पिछले 40 सालों से ब्रजभूमि में गौ सेवा कर रही जर्मनी की ‘फ्रेडरिक इरिना ब्रूनिंग उर्फ सुदेवी दासी’ को सरकार ने किया पद्मश्री सम्मान से सम्मानित
अगर आपके अंदर समाज सेवा करने की भावना हो तो आपको कोई भी देश, कोई भी सरहद, कोई भी व्यक्ति नहीं रोक सकता। इस बात का प्रत्यक्ष उदाहरण हैं पिछले 40 वर्षों से लगातार गायों की सेवा करने वाली फ्रेडरिक इरिना ब्रूइनिंग उर्फ सुदेवी दासी जी। फ्रेडरिक इरिना जर्मनी से भारत आई हैं। यहां की संसकृति और सभ्यता को देख वो इतनी मोहित हो गई कि उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन गायों की देखभाल और सेवा करने के लिए समर्पित कर दिया। भगवान श्री कृष्ण की नगरी कही जाने वाली मथुरा शहर में वो सादगीपूर्ण तरीके से अपना जीवन जीती हैं। आज वो 1200 से अधिक बछड़ों की मां कहीं जाती है। उनके गाय प्रेम और कार्यों को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया है। अपनी जन्मभूमि को छोड़कर किसी दूसरे देश में आकर रहना और वहां गायों की सेवा करने का कार्य करना फ्रेडरिक इरिना ब्रूइनिंग उर्फ सुदेवी दासी जी के लिए आसान नहीं था। आइए जानते हैं उनके जीवन का प्रेरणादायी सफर।
घायल बछड़े को देख मिली गौसेवा करने की प्रेरणा
जर्मनी के बर्लिन शहर की रहने वाली फ्रेडरिक इरिना ब्रूइनिंग उर्फ सुदेवी दासी जी 40 साल पहले भारत में पर्यटक के तौर पर घूमने आईं थी। लेकिन फ्रेडरिक ब्रुइनिंग को मथुरा शहर इतना पंसद आया कि उन्होंने यहां के एक आश्रम से दीक्षा ली। जिसके बाद वो पूजा-पाठ में लीन रहती थी। लेकिन एक दिन उन्होंने देखा कि गाय का एक बछड़ा कराह रहा है। उसका एक पैर टूटा हुआ था। सभी लोग उसे देखकर निकल रहे थे। उन्हें उस बछड़े को देख वेदना जागी और उसे वो अपने आश्र्म ले आईं। जिसके बाद उन्होंने उसकी देखभाल की। बछड़े की देखभाल करते हुए उनके अंदर गौसेवा करने की भावना जागृत हो गई। बस यहीं से उन्होंने इसे अपना लक्ष्य बना लिया।
जर्मनी छोड़ भारत में रहने का लिया फैसला
गायों की सेवा करते हुए ब्रुइनिंग ने भारत में ही रहने का फैसला कर लिया। पहले तो उनके पास केवल 10 गायें थीं लेकिन धीरे-धीरे गायों की संख्या बढ़ती गई। आज उनके पास 100 से अधिक गायें हैं। ये गायें दूध नहीं देती हैं बल्कि इनमें से ज़्यादातर वो हैं जो या तो बीमार होती हैं या फिर दूध न देने के कारण लोग उन्हें लावारिस छोड़ देते हैं। फ्रेडरिक इरिना ब्रूइनिंग उर्फ सुदेवी दासी के पिता ने उन्हें कई बार अपने देश चलने को कहा लेकिन गौसवा में लीन ब्रुनिंग ने वापस जाने से मना कर दिया।
पिता की मदद से बनाया आश्रम
गायों की सेवा करने के लिए ब्रुइनिंग ने अपने पिता से मदद ली। उनके पिता प्रतिवर्ष गायों की देखभाल के लिए पैसे भेजते हैं। क़रीब साढ़े तीन हज़ार वर्ग गज में फैली ब्रुइनिंग की इस गौशाला में लगभग 1200 गायें रहती हैं। इनमें से कई गायें बीमार हैं या फिर अपाहिज। कुछ गायें अंधी भी हैं। इन गायों की सेवा में सहायता के लिए आस-पास के क़रीब 70 लोग ब्रुइनिंग के साथ रहते हैं। तमाम दवाइयां घर पर ही रखी हैं और ज़रूरत पड़ने पर डॉक्टर भी आकर गायों का इलाज करते हैं। गौशाला के रख-रखाव और गायों के इलाज पर सालाना बीस लाख रुपये से ज़्यादा का ख़र्च आता है। इन सबके लिए ब्रुइनिंग कोई सरकारी सहायता नहीं लेंती।
गाय के मरने पर कराती हैं शांति पाठ
फ्रेडरिक इरिना ब्रूइनिंग उर्फ सुदेवी दासी जी गायों के मरने के बाद अपने आश्रम में ही उनकी समाधि बनाती हैं। उनके आश्रम में गायों के अंतिम समय में उनके मुंह में गंगाजल डाला जाता है और समाधि के बाद उनके लिए लाउड स्पीकर लगाकर शांति-पाठ किया जाता है।
ब्रुइनिंग उर्फ सुदेवी माता जी को सरकार ने पद्मश्री से किया सम्मानित
जर्मनी की अपनी पहचान भूलकर फ्रेडरिक इरिना ब्रूइनिंग भारतीय संस्कृति में रच-बस गई हैं। मथुरा के लोग उन्हें सुदेवी माता जी के नाम से संबोधित करते हैं। फ्रेडरिक इरीना ब्रूनिंग के उच्च कार्यों को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें देश के सर्वोच्च सम्मान में से एक पद्मश्री सम्मान से सम्मानित किया है। फ्रेडरिक इरीना ब्रूनिंग से सुदेवी दासी खुद को हजार बछड़ों की मां कहलाना भी पसंद करती हैं। उनकी गोशाला में काम करने वाले भी उन्हें के रंग में रंगे नजर आते हैं। 61 वर्षीय फ्रेडरिक इरिना राधाकुंड में सुरभि गौशाला का संचालन कर रही हैं, जहां करीब दो हजार से अधिक गायों का पालन किया जाता है।
इरीना लगभग 40 साल से यहां राधा कुंड में गौ-सेवा कर रही हैं। गौशाला चला रही हैं। उन्होंने अपनी मेहनत और लगन के दम पर सफलता की नई कहानी (Success Story) लिखी है। फ्रेडरिक इरीना ब्रूनिंग उर्फ सुदेवी दासी जी आज लाखों लोगों के लिए प्रेरणास्त्रोत (Inspiration) है। PASHUDHAN PRAHAREE फ्रेडरिक इरीना ब्रूनिंग उर्फ सुदेवी दासी जी के अद्भुत कार्यों की तहे दिल से सराहना करता है।