पशुओं में ब्रूसेलोसिस रोग: रोग का कारण, लक्षण, उपचार , रोकथाम,निदान एवं प्रबंधन

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पशुओं में ब्रूसेलोसिस रोग: रोग का कारण, लक्षण, उपचार , रोकथाम,निदान एवं प्रबंधन

डॉ जितेंद्र सिंह, पशु चिकित्सा अधिकारी, कानपुर देहात , उत्तर प्रदेश

ब्रुसेल्लोसिस गाय, भैंस, भेड़, बकरी, शुकर एवं कुत्तों में फैलने वाली एक संक्रामक बीमारी हैं। ये एक प्राणीरूजा अथवा जीव जनति (Zoonotic) बीमारी है जो पशुओं से मनुष्यों एवं मनुष्यों से पशुओं में फैलती है। इस बीमारी से ग्रस्त पशु 7-9 महीने के गर्भकाल मैं गर्भपात हो जाता है। ये रोग पशुशाला में बड़े पैमाने पर फैलता है तथा पशुओं में गर्भपात हो जाता है जिससे भारी आर्थिक हानि होती है। ये बीमारी मनुष्य के स्वास्थ्य एवं आर्थिक दृष्टिकोण से भी बेहद महत्वपूर्ण बमारी है। विश्व स्तर पर लगभग 5 लाख मनुष्य हर साल इस रोग से ग्रस्त हो जाते हैं।

ब्रुसेलोसिस रोग का कारण (Causes of Brucellosis disease)

 

गाय भैंस में ये रोग ब्रूसेल्ला एबोरटस नामक जीवाणु द्वारा होता है। ये जीवाणू गाभिन पशु के बच्चेदानी में रहता है तथा अंतिम तिमाही में गर्भपात करता है। एक बार संक्रमित हो जाने पर पशु जीवन काल तक इस जीवाणू को अपने दूध तथा गर्भाश्य के स्त्राव में निकालता है।

 

संक्रमण का मार्ग

पशुओं में ब्रुसेल्लोसिस रोग संक्रमित पदार्थ के खाने से, जननांगों के स्त्राव के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्षण सम्पर्क से, योनि स्त्राव से संक्रमित चारे के प्रयोग से तथा संक्रमित वीर्य से कृत्रिम गर्भाधान द्वारा फैलता है। मनुष्यों में ब्रूसेल्लोसिस रोग सबसे ज्यादा रोगग्रस्त पशु के कच्चे दूध पीने से फैलता है। कई बार गर्भपात होने पर पशु चिकित्सक या पशु पालक असावधानी पूर्व जेर या गर्भाश्य के स्त्राव को छूते है। जससे ब्रुसेल्लोसिस रोग का जीवाणु त्वचा के किसी कटाव या घाव से शरीर में प्रवेश कर जाता है।

संचरणके प्रकार –

(१) रोगी पशु का कच्चा दूध पिने से

(२) रोगी पशु के दूध से बने पदार्थो जैसे क्रीम एवं मक्खन खाने से

(३) गर्भपात हुए पशु के जेर मरे हुए बच्चे एवं बीमार गाय या भैंस के गर्भ से निकले तरल के संपर्क में आने से

(४) जीवाणु युक्त चारा खाने एवं जीवाणु युक्त पानी पीने से

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(५) कृतिम गर्भाधान में जीवाणु युक्त वीर्य का इस्तेमाल करने से

(६) रोगी सांड के गाय और भैस से मिलाप करने से

 

लक्षण

पशुओं में गर्भावस्था की अंतिम तिमाही में गर्भपात होना इस रोग का प्रमुख लक्षण है। पशुओं में जेर का रूकना एवं गर्भाशय की सूजन एवं नर पशुओं में अंडकोष की सूजन इस रोग के प्रमुख लक्षण हैं। पैरों के जोड़ों पर सूजन आ जाती है जिसे हाइग्रोमा कहते हैं। मनुष्य को इस रोग में तेज बुखार आता है जो बार बार उतरता और चढ़ता रहता है तथा जोड़ों और कमर में दर्द भी होता रहता है।

पशुओं में लक्षण –

(१) पशु का तीसरी तिमाही (६-८ महीने) में गर्भपात हो जाता है |

(२) मरा हुआ बच्चा या समय से पहले ही कमजोर बच्चा पैदा होता है|

(३) दूध की पैदावार कम हो जाती है |

(४) पशु बाँझ हो जाता है |

(५) नर पशु में बृषणों में सूजन हो जाती है, और प्रजनन सकती काम हो जाती है |

(६) सूअर में गर्भपात के साथ जोड़ो और बृषणों में सूजन पाई जाती है|

(७) भेड़, बकरियों में भी गर्भपात हो जाता है |

मनुष्यों में लक्षण –

(1) बुखार का रोज बढ़ना और घटना इस बीमारी का मुख्य लक्षण है|

(२) थकान और कमजोरी

(३) रात को पसीना आना और शरीर में कंपकपी होना

(४) भूख न लगना और बजन घटना

(५) पीठ दर्द एवं जोड़ो का दर्द होना

(६) बृषणों में सूजन एवं रीढ़ की हड्डी में सूजन भी मुख्य लक्षणों में से एक है |

 

निदान

इस रोग का निदान अंतिम तिमाही में गर्भपात का इतिहास, रोगी पशु के योनि स्त्राव / दूध / रक्त / जेर की जांच एवं रोगी मनुष्य के वीर्य / रक्त की जांच करके की जाती है। गर्भपात के बाद चमड़े जैसा जेर कानिकलना इस रोग की खास पहचान है।

(१) सीरम की जाँच के द्वारा

(२) पशुओं में मिल्क रिंग टेस्ट के द्वारा

(३) पोषक माध्यम और प्रायोगिक पशु के द्वारा रोगाणु के पृथक्करण द्वारा

(४) आण्विक टेस्ट के द्वारा (उदाहरण – पी. सी. आर.) |

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प्रबंधन

  • पशुओं में ब्रूसैल्लौसिस की कौई सफल प्रमाणित चिकित्सा नहीं है। मनुष्यों में एंटीबायोटिक दवाओं के सहारे कुछ हद तक इस रोग के चिकित्सा में सफलता पायी गयी है।
  • स्वस्थ्य गाय भैसो के बच्चों (बछड़े/बछड़ियों एवं कटड़े/कटड़ियों) में 4-8 माह की आयु में ब्रुसेल्ला एस-19 वैक्सीन से टीकाकरण करवाना चाहिए।
  • नए खरीदे गए पशुओं को ब्रुसेल्ला संक्रमण की जांच किये बिना अन्य स्वस्थ्य पशुओं के साथ कभी नहीं रखना चाहिए।
  • अगर किसी पशु को गर्भकाल के तीसरी तिमाही में गर्भपात हुआ हो तो उसे तुरंत फार्म के बाकी पशुओं से अलग कर दिया जाना चाहिए। उसके स्त्राव द्वारा अन्य पशुओं में सक्रमण फैल जाता है।
  • गर्भश्य से उत्पन्न मृत नवजात एवं जैर को चूने के साथ मिलाकर गहरे जमीन के अन्दर दबा देना चाहिए जिससे जंगली पशु एवं पक्षी उसे फैला न सके।
  • अगर पशु का गर्भपात हुआ है इस स्थान को फेनाइल द्वारा विसंक्रमित करना चाहिए।
  • रोगी मादा पशु के कच्चे दूध को स्वस्थ्य नवजात पशुओं एवं मनुष्यों को नहीं पिलाना चाहिए।
  • मादा पशु के बचाव के लिए 6-9 माह के मादा बच्चों को इस बीमारी के विरूद्ध टीकाकरण करवाना चाहिए। नर पशु या सांड का टीकाकरण कभी नहीं कराना चाहिए।
  • अगर पशु को गर्भपात हुआ है तो खून की जांच अवश्य करानी चाहिए।
  • ब्याने वाले पशुओं में गर्भपात होने पर पशुपालकों को उनके संक्रमित स्त्राव, मलमूत्र आदि के सम्पर्क से बचना चाहिए। क्योंकि इससे उनमें भी संक्रमण स्त्राव, मलमुत्र आदि के सम्पर्क से बचना चाहिए क्योंकि इससे उनमें भी संक्रमण हो सकता है।
  • आसपास की धूल, मिट्टी, भूसा चारा आदि को जला देना चाहिए तथा आसपास के स्थान को भी जीवाणुरहित करना चाहिए।

पशु चिकित्सक के लिए आवश्यक निर्देश

  • अगर गर्भपात तीसरी तिमाही का है तो पशुचिकित्सक को सावधान हो जाना चाहिए। 30 प्रतिशत मौकों पर ये ब्रुसेल्लोसिस होती है।
  • दोनो हाथ में बिना स्लिव या गाइनाकोलोजिकल दस्ताने पहने • योनि द्वार में हाथ डालना चाहिए।
  • जेर निकालते समय नाक व मुंह पर मास्क या रूमाल जरूर बांधना चाहिए।
  • जेर निकालने के बाद हाथ मुंह अच्छी तरह एंटीसेप्टिक घोल से धोना चाहिए।
  • अगर स्वयं को लम्बे समय तक बुखार हो, अंडकोष में सूजन हो तो ब्रुसेल्ला टेस्ट अवश्य कराना चाहिए।
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मानव में रोग का कारण (Causes of disease in humans)

मनुष्यों में ब्रूसेल्लोसिस रोग सबसे ज्यादा रोगग्रस्त पशु के कच्चा दूध पीने से फैलता है. कई बार गर्भपात होने पर पशु चिकित्सक या पशु पालक असावधानी पूर्व जेर या गर्भाशय के स्त्राव को छूते हैं, जिससे ब्रुसेल्लोसिस रोग का जीवाणु त्वचा के किसी कटाव या घाव से भी शरीर में प्रवेश कर जाता है.

ब्रूसेल्लोसिस रोग की जांच (Testing of brucellosis disease)

इस रोग का निदान रोगी पशु के योनि स्त्राव/दूध/रक्त/जेर की जाँच एवं रोगी मनुष्य के वीर्य/रक्त की जाँच करके की जा सकती है.

उपचार व रोकथाम:

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यदि पशु में गर्भपात के लक्षण शुरू हो गए हो तो उस में इसे रिक पाना कठिन होता है| अत: पशु पालकों को उन कारणों से दूर रहना चाहिए जिनसे गर्भपात होने की सम्भावना होती है| गर्भपात की रोक थम के लिए हमें निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए|
1. गौशाला सदैव साफ सुथरी रखन चाहिए तथा उसमें बीच-बीच में कीटाणु नाशक दवा का छिड़काव करना चाहिए|
2. गाभिन पशु की देखभाल का पूरा ध्यान रखना चाहिए तथा उसे चिकने फर्श पर नहीं बांधना चाहिए|
3. गाभिन पशु की खुराक का पूरा ध्यान रखना चाहिए तथा उसे सन्तुलित आहार देना चाहिए|
4. मद में आए पशु का सदैव प्रशिक्षित कृत्रिम गर्भाधान तकनीशियन द्वारा हीगर्भधान करना चाहिए|
5. गर्भपात की सम्भावना होने पर शीघ्र पशु चिकित्सक से सलाह लेनी चाहिए|
6. यदि किसी पशु में गर्भ पात हो गया हो तो उसकी सुचना नजदीकी पशु चिकित्सालय में देनी चाहिए ताकि इसके कारण का सही पता चल सके| गिरे हुए बच्चे तथा जेर को गड्ढे में दबा देना चाहिए तथा गौशाला को ठीक प्रकार से किटाणु नाशक दवा से साफ करना चाहिए|

https://hi.vikaspedia.in/agriculture/animal-husbandry/92a936941913902-92e947902-93094b917/92a936941913902-92e947902-92c94d93094193894793294b93893f938-93094b

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