वैज्ञानिक विधि से बकरी पालन का किसानों के आर्थिक एवं सामाजिक विकास में महत्व

0
1038

IMPORTANCE OF SCIENTIFIC GOAT REARING ON THE SOCIO-ECONOMIC DEVELOPMENT OF FARMERS

वैज्ञानिक विधि से बकरी पालन का किसानों के आर्थिक एवं सामाजिक विकास में महत्व

डा0 दीप नारायण सिंह एवं डा0 अजय कुमार
पशुधन प्रबन्धन एवं उत्पादन विभाग, दुवासू मथुरा

 

हमारे देश की कृषि आधारित अर्थव्यवस्था में बकरी जैसे छोटे आकार के लघुरोमन्थी पशु का भी महत्वपूर्ण योगदान है। बकरी पालन प्रायः सभी जलवायु में कम लागत, साधारण आवास, सामान्य रख-रखाव तथा पालन पोषण के साथ संभव है, क्योंकि वातावरणीय परिवर्तन का इस पर कोई विशेष प्रभाव नहीं पडता है। बकरी में अयोग्य खाद्य पदार्थों को उच्च कोटि के पोषक पदार्थों जैसे दूध, मांस, रेशा एवं बाल में परिवर्तित करने की अभूतपूर्व क्षमता होती है। बकरी भूमिहीन, छोटे और सीमांत किसानों के पोषण एवं आर्थिक उन्नयन में महत्वपर्ण भूमिका निभाता है और यह अपने आप में एक पूरक व्यवसाय है। चूंकि ये अन-उपजाऊ एवं बंजर भूमि पर उगी झाड़ियों, कटीले वृक्षों की पत्तियाँ खा कर अपना जीवन निर्वाह करने में सक्षम है। बकरी पालन एक ऐसा व्यवसाय है, जो कि तुलनात्मक रूप से बहुत कम पूँजी से प्रारम्भ किया जा सकता है। इस व्यवसाय का गरीब किसानों के आय बढा़ने, रोजगार दिलाने एवं पोषक पदार्थों को उपलब्ध कराने में विशेष योगदान है। यही कारण है कि महात्मा गाँधी बकरी को ‘गरीब की गाय’ कहा करते थे। वर्तमान परिवेश में अपने देश में बकरी पालन से किसानों के सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ किया जा सकता है।
बकरी पालन की प्रमुख विशेषतायें :
1. बकरी आकार में अत्यन्त छोटी और स्वभाव से बहुत ही शान्त प्रकृति की होती है, इसीलिए इन्हें पालनें में ज्यादा कठिनाई नही होती है।
2. बकरी पालन हेतु कम जगह की आवश्यकता होती है, अतः यह व्यवसाय भूमिहीन एवं अल्प भूमि वाले किसान अपना सकते हैं।
3. बकरी के लिए शुष्क जलवायु उपयुक्त होता है, यद्यपि यह हर प्रकार के वातावरणीय परिस्थितियों में अपने आप को ढालने में समर्थ है।
4. इनके पालन हेतु किसी विशेष प्रकार के आवास की आवश्यकता नही होती है।
5. बकरी एक बहुउद्देशीय पशु है, क्योंकि यह दूध, मांस, रेशा, खाल आदि प्रदान करती है।
6. अन्य दुधारू पशु की तुलना में बकरियों को कम मात्रा में दाना की आवश्यकता होती है, अर्थात इनको पालने में बहुत ही कम खर्च लगता है।
7. बकरी हर प्रकार के पेड़-पौधे एवं झाडियों को खा सकती है।
8. नर एवं मादा बकरी सामान्यतया 10-15 माह में वयस्क होकर प्रजनन के योग्य हो जाते हैं।
9. सामान्यतया एक बकरी साल में दो बार बच्चे देती है, जिससे इनकी संख्या बहुत तेजी से बढ़ती है और साथ ही पशुपालक आवश्यकतानुसार इसे बेंच कर आर्थिक अर्जन भी कर सकता है।
10. बकरी के दूध में औषधीय गुण विद्यमान होते हैं, जो विभिन्न प्रकार की बीमारियों के उपचार में प्रयोग किया जाता है।

बकरी की प्रमुख उन्नतशील नस्लें :
हमारे देश में बकरी की लगभग 20 से ज्यादा उन्नतशील नस्लें पायीं जाती हैं, जिसमें से जमुनापारी, बरबरी, ब्लैक बंगाल, सिरोही, बीटल, झखराना एवं मारवारी प्रमुख नस्ल है, परन्तु हमारे प्रदेश हेतू जमुनापारी एवं बरबरी प्रमुख है।
1. जमुनापारी – इस नस्ल का मूल स्थान यमुना एवं चंबल नदी के तटीय स्थानों विशेषतया उत्तर प्रदेश के आगरा, इटावा मथुरा एवं चकरनगर, तथा मध्य प्रदेश के मुरैना एवं भिंड जिला है। यह अपने देश की सबसे बडी एवं अद्भुत नस्ल है। इस नस्ल का उपयोग हमारे देश में नस्ल सुधार के लिए किया जाता है। यह नस्ल दूध उत्पादन एवं मांस उत्पादन दोनों के लिये प्रसिद्ध है, यद्यपि यह दूध उत्पादन में अपने देश में सर्वोत्तम है। इसका दूध उत्पादन तीन महीने में लगभग 100-110 लीटर होता है।

READ MORE :  GOAT REARING : AN ATM OF POOR PEOPLE IN RURAL INDIA

जमुनापारी नर
जमुनापारी मादा
पुठ्ठे एवं पिछले पैर की जांघ पर पीले-सफेद बडे बाल जबकि बाकी शरीर के अन्य भाग पर सफेद रंग के छोटे-छोटे बाल पाये जाते है । इनकी नाक ऊपर की ओर उठी हुई अर्थात रोमन नाक या तोते के मुँह के जैसी प्रतीत होती है। इनके कान बहुत ही लम्बे, चपटें और नीचे की तरफ लटके होते हैं। वयस्क बकरी में कान की लम्बाई 12 इंच तक हो सकती है । इस नस्ल की बकरियां औसतन 1.5 से 2.0 लीटर दूध देती हैं। प्रायः इस नस्ल की बकरियाँ एक बार में केवल एक ही बच्चे देती हैं तथा वर्ष में केवल एक बार ही बच्चे भी देती हैं।
2. बरबरी – यह एक अच्छी एवं छोटे आकार की बकरी की दुधारू नस्ल है, जिसका मूल स्थान संभवतः पूर्वी अफ्रीका में ब्रिटिश सोमाली का बारबरा शहर है। अपने देश में यह नस्ल उत्तर प्रदेश के इटावा,   आगरा, मथुरा व अलीगढ. तथा राजस्थान के भरतपुर में पायी जाती है। इस नस्ल की बकरियाँ प्रायः एक साथ दो या तीन बच्चे देती हैं अर्थात इनमें बच्चे पैदा करने की प्रचुर क्षमता होती है। इसके छोटे आकार के कारण इसे एक स्थान पर बांधकर भी खिला सकते हैं।

बरबरी नर
बरबरी मादा

 

बच्चे

इसके शरीर का रंग प्रायः सफेद तथा पूरे शरीर के ऊपर भूरे रंग के धब्बे पाये जाते हैं। इस नस्ल की बकरियों के कान प्रायः छोटे, नली के समान एवं सीधे होते हैं। नर एवं मादा दोनों में मध्यम आकार की मुडी हुई सींग पायी जाती है। नर बकरे में लम्बी दाढी भी पायी जाती है। मादा बकरी समान्यतया एक दिन में लगभग 750-1000 मि0ली0 तक दूध देती हैं। इनका दुग्धकाल लगभग 150 दिन होता है, जिसमें यह 130-200 लीटर तक दूध देती हैं। इस नस्ल की बकरियां 12-15 माह में दो बार में बच्चे दे सकती हैं। इस प्रजाति में जुडवे बच्चे देने की संभावना सर्वाधिक 65 प्रतिशत होती है।
3. सिरोहीः यह नस्ल राजस्थान के सिरोही, अजमेर, बांसवाडा, राजसमंद एवं उदयपुर के आस-पास के जिलों में पाई जाती है। यह नस्ल गुजरात एवं राजस्थान के सीमावर्ती क्षेत्रों में भी पाई जाती हैं। इनके शरीर पर भूरे रंग के बालों के गुच्छे पाये जाते हैं। यह दूध एवं मांस उत्पादन के लिये उपयुक्त होती हैं।
4. ब्लैक बंगाल– यह नस्ल प्रमुख रूप से पश्चिम बंगाल, झारखंड, असम एवं उत्तरी उडीसा में पाई जाती है। यह छोटे आकार एवं काले रंग की होती हैं। यह नस्ल बच्चे पैदा करने, अच्छी गुणवत्तायुक्त मांस प्रदान करने एवं खाल के लिये प्रसिद्ध है।
5. बीटल– यह नस्ल प्रमुख रूप से पंजाब में पाई जाती है। यह नस्ल पंजाब के गुरूदासपुर, अमृतसर, झेलम नदी के आस-पास एवं सियालकोट में पाई जाती है। इसकी कद-काठी जमुनापारी नस्ल जैसी होती है। यह दूध उत्पादन के लिये जानी जाती है।

वैज्ञानिक और लाभदायक बकरी पालन हेतु निम्न बिन्दुओं पर ध्यान देना चाहिए :

प्रजनन योजना : भारत वर्ष में 20 प्रजातियों की बकरी उपलब्ध है। अपने देश में पायी जाने वाली विभिन्न नस्लें मुख्य रूप से माँस उत्पादन हेतु उपयुक्त है।
देशी नस्ल को सुधारने के लिए निम्न प्रजनन नीति का उपयोग करना चाहिए :-
1. उन्नयन प्रजनन पद्वति : उन्नयन प्रजनन पद्धति के द्वारा अवर्णित बकरियोंं को सुधाराने के लिए वर्णित नस्ल के बकरों के साथ प्रजनन किया जाता है। जैसे कि जमुनापारी, बरबरी, ब्लैक बंगाल आदि उन्नत नस्लों को अवर्णित नस्ल को सुधारने के लिए प्रयोग किया जा सकता है और इससे उत्पादन को बढाया जा सकता है व बकरियों से होने वाली आय में वृद्धि हो सकती है।
2. संकर प्रजनन पद्वति : संकर प्रजनन पद्धति के द्वारा विदेशी नस्ल के बकरों से देशी नस्ल के साथ प्रजनन किया जाता है। जैसे की अच्छा माँस उत्पादन के लिए दक्षिण अफ्रीका के बोअर नस्ल के बकरों से देशी नस्ल के बकरियों को प्रजनन किया जा रहा है।
प्रजनन हेतु नर का चयन : प्रजनन हेतु नर का चयन निम्नलिखित गुण के आधार पर करें –
ऽ माँ का दूध उत्पादन अच्छा होना चाहिये
ऽ जुड़वा बच्चे उत्पन्न करे
ऽ शारीरिक वजन और बनावट अच्छा हो
ऽ अण्डकोष की वृद्धि सही रूप से हो
ऽ अच्छा वीर्य हो, जिसमें जीवित शुक्राणु का प्रतिशत अधिक हो एवं असामान्य शुक्राणु न हो।
प्रजनन हेतु मादा का चयनः प्रजनन हेतु मादा का चयन निम्नलिखित गुण के आधार पर करें-
ऽ एक साथ दो या तीन बच्चे दें
ऽ 6 से 9 माह में प्रजननयोग्य हो जाऐं
ऽ दो साल में तीन बार बच्चे दें
ऽ संकर नस्लें 200-250 दिन के दुग्धकाल में 300 किलो दूध दे
ऽ देशी नस्लें 120-150 दिन के दुग्धकाल में 150-200 किलो दूध दे।

READ MORE :  Goat Farming- A Profitable Venture

प्रजनन प्रबंधन :
 आदर्श प्रबंधन के द्वारा इस प्रकार योजना बनाना चाहिए कि मादा से 2 साल में 3 बार बच्चे प्राप्त हो।
 मादा बच्चे करीब 8 से 10 माह की उम्र में वयस्क हो जाते हैं और इस उम्र में पाल दिलाना चाहिए।
 बकरी में ऋतुचक्र करीब 18 से 20 दिनों का एवं ऋतुकाल 36 घंटों का होता है।
 अधिकांश बकरियोंँ मध्य सितंबर से मध्य अक्टूबर तथा मध्य मई से मध्य जून के बीच गर्म होती है।
 ऋतुकाल शुरू होने के 10-12 तथा 24-26 घंटों के बीच दो बार पाल दिलाना चाहिए। जैसे अगर बकरी सुबह में गर्म हुई हो तब उसे उसी दिन शाम में एवं दूसरे दिन सुबह में पाल दिलाएं।

बकरी के ऋतुकाल के लक्षण :
 विशेष प्रकार की आवाज निकालना
 लगातार पूँछ हिलाना
 चरने के समय इधर उधर भागना
 घबराई हुई रहना
 दूध उत्पादन में कमी होना
 भगोष्ठ में सूजन और योनि द्वार का लाल होना
 योनि से साफ पतला लेसेदार द्रव्य निकलना
 नर का मादा के उपर चढ़ना या मादा का नर के उपर चढ़ना।
 इन लक्षणों को जानने पर ही गर्म बकरी को समय से पाल दिलाया जा सकता है।
 बच्चा पैदा करने के 30-31 दिनों के बाद ही गर्म होने पर बकरी को पाल दिलवायें।

आवास प्रबंधन :


 बकरियोंं के लिए आवास वातावरण के अनुसार करना चाहिए जहाँ बकरियोंं को गर्मी, सर्दी बरसात तथा जंगली जानवरों से बचाया जा सके।
 प्रत्येक वयस्क बकरी के परिवार के लिए 10 से 12 वर्ग फीट जमीन की आवश्यकता होती है।
 बकरा-बकरी को अलग रखना चाहिए।
 60 बकरियोंं तक के समूह को एक साथ एक बाड़ें में रख सकते है ।
 बकरों को अलग-अलग बाड़ों में रखना चाहिए।
घर की दिवाल या किसी चहारदीवारी से लगाकर बकरी के आवास का निर्माण किया जा सकता है और इससे लागत कम आयेगा। पीछे वाले दीवाल की उँचाई 8 फीट तथा आगे वाले का 6 फीट रखें। घर हवादार एवं साफ सुथरा रहना चाहिए। घर का जमीन ढ़ालूआ होना चाहिए ताकि सफाई करना आसान हो।
गर्भवती बकरी की देखरेख : बकरियोंं मेंं गर्भावस्था औसतन 142-148 दिनों का होता है। गर्भवती बकरियोंं को गर्भावस्था के अंतिम डेढ़ महीने में अधिक सुपाच्य एवं पौष्टिक भोजन देना चाहिए क्योंकि भ्रूण के विकास के लिए ये जरूरी है। इस समय गर्भवती बकरी के पोषण एवं रख -रखाव पर ध्यान देने से स्वस्थ बच्चा पैदा होगा एवं बकरी अधिक मात्रा में दूध देगी। बच्चे देने के 2-3 दिन पहले से बकरी को साफ सुथरा एवं अन्य बकरियोंं से अलग रखें।
बच्चों की देखभाल : जन्म के उपरांत नवजात बकरी के बच्चों के नाल को 2-2.5 इंच नीचे से नया ब्लेड से काटकर जीवाणु रहित टिंचर आयोडीन या डेटॉल लगा दें। बच्चों को साफ सुथरे जगह पर रखें और ठंड से बचाएं। इनको पाँच दिन तक खीस पिलाएं। अच्छे माँस उत्पादन के लिए नर बच्चों को उम्र के पहले दो हफ्तों के दौरान बधिया करें।
पोषण : बकरियोंँ चरने के अतिरिक्त हरे पेड़ की पत्तियाँ, हरी घास, दाल चुन्नी, चोकर आदि पसन्द करती हैं। बकरियोंं को रोज 6 -8 घंटें चराना जरूरी है। यदि बकरी को घर में बाँधकर रखें तब उसे कम से कम दो बार दाना एवं चारा दें। बकरी हरा चारा (लूसर्न, बरसीम, जई, मकई, नेपीयर आदि) और पत्ता (बबूल, बेर, पीपल, गुलर आदि) भी खाती है।

READ MORE :  IMPORTANCE OF GOAT MILK & NATIONAL ACTION PLAN (NAP) ON GOAT 

 

बकरी का संतुलित पोषण
दाने का संघटन एवं मात्रा :

संघटक स्टार्टर राशन बढ़ते राशन दुधारू बकरी राशन गर्भवती बकरी राशन
मकई 37 15 52 35
दलहन 15 37 – –
खली 25 10 8 20
गेंहूँ की भूसी 20 35 37 42
खनिज मिश्रण 2.5 2 2 2
साधारण नमक 0.5 1 1 1

उम्र भोजन के संघटक मात्रा
जन्म से तीन दिन तक खीस यथेष्ट
तीन दिन से तीन सप्ताह तक दूध 450 मि.लीटर
तीन सप्ताह से 4 महीने तक दूध
स्टार्टर राशन
हरा चारा 450 मि. लीटर 8 सप्ताह तक
150 ग्राम प्रतिदिन
यथेष्ट
4 महीने से प्रसव तक दाने का मिश्रण
हरा चारा 450 ग्राम प्रतिदिन
यथेष्ट
दुधारू बकरी दाने का मिश्रण
हरा चारा 350 ग्राम प्रति लीटर दूध के लिये
यथेष्ट
बकरा चारागाह
दाने का मिश्रण एवं चारागाह जब मदकाल न हो
400 ग्राम दाने का मिश्रण मदकाल के समय

रोग नियंत्रण एवं टीकाकरणः
बकरियोंं में कम आहार लेना, बुखार आना, अनावश्यक स्राव आना तथा पशु व्यवहार में परिवर्तन जैसे लक्षणों को ध्यान दें और बीमार बकरी को पशुचिकित्सक द्वारा जाँच करायें। बकरी तथा इनके बच्चों को नियमित रूप से कृमिनाशक दवा दें और टीकाकरण करायें।
 बकरियों को नियमित रूप से खुजली से बचाव के लिए जहर (मैलॉथियान -1.5 से 2 प्रतिशत तक घोल, सुमिथियान, असन्टल, बूटॉक्स आदि) स्नान या छिड़काव (मैलॉथियान -0.5 प्रतिशत, सुमिथियान -0.05 प्रतिशत, असन्टल -0.2 प्रतिशत) करें। आवास में भी उक्त जीवाणुनाशक घोल से छिड़काव करें।
 बच्चों को 8 हफ्ते के उम्र में इन्ट्रोटोक्सीमिया एवं टिटनेस का टीका एवं 12 हफ्ते की उम्र में पुनः लगवाये। बकरी को टिटनेस का टीका प्रजनन के 4-6 हफ्ते पहले एवं पुनः बच्चे देने के 4-6 हफ्ते पहले लगावे। बकरे को टिटनेस का टीका साल में एक बार लगावे।
टीकाकरण :
माह बीमारी का नाम टीके का प्रकार/नाम टीके की मात्रा एवं विधि टिप्पणी
फरवरी
इन्टेरोटॉक्सीमिया मल्टीकम्पोनेन्ट 2.5 मिली त्वचा के नीचे 15 दिन के बाद पुनः लगायें
मई-जून
खुरपका-मुँहपका पालीवैलेन्ट 2.3 मिली त्वचा के नीचे प्रतिवर्ष पुनः लगायें
मई-जून
गलघोंटू/घुर्रका ऑयल एडजुवेन्ट 2.0 मिली त्वचा के नीचे प्रतिवर्ष पुनः लगायें
सितम्बर
चेचक पॉक्स वैक्सीन 0.5 मिली त्वचा के नीचे प्रतिवर्ष पुनः लगायें
दिसम्बर
इन्टेरोटॉक्सीमिया मल्टीकम्पोनेन्ट 2.5 मिली त्वचा के नीचे प्रतिवर्ष पुनः लगायें

टिटनेस टिटनेस टॉक्साइड 0.5 मिली त्वचा के नीचे/मांस में 6 माह बाद पुनः एवं प्रतिवर्ष लगायें
– पी0 पी0 आर0 पी0 पी0 आर0 वैक्सीन 1.0 मिली त्वचा के नीचे प्रतिवर्ष पुनः लगायें

अतः हम यदि वैज्ञानिक दृष्टिकोंण से बकरी पालन करें तो निःसन्देह हमारे पशुपालक भाई-बहनें कम लागत एवं कम समय में अधिकाधिक मुनाफा कमा सकते हैं और साथ ही अपनी सामाजिक एवं आर्थिक स्थिति को सुधार सकते हैं। इस प्रकार बकरी पालन व्यवसाय किसानों एवं पशुपालकों के जीविकोपार्जन का एक मजबूत आधार स्तम्भ है, इस हेतु हमें अपने भूमिहीन, लघु एवं सीमान्त कृषकों को बकरी पालन करने के लिये प्रेरित करना चाहिये साथ ही आवश्यक तकनीकि ज्ञान भी प्रदान करना चाहिये।

https://www.pashudhanpraharee.com/goat-rearing-an-alternative-source-of-livelihood-for-landless-farmers/

https://hi.vikaspedia.in/agriculture/animal-husbandry/92c915930940-92a93e932928-1/%E0%A4%AC%E0%A5%87%E0%A4%B9%E0%A4%A6-%E0%A4%B2%E0%A4%BE%E0%A4%AD%E0%A4%A6%E0%A4%BE%E0%A4%AF%E0%A4%95-%E0%A4%B5%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%B5%E0%A4%B8%E0%A4%BE%E0%A4%AF-%E0%A4%B9%E0%A5%88-%E0%A4%AC%E0%A4%95%E0%A4%B0%E0%A5%80-%E0%A4%AA%E0%A4%BE%E0%A4%B2%E0%A4%A8

Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON