हमारे जीवन में पानी का महत्व
शरीर को पानी की आपूर्ति मुख्यतः तीन तरह से होती है।
- शरीर के लिए पानी का पहला स्रोत है, प्यास लगने के बाद पीया जाने वाला पानी।
- दूसरा स्रोत है भोजन के अंदर मौजूद पानी और
- तीसरा स्रोत है मेटाबोलिक वाटर।
मेटाबोलिक वाटर शरीर के अंदर पैदा होता है विभिन्न शारीरिक क्रियाओं के दौरान। मूलतः जब फैट बर्न होता है तो पानी पैदा होता है।
सर्दियों के दौरान पानी की आवश्यकता अपेक्षाकृत कम होती है मगर गर्मियों के दौरान पसीना अधिक निकलने से प्यास ज्यादा लगती है।
खैर आप लोग तो फ्रिज या घड़े का पानी पीकर अपनी प्यास शांत कर लेते हैं मगर उन बेजुबान पंछियों का क्या?
कहाँ जाएं वो पानी पीने?
चलो उनके लिए भी आप लोग किसी बर्तन में भरकर रख ही देते होंगे क्योंकि सोशल मीडिया पर पंछियों के लिए पानी का बर्तन भरकर रखने की हिदायत कई संवेदनशील महानुभाव देते रहते हैं।
हम बात करना चाह रहे हैं पालतू पशुओं की जिनसे हमारे किसान भाई आशा करते हैं कि रोज बाल्टी भरकर दूध दे।
दूध तो वह तभी देगी जब आप उसे पर्याप्त मात्रा में पानी पिलायेंगे। पानी भी ऐसा जिसे आप खुद पी सकें।
अक्सर देखा यह गया है कि किसान भाई अपने पशुओं को किसी भी तरह का पानी पिलाते रहते हैं। रुका हुआ, गंदगी युक्त पानी पिलाने से पशुओं को भांति-भांति के रोग लग सकते हैं।
पिलाये जाने वाले पानी का तापमान अगर शरीर के तापमान से बहुत कम या बहुत ज्यादा है तो भी यह नुकसान करता है। इसलिए कोशिश करें कि पशुओं को फ्रिज या घड़े का नहीं तो कम से कम ऐसा पानी पिलाएं जिसका तापमान सामान्य हो।
बहुत ज्यादा समय तक धूप में रहने से गर्म हो गया पानी बिल्कुल ना पिलाएं।
दूध में 87 प्रतिशत पानी होता है। इसलिए पानी की कमी होने का सबसे पहला प्रभाव दूध की पैदावार पर ही पड़ता है। अब ऐसा भी मत सोचने लगना कि ज्यादा पानी पिलाने से दूध ज्यादा पैदा होगा या गाय को दोष देने भी मत बैठ जाना कि ज्यादा पानी पिलाने से दूध पतला हो गया।
पानी पीकर गाय पतला दूध नहीं देगी। पतला तो दूधिया खुद करता है पानी मिलाकर। नाम गाय के लगा देता है।
और हां मेटाबोलिक वाटर की महत्ता है ऊंट में। उसकी पीठ के कूबड़ में जमा चर्बी का ऑक्सीडेशन होने पर पानी बनता है और यही पानी उसे कई-कई दिनों तक प्यास नहीं लगने देता।
इसके अलावा कुदरत ने ऊंट को क्या हर जीवधारी को यह ताकत दी है कि वह पानी कम उपलब्ध होने की दशा में शरीर के अंदर मौजूद पेशाब में से फिर से पानी अवशोषित कर लेता है और उससे भी शरीर कुछ हद तक अपना काम चलाने की कोशिश करता है। और इस कोशिश के बाद पेशाब कम आता है और अधिक पीला आता है।
यह एक किस्म का अड़पटेशन है बॉडी का। मगर यह एक आध दिन के लिए तो ठीक है मगर रोज रोज यही नाटक चलने से आपकी किडनी नाटक करने लगेगी। पत्थर बाज हो जाएगी वह।
इसलिए गर्मी के इस मौसम में खुद भी पानी पीएं और औरों को भी पिलाएं। घर से निकलते समय पानी की बोतल लेकर निकलें।
रहीम दास जी ने फरमाया है…
रहिमन पानी राखिए, बिन पानी सब सून।।
पानी गए ना उबरे, मोती मानस चून।।
भावार्थ यह है…. रहीमदास जी कह रहे हैं कि घर से निकलते समय अपने पास पानी जरूर रखिये वरना बिना पानी सब सूना सूना लगेगा। हाथ पैर सुन्न हो जाएंगे आपके। अगर आपके पास पानी नहीं होगा तो आपको पानी के लिये कोई भी नहीं पूछेगा।
ना तो ऊबर वाला पूछेगा। ना ओला वाला पूछेगा। इसलिए मोती की तरह साफ पानी मानस अर्थात मनुष्यों को चुन चुन कर पिलाते चलिए।
डाक्टर संजीव वर्मा मेरठ।