अवसर उत्‍पन्‍न होने के अतिरिक्‍त कई चुनौतियां सामने आई हैं। नाशक जीवों के लिए कोई भौगोलिक सीमाएं नहीं होती हैं और व्‍यापार के उदारीकरण से, पशुओं (पशुधन, कुक्‍कुट) और पशु उत्‍पादों के आयात के माध्‍यम से पशु रोगों और नाशक जीवों के नए मार्ग खुल गए हैं। बहुत से नाशक जीवों में स्‍थापित करने और गंभीर आर्थिक हानियों का कारण बनने की क्षमता है।

एकीकृत जैवसुरक्षा कार्यक्रम केवल न्‍यूनतम स्‍तर पर रोगों पर नियंत्रित करने के उद्देश्‍य से सतत् आधार पर उद्यम, रोग की स्थिति की मानीटरिंग, चल रहे कुक्‍कुट फार्म प्रचालनों के मूल्‍यांकन के लिए युक्तियुक्‍त और ठोस सिद्धांतों पर एक अनुप्रयोग है।

सीपीडीओ (ईआर), भुवनेश्‍वर और सीपीडीओ एंड टीआई (एसआर), हैस्‍सरघट्टा में एवियन इंफ्लूइंजा के प्रकोप से सबक लेने के बाद, भविष्‍य में किन्‍हीं आपदाओं को रोकने के लिए हमें यथासंभव एक त्रुटिहीन जैवसुरक्षा योजना क्रियान्वित करनी चाहिए। जैवसुरक्षा पर गहन निगरानी रखने और उसे बनाए रखने के लिए एक रूपरेखा के रूप में कार्य करने के लिए इन मानक प्रचालन प्रक्रियाओं का प्रस्‍ताव किया जाता है। निम्‍नलिखित शीर्षकों के अधीन मानक प्रचालन प्रक्रियाएं तैयार की गई हैं:

  1. फार्म की अवस्थिति और डिजाइन
  2. पक्षियों तक प्रतिबंधित पहुंच
  3. फार्म स्‍तर पर सामान्‍यतया आवाजाही पर प्रतिबंध
  4. कुक्‍कुट शैड स्‍तर पर आवाजाही पर प्रतिबंध
  5. फार्म क्षेत्र में वाहन के प्रवेश पर प्रतिबंध
  6. आगन्‍तुकों पर प्रतिबंध
  7. फार्म कामगारों पर प्रतिबंध
  8. फार्म में संक्रमण के संचारण के वाहकों पर प्रतिबंध
  9. बहु प्रजाति पालन और सावधानियां
  10. नए पक्षियों का विलगन और संगरोध
    4. सफाई और स्‍वच्‍छता

क. फार्म उपकरणों की सफाई और रोगाणुनाशन

  1. मुर्गी खानों की सफाई और रोगाणुनाशन
    i) पूर्ण या अन्तिम मुर्गी खाने की सफाई
  2. ii) आंशिक/समवर्ती मुर्गी खाने की सफाई
  3. व्‍यक्तिगत सफाई
    6. कुक्‍कुट खाद का स्‍वच्‍छतापूर्ण निपटान
    7. मृत पक्षियों का निपटान
    8. आहार सुरक्षा
    9. विश्राम की अवधि या एकल आयु वर्ग का पालन
    10. पक्षियों की चिकित्‍सा/टीकाकरण
    11. पक्षी समूह फ्लॉक की स्थिति
    12. अत्‍यधिक जोखिम/चेतावनी की स्थिति के लिए
    13. प्रलेखन और अभिलेख रखना

क प्रभावशाली कुक्‍कुट जैवसुरक्षा योजना को क्रियान्वित करने के लिए एक निर्देशात्‍मक जांच सूची भी तत्‍काल संदर्भ के लिए शामिल की जाती है। यह भी निर्णय किया गया है कि उच्‍च प्राथमिकता के आधार पर निम्‍नलिखित कार्रवाई की जाए:

  1. फार्म क्षेत्र से वन्‍य पक्षियों/जल पक्षियों/कौवों, आदि को दूर रखने के लिए कार्य नीति के अनुसार बर्ड रिफ्लेक्‍टरों की स्‍थापना।
  2. ध्‍वनि तरंगों द्वारा पक्षियों को दूर भगाने के लिए अधिक फ्रीक्‍वेंसी वाले ध्‍वनि उपकरणों की तत्‍काल खरीद और स्‍थापना। निकटवर्ती आरडीडीएल को किट्स की मदद से मौके पर रोग निदान के लिए उनके मानदण्‍डों और नयाचार के अनुसार नमूने/सामग्री एकत्र करने के लिए और, भोपाल को आगे सूचना देने के लिए भी सूचित किया जाना चाहिए।
  3. रोग निदान के अन्तिम परीक्षण होने तक किसी शैड या फार्म में संदिग्‍ध या निदान किए गए किसी रोग की स्थिति में और नामित/एचएसएडीएल, भोपाल से पुष्टि के बाद अधिसूचित रोगों/एवियन इंफ्लूइंजा की स्थिति में सभी कुक्‍कुट उत्‍पादों, आहार और चारा अवयवों आदि की खरीद-बिक्री/आवक-जावक तत्‍काल रोक दें।
  4. मृत पक्षी/पक्षियों का निपटान जैव-सुरक्षित विधि से किया जाए और अधिसूचित रोगों के लिए पशुपालन, डेयरी और मत्‍स्‍यपालन विभाग, भारत सरकार की कार्य योजना के अनुसार किया जाए।
  5. यदि फाम के परिसर में वन्‍य पक्षी/जल पक्षियों/कौवों, आदि में कोई मृत्‍यु सूचित की जाती है तो ऐसे पक्षियों की शव परीक्षा फार्म के क्षेत्र में बिल्‍कुल नहीं की जानी चाहिए। विभाग को आरडीडीएल को तत्‍काल सूचना दी जानी चाहिए और आरडीडीएल से निदान के लिए उनके नयाचार के अनुसार नमूने एकत्र करने और सक्षम प्राधिकारी द्वारा निर्धारित की जाने वाली अपेक्षा के अनुसार निदान के लिए भोपाल को आगे भेजने के लिए अनुरोध किया जाना चाहिए।
  6. यदि किसी फार्म में एवियन एंफ्लूइंजा या अधिसूचित रोग का सन्‍देह है या उसकी पुष्टि हो जाती है तो फार्म के स्‍टाफ को वहां से तत्‍काल हटा दिया जाए।
  7. एसओपी जैव-सुरक्षा और पशुपालन, डेयरी और मत्‍स्‍यपालन विभाग द्वारा अग्रेषित एवियन इंफ्लूइंजा से संबंधित कार्य योजना-2012 के संबंध में सीपीडीओ और राज्‍य के सभी फार्मों द्वारा कार्यशालाओं का आयोजन किया जाए जिनमें राज्‍य के पशुचिकित्‍सा विश्‍वविद्यालय/महाविद्यालय के कुक्‍कुट विज्ञान, चिकित्‍सा, जानपदिक रोग विज्ञान, पशुचिकित्‍सा सार्वजनिक स्‍वास्‍थ्‍य विभागों और आरडीडीएल से वक्‍ताओं को आमंत्रित किया जाए। ऐसी कार्यशालाओं में राज्‍य सरकार के अधिकारियों को भी आमंत्रित किया जाए।
  8. जब कभी जैव सुरक्षा के सामान्‍य मार्ग-निर्देशों या एवियन इंफ्लूइंजा से संबंधित कार्य योजना में आशोधन या उन्‍हें अद्यतन किया जाता है तब ऐसी कार्यशाला अधिसूचना की या उन्‍हें जारी करने की तारीख से 15 दिन के अन्‍दर आयोजित की जाएगी।

जैवसुरक्षा के संबंध में मार्ग-निर्देश और जांच सूची


प्रभावशाली कुक्‍कुट जैवसुरक्षा योजना के कार्यान्‍वयन के लिए निर्देशात्‍मक त्‍वरित जांच सूची

इनमें से किसी भी सुझाव के कार्यान्‍वयन से रोग के प्रवेश की जोखिम कम होगी। क्रियान्वित किए गए प्रत्‍येक अतिरिक्‍त सुझाव से जैवसुरक्षा की जोखिम और अधिक कम होगी।

  • पेरीमीटर सुरक्षित करें; प्रवेश मार्ग पर ‘प्रतिबंधित’ सूचना-पट्ट लगाएं।
  • शैडों के आसपास कोई वृक्ष या सघन पत्‍ता-चार न हो; वन्‍य पक्षियों के लिए बैठने का स्‍थान न हो।
  • अनिवार्य कार्मिक तक प्रतिबंधित प्रवेश और प्रवेश का रिकार्ड रखा जाए।
  • मुर्गी खानों को ताला लगा कर रखें; जब अन्‍दर हों तब दरवाजा अन्‍दर से बन्‍द करें।
  • प्रत्‍येक शैड के लिए स्‍टाफ और आगन्‍तुकों के लिए बूट और आवरण मुहैया करें।
  • स्‍टाफ द्वारा प्रत्‍येक शैड में प्रवेश करने पर डेडिकेटिड/प्रयोज्‍य बूट और आवरण पहनने चाहिएं। यदि फुटबाथ नियमित रूप से बदले जाते हैं तो शैड के अन्‍दर के साफ फुटबाथ उपयुक्‍त हो सकते हैं।
  • जब समूह की देखभाल की जाए तब रेजिडेंट समूह प्रबंधक को फार्म के बाहर पहनने वाले वस्‍त्र (जूते, बुट, टोपी, दस्‍ताने इत्‍यादी) अलग रखने चाहिए।
  • समूह की देखभाल करने के बाद, परिसर से बाहर जाने से पहले पूरे वस्‍त्र बदलें और हाथ तथा बाहें धोएं।
  • समूह प्रबंधक और अन्‍य रखपालों को किसी अन्‍य कुक्‍कुट समूह में नहीं जाना चाहिए।
  • यदि संभव हो तो आगन्‍तुकों को पक्षीयां अलग से दिखाने की सुविधाएं(शो एरीया) शेड मुहैया करें।
  • मृत कुक्‍कुट प्रतिदिन हटाएं। अनुमोदित विधि से उन्‍हें स्‍टोर करें या उनका निपटान करें।
  • यह सुनिश्चित करें कि स्‍टाफ और आगन्‍तुक अन्‍य एवियन प्रजातियों को पालने या रखने के खतरों और अपने समूह के साथ उनके सम्‍पर्क के खतरों से अवगत हैं।
  • अनिवार्य आगन्‍तुकों, जैसे मालिकों, मीटर रीडरों, सेवा कार्मिकों, ईंधन और चारा डिलीवरी ड्राइवरों तथा कुक्‍कुट कैचरों/हैन्‍डलर और हालरों को समूह के पास जाने से पहले बूटों और टोपी सहित बाहरी सुरक्षा के वस्‍त्र पहनने चाहिएं।
  • यह सुनिश्चित करने के लिए कि कुक्‍कुट लेने अथवा डिलीवरी करने, आहार की डिलीवरी करने, ईंधन की डिलीवरी करने आदि के लिए परिसर में प्रवेश करने वाले वाहनों की मानीटरिंग की जाए कि क्‍या प्रवेश करने से पहले उनकी सफाई (अंडरकेरिज और टायरों सहित) की गई है उन पर रोगाणुनाशन स्‍प्रे किया गया है।
  • उपकरणों, आपूर्तियों आदि की आवक न्‍यूनतम करें और रोगाणुनाशन, शिपिंग बक्‍सों से हटाने, जैसी उपयुक्‍त सावधानियां बरतें।
  • उपयोग से पहले और बाद में सभी दरबों, क्रेटों और अन्‍य कुक्‍कुट कंटेनरों को साफ करें, रोगाणुओं को समाप्‍त करें।
  • कीट, मेमिलियन और एवियन वैक्‍टरों के लिए एक सुदृढ़ वेक्‍टर नियंत्रण कार्यक्रम क्रियान्वित करें।
  • चारा केन्‍द्रों का रख-रखाव करें, बिखरे आहार को साफ करें, वन्‍य पशुओं (चूहों, पक्षियों, कीटों) या पालतु पशुओं (कुत्‍तों, बिल्लियों) के प्रवेश को रोकें। खिड़कियों, एयर इनलेंटों, डोर्स फीड बिन एग्‍जास्‍ट्स में स्‍क्रीन का उपयोग करें।
  • कम से कम पेड़-पौधे रखें और वैक्‍टरों के लिए आहार और शैल्‍टर के अवसरों को कम करने के लिए कुक्‍कुट सुविधाओं के आसपास कचरा न हो।
  • यह सुनिश्चित करें कि आहर, जल और बिछौने संक्रमक एजेंटों से मुक्‍त हों।
  • पशुचिकित्‍सक के साथ नियमित आधार पर टीकाकरण नयाचार सहित अपनी जैवसुरक्षा योजना और समूह स्‍वास्‍थ्‍य कार्यक्रम की समीक्षा करें।
  • बीमार या मरणासन्‍न पक्षियों को राज्‍य की प्रयोगशाला में निदान के लिए भेजा जाना चाहिए। वाणिज्यिक उत्‍पादकों को अपने समूह के पर्यवेक्षक से सम्‍पर्क करना चाहिए।
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सिद्धांत:

रोगों को कम से कम न्‍यूनतम स्‍तर पर रोकने के उद्देश्‍य से एकीकृत जैवसुरक्षा कार्यक्रम कार्यक्रम को सतत् आधार पर उद्यम, रोग की स्थिति की मानीटरिंग, कुक्‍कुट फार्मों के चल रहे प्रचालनों के मूल्‍यांकन के लिए युक्तियुक्‍त और ठोस सिद्धांतों पर अनुप्रयोग के रूप में माना जाना चाहिए।

फार्म की स्‍थापना करते समय आरम्‍भ में ही अवस्थिति और संरचनात्‍मक जैवसुरक्षा सिद्धांतों को अपनाना होगा। प्रचालनात्‍मक जैवसुरक्षा उपाय सामान्‍यतया तीन मूलभूत सिद्धांतों के इर्दगिर्द घूमते हैं, नामत:

क) विलगन,
ख) ट्रैफिक कंट्रोल, और
ग) स्‍वच्‍छता

इनका पुन: विभिन्‍न उप-समूहों में वर्गीकरण किया जाता है, जिनका जांच सूची के रूप में तत्‍काल संदर्भ के लिए नीचे उल्‍लेख किया जाता है:

यह अत्‍यधिक महत्‍वपूर्ण है कि पक्षी तनाव से मुक्‍त होने चाहिएं जिसके लिए उन्‍हें अधिक संख्‍या में भरे जाने से गुरेज किया जाना चाहिए, पर्यावरण परिवेश को बनाने के लिए वायु संचार और तापमान विनियमित किया जाना चाहिए। स्‍वच्‍छता, अच्‍छी किस्‍म का आहार/प्रिमिक्‍स और पेय जल सुनिश्चित किया जाना चाहिए। इन मूलभूत प्रबंधन उपायों से पक्षियों को रोगजनकों के प्रति संवेदनशील बनाने वाले तनाव के कारण कम होंगे जिससे इम्‍युनोसुप्रेशन में कमी होगा।

फार्म की अवस्थिति और डिजाइन

iii) कुक्‍कुट फार्म, जो बहुमूल्‍य जर्मप्‍लाज्‍म रखता है, अन्‍य फार्मों से दूर, आदर्श रूप से एक भली-भांति अलग स्‍थान पर स्थित होना चाहिए। यह जल-विभाजिकाओं से दूर स्थित होना चाहिए जो वन्‍य पक्षियों और पशुओं के लिए जल का स्रोत हो सकती हैं। ये वन्‍य पक्षी अन्‍तत: फार्म में रखे जा रहे पक्षियों के संक्रमण का स्रोत बन सकते हैं। आदर्श रूप में, यह अन्‍य वाणिज्यिक फार्मों से कम से कम 1-2 किलोमीटर दूर होना चाहिए।

  • फार्म और अंडन उत्‍पवत्तिशाला की सीमा चारदीवार या अन्‍य उपायों से सुरक्षित की जानी चाहिए।
  • प्रत्‍येक प्रजाति यूनिट पर क्षेत्रीय और स्‍थानीय भाषाओं में जैवसुरक्षा के एसओपी प्रदर्शित किए जाने चाहिएं।
  • प्रत्‍येक प्रजाति यूनिट के प्रजनन स्‍टाक और अंडज उत्‍पत्तिशालाओं (हैचरी) पर “जैवसुरक्षा क्षेत्र” “आगन्‍तुकों को प्रवेश की अनुमति नहीं है” दर्शाने वाले साइन बोर्ड लगाए जाने चाहिएं।
  • फार्म इस प्रकार डिजाइन किया जाना चाहिए कि इसमें पर्याप्‍त हवा आ जा सके। और इसमें धूप आनी चाहिए। यह मुर्गी खाने में संचित गैसों के प्रभाव को कम करने के अतिरिक्‍त संक्रामक एजेंटों के बनने को कम करने के लिए आवश्‍यक है।
  • लम्‍बे अक्षों की दिशा: यह फार्म की भौगोलिक अवस्थिति पर निर्भर करती है। यदि फार्म ठंडे क्षेत्र में स्थित है तब लम्‍बे अक्ष की दिशा उत्‍तर-दक्षिण होनी चाहिए। यदि फार्म गर्म और आर्द्र स्थिति में स्थित है तब लम्‍बे अक्ष की दिशा पूर्व-पश्चिम होनी चाहिए। यदि फार्म गर्मी के महीनों में अत्‍यधिक तापमान वाले क्षेत्र में स्थित है तब लम्‍बे अक्ष की दिशा दक्षिण-पूर्वी होनी चाहिए।
  • टर्की, बतखों आदि जैसे कुक्‍कुट क विचरण-क्षेत्र में वृक्षों की लटकती शाखाएं काटी/हटाई जानी चाहिएं ताकि वन्‍य पक्षियों की बीट न गिरे। आदर्श रूप में वहां कोई सघन घास-पात या वृक्ष नहीं होने चाहिएं।
  • शैडों में छोटे वन्‍य पक्षियों को प्रवेश से रोकने के लिए सभी यूनिटों में पक्षियों को रोकने वाले जाल लगाना सुनिश्चित करें।
  • खुले नालों को ढकें ताकि वन्‍य पशु आकृष्‍ट न हों।
  • वन्‍य पक्षियों का कोई बसेरा नहीं होना चाहिए।
  • समुचित जल निकास सुविधा होनी चाहिए और जल जमा नहीं होना चाहिए।
  • आसानी से और समुचित सफाई के लिए मुर्गी खाने में कंक्रीट का फर्श होना चाहिए।
  • सभी कुक्‍कुट शेडों के प्रवेश द्वार पर एक-समान आकार के फुट डिप्‍स मुहैया किए जाने चाहिएं और अधिमानत: 50 प्रतिशत लाइम पाउडर + 50 प्रतिशत ब्‍लीचिंग पाउडर का उपयोग करें।
  • आदर्श रूप में, फार्म का नक्‍शा ऐसा होना चाहिए कि फार्म के प्रवेश स्‍थल पर ब्रूडर शैड के बाद उत्‍पादकों का शैड होना चाहिए और अन्‍त में वयस्‍क पक्षियों का शैड होना चाहिए। जल निकास प्रणाली के लिए भी ब्रूडिंग से वयस्‍क शैड की समान पद्धति अपनाई जानी चाहिए।
  • हैचरी दुसरे शेडों से कम से कम 500 फीट की दूरी पर होनी चाहिए।
  • बर्ड रिफ्लेक्‍टरों का उपयोग किया जाए।
  • जैवसुरक्षा की दृष्टि से, समान प्रकार के दो विभिन्‍न शैडों के बीच की दूरी 30 फुट और अलग-अलग प्रकार के शैडों के बीच की दूरी 100 फुट होनी चाहिए।
  • सड़कें कंक्रीट की होनी चाहिएं जिससे कि जीवाणु/विषाणु के जुते व टायरों के माध्‍यम से पहुंचना कम हो।
  • फार्म स्‍तर पर रोगों की नियमित मानीटरिंग और निगरानी के लिए दाहित्रों के निकट शव परीक्षा की जांच की सुविधा और समुचित सुविधाओं तथा जनशक्ति के साथ अलग प्रयोगशाला का होना भी अपेक्षित है।
  • द्वार पर बिक्री काउंटर पर सभी कुक्‍कुट और कुक्‍कुट उत्‍पादों की बिक्री के लिए सिंगल विंडो प्रणाली होनी चाहिए। फार्म या अंड उत्‍पत्तिशाला हैचरी को देखने के लिए ग्राहकों और उनके वाहनों को किसी भी स्थिति में अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
  • कुक्‍कुट और हैचरी उत्‍पादों की बिक्री के लिए बिक्री काउंटर की व्‍यवस्‍था प्रवेश द्वारा पर की जानी चाहिए ताकि वाणिज्यिक वाहन परिसर में प्रवेश न कर सकें।
  • किसानों के लिए होस्‍टल/प्रशिक्षण कक्ष आदि, जो फार्म शैड के निकट स्थित हो, को दूर शिफ्ट किया जाना चाहिए
  • कुक्‍कुट किसानों और अन्‍य प्रशिक्षुओं को कुक्‍कुट और अन्‍य एवियन प्रजातियों का प्रदर्शन करने के लिए एक प्रदर्शन शैड प्रयोगशाला के निकट निर्मित किया जाए।
  1. iv) पक्षियों तक प्रतिबंधित पहुंच:

इसका तात्‍पर्य घेराबन्‍दी और बाड़ा लगाकर फार्म तक पहुंच को प्रतिबंधित करना है जिनसे स्‍वच्‍छ क्षेत्रों, जहां कुक्‍कुट रखे जाते हैं, और बाहरी वातावरण के बीच एक अवरोध बनता है और यह फार्म से संक्रमण के स्रोत को रोकने और संक्रमित फार्म से अन्‍य असंक्रमित फार्म को संक्रमण के स्रोत को रोकने के लिए अत्‍यधिक महत्‍वपूर्ण जैवसुरक्षा उपाय है। फार्म और शैड, दोनों स्‍तर पर आवाजाही पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए।

यदि आवश्‍यक हो तो परिसर में गतिविधियों को मानीटर करने या उनके पर्यवेक्षण के लिए पूरे परिसर में सीसीटीवी की संस्‍तुति की जा सकती है।

क)       फार्म स्‍तर पर सामान्‍यतया आवाजाही पर प्रतिबंध:

  • विभिन्‍न प्रजाति यूनिटों के बीच बार-बार आवाजाही से बचने के लिए, जहां तक संभव हो, कुक्‍कुट की प्रत्‍येक प्रजाति के लिए अलग कार्मिक उपलब्‍ध कराए जाने चाहिएं।
  • कार्मिकों, वाहनों, पशुओं आदि के प्रवेश से बचने के लिए सभी फार्मों की घेराबंदी की जानी चाहिए।
  • प्रत्‍येक के लिए प्रवेश निषिद्ध करना चाहिए। फार्म के प्रबंधक या नियुक्‍त जिम्‍मेदार व्‍यक्ति की अनुमति से ही कुक्‍कुट फार्मों में प्रवेश किया जा सकता है।
  • फार्म में केवल उन व्‍यक्तियों को जाने की अनुमति दी जाए जिनकी फार्म में आवश्‍यकता हो, अर्थात् कार्मिक, चिकित्‍सा सेवाओं से संबंधित व्‍यक्ति।
  • यह बात ध्‍यान में रखी जानी चाहिए कि 24 घंटों के अन्‍दर विभिन्‍न फार्मों में जाने से गुरेज किया जाए। यदि आवश्‍यक हो तो दौरों के बीच स्‍नान की पुरजोर सिफारिश की जाती है। लोगों के उन दल पर भी ऐसे ही अनुदेश लागू किए जाने चाहिएं जो कुक्‍कुट को पकड़ते हैं और उनका लदान करते हैं।
  • फार्म में प्रवेश करने पर नियंत्रण में सुधार करने के लिए केवल एक प्रवेश और एक निकास द्वार होना चाहिए। ऐसे कार्मिकों के लिए इस्‍तेमाल की जाने वाली सड़क की प्रतिदिन सफाई की जानी चाहिए और उसका रोगाणुनाशन किया जाना चाहिए।
  • फार्म के प्रवेश स्‍थल पर बूट और प्रभावकारी रोगाणुनाशक से भरे व्‍हील डिप बाथ मुहैया किए जाने चाहिए। यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि दैनिक आधार पर बाथ्‍स में रोगाणुशक का नवीकरण किया जाता है।

ख) शैड/कुक्‍कुट शैड स्‍तर पर आवाजाही पर प्रतिबंध

  • शैड हर समय बन्‍द रखा जाए।
  • आदर्श रूप में शैड में हाथ धोने की सुविधा सहित वस्‍त्र बदलने के कक्ष की सुविधा होनी चाहिए (यदि आवश्‍यक हो तो स्‍नान करने की सुविधा होनी चाहिए)।
  • सफाई के लिए, साफ वस्‍त्र और बूट पहनने की सुविधा होनी चाहिए और उपयोग करने के पश्‍चात उन्‍हें वस्‍त्र बदलने के कक्ष में छोड़ देना चाहिए, और बाहर जाते समय वे वस्‍त्र पहनने चाहिए जो उस व्‍यक्ति ने वस्‍त्र बदलने के कक्ष में प्रवेश करने से पहले पहने हुए थे।
  • यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि सभी सामग्री, औषधियों और टीकों आदि की सफाई की जाती है और उन्‍हें रोगाणुओं से रहित किया जाता है तथा उन्‍हें विशेष रूप से डिजाइन किए गए भंडार कक्ष में 10 दिन रखा जाए और इस भंडारक्ष कक्ष की नियमित रूप से सफाई की जानी चाहिए।
  • फार्म प्रचालनों में उपयोग की जाने वाली समस्‍त सामग्री की उपयोग से पहले और बाद में सफाई की जानी चाहिए और उसे रोगाणु रहित किया जाना चाहिए।
  • ग) फार्म क्षेत्र में वाहन प्रवेश पर निषेधः
  • चूंकि परिवहन से अनेक कुक्कुट रोग फैल जाते हैं और इस प्रकार बहुत ही महत्वपूर्ण है कि फार्म परिसर में प्रवेश करने से पहले वाहनों को साफ और रोगाणु मुक्त करें।
  • प्रवेश पर व्यक्ति के लिए पहियाडीप और वाकवे का प्रबंध होना चाहिए।
  • वाहनों की सफाई और रोगाणु वाले व्यक्ति को स्वच्छ और रोगाणु मुक्त कपड़े पहनने चाहिए।
  • सभी गंदगी, भूसा, सभी तलों से कीचड़, ह्वील आर्च इत्यादि से हटाना सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
  • सभी उपकरण को वाहन से हटाए जिसे खण्डित किया जा सके और जिसे उसी स्थान पर साफ न किया जा सके।
  • सफाई के उद्देश्य से सभी तलों को सोखने के लिए अच्छी कार, ट्रक सफाई उत्पाद का उपयोग करे। पहियों छत, लिफ्ट इत्यादि पर ध्यान देना चाहिए और तब इसे 15 से 30 मिनट तक छोड़ देना चाहिए।
  • अच्छे डिटर्जेट से हटाए गए उपकरण और वाहन के अन्य यंत्रोँ को साफ करना चाहिए. कुछ समय तक सुखाने के बाद, सभी तलों उपकरणों को उच्चदान पर निचोड़ दे।
  • वाहन के लिए सभी तापमान पर प्रभावी रहने और वाहन पर किसी भी प्रकार का कार्बनिक पदार्थ नहीं छूटना चाहिए।
  • रोगाणु नाशक परिचालनों के दौरान, सभी आंतरिक और वाह्य तलों को रोगाणु नाशकों से रोगाणु मुक्त करें। उपन से नीचे तक कार्य करें और क्रैक और पहियों पर ध्यान दें। यह भी सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि वाहन के अन्दर के भाग को भी रोगाणु मुक्त किया जाए।
  • इससे पानी निकालने और सूखाने के लिए वाहन को स्वच्छ और रोगमुक्त स्थल पर ले जाए।
  • चालक के आवागमन पर प्रतिबंध लगाएं।
  • चालकों को केवल अण्डा भण्डारण कक्ष तक ही प्रवेश करने की अनुमति दी जाए।
  • सभी आहार सुपुर्दगी वाहनों को आहार लदान से पहले साफ कर देना चाहिए।
  • आहार को पहले छोटे झुण्ड और तब बड़े झुण्ड के पास ले जाना चाहिए।
  • किसी भी परिस्थिति में चालकों को कुक्कुट आवासों में प्रवेश नहीं करना चाहिए।
  • चालकों को प्रत्येक सुपुर्दगी के बाद रोगाणुनाशक से वाहन के फ्लोर बोर्ड और जूते के तलवे पर छिड़काव करना चाहिए।
  • दूसरे शेड तक आने से पहले हाथों को रोगाणुनाशक चोल से घुलना चाहिए।

(घ) दर्शकों पर प्रतिबंध

  • फार्म में रखी गई कुक्कुट से मिलने के लिए आवश्यक लोगों को मिलने की अनुमति देनी चाहिए।
  • प्रदर्शन क्षेत्र अलग बचाए और वहां रखी गई पक्षियों को बाद में शेड आवास की पक्षियों के साथ नहीं रखना चाहिए।
  • यदि आगंतुकों के पास अपनी पक्षियॉं हैं तो उन्‍हें इन पक्षियों के निकट आने की अनुमति न दी जाए।
  • दर्शकों का फार्म में प्रवेश जैव सुरक्षा मानकों को सुनिश्‍चित करते हुए आवश्‍यक स्‍थितियों में शेड में प्रवेश दिया जाए। इस सीमा में फार्म में प्रवेश करने के लिए पैर धुलना शामिल है और तब शेड के स्‍तर से, प्रत्‍येक दर्शक अपनी पौशाक/टोपी//जूते को बदल सकता है, (यदि आवश्‍यकता हो तो नीति के अनुसार शावर के माध्‍यम से जाए) और स्‍वच्‍छ और असंक्रमित कपड़े/टोपी और जूते पहने।

ङ) फार्म श्रमिकों पर प्रतिबन्‍ध:

  • प्रारम्‍भ में फार्म श्रमिकों को जैव सुरक्षा के प्राथमिक सिद्धांतों के संबंध में प्रशिक्षण देना।
  • फार्म में पक्षियों को नियंत्रित करने के लिए प्रतिदिन के आधार पर केवल कर्मचारियों को अनुमति दी जाए।
  • यह सुनिश्‍चित करें कि कर्मचारियों का वाणिज्‍यिक या निजी पक्षी परिचालन नहीं है जिससे फार्म में रखे गए पक्षियों में रोगों का संक्रमण न हो।
  • फार्म श्रमिकों को अन्‍य कुक्‍कुट फार्म या स्‍थानों पर जाने की अनुमति न दी जाए जहॉं पक्षियॉं रखें गए हों। इसी प्रकार, फार्म श्रमिकों को पक्षी प्रदर्शनी या पक्षी मेलों में जाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।
  • एक कुक्‍कुट प्रजाति के पालन में संलग्‍न श्रमिकों को दूसरे फार्म में जहॉं भिन्‍न कुक्‍कुट प्रजाति का पालन किया जा रहा हो का दौरा करने की अनुमति नहीं देनी चाहिए।
  • जैव सुरक्षा के सभी मानकों के बाद फार्म में सभी फार्म श्रमिकों को अनुमति देनी चाहिए जैसा कि सभी दर्शकों के लिए उल्‍लेख किया गया है।
  • सभी फार्म श्रमिकों को अपना काम समाप्‍त करने के बाद अपने कपड़े और जूते उतार देने चाहिए और स्‍नान करना चाहिए।
  • सभी श्रमिकों को फार्म परिचालनों के दौरान स्‍वच्‍छ और असंक्रमित कपड़े पहनने चाहिए।
  • दिन में फार्म के तलछट परिचालनों के लिए पर्याप्‍त संसर्ग समय तक हाथ को डिटर्जेंट या साबुन से धुलने के लिए प्रोत्‍साहित किया जाना चाहिए।

च) फार्म में संक्रमण के वाहकों का प्रतिबन्‍ध:

संक्रमण के कुछ मैकेनिकल वाहकों का फार्म भवन में प्रवेश निषेध किया जाना चाहिए।

  • पहले से संक्रमित कुक्‍कुट आवासों में साफ करने के कम-से-कम तीन सप्‍ताह के बाद नए पक्षियों को प्रवेश नहीं देना चाहिए।
  • जंगली पक्षियॉं- पालतु मुर्गा या प्रवासी पक्षियों को झुण्‍ड के साथ परदे या जाल के माध्‍यम से सम्‍पर्क नहीं होना चाहिए।
  • पक्षी परावर्तन/सौर फेंसिंग पर विचार किया जाना चाहिए।
  • निश्‍चित रोगजनकों के स्‍थानांतरण में विभिन्‍न प्रजातियों की मक्‍खियॉं महत्‍वपूर्ण हैं इसलिए कीड़ा नियंत्रण कार्यक्रम कराना चाहिए।
  • संक्रमण के स्‍थानांतरण में रोडेंट्स महत्‍वपूर्ण है। इसलिए उनके गति को आवासों के एकल अहाता के बीच में नियंत्रित करना और रोकना चाहिए।
  • स्‍थिर जल के संचयन को रोकने के लिए कदम उठाये जाने चाहिए। इस प्रकार के जल निकाय प्रवासी जलपक्षी और समुद्री पक्षियों के लिए जल स्‍त्रोत के रूप में कार्य कर सकता है।
  • जंगली और मुक्‍त उड़ान पक्षियों के लिए खाद्य के सीमित संसाधन।

छ) बहु-प्रजातियों का पालन और चेतावनी:

बहु-प्रजातियेां के रखने के लिए विशेष दिशा-निर्देश को बाद में व्‍याख्‍या की जाएगी। तथापि, निम्‍नलिखित सामान्‍य नियमों को दिमाग में रखा जाना चाहिए।

  • कुक्‍कुट यूनिटें दूरी पर स्‍थित होनी चाहिए या एक-दूसरे से अच्‍छी तरह विभाजित होने चाहिए।
  • प्रत्‍येक प्रजातियों के लिए अलग हैचरी पर विचार किया जाना चाहिए।
  • विभिन्‍न प्रजातियों के यूनिटों में अलग खाद्य भण्‍डारण सुविधा के प्रबंध पर भी विचार किया जाना चाहिए।
  • पक्षियों के विभिन्‍न प्रजातियों हेतु उपकरण अलग होने चाहिए।
  • प्रत्‍येक प्रजातियों के यूनिटों में प्रवेश के लिए असंक्रमित सभी प्रकार के स्‍प्रे का प्रावधान होना चाहिए।
  1. V)नई पक्षियों का अलगाव और संगरोध:

अलग स्‍थान और दीवार पर नई पक्षियों का अलगाव और संगरोध आवश्‍यक है ताकि संक्रमित एजेंट जो वहॉं नई पक्षियों में हो इन पक्षियों के अन्‍य पक्षी झुण्‍डों में प्रवेश से पहले पता लगाया जा सके।

  • यदि पक्षियों को प्रदर्शनी या मेले में उपयोग किया गया हो तो इन पक्षियों को शेष पक्षी झुण्‍डों से 21 दिनों तक अलग रखने के बाद रोग के लक्षणों को देखा जाए।
  • पुराने स्‍टॉक से नई पक्षियों को कम-से-कम इक्‍कीस दिनों तक अलग रखना चाहिए और उनमें किसी रोग के विकसित होने के लक्षण पर ध्‍यान देना चाहिए पहले से मौजूद पुराने स्‍टॉक में मिलने से पहले जॉंच के लिए नमूने (खून, मल, फाह) एकत्रित करना चाहिए।
  • यह सुनिश्‍चित किया जाना चाहिए कि पक्षियों के एक-समान आयु समूह के शेड आवास होने चाहिए, यदि फार्म में विभिन्‍न आयु समूह के पक्षी हों।
  • पुन: भण्‍डारण से पहले कीट अशुद्धि जॉंच होनी चाहिए।
  1. iv) सफाई और स्वच्छता:
  • प्रभावी स्‍वच्‍छता और असंक्रमण अच्‍छी सफाई के आवश्‍यक घटक हैं और इस प्रकार रोग नियंत्रण के लिए मुख्‍य जैव-सुरक्षा मानकों में से एक है। इसे समय-समय पर कम करने के लिए किया जाना चाहिए, रोगजनक जीवों और असंक्रमित के रूप में जाने जाने वाले पैथोजन्‍स का प्रयोग इस प्रकार के विषाणुओं को रोकने के लिए नियमित आधार पर किया जाना चाहिए। इसे पदार्थों के असंक्रमित होने के लिए घोषित करना चाहिए।
  • अनुमोदित असंक्रमित जैसे क्‍लोरीन डाई ऑक्‍साइड और पैरासिटिक एसिड का असंक्रमण और स्‍टेरीलाइजेशन के लिए उपयोग किया जा सकता है।
  • फार्म के उपकरणों का प्रवेश, फार्म के व्‍यक्‍तियों की सफाई, मृत पक्षियों को फेंकना और कुक्‍कुट मैन्‍योर और पेय जल की सफाई पर ध्‍यान देना चाहिए।
  • कुक्‍कुट शेड के आस-पास के क्षेत्र को सब्‍जी उगाने, खाद्य अपशिष्‍ट, प्‍लास्‍टिक के बोतल, शीशे के बोतल, टीन या ड्रम से स्‍वच्‍छ रखना चाहिए।
  • जल परीक्षण नियमित अन्‍तराल के बाद किया जाना चाहिए। जल शुद्धि यन्‍त्र प्रत्‍येक शेड में आवश्‍यक है।
  • हवा को शुद्ध करने वाला यन्‍त्र सभी शेडों में आवश्‍यक है।
  • माइक्रो बायल भार की जॉंच-विभिन्‍न स्‍थानों पर आवश्‍यक है।

क) फार्म उपकरणों की सफाई और किटाणुरहित करना:

  • केज क्षेत्र में उपयोग किए गए खाद्य पात्रों और पेय उपकरणों की दैनिक सफाई करनी चाहिए।
  • स्‍क्रब करना चाहिए और प्रभावी कीटाणुशोधित के साथ गर्म जल का उपयोग करना चाहिए।
  • दूसरे स्‍थानों पर ले जाने से पहले कुक्‍कुट, लॉन, बगीचा और कुक्‍कुट उपकरणों का सम्‍पर्क रहा हो, इन्‍हें धुला दिया गया हो और किटाणुरहित कर दिया गया हो यह सुनिश्‍चित करना है। जब कुछ उपकरण फार्म में लाए जाते हैं तो उपरोक्‍त प्रक्रिया का अनुकरण किया जाता है।
  • केज को स्‍वच्‍छ रखने से संचयन से, पैथोजन से और स्‍वास्‍थ्‍य समस्‍याओं से बचाता है। केजों को नियमित अन्‍तराल पर किटाणुरहित किया जाना चाहिए। उन्‍हें सूर्य में छोड़ देना चाहिए और तब किटाणुरहित करना चाहिए। किन्‍तु केजों को किटाणुरहित करने से पहले मैन्‍योर को हटाना आवश्‍यक है। यदि मदों पर मैन्‍योर रहेगा तो किटाणुनाशक काम नहीं करेगा।
  • नये खरीदे गये उपकरणों को पूर्णता: साबुन के पानी से धोना चाहिए अथवा उपयोग करने से पहले किटाणुरहित बनाना चाहिए।
  • नये खरीदे गए केजों को साबुन के पानी से धोना चाहिए अथवा किटाणुरहित बनाना चाहिए।
  • कुक्‍कुट उपकरणों जैसे अण्‍डा क्रेट्स, केज, फावड़ियों और रेक को परिवार या पड़ोसी फार्मों में शेयर नहीं करना चाहिए। लकड़ी के सामान की तुलना में प्‍लास्‍टिक या मेटल के उपकरण को महत्‍व देना चाहिए।
  • आहार और पानी प्रतिदिन बदलना चाहिए।

ख) कुक्‍कुट आवासों की सफाई और किटाणुरहित करना:

आवास की सफाई करना जैव सुरक्षा का सबसे महत्‍वपूर्ण चरण है और इसे दो प्रकार से विभाजित किया जा सकता है।

  1. पूर्ण या अंतिम आवास की सफाई:इसे पक्षी झुण्‍डों को हटाने के बाद किया जाता है और निम्‍नलिखित बिन्‍दुओं पर विचार किया जाना चाहिए।
  • पक्षी झुण्‍डों को हटाने के बाद, छुटे हुए पंखों को हटाना, गोबर, लेटर इत्‍यादि को हटाना। इसे शेड के पूर्ण और किटाणुरहित करके करना चाहिए। पहले आवास को धूप देना चाहिए और तब इसे प्रभावी ढंग से किटाणुरहित करना चाहिए। नए पक्षी झुण्‍डों के आने से पहले शेड को कम-से-कम दस दिन की अवधि के लिए खाली रखना चाहिए।
  • नये पक्षी झुण्‍डों के आने से पहले यह सुनिश्‍चित करना चाहिए कि कूड़े में अधिक नमी तो नहीं है अन्‍यथा फफूंदी बढ़ने का अधिक अवसर होता है।
  • आंशिक/अनुवर्ती आवास सफाई:
  • इस प्रकार की सफाई तब की जाती है जब पक्षियॉ आवास के अन्‍दर रहते हैं निम्‍नलिखित विचारों सहित किया जाता है
  • पंखों को पूरी तरह से साफ करना और यह नियमित लक्षण होना चाहिए।
  • आवास में ऊपर से नीचे तक झाड़ू लगाना।
  • केक्‍ड कुड़े को आवास से फेंकना।
  • आवास को कूड़ा रहित करना।
  • नियमित रूप से ब्रूडर गार्ड, फीडर, जग, पेयजल पात्र को ऑयडोफोर्स और 5% सोडियम हाई-क्‍लोराइड का उपयोग करके किटाणुरहित करना चाहिए। अन्‍य प्रभावी रसायन जैसे सोडियम, डोडिसिल, सल्‍फेट, फॉर्मेलिन और आयोडीन घटकों का भी उपयोग किया जा सकता है।
  • नियमित रूप से पेयजल को स्‍वच्‍छ करना।
  • मिलाए गए किटाणुशोधक की मात्रा प्रत्‍येक शेड/हैचरी के प्रवेश द्वार पर प्रदर्शित किया जाना चाहिए।
  1. V) कर्मियों की स्वच्छता:
  • कर्मचारियों को विशेष प्रकार के सभी वस्‍त्र देना चाहिए।
  • फार्म एरिया में प्रवेश करने से पहले और बाद में पूरा हाथ धोना। मिलने के दस मिनट से हाथ को साबुन या डिटर्जेंट से धोना।
  • फार्म में पक्षियों के साथ काम करते समय स्‍वच्‍छ कपड़े पहनना या ढकना। कपड़े लॉंड्री डिटर्जेंट से धुलने योग्‍य होने चाहिए। इस उद्देश्‍य के लिए डिटर्जेंट या ऑक्‍सीडाइजिंग एजेंट (2-3% उपलब्‍ध क्‍लोरीन के लिए सोडियम हाइपोक्‍लोराइड मिश्रण अथवा दस मिनट मिलने के समय पर 2% विरकॉन देना) और अल्‍काली (10-30 मिनट के मिलने पर सोडियम हाइड्रोक्‍साइड का 2% विलयन या सोडियम कार्बोनेट एनहाइड्रस का 4% सांद्रण) का उपयोग किया जा सकता है। गंदे कपड़े को डिटर्जेंट से धोना चाहिए और इसे धूप में सूखने के लिए टॉंग देना चाहिए।
  • चूँकि कुक्‍कुट में रोग जूते के माध्‍यम से आसानी से संक्रमित हो सकते हैं इसलिए जूतों का उपयोग सफाई और किटाणुरहित करने के बाद करना चाहिए। पक्षियों के साथ काम करने के बाद या पहले जूतों को अच्‍छी तरह से किटाणुरहित करना या पक्षियों के निकट कार्य करने के लिए एक अलग जोड़ी जूता रखना और कुक्‍कुट आहातों को छोड़ते समय दूसरा जूता बदलना।
  • जब देखभाल करने वाला कर्मचारी चूजे या अन्‍य कुक्‍कुट (जैसे अण्‍डा एकत्रित करना, आहार या पानी देना, बिस्‍तर बदलना या चाहरदीवारी सामग्री की मरम्‍मत करना) में जाता है तो कपड़े/जूते बदलने की आवश्‍यकता होती है।
  • पशुधन और आहार के सम्‍पर्क में आने वाले सभी श्रमिकों की चिकित्‍सकीय जॉंच की जानी चाहिए।
  1. vi) पोल्ट्री खाद का स्वच्छतापूर्ण निपटान
  • कुक्‍कुट खाद्य और अन्‍य कुक्‍कुट उप-उत्‍पादों जैसे पंखों का कृषि और जलकृषि में खाद के रूप में और सुअर के लिए खाद्य के रूप में और मछली संक्रमण के साधन के रूप में कार्य कर सकती है क्‍योंकि कई सप्‍ताह तक फेसिज जैसे कार्बनिक पदार्थ के अन्‍दर विषाणु सक्रिय रहते हैं।
  • कुक्‍कुट खाद को कम-से-कम तीस दिनों तक बिना छेड़-छाड़ किए छोड़ देना चाहिए और तब खाद के रूप में उपयोग की जा सकती है। उच्‍च खतरे वाली कृषि अभ्‍यास जैसे दूषित जल का उपयोग और बिना उपचार के कुक्‍कुट का पुर्नचक्रीकरण को रोक देना चाहिए।
  • खाद के कुक्‍कुट प्रसंस्‍करण से उत्‍पादित गंदा पानी को फेंक दिया जाता है एसिड जैसे हाइपोक्‍लोरिक एसिड 2% या सिट्रिक एसिड 2% या सॉड जैसे अल्‍काली उपचार सहित
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    vii)  मृत पक्षियों का निपटान:

मृत पक्षियों को यह सुनिश्‍चित करने के लिए अन्‍य पक्षियों से सम्‍पर्क न हो तेजी से और उचित ढ़ग से हटाना चाहिए जो संक्रमित फॉसी के साधन को हटाने में कुक्‍कुट और हैंडलर्स की मदद करेगा। मृत पक्षियों को हटाने का सबसे अच्‍छा तरीका उन्‍हें जलाना अथवा भस्‍मीकरण है।

    viii)  खाद्य चारा सुरक्षा:

  • वित्‍तीय और वास्‍तविक विचारों के संबंध में पाश्‍चुरीकरण को प्राप्‍त करने के लिए खाद्य की गोली बनानी चाहिए। इन्‍टेरिक जीवाणु को समाप्‍त करने के लिए इसे 82 डिग्री सेन्‍टीग्रेड की आवश्‍यकता लगभग 3 सेकण्‍ड के लिए होती है। निर्माण की अच्‍छी प्रक्रियाओं को बनाए रखना और गोली प्रक्रिया का ध्‍यानपूर्वक नियंत्रण संक्रमण की संभाव्‍यता को कम करेगा।
  • प्रवरण, आवेदन और कीटनाशक और कृन्‍तकनाशी के नियंत्रण में या तो आहार संयंत्रकर्मी को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए या लाइसेंस प्राप्‍त आवेदक को उपयोग करना चाहिए। यह आकस्‍मिक आहार के दूषित होने या नियमों के उल्लंघन की संभावना को कम करता है।
  1. ix) विश्राम की अवधि या एक समान आयु समूह का पालन:

एक रोकने का उपाय जिसे फार्म में लगाया जा सकता है किन्‍तु इसे अच्‍छे नियोजन और अनेक संलग्‍नकों की आवश्‍यकता है जो सभी अभ्‍यास करने की विधि है। यह विधि चूजों के पूर्ण वृद्धि चक्र को जब से पक्षियॉं बाजार में भेजी जाती हैं उनके पुराने दिनों में चूजों के साथ भेजने की अवधि तक

  • कुक्‍कुट फार्मों में महत्‍वपूर्ण जर्म प्‍लाज्‍मों को बनाये रखते हुए सभी प्रणालियों का अनुकरण करना चाहिए। यह प्रणाली रोगनियंत्रण में विचारणीय लाभ उपलब्‍ध कराती है। इस प्रणाली का उपयोग करते हुए, उचित सफाई प्रभावी ढ़ग से की जा सकती है, एक बैच से दूसरे बैच तक कोई भी संक्रामक एजेंट नहीं है इसे सुनिश्‍चित करने के लिए निर्माण की आवश्‍यक विश्राम अवधि को दोगुना करना। विभिन्‍न आयु के पक्षियों को समान आहाते/शेड में रखने से इस प्रकार के पक्षियों और रिकवर्ड वाहकों से गम्‍भीर रोग होते हैं,  विशेषकर जब विभिन्‍न आयु की पक्षियॉं एक-दूसरे के साथ जुड़ी होती हैं।
  • सफाई और अलग- अलग बैचों के बीच में अंतराल रखना बहुत जरूरी है । नये बैच को डालने से पहले कम से कम 10 दिन का अंतराल रखें ।
  • इस दौरान पोल्ट्री घर को प्रभावी कीटाणुनाशक दवाई छिडकें तथा फ्यूमिगेशन करें ।
  1. x) पक्षियों की चिकित्‍सा/टीकाकरण:

पक्षियों को निश्‍चित दवाऍं और आवश्‍यक टीका नियमित रूप से दिया जाना चाहिए, जो उनकी रोग निरोधक क्षमता जैसे विटामिन, मिनिरल और प्रोटीन को बढ़ा सके। इसकी कमी से न केवल उत्‍पादन में क्षति होगी बल्‍कि रोग निरोधक क्षमता के स्‍तर सहित पक्षी झुण्‍ड में संक्रमण के अवसर बढ़ेंगे। गर्म मौसम, पंख हटाने के बाद, डबिंग इत्‍यादि के दौरान दबाव से उबरने के लिए चिकित्‍सा की जानी चाहिए।

  1. xi) झुंड में रूपरेखा:
  • माइकोटॉक्‍सिन या अन्‍य टॉक्‍सिन के लिए आहार का विश्‍लेषण नियमित रूप से जैव सुरक्षा मानकों का एक भाग है।
  • कुक्‍कुट आवासों में साल्‍मोनेला की पर्यावरणीय मॉनीटरिंग नियमित रूप से करनी चाहिए।
  • अलगाव, पहचान और पैथोजनिक कार्बनिकों का एण्‍टी बायोग्राम जैव सुरक्षा मानकों का एक भाग होना चाहिए।
  • दवाब कम करना मानक नियमित जैव सुरक्षा मानकों का एक मानक होना चाहिए। ग्रीष्‍म दबाव को हटाने के लिए पर्यावरणीय तापमान को नियंत्रित करना बहुत महत्‍वपूर्ण है।
  • कुक्‍कुट परिचालन में कार्यरत व्‍यक्‍ति को रोग के बारे में, इसके संक्रमण और बचाब उपायों के संबंध में शिक्षित होना चाहिए।

xii) उच्‍च खतरा/ खतरनाक स्थिति के लिए:

  • संक्रामक रोग के संदेह से स्‍वयं संगरोध-कुक्‍कुट, अण्‍डा, मृतक कारकश, खाद, फार्म मशीनरी का कोई कार्य, और संक्रमित शेड क्षेत्र के अन्‍दर और बाहर/अन्‍य शेड क्षेत्र में किसी भी उपकरण को ले जाने की अनुमति नहीं है।
  • असंक्रमित शेडों के लिए शीघ्र विस्‍तृत जैव सुरक्षा प्रोटोकॉल को अपनाना।
  • मृत पक्षियों को संक्रामक पदार्थ के रूप में व्‍यवहार करना चाहिए और इन्‍हें फार्म से फेंक देना चाहिए।
  • प्रभावित शेड में विशेष कर्मचारी को सौंपना चाहिए।
  • फार्म कर्मी को फार्म के अंदर हमेशा संरक्षात्‍मक कपड़े, मुखौटा और दस्‍ताने, और गमबूट पहनना चाहिए।
  • फार्म को छोड़ने के लिए कठिन जैव सुरक्षा प्रविधियों का पालन करना।
  • फार्म पहुँच को शीघ्रता से गेट बंद करना।
  • अनावश्‍यक सभी यातायात को समाप्‍त करना-फार्म में किसी भी वाहन को अंदर आने या बाहर जाने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए। व्‍यक्‍तिगत वाहन को फार्म के बाड़े में बाहर छोड़ देना चाहिए।
  • बाड़े के प्रवेश द्वार पर असंक्रामक उपायों को सख्‍ती से लगाना चाहिए।
  • फार्म में पक्षियों की असामान्य मृत्‍यु और बीमारी के संबंध में मंत्रालय को शीघ्र रिपोर्ट करना चाहिए।
  • xiii)  डॉक्‍यूमेटेशन और रिकॉर्ड रखना (संकेतक सूची):
  • स्‍वच्‍छ और गंदे क्षेत्र सहित यूनिडायरेक्शनल एप्रोच के स्‍पष्‍ट विभाजन सहित सम्‍पूर्ण फार्म का नक्‍शा/परिव्‍यय (एकतरफा रास्‍ता) सड़कें/पहुँचने के बिंदु/स्‍वच्‍छ-गंदा जल विभाजक इत्‍यादि- कार्यालय में स्‍पष्‍ट किया गया आलोचनात्‍मक नियंत्रण बिंदु सहित सभी रंगों के कोड प्रदर्शित होने चाहिए।
  • वैयक्‍तिक रोस्‍टर, शेड वार-प्रवेश/बाहर निकलने का समय, ड्यूटी/नौकरी का चार्ट, शेड की सफाई, पैन को आहार देना/चैनल को पानी देना, केज की सफाई लीटर टर्निंग इत्‍यादि।
  • दर्शक प्रवेश लॉग।
  • वाहन प्रवेश लॉग।
  • आवासों के लिए असंक्रामक स्‍प्रे सूची, पहिया/पैर-डिप चेंज रोस्‍टर।
  • दोनों सामग्रियों के अंदर और बाहर के लिए (चूजे/अण्‍डे सेना इत्‍यादि) आगमन और प्रस्‍थान क्रमश:।
  • आहार/उपकरण आगमन हेतु लॉग और शेड वार आबंटन, हैचरी/उपकरण का असंक्रमित होना।
  • कर्मी के लिए स्‍वास्‍थ्‍य जॉंच और स्‍वच्‍छता जॉंच सूची।
  • वेक्‍टर/रोडेंट नियंत्रण कार्यक्रम और मॉनीटरिंग सूची।
  • मृत पक्षी, हैचरी अवशिष्‍ट का निपटान/खाद्य निपटान का रिकॉर्ड रखना।
  • जल सफाई सूची/जल जॉंच फ्रिक्‍वेंसी।
  • विभिन्‍न क्षेत्रों में माइक्रो बॉयल भार जॉंच बारम्‍बारता-साल्‍मोनेला, कोली और क्‍लोस्‍ट्रिडियम प्रजातियों से मुक्‍त स्‍थिति को सुनिश्‍चित करने के लिए जॉंच सूची।
  • साल्‍मोनेला जॉंच सूची।
  • शेड स्‍वच्‍छता/असंक्रमण/धुप दिखाने की सूची।
  • समान आयु समूह स्‍टॉक इत्‍यादि सहित अलग शेडों को रिकॉर्ड करना।
  • आहार जॉंच सूची।

मुर्गी चूज़ों की देखभाल

  1. चूजा घर में पुरानी पड़ी बीेट को खुरच कर निकाल दें। फर्श को फिनाइलपानी से धोकर साफ करें। घर के अन्दर चूने से सफेदी करा दें।
  2. चूजा घर के सभी खिड़की या दरवाजे बंद कर60ग्राम KMno4 और 120 मि.ली. फार्मोलिन को 1 लीटर पानी में प्रति 100 वर्ग फीट के हिसाब से लेकर धुआ उत्पन्न कर निजर्मीकरण करना चाहिए।
  3. 2 -3इंच गहरा व सूखा बिछावन लकड़ी का बुरादाधान की भूसी इत्यादि फर्श पर बिछा दें।
  4. ब्रूडर (4×4फीट) का 250-300 चूजों के लिए पर्याप्त होता है।
  5. चिक गार्ड गन्ने/लकड़ी के फ्रेम में जाली लगाकर टिन का1)फीट ऊंचा ब्रूडर के चारों ओर लगाना चाहिए। ब्रूडर व चिक गार्ड के बीच 2-3 फीट की दूरी रखनी चाहिए। ये चिक गार्ड चूजों को गर्मी के स्त्रोत/ब्रूडर से अधिक दूर जाने से रोकेगा। 250-300 चूजों के लिए 7 फीट परिधि का एक चिक गार्ड पर्याप्त होता है।
  6. चिक गार्ड को शुरू के7 दिनों के बाद हटा देना चाहिए।
  7. शुरूवात के5-7 दिनों तक बिछावन में अखबार बिछाना चाहिए। दाना अखबार में बिखरने से चूजें आसानी से दाना खाना सीखतें है।
  8. चिक गार्ड व ब्रूडर के बीच खाली जगह में दानें व पानी के बर्तन रखेंइन्हेंब्रूडर के नीचे नहीं रखना चाहिए।
  9. चूजे लाने के6 घंटे पहले ब्रूडर को चालू कर देना चाहिए।
  10. ब्रूडर हाउस के दरवाजे के बाहर फिनाइल/चूना पावडर/ ज्ञडदव4घोल का एण्टीसेप्टिक फुट बाथ रखें।
  11. चूजों को पहले15 घण्टों में 8 प्रतिशत शक्कर या गुड़ घोल पीने के पानी में देना चाहिए। पहले 3-5 दिनों तक पीने के पानी में एण्टीबायोटिक पावडरविटामिन बी. काम्लेक्स व सी. पाउडरइलेक्ट्राल या ओ.आर.एस. का पावडर देना चाहिए।
  12. टीकाकरण खासकर मरेक्सरानीखेत और गुम्बोरो बीमारी के अतिआवश्यक है।

       1000 चूजों को रखने के लिए आवश्यक सामग्री

  1. ब्रूडर (4×4 फीट) 250-300 चूजों की क्षमता वाला = 4 नग
  2. ब्रूडर गार्ड (7 फीट परिधि वाला) = 4
  3. दाने के बर्तन

अ. छोटे चूजों के लिए = 40

ब. बड़े ग्रोवर फीडर   = 80

  1. पानी के बर्तन

अ. छोटे चूजों के लिए (कम गहरे) = 30

ब. बड़े ग्रोवर पानी बर्तन = 30

  1. बल्ब (रोशनी के लिए) = 3
  2. बिछावन-लकड़ी का बुरादा, धान की भूसी आदि = 2500 कि.ग्रा.

मुर्गियों के रहने की जगहदाना व पानी के लिए आवश्यक जानकारी

  1. जगह-

अ. 0 से 4 सप्ताह – 1/2 वर्ग फुट प्रति चूजा।

ब. 4 से 8 सप्ताह – 1 वर्ग फुट प्रति मुर्गी।

स. 9 से 20 सप्ताह – 2 वर्ग फुट प्रति मुर्गी।

द. 20 सप्ताह से ऊपर – 2.5 वर्ग फुट प्रति मुर्गी।

  1. दाने की जगह-

अ. 0 – 4 सप्ताह – 1 इंज प्रति चूजा या 8 फीट प्रति 100 चूजे।

ब. 4 – 8 सप्ताह – 2 इंच प्रति मुर्गी या 20 फीट प्रति 100 मुर्गी।

स. 9 – 20 सप्ताह – 3 इंच प्रति मुर्गी या 25 फीट प्रति 100 मुर्गी।

द. 20 सप्ताह से ऊपर – 4 इंच प्रति मुर्गी या 300 फीट प्रति 100 मुर्गी या 20 मुर्गियों के लिए एक गोलाकार लटकने वाला बर्तन।

  1. पानी की जगह

अ. 0 – 4 सप्ताह- दो 3 लीटर पानी बर्तन प्रति 100 चूजे या 2 फीट पानी पीने की जगह प्रति 100 चूजे।

ब. 4 – 8 सप्ताह – दो 10 लीटर पानी बर्तन प्रति प्रति 100 मुर्गी या 3 फीट पानी पीने के जगह प्रति 100 मुर्गी।

स. 9 – 20 सप्ताह – तीन 10 लीटर क्षमता का पानी बर्तन प्रति 100 मुर्गी या 8 फीट लम्बी पानी की जगह प्रति 100 मुर्गियों के लिए।

  1. तापमान-

अ. 0 – 4 दिन – 35 डिग्री सेल्सियस

ब. 5 – 7 दिन – 32 डिग्री सेल्सियस

स. 2 सप्ताह – 29 डिग्री सेल्सियस

द. 3 सप्ताह – 26 डिग्री सेल्सियस

ई. 4 सप्ताह – 21 – 23 डिग्री सेल्सियस

फ. 9 से 20 सप्ताह – अतिरिक्त गर्मी देने की कोई जरूरत नहीं।

ज. 20 सप्ताह के उपर – अतिरिक्त गर्मी देने की जरूरत नहीं।

  1. प्रकाश व्यवस्था-

0 – 8 सप्ताह – 23 घण्टे प्रकाश व 1 घण्टे अंधेरा।

9 – 20 सप्ताह – रात को रोशनी नहीं।

20 सप्ताह से उपर – 16 घण्टे प्रकाश व 8 घण्टे रात में अंधेरा।

  1. बिछावन की गहराई – 

0 -4 सप्ताह = 2 से 3 इंच

4 – 8 सप्ताह = 4 से 5 इंच

8 – 20 सप्ताह = 5 से 6 इंच

20 सप्ताह से उपर = से इंच

 

छोटे चूजों, पठोर (ग्रोवर), अण्डा उत्पादन करने वाली मुर्गियों का प्रबंधन

छोटे चूजों का पालन पोषण

हेचरी से चूजों में तुरन्त चूजागृह में स्थानांतरण किया जाना चाहिए। चूजा गृह में चूजों को 6-8 सप्ताहों की उम्र तक रखा जाता है ये व्यवसायिक मुर्गियों के जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है, अतः उनका प्रबंध सावधानी से किया जाना चाहिए। चूजा गृह से नये चूजों को लाने का उचित समय फरवरी से मार्च है। इससे मुर्गियों से अधिकतम अण्डा उत्पादन ठंड के महिनों में प्राप्त होगा तब अण्डों का विक्रय मूल्य अधिकतम मिलता है।

 कितनी संख्या में चूजों के लिए आदेश करें

यदि हमें 1000 पठोर मुर्गी लेयर घर में पालना है तब हमें 1100 चूजों का आदेश करना चाहिए। यदि 5 प्रतिशत की चूजे हेचरी से प्राप्त हों तब भी 1100 चूजों का आदेश करें। इससे चूजों की मृत्यु, छटनी तथा नर चूजों की कमी को पूरी कर सकेंगे। यदि आवश्यक हो तो अग्रिम भुगतान करें।

चूजों के आने के पूर्व चूजा गृह की तैयारी

  1. चूजा गृह से पुरानी बिछाली तथा चूजा गृह के उपकरण बाहर निकालें। पुरानी बिछाली का संग्रहण प्रक्षेत्र भवनों से 100 फिट दूर करें। धूल और मकड़ी के जालों को चूजा गृह में अंदर व बाहर की दीवारों, छत, बाहर की दीवारों तथा खिड़कियों को झाड़ू से साफ करें।
  2. धूल झराने के पश्चात् उन्हें ठंडे या गर्म पानी की दबाव युक्त बौछारों से धुलें।
  3. खिड़कियों की जालियों, लोहे या लकड़ी के चैखटों व उपकरणों को अच्छी तरह साफ करें।
  4. दीवारों पर चूने से पुताई करें (मेलाथियान नुवान) जीवाणु, विषाणु व फफूंद नाशक तथा कीटनाशी को पानी में घोलकर सूखे फर्श दीवारों पर स्प्रेयर से अच्छी तरह छिटकाव करें।
  5. पानी के उपकरणों, दाने संग्रह के टंकियों, पाइप लाइन को जीवाणु नाशक द्रव से अच्छी तरह धुलकर उपचार करें।
  6. किलनियों, खटमलों को मारने के लिये दीवारों को या उनके अन्य छिपने के स्थानों पर ब्लो लेम्प या फ्लेम गन की सहायता से अग्नि ज्वाला से नष्ट कर दें।
  7. चूहे कुक्कुट आहार को खाकर दूषित करते हैं, व कई बीमारियों के फैलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं उनके बिलों का सीमेन्ट कांक्रीट से समय- समय पर बंद कर देना चाहिए। नालियों के मुंह में जालियां लगा देनी चाहिए। चूहों को मारने के लिए चूहा मारक दवायें जैसे जिंक फास्फाइड, एल्युमिनियम फास्फाइड, थैलियम सल्फेट बेरियम कार्बोनेट व आर्सेनिक ट्राई आक्साइड का उपयोग कर सकते हैं। चूहों को पकड़ने के लिये चूहेदानी का प्रयोग करें। पकड़े गये चूहों को पानी में डुबाकर मार देना चाहिए।
  8. फार्म को 2-15 दिनों के लिये बंद कर दें।
  9. फर्श पर 2-3″  मोटी तह नई गहरी बिछाली जैसे कि लकड़ी का बरूदा या चावल के भूसी (छिलकों) को बिछा दें। गर्मी में यह पतली व सर्दी में मोटी रखें। बिछाली पर अखबार का भूरा कागज बिछा दें।
  10. गहरी बिछाली या बैटरी ब्रूडर के फर्श की जाली पर अखबार या भूरा पेपर बिछा दें तथा मक्के का दलिया या चूजा आहार का छिड़काव कर दें। जिससे चूजे आहार व गहरी बिछाली में अंतर करना सीख जाते हैं। पानी व आहार के बर्तन रख दें निपल ड्रिंकर का उपयोग के पहले छोटे पानी के फव्वारे वाले बर्तन रखें। चूजा आहार चूजों की आहार प्लेट में भी परोस सकते हैं।
  11. थर्मामीटर से बिछाली के पास का तापक्रम देखें।

बैटरी ब्रूडिंग

बल्व या हीटर को चूजों के आने के 12 घण्टे पहले जला दें। चूजों के स्तर पर 29-32से.मी. (85-900/फे.) तापक्रम बनाये रखें व आपेक्षित आर्द्रता 40-70 प्रतिशत हो।

फर्श ब्रूडिंग

पर्याप्त संख्या में दाने व पानी के बर्तन रखें। इन्हें गाड़ी के पहिए जैसे स्थिति में रखें ।

स्थान

चूजों को ब्रूडर हाउस में उम्र के अनुसार फर्श स्थान की आवश्यकता होती है (तालिका….) चूजों की अधिक संख्या के कारण भीड़ हो जाती है व चूजे दबकर मर जाते हैं प्रारम्भ में प्रति चूजे 50-65 वर्ग से.मी. फर्श स्थान की आवश्यकता होती है। 2 मीटर व्यास वाले ब्रूडर के नीचे 200 चूजे पालना चाहिए। गैस ब्रूडर के नीचे 750-1500 चूजों का पालन कर सकते हैं।

तापमान

ब्रूडर के नीचे और ब्रूडर के मकान में उचित तापमान रखना एक सफल चूजा पालन के लिये प्रमुख आवश्यकता है। आयु के अनुसार तापमान निम्न तालिका 6.1 में दिया गया है। सही तापमान पर सभी चूजे, चूजे रक्षक के अंदर समान रूप से घूमते और खाते पीते दिखते हैं। ठंड के दिनों में रात्रि में विद्युत उपलब्ध न होने से चूजों की मृत्यु दर बढ़ जाती है। ज्यादा तापमान कम करने के लिए या तो ब्रूडर की ऊंचाई बढ़ाई जा सकती है अन्यथा उसमें से बल्व कम किए जा सकते हैं। एक चूजे को 1.5 से 2 केण्डल वाट बल्व की आवश्यकता होती है।

तालिका  – ब्रूडर के नीचे का आयु के अनुसार तापक्रम

चूजों की सप्ताहों में आयु से.ग्रे. फे.
प्रथम 32.0 90.0
द्वितीय 29.0 85.0
तृतीय 26.0 80.0
चतुर्थ 23.0 75.0
पंचम 21.0 70.0
षष्ठम 21.1 70.0
सप्तम 21.1 70.0
अष्टम 21.0 70.0

ब्रूडर के तापमान में अधिकता या कमी से परों का विकास कम गति से होना, शरीर का विकास दर कम होना, ब्रूडर घर के कोनों में या मध्य में चूजों का इकट्ठा होना, दबकर मरना और चूजों द्वारा एक दूसरे के अंगूठे खाना। चूजों का व्यवहार और चूजा रक्षक के भीतर फैलाव तापमान का सही दर्शक होता है। जब तापमान कम होता है तो बहुत से चूजे बल्व/हीटर के नीचे इकट्ठे होकर बैठे रहते हैं व कुछ चूजों की दबकर मृत्यु हो जाती है। अधिक तापमान होने पर चूजे – चूजा रक्षक के पास सटे रहते हैं वे अस्वस्थ दिखते हैं, हांफते हैं व मुंह खोलकर सांस लेते हैं।

वातायन

चूजे गृह में हवाओं की शीत लहर से पर्दा लगाकर या खिड़कियां बंद कर वातायन कम किया जा सकता है व तापक्रम बनाये रखा जाता है। इस कारण से कमरे में आपेक्षिक आर्द्रता में वृद्धि हो जाती है। कम तापक्रम व वातायन से गहरी बिछाली गीली हो जाती है व हवा में अमोनिया वायु की प्रतिशत मात्रा बढ़ने लगती है। कमरे की हवा में अमोनिया 15-25 भाग प्रति दस लाख के अनुपात से अधिक न हो।

चूजों का रक्षक (ब्रूडर गार्ड)

चूजे गर्मी के स्रोत से दूर जाकर ठंड से न मरें, इसके लिए यह एक घेरा होता है। यह गोल या षष्टाकार होकर ब्रूडर के किनारे से शुरू से 85-80 से.मी. अंतर पर खा जाता है। दस दिन के पश्चात् यह अंतर में वृद्धि कर लगभग 130 से.मी. किया जाता है। 15 दिन के पश्चात से अलग कर दिया जाता है।

आहार व पानी का प्रबंध

प्रारम्भ के 4-5 दिनों में चूजों को पेपर या चूजों को आहार लाल प्लास्टिक ट्रे या चूजों के डिब्बों के ढक्कन में चूजा मेस/दलिया खिलाया जाता है। इसके पश्चात् चूजों के आहार के बर्तन में आहार परोसा जाता है। पहले दो दिन चूजों को मक्के की दलिया या चूजा मेस कागज पर छिटककर खिलाई जाती है। चूजों में पिसा हुआ गेहूं या मक्का खिलाने से चूजों में अवस्कर गुहा में मल सूख जाता है तथा अंत में चूजे मर सकते हैं।

पठोर (ग्रोवर) मुर्गियों का प्रबंध

यह कार्य बहुत ही दक्षता से मुर्गी कृषक को करना होता है। यदि मुर्गियों का विकास अच्छी तरह से होगा तभी वे भविष्य में अधिक अण्डा उत्पादन कर सकेंगी। इस काम का मुख्य उद्देश्य 18-20 हफ्ते में अण्डे देने वाली लगभग 1200 से 1400 ग्रा. वजन की नई मुर्गी (पुलेट) की वृद्धि करना होता है। इनको बढ़ते हुए दिनमान में पालना जल्दी लैंगिक परिपक्वता के लिये उत्तम होता है। इन्हें कृत्रिम प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती। यह क्रमशः 900-1900 वर्ग से.मी., 7-10 से.मी. और 1.5-2.5 से.मी. तक आयु के अनुसार वृद्धि की जाती है। पीने के पानी की आवश्यकता तापमान, आर्द्रता, आहार में पोषक पदार्थों की उपलब्धता, वातायन उम्र व शारीरिक गतिविधि पर निर्भर करती है। तापमान 290 से.ग्रे. से अधिक होने पर पुलेट हांफने लगती है अतः आहार में अधिक ऊर्जा व जलपान की आवश्यकता में वृद्धि होती है। प्रति 1-2 माह में आंतरिक परजीवी जैसे गोल कृमि व फीता कृमि की रोकथाम के लिये दवाई पानी में दी जाना चाहिए। ये पदार्थ प्रत्याबल रोकने के लिए सुबह के समय दी जानी चाहिए।

पठोर मुर्गियों की छटनी

ऐसी पठोर मुर्गियां जिनका शारीरिका भार कम हो बीमार हो शारीरिक गुण विभेद के अनुसार न हों, शारीरिक विकृति हो तो ऐसी मुर्गियों की छटनी कर देना चाहिए। ऐसा करने से श्रम, जगह आहार की बचत होती है तथा कमजोर बीमार पठोर मुर्गियां स्वस्थ पठोर मुर्गियों में बीमारी नहीं फैला पाती हैं।

भीड़ से बचाव

ब्रूडर तथा पठोर, तथा ब्रूडर पठोर व लेयर घरों में सामान्यतयः पठोर मुर्गियों की भीड़ हो जाती है। इससे बचाव के लिए पठोर गृह में 20 सप्ताह के फर्श स्थान की आवश्यकता 1800-2000 वर्ग से.मी. की दर से ही पठोर मुर्गियों को रखना चाहिए।

खाने व पीने की जगह

बढ़ती आयु के अनुसार खाने और पीने की जगह 7-10 रेखीय से.मी. और 1.5-2.5 से.मी. तक वृद्धि की जा सकती है। आहार की जगह इतनी हो जिससे 75-100% रखी गई मुर्गियां एक साथ भोजन गृहण कर सकें । पीने के पानी की जरूरत तापमान आपेक्षिक आर्द्रता, खुराक के घटक पदार्थ, वातायन तथा आयु पर निर्भर करती है। तापमान 290 से.ग्रे. से अधिक होने पर पानी की आवश्यकता में वृद्धि हो जाती है।

प्रति 2-3 महिने में अंतरजीवी कीड़ों की दवाई टीकाकरण से पहले पिलाना। 9-10 सप्ताह की उम्र पर चोंच कुतर दें। कभी भी 16 सप्ताह के पश्चात चोंच न कुतरें। उचित शारीरिक विकास दर बनाये रखने के लिए जन्म दिन के हर चैथे सप्ताह शारीरिक भार 5-10 प्रतिशत पठोर मुर्गियों का ज्ञात करना चाहिए। झुण्ड का औसत मान ज्ञात कर यह देखना चाहिए कि 80-85 प्रतिशत पक्षी औसत भार से ± 10 प्रतिशत की विचलन सीमा में है या नहीं। यह मुर्गी की समान वृद्धि दर रखने के लिए आवश्यक है।

नियंत्रित आहार खिलाना

नियंत्रित आहार दो तरह से खिलाया जाता है।

  1. गुणवत्ता में कमी करना।
  2. आहार की मात्रा में कमी करना।

नियंत्रित आहार खिलाने के निम्नलिखित प्रभाव देखने को मिलते हैं। 

  1. 20 सप्ताह की आयु पर शारीरिक वृद्धि पर नियंत्रण रखना। मुर्गी की अण्डवाहिनी के चारों तरफ वसा जमा होने से भविष्य का अण्डा उत्पादन कम हो जाता है।
  2. लैंगिक परिपक्वता की आयु में देरी होना।
  3. भविष्य के अण्डा उत्पादन की तीव्रता में वृद्धि होना।
  4. लेयर हाउस में मुर्गियों की मृत्यु दर में कमी होना।
  5. अण्डा भार में वृद्धि होना।
  6. आहार समय में कमी होने से उत्पादन व्यय में कमी के कारण आय में वृद्धि होना।

आहार नियंत्रण की सावधानी

  1. स्वैचिछक आहार खपत से 20 प्रतिशत कम कर आहार परोसना।
  2. आहार नियंत्रण की आयु 8-20 सप्ताह।
  3. पठोर मुर्गियों को दिन में दो समय आहार परोसना।
  4. आहार बर्तन का रेखीय जगह बढ़ाना जिससे सभी मुर्गियां एक साथ भोजन ग्रहण कर सकें।
  5. आहार में दी जाने वाली औषधियों व आहार पूरकों की मात्रा में कुछ वृद्धि करना जिससे आहार खुराक की कमी की पूर्ति हो सके।

चूजों तथा पठोर मुर्गियों को आहार खिलाना।

चूजों की विकास दर पर निम्नलिखित कारकों का प्रभाव पड़ता है।

अ. व्यवसायिक लेयर चूजों व पठोरों का आनुवांशिक औसत शारीरिक आकार।

ब. प्रति दिन खाये गये आहार की औसत मात्रा।

स. आहारमें ऊर्जा व प्रोटीन।

द. आवास व्यवस्था चूजों व पठोरों की क्रियाशीलता को प्रभावित करते हैं। अतः आहार खपत को भी प्रभावित करते हैं। जैसे गहरी बिछाली या पिंजरा पद्धति।

इ. पेट की बीमारियां जैसे विषाणु व जीवाणु जनित या काक्सीडियोसिस इनसे आहार खपत बहुत कम हो जाती है व पोषक तत्वों का अवशोषण प्रभावित होता है।

प्रकाश का प्रबंध

इनको कृत्रिम प्रकाश की आवश्यकता नहीं होती है। दिन का प्रकाश इनके लिए पर्याप्त होता है। प्रकाश उचित होने पर पठोर मुर्गियों की आहार खपत अधिक होती है। जिससे उनका समुचित शारीरिक विकास होता है।

आहार को व्यर्थ न करना

आहार को व्यर्थ होने के निम्नलिखित कारण हैं –

  1. अनुउत्पादक पक्षी।
  2. आहार बर्तनों से आहार गिरना।
  3. आहार बर्तनों को अधिक भरना।
  4. पठोर गृह में चूजों का होना तथा अन्य पक्षियों का प्रवेश।
  5. आहार बर्तनों की संरचना।
  6. चोंच कुतरना।

पठोर मुर्गियों की उत्पादन कीमत में कमी कैसे करें

लेयर उत्पादन का 70 प्रतिशत खर्च आहार पर होता हे। अतः आहार को व्यर्थ न करें। पठोर मुर्गियों को संतुलित आहार देना चाहिए इससे दाने का अधिकतम उपयोग होगा। आहार नियंत्रण से भी आहार पर व्यय कम होगा।

श्रमिकों पर व्यय अधिक होता जा रहा है। अतः प्रक्षेत्र पर श्रम बचत के लिए उपकरण उपयोग करें व श्रमिक को अधिकतम कार्यभार प्रदान करें। मुर्गियों को बीमारी से बचायें। दवाईयों पर न्यायपूर्ण खर्च करें। व्यर्थ विद्युत का उपयोग न करें। प्रक्षेत्र में पक्षियों की मृत्युदर कम करें। प्रक्षेत्र में एक ही उम्र के चूजे पालें। ब्रूडर गृह, ग्रोवर व लेयर गृहों में कम से कम 100 फीट का अंतर रखें। इन घरों में श्रमिक भी अलग-अलग हों।

मुर्गियों को 18 सप्ताह की उम्र पर लेयर गृह में स्थानांतरित कर दें। यदि पठोर मुर्गियों का औसत वजन कम हो तो स्थानांतरण 2-3 सप्ताह के लिए स्थगित किया जा सकता है। इससे पठोर मुर्गियों को अण्डा उत्पादन से पहले नए घर के वातावरण से समायोजित होने का समय मिल जाता है। कम वजन वाली मुर्गियों को अलग रख कर 3-4 सप्ताहों के लिए विशेष आहार देना चाहिए। लगभग 2 प्रतिशत ज्यादा प्रोटीन, खनिज लवण, विटामिन्स और यकृत उत्तेजक आयुर्वेदिक दवाइयां खिलाने से उनमें से अधिकतम विकसित हो जाती हैं। इससे मुर्गियों की छटनी दर कम होकर मुर्गीपालक का नुकसान कम हो जाता है।

लेगहार्न मुर्गियों का प्रबंध

अपेक्षित अण्डा वजन (55-58 ग्रा.) के साथ प्रति वर्ष प्रति मुर्गी अधिक अण्डा उत्पादन व कम आहार खर्च तथा कम से कम मृत्यु दर 0.5% प्रति माह या 6-8% प्रति वर्ष यह एक मुर्गी पालक का लक्ष्य होता है।

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पुलेट का स्थानांतर

अण्डे देने वाली पुलेट का 16 सप्ताह 18 सप्ताह की उम्र होने पर या इस उम्र पर अपेक्षित शारीरिक भार प्राप्त कर लेने पर ग्रोवर हाउस से लेयर हाउस में स्थानांतरित किया जाता है। सामान्यतयः लेयर मुर्गियों को पिंजरों में या लोहे की जाली तथा गहरी बिछाली पर रखा जाता है। जो पुलेट शारीरिक वजन प्राप्त नहीं कर पाती हैं उन्हें 2-3 हफ्ते ग्रोवर हाउस में ही रखकर संतुलित आहार खिलाया जाता है। इससे छटनी योग्य मुर्गियों की संख्या कम हो जाती है तथा उससे नुकसान कम होता है।

अण्डा उत्पादन करने वाली लेयर मुर्गियों का प्रबंध

प्रति वर्ष प्रति मुर्गी अधिक अण्डा उत्पादन, उचित अण्डा भार, प्रति दर्जन व प्रति किलो कम आहार खपत, कम मृत्यु दर यह लाभप्रद अण्डा व्यवसाय के लिये आवश्यक है। अण्डा उत्पादन हेतु आनुवंशिक क्षमता तथा उचित प्रबंध हेतु कुछ महत्वपूर्ण प्रबंध कार्य निम्नलिखित हैं।

फर्श का स्थान, आहार और पीने के पानी की जगह 

अण्डे देने वाली मुर्गी (लेयर) के लिए गहरी बिछाली पद्धति में 1800-2200 वर्ग से.मी. और पिंजरों में 650 वर्ग से.मी. फर्श की जगह की सिफारिश की गई है। लगभग 12-15 रेखीय से.मी. आहार की जगह तथा 2.5 से.मी. जलपान की जगह लेयरों को दी जाती है। गहरी बिछाली पर लगभग 3-5 मुर्गियों के लिए एक अण्डे देने का घोंसला (एकल) अथवा सामुदायिक घोंसला प्रति 50 मुर्गियों को उपलब्ध कराया जाता है। घोंसले के सामने एक लकड़ी या लोहे की पट्टी (पर्च) लगाई जाती है। इसके सहारे से मुर्गियां घोंसले में प्रवेश करती हैं। कम फर्श आहार व जलपान की जगह बीमारियां असंतुलित आहार, मृत्यु दर की अधिक प्रतिशतता और अधिक प्रत्याबल, प्रकाश की तीव्रता और समय की कमी व स्वजाति भक्षण, अण्डा खाने की आदत से अण्डा उत्पादन में कमी हो जाती है।

लेयर हाउस का तापमान 

जबलपुर मध्यप्रदेश में वर्ष भर दिन का औसत तापमान 300 से.ग्रे. से 470 से.ग्रे. तक परिवर्तित होता है। किन्तु अधिक उत्पादन के लिये तापमान का विचलन 18से.ग्रे. से 22से.ग्रे. होना चाहिए। कम या अधिक तापक्रम पर मुर्गियों में प्रत्याबल या दबाव उत्पन्न होता है। यद्यपि मुर्गियां 12.8-270 से.ग्रे. में यह दबाव सहन कर लेती हैं। किन्तु इसमें अधिक तापमान होने पर मुर्गी की औसत प्रति दिन की आहार खपत कम हो जाती है। जिससे अण्डा उत्पादन कम होता जाता है। 290 से.ग्रे. से अधिक तापमान पर मुर्गियां लगातार हांफती हैं। लगभग 40से.ग्रे. और अधिक तापमान अण्डे का छिलका 0.30-0.34 मि.मी. से पतला होकर 0.25-0.30 मि.मी. रह जाता है।

कृत्रिम प्रकाश

लगभग 20 सप्ताहों की आयु तक मुर्गियों को दिन का सूर्य प्रकाश पर्याप्त रहता है। किन्तु 21वें सप्ताह से प्रति सप्ताह प्रकाश में 20-30 मिनट वृद्धि कर अधिकतम 16-17 घण्टे तक प्रकाश दिया जाना चाहिए। पूरे कृत्रिम प्रकाश को आधा सुबह तथा आधा शाम को दिया जाना चाहिए। कृत्रिम प्रकाश के लिये बल्व, ट्यूब लाइट, सीएफ लैम्प, एल.ई.डी. लैम्प व प्रक्षेत्र के लिये मरकरी या हेलोजन से प्रकाश कर सकते हैं। प्रकाश की तीव्रता मुर्गी की आंख की सतह पर 1-3 फुट केण्डल या 10-30 लक्स होना चाहिए। 5 फुट केण्डल से अधिक प्रकाश देने पर मुर्गियों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।

आहार खिलाना और जलपान

लेयर मुर्गी को प्रतिदिन की आहार की मात्रा दो भागों में सुबह और शाम देना चाहिए। ट्यूब फीडर में आहार सदैव भरा रहना चाहिए। व्यवसायिक श्वेत लेगहार्न मुर्गियां 105-120 ग्राम आहार ग्रहण करते हैं। आहार की प्रतिदिन की मात्रा का कम या अधिक होना आहार की गुणवत्ता, प्रत्याबल मौसम में परिवर्तन या बीमारी का सूचक होता हैं गुटिका या दलिया (मेस) खिलाने की अच्छी विधियां हैं।

मुर्गियों को हमेशा ताजा साफ सुथरा कार्बनिक, खनिज तथा जैविक अशुद्धियों से मुक्त होना चाहिए। साधारणतः मुर्गी की औसत आहार खपत से जल की खपत 2.5-5 गुना औसम के अनुसार होती है। ठंड में मुर्गियां कम पानी पीती हैं तथा गर्मी में अधिक पानी पीति हैं। पेयजल का तापक्रम अधिक ठण्डा या अधिक गर्म नहीं होना चाहिए।

मुर्गियों की छंटाई

मुर्गी प्रक्षेत्र की कार्य क्षमता तथा हानि को कम करने के लिए समय-समय पर अनुत्पादित तथा कम उत्पादन देने वाली मुर्गियों की छंटाई करते रहना आवश्यक है।

लेखा जोखा और उनका परीक्षण

मुर्गी घर के व उपकरणों, खुराक की मात्रा, अण्डा उत्पादन, मृत्यु संख्या शव परीक्षण रिपोर्ट, छंटाई, दवाइयां टीकाकरण खर्च और आय का दैनिक विवरण आदि का लेखा रखना मुर्गी पालक के लिए आवश्यक होता है। इनकी साप्ताहिक मासिक, त्रैमासिक एवं वार्षिक समीक्षा करना आवश्यक है। इससे मुर्गी पालक को प्रबंधन की त्रुटियां समझने, उनको सुलझाने तथा दूसरे मुर्गी पालकों से दक्षता की तुलना तथा भविष्य की योजना बनाने में अत्यंत मदद मिलती है। अण्डों की उत्पादन लागत की गणना करन में मदद मिलती है।

कुक्कुट आवास व्यवस्था

कुक्कुट गृह की रचना को प्रभावित करने वाले कारक

तापमान

चूजों के शरीर का तापक्रम 103.60 फै. (39.80 से.) तथा वयस्क मुर्गी का तापक्रम 104-1060 फै. (40-410 से.) होता है। मुर्गियों के शरीर में स्वेत ग्रंथियां अनुपस्थित होती हैं। लगभग 290 से.ग्रे. तक मुर्गियां अपने शरीर की गर्मी चालन, सोयाबीन तथा विकरण से छोड़ती है। किन्तु इससे अधिक तापक्रम पर मुर्गियां हांफने लगती हैं तथा मुख गुहा तथा श्वसन तंत्र के जल वाष्पीकरण से तापक्रम कम करती है। मुर्गियों के लिए आरामदायी तापमान की कक्षा 18.3 से 21.5 से (65-710 फै.) होती है, जिसमें उनसे ज्यादा उत्पादन मिलता है। इसके साथ 22 से 280 से. (71.6-82.40 फै.) और 11-170 से. (52-62.60 फै.) की कक्षा की मुर्गियां अधिक दुष्परिणाम बिना सह लेती हैं। जब वातावरण के अधिक तापक्रम से मुर्गियों का आंतरिक शारीरिक तापक्रम 460 से (1150 फै.) हो जाता है और उनकी मृत्यु भी हो सकती है।

वातायन

मुर्गी शारीरिक आकार में छोटा होने के कारण तीव्र गति से चयापचय की क्रिया करता है और शरीर के प्रति यूनिट भार पर उसको अधिक आक्सीजन की आवश्यकता होती है। मुर्गी गृह में खुली हवा बहने से पर्याप्त वातायन प्राप्त होता है। इससे ग्रीष्म ऋतु में मुर्गी गृह में तापमान कम रखने में भी मदद मिलती है। अच्छे वातायन से हवा में उपस्थित कार्बन डाई-आक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड अमोनिया मिथेन, ज्यादा आर्द्रता तथा धूल बाहर फेंके जाते हैं। एक्जास्ट फेन विद्युत पंखों के उपयोग से वातायन में वृद्धि की जा सकती है।

आपेक्षिक आर्द्रता 

अधिक या कम आपेक्षिक आर्द्रता मुर्गियों के लिए हानिकारक होती है। मध्य स्थिति की लगभग 38 से 42 प्रतिशत आर्द्रता मुर्गियों में अधिक उत्पादन प्राप्ति के लिए लाभदायक होती है। ज्यादा आर्द्रता से जीवाणु की संख्या बढ़ जाती है तथा कम आपेक्षिक आर्द्रता का परिणाम धूलभरा तथा सूखे लिटर में नजर आता है। उच्चताप 37.80 से. (1000 फै.) एवं आपेक्षित आर्द्रता 80%  का मुर्गियों की दक्षता पर अनिष्ठकारी प्रभाव पड़ता है। तथा अनेक मुर्गियों की मृत्यु भी हो जाती है। 400.50 से. तापक्रम तथा 20%  आपेक्षिक आर्द्रता पर थोड़ी बहुत बैचेनी महसूस करने वाली मुर्गी 37.80 से (1000 फै.) तथा 80% आपेक्षिक आर्द्रता पर अधिक बैचेन हो जाती है तथा तापक्रम और अधिक बढ़ने से उनकी मृत्यु हो सकती है।

प्रकाश

प्रकाश दिखने के लिए आहार खपत तथा अण्डे उत्पादन की वृद्धि करने के लिए जरूरी होता है। सूर्य प्रकाश मुर्गियों के शरीर का तापक्रम बनाये रखने में और मुर्गी गृह के जीवाणु रहित करने के लिए उपयोगी होता है। दो मुर्गी गृह के बीच 20-40 फीट का अन्तर होना चाहिए।

अलग-अलग परिमाण के मुर्गी फार्म की संरचना

परिवार के भरण पोषण के लिये उचित मुर्गी संख्या 5000 है इससे प्रति मुर्गी उत्पादन खर्च कम रहता है। छोटे फार्म (500-1000 मुर्गी) के लिये अन्य व्यवसाय करना होगा।

सामान्यतया एक ही मुर्गी घर वाला फार्म जिसमें 1 दिन से 72 सप्ताह की आयु तक मुर्गी पाली जाती है।

मध्य स्तर का फार्म (1000-5000 मुर्गी) व उस पद्धति में मुर्गी पालन हेतु 1 चूजा पठोर गृह तथा 3 मुर्गी घर होते हैं।

बड़ा फार्म (5000-20,000 मुर्गी)

इस मुर्गी संख्या के फार्म विभिन्न इकाइयों की आवश्कयता होती है।

  1. चूजा गृह एक दिन से आठ सप्ताह को आयु वर्ग
  2. पठोर गृह 9 सप्ताह से 18 सप्ताह

कुक्कुट प्रक्षेत्र हेतु स्थान का चयन

  1. प्रक्षेत्र भूमि आसपास की सतह से ऊंची हो जिससे वर्षा का पानी का उचित निकास हो व जल प्लावन न हो।
  2. व्यवसायिक लेयर फार्म शहर व ग्राम की निवास भूमि से दूर हो तथा निकट भविष्य में फार्म के आसपास कालोनी का निर्माण न हो ।
  3. ग्राम पंचायत, नगर पालिका व पशु चिकित्सा एवं पशुपालन विभाग से स्वीकृति प्राप्त कर लें तथा पड़ोसियों को आपत्ति न हो।
  4. लेयर फार्म राज मार्ग से 100 मी. दूर किन्तु सड़क से जुड़ा हो ताकि मुर्गी आहार अण्डों चूजों व मुर्गियों के लाने व ले जाने में असुविधा न हो। पास का शहर रेल मार्ग से जुड़ा हो।
  5. लेयर फार्म के पास क्रियाशील बाजार हो।
  6. लेयर फार्म हेतु सम्पूर्ण आहार या आहार के घटक खाद्य पदार्थ, दवाईयां व साज सामान उचित मूल्य पर आसानी से उपलब्ध हों।
  7. लेयर फार्म के आसपास कोलाहल न हो अन्यथा चूजों की मृत्यु दर अधिक होगी।
  8. भूमि दलदली न हो, कठोर हो।

कुक्कुट प्रक्षेत्र 

  1. चूजों गृह, पठोर गृह व मुर्गी घर भिन्न हो।
  2. विभिन्न गृहों के बीच 150 फुट का अन्तर हो।
  3. दो गृहों के बीच 20-50 फिट का अंतर रखने से वातायन अच्छा रहता है।
  4. मुर्गी आहार भण्डार कक्ष, रहने के आवास व भण्डार कक्ष सड़क से लगा हो। जिससे बाहर वाहनों का मुर्गा फार्म में प्रवेश रोका जा सके।
  5. मकान की लम्बाई की अक्ष पूर्व पश्चिम दिशा में हो।

उत्तर दिशा

लम्बाई 100 से 300 फुट (30 से 90 मीटर)

पश्चिम दिशा   पूर्व दिशा (20-30 फिट चैड़ाई)

दक्षिण दिशा (6-9 मीटर)

चूजे, ग्रोवर व लेयर गृह की संरचना

नींव

नींव की गहराई 0.6 से 0.9 मीटर (2 से 3 फुट) भूमि के अनुसार आवश्यक हो। नींव के गोल गढ्ढे 9 इंच चैड़े व 10 फिट गहरे हों। दो गढ्ढों के बीच 5 फुट का अंतर हो, फर्श की सतह पर बीम होना चाहिए। बीम के ऊपर कालम (स्तम्भ) 10 फुट के अंतर से हो।

फर्श

फर्श पक्का पत्थर या कांक्रीट का बना होना चाहिए। ताकि वर्षा ऋतु में जमीन की सीलन, जल व चूहों से बचाव हो सके। फर्श के आसपास की भूमि में 2-3 फिट ऊंचा होना चाहिए। फर्श ऐसा होना चाहिए जिसमें न नमी रहे, न चूहे रहें। बाहर से कीड़े जैसे कि काकरोच, खटमल, दाने के खटमल, किलनी (टिक) मक्खियां, मच्छर आदि न हों। सांप नेवला, बिल्ली आदि मुर्गी के शत्रु जानवर गृह में प्रवेश न कर सकें।

एंगिल आयरन के फ्रेम पर मुर्गी जाली या लकड़ी या बांस के स्लेट का फर्श भी बनाया जा सकता है। इससे मुर्गियों की विष्ठा नीचे गिरती रहती है तथा मुर्गियां विष्ठा खा नहीं पाती और इससे वे संक्रमण से बची रहती हैं।

लम्बाई की दीवार 

गहरी बिछाली पद्धति के आवास गृह में लम्बाई की दीवार 2 -2 1/2 फिट ऊंची होनी चाहिए। पर लेयर गृह में पिंजरा आवास पद्धति में लम्बाई की दीवारों की आवश्यकता नहीं होती। तीन पंक्ति उल्टी पिंजरा पद्धति में फर्श ऊंचे चबूतरे के रूप  सेवा मार्ग युक्त बनाया जाता है।

जालियां 

अच्छे वातायन के लिये 10 फिट लम्बे व 5 फिट ऊंचे फ्रेम पर 1″ x 1″  की 10-12 गेज की लोहे की जाली लगाई जाती है लोहे की जाली मजबूत होनी चाहिए। जिससे चोरों व जानवरों से बचाव हो सके।

जाली के ऊपर का छज्जा

मुर्गी गृह में धूप व वर्षा की फुहारों से बचने हेतु 3, 1/2 फिट चैड़ी व लम्बाई की दीवार के बराबर लम्बा लोहे या लकड़ी के फ्रेम पर एस्बेस्टास शीट का छज्जा बनाया जाना चाहिए।

विभाजक दीवार

चूजों व पठोरों के अच्छे रख-रखाव के लिये गृह की लम्बाई को 4-6 विभाजक दीवारों, 3 फुट ऊंची व उसके पश्चात मुर्गी जाली से विभाग या पार्टीशन बनाये जायें। चूजों व पठारों को टाइल्स के छत भी बनाये जा सकते हैं किन्तु इन्हें हर वर्ष सुधरवाना पड़ सकता है। सावधानी यह रहे कि सांप चूहे, गिलहरी गृह में प्रवेश न कर सकें। लम्बी दीवारों के समतल प्लायबोर्ड से ऊंचाई को विभाजित करती हुई सतह (अटिक) पटवा बनाने से मुर्गी गृह का तापक्रम नियंत्रित किया जा सकता है। छतों का आधार बहुत मजबूत होना चाहिए। इसे लोहे के पाइप व इमारती लकड़ी से बनाया जाता है।

फर्श के समतल चलने का रास्ता

फर्श के समतल गृह के बाहर 0.45-0.60 मी. कांक्रीट का प्रलम्ब लम्बाई की दीवार तरफ निर्मित किया जाता है इससे कुक्कुट गृह में चूहे व सांप प्रवेश नहीं कर पाते।

सीढ़ियां

मुर्गी घर के बाहर सीढ़ी के बीच 1-2 फिट का अंतर रखने से भी चूहे व सांप मुर्गी घर के भीतर प्रवेश नहीं कर पाते।

0.9 मी. को बड़े – समूह 2000 चूजों या 1000 पठोर की अपेक्षा 350 चूजे या 175 पठोरों के समूह में रखना अच्छा होता है इससे इनके प्रबन्ध में आसानी होती है तथा भिन्न प्रकार के चूजों को अलग-अलग रखा जा सकता है। अधिक ठंड वाले क्षेत्रों में खिड़कियों पर पल्ले लगाये जायें जिससे गृह का तापक्रम नियंत्रित करने में आसानी होगी।

वातायन

चूजों व पठोर गृहों में लंबी भुजायें की दीवारों में हर एक 10 फिट हिस्से में 1 मीटर चैड़ी व 1.75 मीटर ऊंची खिड़कियां लगाई जाती हैं। स्वयं चालित प्रबंध वाले मुर्गी घरों में खिड़कियां फर्श से लगभग 0.5 मीटर ऊंचाई पर दोनों लम्बाई की भुजाओं में लगाये जाते हैं। साफ हवा अंदर खीचने के लिये तथा दूषित हवा बार फेकने के लिये छत की ऊंचाई के समतल वायु चूषक पंखे (एक्जास्ट फेन) लगाये जाते हैं।

मुर्गी गृह की छत बनाने के लिये ऐस्बस्टस की नालीदार चादरें सामान्यतः उपयोग की जाती हैं। लोहे की जस्ते से गेल्वेनाइज्ड चादरें भी उपयोग की जा सकती हैं। ये चादरें जल्दी गर्म व ठण्डी हो जाती हैं। सीमेन्ट कान्क्रीट का लेण्टर का छत भी बनवाया जा सकता है। शीतकाल में हवा मौजूद नमी भी द्रवित होकर छत की निचली सतह पर जम जाती है व टपक कर गहरी बिछाली को गीला कर देती है।

दरवाजे 

दरवाजे को लम्बाई की दीवारों में लगाना चाहिए। चैड़ाई की दीवारों में दरवाजे लगाने से वर्षा का पानी मकान में आता है। सामान्यतः 1 मीटर चैड़े व 2 1/4 मी. ऊंचे दरवाजे अच्छे होते हैं दरवाजे की चैड़ाई मुर्गी घर में उपयोग किये जाने वाले साज सामान पर भी निर्भर रहते हैं। दरवाजे के सामने जीवाणु व विषाणु नाशक जल से भरा हुआ पैर डुबाने का कुण्ड होना जरूरी होता है। दरवाजा लोहे के फ्रेम पर मोटी लोहे की चादर व 3/4″ लोहे की 10 गेज गेल्वेनाइज्ड जाली का बना होना चाहिए।

 

मुर्गी पालन अच्छे मुनाफे वाले व्यवसायों में से एक है। मुर्गी पालन अण्डा और मांस उत्पादन के लिए किया जाता है। इनके लिए अलग-अलग प्रजातियों का चयन करना होता है। इस व्यवसाय की खासियत है कि इसे कम लागत से शुरू किया जा सकता है और इसमें कमाई जल्दी शुरू हो जाती है, क्योंकि मांस के लिए पाली जाने वाली मुर्गियां 30से 40दिन में तैयार हो जाती हैं। सर्दी का आगमन हो चुका है अगर हम जाड़े के मौसम में मुर्गीपालन से अधिक से अधिक लाभ कमाना चाहते हैंतो निम्नलिखित बातें ध्यान में अवश्यरखनी चाहिए।

जाड़े के मौसम में मुर्गीपालन के लिए मुर्गी आवास का प्रबंधन:

जाड़े के मौसम में मुर्गीपालन करते समय मुर्गी आवास को गरम रखने के लिए हमे पहले से ही सावधान हो जाना चाहिए, क्योंकि जब तापमान १० डिग्री सेण्टीग्रेड से कम हो जाता है तब मुर्गीपालन के आवास में ओस की बूंद टपकती है इससे बचने के लिए मुर्गीपालकों को अच्छी ब्रूड़िग करना तो आवश्यंक है हीसाथ ही मुर्गी आवास में साइड के पर्दे मोटे बोरे और प्लास्टिक के लगाना चाहिए, ताकि वे ठंडी हवा के प्रभाव को रोक सकें। रात में जाली का लगभग 80% हिस्सा पर्दों से ढक दें। इसमें खाली बोरी और प्लास्टिक आदि का इस्तेमाल किया जा सकता है। इससे अंदर का तापमान बाहर की अपेक्षा ज्यादा रहेगा। साथ ही यह भी ध्यान में रखना चाहिए कि मुर्गीघर में मुर्गियों की संख्या पूरी हो। जाड़े के मौसम में मुर्गीपालन करते समय एक अंगीठी या स्टोव मुर्गीघर में जला दें।इस बात का ध्यान रखें की अंगीठी अंदर रखने से पहले इसका धुऑं बाहर निकाल दें ।

इस प्रकार से दी गई गर्मी से न केवल मुर्गीयाँ आराम से रहती हैं बल्कि मुर्गीघर का वातावरण भी खुश्कर और गर्म बना रहता है। खासकर ठण्ड के मौसम में सुबह में मुर्गीघर के अन्दर कम से कम दो घंटों तक धूप का प्रवेश वांछनीय है। अत: मुर्गीघर का निर्माण इस बिन्दू को ध्यान में रखते हुए उसकी लंबाई पूर्व से पश्चियम दिशा की ओर होनी चाहिए।

जाड़ें में कम से कम 3 से 5 इंच की बिछाली मुर्गीघर के फर्श पर डालें जो की अच्छी गुणवत्ता की हो अच्छी गुणवत्ता की बिछाली मुर्गियों को फर्श के ठंढ से बचाता है और तापमान को नियंत्रित किये रहता है।

जाड़े के मौसम में मुर्गीपालन हेतु मुर्गीघर की सफाई :

जाड़े के मौसम आने से पहले ही पुराना बुरादा, पुराने बोरे, पुराना आहार एवं पुराने खराब पर्दे इत्यादि बदल देना चाहिए । वर्षा का पानी यदि मुर्गीघर के आसपास इक्क्ठा हो तो ऐसे पानी को निकाल देना चाहिए और उस जगह पर ब्लीचिंग पावडर या चूना का छिड़काव कर देना चाहिए। मुर्गीघर के चारों तरफ उगी घास, झाड़, पेड़ आदि को नष्ट कर देना चाहिए। दाना गोदाम की सफाई करनी चाहिए एवं कॉपर सल्फेट युक्त चूने के घोल से पुताई कर देनी चाहिए ऐसा करने से फंगस का प्रवेश मुर्गीदाना गोदाम में रोका जा सकता है। कुंआ, दीवाल आदि की सफाई भी ब्लीचिंग पावड़र से कर लेना चाहिए।

जाड़े के मौसम में मुर्गीपालन में दाने एवं पानी की खपत :

शीतकालीन मौसम में मुर्गीदाना की खपत बढ़ जाती है यदि मुर्गीदाना की खपत बढ़ नही रही है तो इसका मतलब है कि मुर्गियों में किसी बीमारी का प्रकोप चल रहा है। जाड़े के मौसम में मुर्गीपालन करते समय मुर्गियों के पास मुर्गीदाना हर समय उपलब्ध रहना चाहिए।
शीतकालीन मौसम में पानी की खपत कम हो जाती है क्योंकि इस मौसम में पानी हमेशा ठंडा ही बना रहता है इसलिए मुर्गी इसे कम मात्रा में पी पाती हैं इस स्थिति से बचने के लिए मुर्गीयों को बार-बार शुद्ध और ताजा पानी देते रहना चाहिए।

ब्रूडिंग —

चूजो का जाड़े के मौशम मे सही तरीके से ब्रूडिंग ही मुर्गीपालन मे सफलता का मूल मंत्र है ।

  • चूज़ों के सही प्रकार से विकास के लिए ब्रूडिंग सबसे ज्यादा आवश्यक है। ब्रायलर फार्म का पूरा व्यापार पूरी तरीके से ब्रूडिंग के ऊपर निर्भर करता है। अगर ब्रूडिंग में गलती हुई तो आपके चूज़े 7-8 दिन में कमज़ोर हो कर मर जायेंगे या आपके सही दाना के इस्तेमाल करने पर भी उनका विकास सही तरीके से नहीं हो पायेगा।
  • जिस प्रकार मुर्गी अपने चूजों को कुछ-कुछ समय में अपने पंखों के निचे रख कर गर्मी देती है उसी प्रकार चूजों को फार्म में भी जरूरत के अनुसार तापमान देना पड़ता है।
  • ब्रूडिंग कई प्रकार से किया जाता है – बिजली के बल्ब से, गैस ब्रूडर से या अंगीठी/सिगड़ी से।

बिजली के बल्ब से ब्रूडिंग

इस प्रकार के ब्रूडिंग के लिए आपको नियमित रूप से बिजली की आवश्यकता होती है। गर्मी के महीने में प्रति चूज़े को 1 वाट की आवश्यकता होती है जबकि सर्दियों के महीने में प्रति चूज़े को 2 वाट की आवश्यकता होती है। गर्मी के महीने में 4-5 दिन ब्रूडिंग किया जाता है और सर्दियों के महीने में ब्रूडिंग 12-15 दिन तक करना आवश्यक होता है। चूजों के पहले हफ्ते में ब्रूडर को लिटर से 6 इंच ऊपर रखें और दुसरे हफ्ते 10 से 12 इंच ऊपर।

गैस ब्रूडर द्वारा ब्रूडिंग

जरूरत और क्षमता के अनुसार बाज़ार में गैस ब्रूडर उपलब्ध हैं जैसे की 1000 औ 2000 क्षमता वाले ब्रूडर। गैस ब्रूडर ब्रूडिंग का अच्छा तरिका है इससे शेड केा अन्दर का तापमान एक समान रहता है।

अंगीठी या सिगड़ी से ब्रूडिंग

ये खासकर उन क्षेत्रों के लिए होता हैं जहाँ बिजली उपलब्ध ना हो या बिजली की बहुत ज्यादा कटौती वाले जगहों पर। लेकिन इसमें ध्यान रखना बहुत ज्यादा जरूरी होता है क्योंकि इससे शेड में धुआं भी भर सकता है या आग भी लग सकता है।

जाड़े के मौसम में मुर्गीपालन से संबन्धित अन्‍य महत्वपूर्ण कार्य——

♣ शीतऋतु के आगमन से पहले मुर्गियों के बाड़े की मरम्मत करवायें. खिड़कियाँ तथा दरवाजे ठीक-ठाक हालत में होने चाहिए।

♣ मुर्गियों से सर्वाधिक उत्पादन लेने हेतु 85 डिग्री से 95 डिग्री फॅरनहीट तापक्रम आवश्यक होता हैं अर्थात् उत्तर भारत में शीतऋतु में जब वातावरण का तापक्रम 13 डिग्री सेंटीग्रेड से नीचे चला जाता हैं तब अंडा उत्पादन पर विपरीत असर पड़ सकता है ऐसी स्थिति में बचाव हेतु बाड़े की बगलों पर मोटे टाट (बारदान) से बने पर्दे इस तरह लगवायें ताकि ठंडी हवाओं के झोकों से मुर्गियों को बचाया जा सके।
♣ पर्दों की निचली जगह पर बाँस बांध दें ताकि वे तेज हवाओं से ना उड़े और मुर्गियों को ठंडी हवाएं ना लगें।

♣ इसके अलावा अंडा उत्पादन बरकरार रखने हेतु तथा मुर्गियों को ठंड से बचाने हेतु बाड़े में बिजली के बल्ब (लट्टू) लगाना जरूरी हैं। यह उजाला उन्हें दिन का प्रकाश का समय मिलाकर 16 घंटों तक मिलना जरूरी हैं तभी वे दाना अच्छी तरह चुगकर अंडा देती रहती हैं। 200 वर्गफीट जगह में कृत्रिम प्रकाश प्रदान करने हेतु 400 वॉट क्षमता के बिजली के बल्ब लगाना जरूरी हैं. इसके लिए 200 वर्गफीट जगह में 100 वॉट क्षमता के चार बिजली के बल्ब लगाने से काम बन जायेगा। अंधेरे में अंडा उत्पादन में कमी आ जाती हैं।

♣ शीतऋतु में मुर्गियों की भूख बढ़ जाती है अत: उनके दोने (फीड ट्रफ) हमेशा दाने (मॅश) से भरे होने चाहिए। साधारणत: एक संकर मुर्गी को रोजाना 110 से 140 ग्राम दाना जरूरी होता हैं। पर्याप्त मात्रा में दाना ना मिलने पर अंडों की तादाद तथा वजन में गिरावट आती हैं. अत: उनके पोषण पर समुचित ध्यान दें।

♣ डीप लीटर पद्धति में रखी मुर्गियों के बाड़े में जो भूसा (लिटर) जमीन पर बिछा होता है वह सूखा होना चाहिए। उस पर पानी रिस जाये तो तुरन्त गीला बिछावन (लिटर) हटाकर वहां सूखा बिछावन डाल दें अन्यथा: मुर्गियों को ठंड लग सकती है।

♣ मुर्गियों का रोजाना निरीक्षण करें. सुस्त मुर्गियों की पशुओं के डाक्टर द्वारा जांच करवाकर दवा दें.
♣ रोजाना सबेरे सूरज निकलने के बाद ही टाट (बारदान) के पर्दे ऊपर लपेटकर रखें तथा वायुवीजन होने दें।

♣ मुर्गीघर से मुर्गियों की चिचड़ी निरन्तर निकासी करें तथा वहाँ साफ-सफाई रखें इससे मुर्गियों का स्वास्थ्य ठीक-ठाक रहने में मदद मिलेगी।

♣ सर्दियों के महीने में चूज़ों की डिलीवरी सुबह के समय कराएँ, शाम या रात को बिल कुल नहीं क्योंकि शाम के समय ठण्ड बढती चली जाती है।

♣ शेड के परदे चूजों के आने के 24 घंटे पहले से ही ढक कर रखें।

♣ चूजों के आने के कम से कम 2-4 घंटे पहले ब्रूडर ON किया हुआ होना चाहिए।
♣ पानी पहले से ही ब्रूडर के नीचे रखें इससे पानी भी थोडा गर्म हो जायेगा।
♣ अगर ठण्ड ज्यादा हो तो ब्रूडर को कुछ समय के लिए किसी भी पोलिथीन से छोटे गोल शेड को ढक कर हवा निरोधी भी बना सकते हैं ।

इस प्रकार से जाड़े के मौसम में मुर्गीपालन करते समय अगर उपरोक्त बातों को ध्यान में रखा जाए तो हमारे मुर्गीपालक जाड़े के मौसम में मुर्गीपालन करते समय मुर्गीयों को ठंड से तो बचाएंगे ही पर साथ ही अच्छा उत्पादन कर अधिक लाभ भी कमा सकेंगे।

Source-डाँ. गिर्राज गोयल, डाँ. एस.एस.अतकरे,  डाँ. लक्ष्‍मी चौहान

कुक्‍कुट विज्ञान विभाग, पशुचिकित्‍सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, जबलपुर

https://hi.vikaspedia.in/social-welfare/91794d93093e92e940923-91793094092c940-90992894d92e942932928/90692f93593094d92694d927915-91792493f93593f92793f92f93e901/92e94193094d91794092a93e932928

https://www.pashudhanpraharee.com/%E0%A4%AE%E0%A5%81%E0%A4%B0%E0%A5%8D%E0%A4%97%E0%A5%80-%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%A8-%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%9C%E0%A4%97%E0%A4%BE%E0%A4%B0-%E0%A4%95%E0%A4%BE-%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%B9/

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