गर्मियों में पालतू पषुओं व मुर्गीयों का रखरखाव
डॉ.योगेन्द्र कुमार सिन्हा , डॉ.पूर्णिमा गुमास्ता , डॉ.आर.सी. घोष, डॉ.डी.के. जोल्हे, डॉ.मीनाक्षी
पषु विक्रति विज्ञान विभाग, पषु चिकित्सा व पषुपालन महाविद्यालय, अंजोरा दुर्ग (छ.ग.)
गर्मियों में पषुओं के प्रबंध पर विषेष ध्यान देने की आवष्यकता होती है। गर्मियों में वायुमंडलीय तापमान 40-45 डिग्री सेल्सियस से भी अधिक हो जाता है। ऐसे मौसम में पषु तनाव की स्थिति में आ जाते है, पषुओं की इस स्थिति को हीट-स्ट्रोक, सन-स्ट्रोक या हीट-स्ट्रेस कहते है। षरीर में पानी की कमी (डीहाईड्रेषन) होना इसका प्रमुख कारण है। यह समस्या जानवरों में गर्मी के मौसम में बहुत गर्म और आर्द्र गर्मी के दिनों में बहुत ही सामान्य है। हीट-स्ट्रोक या हीट-स्ट्रेस की स्थिति में षरीर के तापमान में अत्यधिक वृद्वि होती है, कुछ घंटे पहले पूरी तरह से स्वस्थ दिखने वाले जानवर का तापमान अनुचित रूप से उच्च (106-107 डिग्री फारेनहाइट) होता है। गर्मी के मौसम में नवजात एवं युवा पषुओं की देखभाल की बहुत आवष्यकता है । जरा सी भी असावधानी उनकी शारीरिक वृद्वि, स्वास्थ्य, रोग प्रतिरोधी क्षमता और उत्पादन क्षमता पर स्थायी रूप से नकारात्मक प्रभाव डाल सकती है।
अधिक गर्मी के कारण पैदा हुए आक्सीकरण तनाव (स्ट्रेस) की वजह से पषुओं की बीमारियों से लड़ने की अंदरूनी क्षमता पर बुरा असर पड़ता है और आगे आने वाले बरसात के मौसम में वे विभिन्न बीमारियों के षिकार हो सकते हैंं। गर्मी के मौसम में हीट-स्ट्रोक की स्थिति उत्पन्न होने के कारण पषुओं की पाचन प्रणाली और दूध उत्पादन क्षमता एवं प्रजनन क्षमता में गिरावट आ सकती है। सांड़ों में वीर्य उत्पादन व गुणवत्ता में कमी आ सकती है तथा उनमें कामुकता की भी कमी देखी जाती है। भैंसो में यह दुष्प्रभाव अधिक देखने को मिलता है। उनके षरीर का का काला रंग तथा बालों की कमी उष्मा को अधिक अवषोषित करती है। इसके अतिरिक्त भैंसो में पसीने की ग्रन्थियाँ गायों की अपेक्षा बहुत कम होती है, जिसके कारण भैंसो को षरीर से उष्मा निकालने में अधिक कठिनाई होती है।
अतः ग्रीष्म ऋतु में होने वाले इन दुष्प्रभावों को कम करने के लिए निम्नलिखित उपाय एक पषु पालक द्वारा किए जा सकते हैं :
ऽ गर्मी के मौसम में पषुओं को भूख कम लगती है और प्यास अधिक इसलिए पषुओं को पर्याप्त मात्रा में दिन में कम से कम तीन बार पानी पिलाना चाहिए, जिससे षरीर के तापक्रम को नियंत्रित करने में मदद मिलती है। गर्मियों में जल वायुमंडलीय तापमान पषुओं के षारीरिक तापमान से अधिक हो जाता है तो पषु सूखा चारा खाना कम कर देते है, अतः जहां तक सम्भव हो पषुओं के आहार में हरे चारे की मात्रा अधिक रखें।
ऽ जब वायुमंडल तापमान अधिक हो तब पषुओं के षरीर पर दिन में तीन या चार बार, ठंडे़े पानी का छिड़काव करें। यदि सम्भव हो तो तालाब व जोहड़ में भैसों को ले जाऐ। प्रयोगों से यह साबित हुआ है कि दोपहर को पषुओं पर ठंडे़ पानी का छिड़काव हीट-स्ट्रोक की समस्या को कम करता है एवं उनके उत्पादन व प्रजनन क्षमता को बढ़ानें में सहायक होता है।
ऽ मवेषियों को गर्मी से बचाने के लिए पषुपालक उनके आवास में पंखे, कूलर और फव्वारा सिस्टम लगा सकते हैं। पंखों या फव्वारे के द्वारा पशुशाला का तापमान लगभग 15 डिग्री फारेनहाइट तक कम किया जा सकता है।
ऽ पषुषाला के आस-पास छायादार वृक्षों का होना परम आवष्यक है। यह वृक्ष पषुओं को छाया तो प्रदान करते है साथ ही उन्हें गरम लू से भी बचाते है।
ऽ पषुषाला की छत उष्मा की कुचालक हो ताकि गर्मियों में अत्यधिक गरम न हो। इसके लिए एस्बेस्टस सीट उपयोग में लायी जा सकती है। अधिक गर्मी के दिनों में छत पर 4 से 6 इंच मोटी घास-फूस की परत या छप्पर डाल देना चाहिए। ये परत उष्मा अवरोधक का कार्य करती है जिसके कारण पषुषाला के अन्दर का तापमान कम बना रहता है। सूर्य की रोषनी को परावर्तन करने हेतु पषुषाला की छत पर सफेद रंग करना या चमकीली एल्युमिनियम सीट लगाना भी लाभप्रद पाया गया है। पषुषाला की छत की ऊँचाई कम से कम 10 फुट होनी आवष्यक है ताकि हवा का संचार पषुषाला में हो सके तथा छत की तपन से भी पषु बच सके।
मुर्गियाँ :-
गर्मी में मुर्गी पालन करने वालों के लिए आवष्यक है कि तापमान की तेजी से मुर्गियों को बचाया जाए क्योंकि गर्मीं अधिक बढ़ने से मुर्गियों की मृत्यु दर बढ़ सकती है। मुर्गियों में अधिक मृत्यु दर होने से मुर्गीपालकों को भारी वित्तीय हानि उठानी पड़ सकती है। चूजों में गर्मी झेलने की क्षमता अधिक होती है और करीब 42 डिग्री सेंटीग्रेड तापमान पर ये चुजे आसनी से रह लेते है जबकि वयस्क मुर्गियों को गर्मी में अधिक परेषानी रहेती है। गर्मी बढ़ने पर चूजों को फार्म में ही रखें और जालीदार खिड़की को पर्दे से आधा ढक दें जिससे सीधी धूप से बचाव हो सके और हवा का संचरण भी बना रहे।
मुर्गियों को पानी में मल्टीविटामिन बी कॉम्प्लेक्स एवं विटामिन सी मिलाकर देना लाभदायक रहता है। मुर्गी के षेड की छत में गर्मी कम करने के लिए अधिक गर्मी के दिनों में छत पर 4 से 6 इंच मोटी घास-फूस की परत या छप्पर डाल देना चाहिए । ये परत उष्मा अवरोधक का कार्य करती है और छत पर सफेदी करा दें सफेद रंग ऊष्मा को कम सोखता है जिससे छत ठंडी रहती है। आधुनिक मुर्गी फार्म में गर्मी से बचाव के लिए स्प्रिंकलर या फॉगर प्रणाली भी लगी होती है जिससे पानी की फुहारें निकलती रहती है। स्प्रिंकलर के साथ पंखे भी जरूर लगे होने चाहिए और कमरे की खिड़की भी खुली होनी चाहिए जिससे कमरा हवादार और ठंडा रहेगा।
कुत्ता एवं बिल्ली :-
डॉग को गर्मियाँ जरा भी नहीं भाती इसका कारण ये है कि पालतू जानवरों के शरीर का तापमान हम इंसानों के शरीर से ज्यादा होता है। इसलिए इनके लिए गर्मियां काफी तकलीफ वाली होती हैं। कुत्ते अपनी त्वचा के माध्यम से पसीना उत्सर्जित नहीं करते हैं जैसा कि मनुष्य करते हैं। कुत्ते गर्मी से खुद को बचाने के लिए जीभ निकालकर सांस लेते हैं, इस प्रकिया को पैंटिंग कहते हैं। काले कुत्तो में प्रकाष (ऊष्मा) का अवषोषण होता है जबकि हल्के रंग या सफेद रंग के कुत्तों में प्रकाष का रिफ्ेलेक्षन होता है जिससे ये काले फर वाले कुत्तों की अपेक्षा कम गर्मी का अनुभव करते हैं, इसलिए काले बाल वाले कुत्तों में हीट-स्ट्रोक का खतरा गर्मियों मे अधिक रहता है ।
यदि कुत्ता एवं बिल्ली खुले में रहता है तो उसे धूप में न रहने दें, उसे छायादार स्थान पर ही रखें, जहां तक हो सके कुत्ता एवं बिल्ली को सीधी धूप से बचाएं । गर्मियों में कुत्ते को हीट-स्ट्रोक लगने की संभावना सबसे ज्यादा होती है, जिससे इनमें डी-हाइड्रेषन डिवेलप हो जाता है इसे सामान्य भाषा में हम लू लगना कहते हैं गर्मियों में इनहे डी-हाइड्रेषन से बचाने के लिए पास हमेषा पानी रखा रहना चाहिए, जिससे वह समय-समय पर पानी पी सके। गर्मियों के मौसम में दिन के समय कुत्ते एवं बिल्ली को दिए जाने वाले पानी में थोड़ा इलेक्ट्रॉल और ग्लूकोज भी मिला दें।
कुत्तों को गर्मियों में टहलाने के लिए हमेषा सुबह और षाम का वक्त ही चुनें, सूरज चढ़ने के बाद उसे घुमाने न ले जाए। यदि आपके डॉग के षरीर पर ज्यादा बाल हैं तो उन्हें गर्मियों के मौसम में समय-समय पर काटवाते रहें । छोटे बालों में गर्मी कम लगती है ऐसा करने से उसकी स्किन पर पनपने वाले बैक्टिरिया और परजीवी से भी उसे बचाया जा सकता है। कुत्ते एवं बिल्ली के खाने एवं पानी का विषेष ध्यान रखें, गर्मियों में कुत्ते एवं बिल्ली सामान्य दिनों की अपेक्षा कम खाता है, इसलिए यह भी जरूरी है कि हम अपने कुत्ते एवं बिल्ली को गर्मियों में संतुलित आहार दें। पालतू जानवरों को गर्मियों में घर में बनी चीजें, जैसे दही और चावल जैसा हल्का आहार खिलाएं। यदि आपका डॉग उल्टी करता है,उसके मुंह से झाग आने लगे या फिर वह थका हुआ लगता है और हांफने लगे तो उसे गर्मी या लू का असर हो सकता है , इस स्थिति में उसे वेटरनरी डॉक्टर के पास ले जाएं ।
सूअर :-गर्मियों में सूअर षेड का तापमान सामान्य बनाए रखें, पर्याप्त वेंटिलेषन प्रदान कर उनके लिए अच्छी आरामदायक जगह प्रदान करें। गर्मी के तनाव के प्रभाव को कम करने में पहला कदम यह सुनिष्चित करना है कि वेंटिलेषन सिस्टम अच्छे से कार्यरत हैं और पर्याप्त वेंटिलेषन प्रदान कर रहे हैं। जानवरों को दिन के षुरूआती घंटो में परिवहन करें। गभवर्ती पषुओं की अनावष्यक आवाजाही से बचें। उन्हें दिन में तीन बार खिलाए एवं खूब पानी दें। सामान्य नियम के अनुसार पानी-से-फीड का अनुपात 5ः1 होना चाहिए। गर्म मौसम में ठंडा पानी देना चाहिए। सूअर इंसानों की तुलना में गर्मी और सापेक्षिक आर्द्रता के संयुक्त प्रभावो के प्रति अधिक संवेदनषील होते हैं क्योंकि उन्हें पसीना नहीं आता है अतः गर्मियों में उनकी अतिरिक्त देखभाल आवष्यक है।
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