कांकरेज गाय: गुजरात की शान!!
कांकरेज एक भारतीय गाय की नस्ल है। यह गुजरात राज्य में कच्छ के रण के शुष्क क्षेत्र और पड़ोसी राजस्थान से पाली जाती है। यह एक दोहरे उद्देश्य वाली नस्ल है। इन नस्लों को कामकाजी और दूध की नस्ल के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है। यह मुख्य रूप से कृषि कार्य और दूध के लिए पाली जाती है। इस नसल को “वगाड़िया” या “बोनई” या “वागाद” या “तालबंदा” नाम से भी जाना जाता है। यह नसल मुख्य तौर पर गुजरात के जिला बनासकांठा में पायी जाती है। इस नसल के जानवर बड़े आकार के होते हैं। यह नसल मुख्य तौर पर सिल्वर, सलेटी और आयरन सलेटी से काले रंग में आती है।
कांकरेज नस्ल गाय की विशेषताएं
कांकरेज एक ज़ेबू मवेशी की नस्ल है, जो भारत में पूर्वोत्तर गुजरात राज्य में बनासकांठा जिले के कांकरेज क्षेत्र में आयी हुई है। इस गाय की रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है। यह उच्च तापमान को आसानी से सहन कर लेती हैं। इसका मुंह छोटा और चौड़ा होता है।यह गाय बड़ी होती है और इसके लंबे सींग होते हैं। बैल सिर और अग्र पादों पर गहरे रंग के होते हैं; बाकी शरीर हल्का है। माथा चौड़ा और बीच में थोड़ा फैला हुआ है। चेहरा छोटा और नाक थोड़ा ऊपर उठा हुआ है। इस नस्ल की अनूठी विशेषता इसके बड़े, लटके हुए कान हैं। सींग लिरे के आकार के होते हैं। गायें अच्छी दूध देने वाली होती हैं और बैलों का उपयोग कृषि कार्यों और सड़क परिवहन के लिए किया जाता है। कांकरेज मवेशी मुख्य नस्लों कि में से एक हैं जिनमें, उष्णकटिबंधीय और अर्ध-उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में अच्छी गर्मी सहनशीलता और रोग प्रतिरोध क्षमता होती है। कांकरेज पशु की बहुत अच्छी शारीरिक बनावट होती है। यह अपने अर्धचंद आकार के सींगों के लिए जानी जाती है जो इसे अत्यधिक खूबसूरती प्रदान करते हैं दूसरी गायों के मुकाबले इनके सींग काफी मजबूत और तीखे होते हैं| कांकरेज गाय भारतीय गायों में सबसे भारी नस्लों से एक है। ये पशु अच्छा गर्मी सहिष्णुता और कीट प्रतिरोधी माने जाते हैं। कांकरेज गाय हलके भूरे से लेकर चांदी के रंग में पाए जाते हैं। इनके शरीर के बाल छोटे और मुलायम होते है।
कांकरेज नस्ल गाय की कीमत
कांकरेज भैंस अच्छे नस्ल की दुधारी भैंस मानी जाती है। वर्तमान में, इसकी कीमत भारतीय रुपये में करीब 1 लाख के आसपास रहती है। बाजार में इसकी मांग को देखते हुआ लगता है की आने वाले दिनों में इसकी कीमत और बढ़ती रहेगी।
कांकरेज गाय का दूध उत्पादन
कांकरेज गाय अच्छी दुग्ध उत्पादक नस्ल मानी जाती है। इस नस्ल की गाय प्रतिदिन 8-10 लीटर तक दूध देती है. इन गायों का वार्षिक दूध उत्पादन 1750 लीटर तक होता है। इस नसल की गाय एक ब्यांत में औसतन 1800 किलो दूध देती है। इस नसल के बैल का औसतन भार 550-770 किलो और गाय का औसतन भार 330-370 किलो होता है। इसके दूध की वसा 4.8% होती है। इस नसल की गाय का पहले ब्यांत के समय गाय की उम्र 39-56 महीने होनी चाहिए। गायें अच्छी दूध देने वाली होती हैं और बैलों का उपयोग कृषि कार्यों और सड़क परिवहन के लिए किया जाता है। एक दुग्ध काल में गाय औसतन 1738 किलो ग्राम और अधिकतम 1800 किलो दूध देती है। चयनित गायों ने ग्रामीण परिस्थितियों में लगभग 4900 किलोग्राम उत्पादन किया है।
चारा
इस नसल की गायों को जरूरत के अनुसार ही खुराक दें। फलीदार चारे को खिलाने से पहले उनमें तूड़ी या अन्य चारा मिला लें। ताकि अफारा या बदहजमी ना हो। आवश्यकतानुसार खुराक का प्रबंध नीचे लिखे अनुसार है।
- खुराक प्रबंध जानवरों के लिए आवश्यक खुराकी तत्व: उर्जा, प्रोटीन, खनिज पदार्थ और विटामिन।
- अनाज और इसके अन्य पदार्थ: मक्की, जौं, ज्वार, बाजरा, छोले, गेहूं, जई, चोकर, चावलों की पॉलिश, मक्की का छिलका, चूनी, बड़ेवें, बरीवर शुष्क दाने, मूंगफली, सरसों, बड़ेवें, तिल, अलसी, मक्की से तैयार खुराक, गुआरे का चूरा, तोरिये से तैयार खुराक, टैपिओका, टरीटीकेल आदि।
- हरे चारे: बरसीम (पहली, दूसरी, तीसरी, और चौथी कटाई), लूसर्न (औसतन), लोबिया (लंबी ओर छोटी किस्म), गुआरा, सेंजी, ज्वार (छोटी, पकने वाली, पकी हुई), मक्की (छोटी और पकने वाली), जई, बाजरा, हाथी घास, नेपियर बाजरा, सुडान घास आदि।
- सूखे चारे और आचार: बरसीम की सूखी घास, लूसर्न की सूखी घास, जई की सूखी घास, पराली, मक्की के टिंडे, ज्वार और बाजरे की कड़बी, गन्ने की आग, दूर्वा की सूखी घास, मक्की का आचार, जई का आचार आदि।
- अन्य रोज़ाना खुराक भत्ता: मक्की/ गेहूं/ चावलों की कणी, चावलों की पॉलिश, छाणबुरा/ चोकर, सोयाबीन/ मूंगफली की खल, छिल्का रहित बड़ेवे की ख्ल/सरसों की खल, तेल रहित चावलों की पॉलिश, शीरा, धातुओं का मिश्रण, नमक, नाइसीन आदि।
नस्ल की देख रेख
- शैड की आवश्यकता: अच्छे प्रदर्शन के लिए, पशुओं को अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों की आवश्यकता होती है। पशुओं को भारी बारिश, तेज धूप, बर्फबारी, ठंड और परजीवी से बचाने के लिए शैड की आवश्यकता होती है। सुनिश्चित करें कि चुने हुए शैड में साफ हवा और पानी की सुविधा होनी चाहिए। पशुओं की संख्या के अनुसान भोजन के लिए जगह बड़ी और खुली होनी चाहिए, ताकि वे आसानी से भोजन खा सकें। पशुओं के व्यर्थ पदार्थ की निकास पाइप 30-40 सैं.मी. चौड़ी और 5-7 सैं.मी. गहरी होनी चाहिए।
- गाभिन पशुओं की देखभाल: अच्छे प्रबंधन का परिणाम अच्छे बछड़े में होगा और दूध की मात्रा भी अधिक मिलती है। गाभिन गाय को 1 किलो अधिक फीड दें, क्योंकि वे शारीरिक रूप से भी बढ़ती है।
- बछड़ों की देखभाल और प्रबंधन: जन्म के तुरंत बाद नाक या मुंह के आस पास चिपचिपे पदार्थ को साफ करना चाहिए। यदि बछड़ा सांस नहीं ले रहा है तो उसे दबाव द्वारा बनावटी सांस दें और हाथों से उसकी छाती को दबाकर आराम दें। शरीर से 2-5 सैं.मी. की दूरी पर से नाभि को बांधकर नाडू को काट दें। 1-2% आयोडीन की मदद से नाभि के आस पास से साफ करना चाहिए।
सिफारिश किए गए टीके: जन्म के बाद कटड़े/बछड़े को 6 महीने के हो जाने पर पहला टीका ब्रूसीलोसिस का लगवाएं। फिर एक महीने बाद आप मुंह खुर का टीका लगवाएं और गलघोटू का भी टीका लगवाएं। एक महीने के बाद लंगड़े बुखार का टीका लगवाएं। बड़ी उम्र के पशुओं की हर तीन महीने बाद डीवॉर्मिंग करें। कट्डे/बछड़े के एक महीने से पहले सींग ना दागें। एक बात का और ध्यान रखें कि पशु को बेहोश करके सींग ना दागें आजकल इलैक्ट्रोनिक हीटर से ही सींग दागें।https://www.pashudhanpraharee.com/breeds-of-indian-cows/
डॉ जितेंद्र सिंह ,पशु चिकित्सा अधिकारी ,कानपुर देहात ,उत्तर प्रदेश