डेयरी पशुओं में गर्मी के तनाव को कम करने के सरल उपाए

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डेयरी पशुओं में गर्मी के तनाव को कम करने के सरल उपाए

 

गर्मी के दिन जैसे – जैसे नजदीक आते जा रहे हैं तापमान में वैसे – वैसे बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है। ऐसे में पशुपालकों के अपने पशुओं का विशेष ध्यान देने की जरूरत होती है, क्योंकि बढ़ती गर्मी के बीच में यदि पशुओं का सही तरह से देखभाल नहीं की जाए तो पशुओं के स्वास्थ्य पर तो प्रभाव पड़ता ही है लेकिन दुग्ध उत्पादन मे कमी देखी जाती है। इसलिए इस लेख में हम आपको गर्मियों के समय अपने पशुओं की देखभाल से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान कर रहे हैं, जिसकी सहायता से आप अपने पशुधन की उचित देखभाल करने में सक्षम रहेंगे।

 

जानवरों में गर्मी से होने वाली परेशानियों यानि के तनाव के लक्षण जानना सबसे पहला व महत्वपूर्ण कदम है। क्योंकि जानकारी के अभाव में कई दफा पशुपालक अपने जानवरों को दोपहर में ही स्नान करवाते हैं। जिससे उनके स्वास्थय पर असर पड़ता है औऱ वे बुखार या लू की चपेट में आ जाते हैं। इसलिए सबसे पहले हम बात करते हैं तनाव के लक्षणों कि जो इस प्रकार है –

 

  • हर पल छाया को ढूंढ़ना और अकसर खाने एवं पानी पीने के लिए न जाना।
  • पानी के सेवन में बढ़ोतरी
  • खाना गृहण करने की मात्रा में कमी
  • लेटने के बजाए स्थायी रहना
  • श्रवसन दर में बढ़ोतरी
  • शरीर के तापमान का बढ़ना
  • लार उत्पादन में बढ़ोतरी
  • खुले मुह पुताई
  • दुग्ध उत्पादन में कमी
  • प्रजनन चुनौतियाँ

उष्मागत तनाव के कारण बीमार गायों की लंबे समय तक देखभाल करनी पड़ सकती है।

 

गर्मी के मौसम में डेयरी पशुओं में होने वाले गर्मी तनाव के कारण भारतीय डेयरी पशुओं में उत्पादन एवं प्रजनन में कमी आती है। कुछ गर्मी तनाव अपरिहार्य हैं लेकिन निश्चित प्रथाओं का पालन करके तनाव के प्रभाव को कम किया जा सकता है। गर्मी तनाव के लिए पारे में तीन अंकों की वुद्धि की जरुरत नही हैं क्योंकि यह तनाव तब भी देखा जा सकता है जब दिन का औसत तापमान 21 डिग्री सेलसियस से अधिक बढ़ जाए। डेयरी पशुओं के लिए आदर्श तापमान 15 डिग्री से 10 डिग्री है। जब तापमान 27 डिग्री से अधिक हो जाता है तब शुष्क पदार्थ का सेवन, दुग्ध उत्पादन एवं प्रजनन प्रदर्शन पे गहरा असर पड़ता है। भारत में गर्मियों में दक्षिणी भाग में तापमान 32 डिग्री तक पहुंच जाता है वो भी अप्रैल के महीने में जबकि उत्तरी भाग में यह जून के महीने तब पहुँचता है। गर्मी तनाव के लिए केवल गर्मी का मौसम ही नहीं नमी भी उतनी ही जिम्मेवार है। 21 डिग्री सेलासियस तापमान, 100 प्रतिशत नमी पशुओं के झुंड में आसानी से गर्मी तनाव पैदा कर देती है।

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गर्मी की बीमारी’: मुश्किल जनम, थकावट, ताजा गायों में फैटी लीवर, स्तन की सूजन और टीकाकरण के लिए प्रतिकूल प्रतिक्रियों का परिमाण हो सकते हैं। अंतत- गर्भपात एवं मौत का कारण भी हो सकते हैं।

 

लू से कैसे बचाएं

जैसा कि हम सब जानते हैं कि हमारे पूरे देश में जून तक मानसून का आगमन हो जाता है। यानि कि मई के अंत तक गर्म लू चलने से पशुपालकों को मुश्किलें आ सकती हैं।

 

गर्मी के मौसम में हवा के गर्म थपेड़ों और बढ़े हुए तापमान से पशुओं में लू लगने का खतरा और भी ज्यादा बढ़ जाता है। कई बार पशुपालक पशु के चरने के आने के बाद उन पर पानी छिड़क देते हैं। जिससे पशुओं को बुखार आ जाता है। गर्मियों में भैंसों को तो दोपहर में नहलाया जा सकता है क्योंकि उनकी खाल काफी मोटी होती है। इससे उन पर खासा कोई फर्क नहीं पड़ता है लेकिन गाय और बकरी के लिए यह नुकसानदायक बन जाता है। इससे सबसे बड़ा नुकसान पशुपालक को होता है क्योंकि दूध उत्पादन घट जाता है।

ऐसे में अगर पशुपालक अपने पशुओं को भरी दोपहर में नहलाएंगे तो पशुपालकों को आर्थिक नुकसान झेलना पड़ सकता है। पशुचिकित्सों के अनुसार – अगर पशु ज़्यादा समय तक खुली धूप के संपर्क में रहता है और उस पर पानी डाल दिया जाए तो वह सन स्ट्रोक बीमारी की चपेट में आसानी से आ सकता है। इस बीमारी के कारण पशु के आंखों में लालपन हो जाता है और पतला मल त्याग करने लगता है।

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प्रबंधन:

गर्मी तनाव का मुकाबला करने के लिए उत्पादकों के पास कई विकल्प हैं।

जिनमें से मुख्य तरीके इस प्रकार हैं।

 

*जल प्रबंधन*

जल डेयरी पशुओं में ‘गर्मी तनाव’को कम करने वाला एक महत्त्वपूर्ण तत्व है। इस समय उत्पादकों को पानी की पहुँच और उपलब्ध पानी की मात्रा में बढ़ोतरी करनी चाहिए। इस बात को सुनिच्श्ति करें की पानी ठंडा है और पानी किसी भी कारण स्थिर न हो। पानी के बर्तनों की दैनिक स्तर पर सफाई आवश्यक है। चारा एवं पानी ठंडे क्षेत्र में रखने से पानी की खपत बढ़ाने में मदद मिल सकती है।

 

*छाया प्रबंधन*

अगर सभी गायों का चराई में प्रवेश संभव हो तो पेड़ ही एक रास्ता हो सकते हैं छाया प्रदान करने के लिए। लेकिन आज के डेयरी उद्योग में यह संभव नहीं है। कपड़े के उपयोग से कृत्रिम छाया क्षेत्र उपलब्ध कराया जा सकता है या फिर एक स्वाभाविक रुप से हवादार संरचना की मदद से झुंड को हानिकारण सौर विकिरण से दूर रखा जा सकता है।

एक छायाकांत क्षेत्र का निमार्ण करने से पहले इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है कि उसकी ऊँचाई 12 फीट या उसे उच्च होनी चाहिए ताकि उसका प्रभाव अधिकतम हो।

 

स्प्रिंकलर (छिड़काव) – अच्छी तरह से छाया व फंखे के उपयोग के बाद लगभग 3 मिनट से लेकर 15 मिनट तक पशुओं पर पानी का छिड़काव करना, गर्मी के तनाव से बचाने का सबसे कारगार व आसान उपाय है। जिससे किसान भाई कम समय में आसानी से कर सकते हैं।

 

*पर्यावरण प्रबंधन*

सामान्य चयापचय को बनाए रखने के लिए गाय का मुख्य शरीर तापमान स्थिर होना आवश्यक है। इस के साथ ही मुख्य शरीर का तापमान परिवेश के तापमान से थोड़ा अधिक होना चाहिए। ताकि गर्मी का स्थानांतरण बाहरी वातावरण में आसानी से हो सके। चारे के पाचन से और पोषक तत्वों की चयापचय से गाय के शरीर में गर्मी उत्पन्न होती है। अगर डेयरी गायों का छाया, हवादार घर, आसपास ठंडी हवा या फिर फ़व्वारा सिंचाई उपलब्ध कराई जाए तो गर्मी तनाव के हानिकारक प्रभाव को कम किया जा सकता है जिससे उनके दूध उत्पादन, प्रजनन एवं उनकी प्रतिक्षा प्रणाली पर कम से कम असर पड़े।

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*शीतलक प्रबंधन*

गायों को ठंडा रखने के लिए डेयरी सुविधा के हर क्षेत्र की जाँच करना आवश्यक है। हवा की निनमय दर को बढ़ाने के लिए किसानों को पंखो की साफ-सफाई का खास ध्यान रखना चाहिए साथ ही अधिक प्रशंसको एंव इनलेटस को स्थापित करना चातिए। वायु प्रवाह खलिहान के पाक्षों को खोलने से भी बढ़ाया जा सकता है। वायु प्रवाह गायों को ठडा करने का एकमात्र सहारा नहीं है इसके अलावा गायों को गीला करने के लिए छिड़काव प्रणाली का प्रयोग किया जा सकता है। पानी की बूंदो की जाँच आवश्य करनी चाहिए और इस बात को ध्यान में रखना चाहिए की पानी को बूदें इतनी बड़ी हो कि बाल एंव चमड़ी आसानी से गीली हो सकें। अत्याधिक छिड़काव से बिस्तर गीला हो सकता है और गायों के स्तन की सूजन का कारण हो सकता है।

 

*फीड़ (चारा) प्रबंधन*

उष्मागत तनाव को दूर करने उत्पादकों के लिए अंतिम विकल्प है चारा प्रबंधन।

उष्मागत तनाव के समय काम आने वाले कुछ सुझाव (पोषंण संबंधी)।

  • कुल निश्रित राशन खिलाना चाहिए ।
  • फीडिगं की संख्या बढा देनी चाहिए ।
  • ठंडे समय पे फीड देनी चाहिए ।
  • फीड ताज़ा होनी चाहिए ।
  • उच्च गुणवत्ता वाले चारे का प्रयोग करना चाहिए ।
  • पर्याप्त फाइिबर प्रदान करना चाहिए ।
  • सोडियम एवं पोटेश्यिम जैसे खनिज पदार्थो मे परिवर्तन करना चाहिए ।
  • फीडबंक में माध्यमिक किण्वन से बचें।

 

आहार के खनिज सामग्री का संषोधिकर्ण

उष्मागत तनाव से ग्रस्त डेयरी गायों में पसीना अधिक मात्रा में आता है और पसीने में सोडियम एवं पोटेश्यिम जैसे तत्व उच्च मात्र में पाए जाते हैं जिसके कारण उनके शरीर में इन तत्वों की जरूरत बढ़ जाती है। इस कमी को पूरा करने के लिए अतिरिक्त मात्रा में सोडियम बाईकार्बोनेट एवं पोटेश्यिम बाईकार्बोनेट फीड में मिला कर दिया जाना चाहिए।

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