वैज्ञानिक बकरी पालन के नवीनतम सिद्धांत

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   वैज्ञानिक बकरी पालन के नवीनतम सिद्धांत

 

नीतिका शर्मा,मनोज कुमार सिंह, अनुपम कृष्ण दीक्षित, संदीप कुमार, अनिल कुमार मिश्र, आशीष श्रीवास्तव एवं दिनेश कुमार शर्मा

भा.कृ.अ.सं: केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान,मखदूम,फरह, मथुरा (उ0प्र0)

 

एक समय था जब बकरी पालन गरीब ग्रामीणों ,खेतीहर मजदूरों  लघु एवं सीमांत किसानों की आय का साधन माना जाता था, परंतु आज के परिदृश्य में बकरी पालन व्यवसायिक रुप ले चुका है। भारत वर्ष में जब गाय, भैंस आदि पशु चरागाह की कमी और अपनी अधिक आहार व आवास की आवश्यकता के कारण उपयोगिता खो रहें हैं ऐसे में बकरी दूध  एवं  मांस के माध्यम से देश के लाखो परिवारों को खाद्द सुरक्षा प्रदान कर रही है।  देखने में आया है कि आज भी अधिकांश बकरी पालक परंपरागत तरीकों से बकरी पालन कर रहे हैं, जिससे उत्पादन एवं प्राप्त लाभ बकरियों की उत्पादन क्षमता का लगभग 40-50 प्रतिशत है।  यदि वैज्ञानिक बकरी पालन के नवीनतम सिद्धांत को अपनाकर बकरी पालन किया जाए तो उत्पादन एवं लाभ को कई गुना बढाया जा सकता है। बकरी पालन एक ऐसा व्यवसाय है जो तुलनात्मक रूप से बहुत कम पूजी में आरम्भ किया जा सकता है एवं चारे के सार्वजनिक स्रोतों पर भी निर्भर रहकर आय का अच्छा व निरन्तर स्रोत हो सकता है। व्यवसायिक बकरी पालन से उचित लाभ तभी प्राप्त किया जा सकता जब कम से कम 100 बकरियाँ पाली जाएँ। प्रस्तुत लेख वैज्ञानिक बकरी पालन के नवीनतम सिद्धांत बताता है जिससे लाभ 5.6 गुना तक प्राप्त किया जा सकता है।

वैज्ञानिक बकरी पालन में ध्यान देने योग्य बातें :

1.नस्ल का चुनावः  वातावरण की विभिन्नता प्राकृतिक चयन प्रक्रिया भौगोलिक संरचना एवं बकरी पालकों की आवश्यकता के अनुसार 34 बकरी की नस्लें विकसित हो चुकी हैं। जो अपने आप में अलग-अलग गुणों के अनुसार जानी जाती हैं। नस्ल अपने आप में उस क्षेत्र एवं जलवायु के अनुसार विकसित हुई है इसलिए उस विशेष क्षेत्र के लिए अति उपयोगी है। उत्पादन क्षमता बच्चे देने की क्षमता एवं वातावरण की विभिन्नताओं के प्रति सहिष्णुता के प्रति अलग-अलग गुण धर्म हैं। इन नस्लों में कुछ दूध मांस चमड़ी रेशा पशमीना के लिए प्रमुख मानी जाती हैं तथा देश के विभिन्न भागों में पायीं जाती हैं। उत्तर प्रदेश में बकरियों की मुख्यतः -बरबरी जमुनापारी, सिरोही, जखराना एवं बुंदेलखंड़ी हैं।

नस्ल का चुनाव पोषण पद्धति वातावरण पारिस्थितिकी एवं बाजार के लिए   उपयुक्तता के अनुसार करना चाहिए। बीजू बकरे व बकरी का चुनाव करते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए:

शुद्ध नस्ल का बीजू बकरा :

बीजू बकरे का चुनावः 

  1. नर शुद्ध नस्ल का शारीरिक रूप से पूर्ण स्वस्थ एवं चुस्त हो।
  2. आहार को शरीर भार में परिवर्तित करने की अधिकतम क्षमता हो।
  3. मध्यम एवं बड़े आकार की नस्लों में नर का भार नौ माह की उम्र तक 20- 25 किलो तक होना चाहिए।
  4. माँ नस्ल के अनुरूप अधिक दूध देने वाली हो।
  5. नर में अपने गुणों को अपनी संतति में छोड़ने की क्षमता हो।
  6. मिलन कराने पर (90 प्रतिशत) बकरियों को गर्भित करता हो।
  7. नर रोग ग्रसित एव संक्रमण का वाहक न हो।
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बकरी का चुनाव:

  1. बकरी शुद्ध नस्ल की एवं शारीरिक रूप से स्वस्थ होनी चाहिए।
  2. नस्ल के अनुरूप कद काठी तथा उंचाई -लम्बाई अच्छी होनी चाहिए।

शुद्ध नस्ल की बकरी

  1. दूध की मात्रा एवं दुग्ध काल अच्छा होना चाहिए।
  2. प्रजनन क्षमता (दो ब्यातों के बीच अन्तराल,जुड़वा बच्चे पैदा करने की दर) अच्छी होनी चाहिए।

 

 प्रजनन प्रबन्धनः बीजू बकरे व बकरी का चुनाव के बाद प्रजनन प्रबन्धन में निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए:

  1. पूर्ण परिपक्व होने के बाद ( डेढ़ से दो वर्ष ) ही बकरे को उपयोग में लायें।
  2. एक बकरा 25 से 30 बकरियों को ग्याभिन कराने के लिए प्रर्याप्त है। 30 से अधिक बकरियों पर बकरों की संख्या बढ़ा देनी चाहिए।
  3. प्रजनक बकरे को एक से डेढ़ वर्ष बाद बदल दें। जिससे अंतःप्रजनन के दुष्परिणामों से बचा जा सके।

शुद्ध नस्ल का बकरा

4.मध्यम आकार की नस्लों में प्रथम वार बकरियों को गर्भित कराते समय उनका शरीर भार 16 किलो एवं उम्र 10 माह से अधिक हो।

5.बड़े आकार की नस्लों में प्रथम वार बकरियों को गर्भित कराते समय उनका शरीर भार 20 किग्रा. एवं उम्र 12 माह होनी चाहिए।

6.वातावरण को ध्यान में रखते हुए उत्तर-मध्य भारत में बकरियों को अक्टूबर-नवम्बर एवं मई-जून माह में ग्याभिन करायें।

7.कम प्रजनन एवं उत्पादन क्षमता वाली (10-20 प्रतिशत) एवं रोग ग्रसित मादाओं का प्रतिवर्ष निष्कलन करते रहना चाहिए।

8.मादाओं को गर्मी में आने के¢ 10-16 घन्टे बाद नर से मिलन करायें।

 

  1. पोषण प्रबन्धन:

  1. नवजात बच्चों को पैदा होने के आधे घन्टे के अन्दर खीस पिलायें। इससे उन्हें जीवन भर रोग प्रतिरोधक क्षमता प्राप्त होती है।
  2. बच्चों को 15 दिन का होने पर हरा चारा एवं रातब मिश्रण खिलाना आरंभ करें तथा 3 माह का होने पर मॉ का दूध पिलाना बन्द कर दें।
  3. मांस उत्पादन के लिए नर बच्चों को 3 से 9 माह की उम्र तक शरीर भार का 2.5 से 3.0 प्रतिशत तक समुचित मात्रा में उर्जा (मक्का, जौ, गेहू) एवं प्रोटीन( मूंगफली, अलसी, तिल, बिनौला की खल) अवयव युक्त रातब मिश्रण दें। इस रातब मिश्रण में  ऊर्जा की मात्रा लगभग 60 % एवं  प्रोटीन युक्त अवयव लगभग 37 प्रतिशत, खनिज मिश्रण 2 प्रतिशत एवं नमक 1 प्रतिशत होना चाहिए।
  4. वयस्क बकरियों में (एक साल से अधिक) एवं प्रजनन के लिए पाले जाने वाले नरों में ऊर्जायुक्त अवयवों की मात्रा लगभग 70 प्रतिशत होनी चाहिए। पोषण में खनिजों एवं लवणों को नियमित रूप से शामिल रखें।
  5. जिन बकरियों का दूध उत्पादन लगभग 500 मि.ली./दिन हो उन्हें 250 ग्राम, एक लीटर दूध पर 500 ग्राम रातब मिश्रण दें। इसके उपरान्त प्रति लीटर अतिरिक्त दूध पर 500 ग्राम अतिरिक्त रातब मिश्रण दें।
  6. दूध देने वाली, गर्भवती बकरियों (आखिर के 2 से 3 माह) एवं बच्चों (3 से 9 माह) को 200 से 350 ग्राम प्रतिदिन रातब मिश्रण दें।
  7. हरे चारे के साथ सूखा चारा अवश्य दें। अचानक आहार व्यवस्था में बदलाव न करें एवं अधिक मात्रा में हरा एवं गीला चारा न दें।
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4.आवास प्रबन्धन:

साफ एवं स्वच्छ पशुगृह

   बकरी आवास प्रबन्धन में निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए:

1.पशु गृह में पर्याप्त मात्रा में धूप, हवा एवं खुली जगह हो।

  1. सर्दियों में ठंड एवं बरसात में बौछार से बचाने की व्यवस्था करें।
  2. पशुगृह को साफ एवं स्वच्छ रखें।
  3. अल्प आयु मेमनों को सीधे मिट्टी के सम्पर्क में आने से बचाने के लिए फर्श पर सूखी घास या पुआल बिछा दें तथा उसे दूसरे तीसरे दिन बदलते रहें।
  4. वर्षा ऋतु से पूर्व एवं बाद में फर्श के ऊपरी सतह की 6 इंच मिट्टी बदल दें ।
  5. अल्प आयु मेमनों गर्भित बकरियों एवं प्रजनक बकरे की अलग आवास व्यवस्था करें।
  6. एक वयस्क बकरी को 3.4 वर्ग मीटर खुला एवं 1.2 वर्ग मीटर ढके क्षेत्रफल की आवश्यकता होती है।
  7. ब्यांत के बाद बकरी तथा उसके मेमनों को एक सप्ताह तक साथ रखें।

   पशुगृह

  1. स्वास्थ्य प्रबन्धन :

1.*वर्षा ऋतु से पहले एवं बाद में (साल में दो बार) कृमि नाशक दवा पिलायें।

2.रोग निरोधक टीके (मुख्यतः पी.पी.आर., ई.टी., पोक्स, एफ.एम.डी. इत्यादि) समय से अवश्य लगवायें।

3.बीमार पशुओं को छटनी कर स्वस्थ पशुओं से अलग रखें एवं तुरंत उपचार करायें।

  1. आवश्यकतानुसार बाह्य परजीवी के उपचार के लिए ब्यूटोक्स (0.1 प्रतिशत) के घोल से स्नान करायें।

5.नियमित मल परीक्षण (विशेषकर मेमनों ) करायें।

 

नियमित मल परीक्षण हेतु मल का नमूना लेना

 

तालिका 1:- बकरियों के वार्षिक रोग-रोकथाम हेतु कलेन्डर/सूची

 

क्र.स.     विवरण  अवधि दवा/टीका व        माध्यम टीके का   असर

 

 आयु
1.  डिवर्मिग(अन्तः        परजीवी नाशक) वर्षा ऋतु से पहले तथा

वर्षा ऋतु के बाद

एलबेन्डाजोल /फेनबेन्डाजोल/ क्लोसेन्टल/ मोरेन्टलटाइट्रेट पिलायें 3 माह से ऊपर
2. डिपिंग(बाह्य परजीवी नाशक) मार्च व अक्टूबर ब्यूटाक्स या इक्टोमिन

0.1-0.4 प्रतिशत के घोल में नहलायें

एक माह के बाद
3. टीकाकरण वर्ष के किसी भी समय

 

त्वचा के नीचे

 

तीन वर्ष तक

 

तीन माह या ऊपर

 

पी0पी0आर0

 

खुरपका मुंहपका (एफ.एम.डी.)

 

वर्ष के किसी भी समय

 

शरीर के मांस वाले भाग में

 

छः माह तक

 

तीन माह या ऊपर

 

गलाघोंटू रोग(एच0एस0)

 

 

 

 

 

 

वर्ष के किसी भी समय

 

शरीर के मांस वाले भाग में

 

छः माह तक

 

 

 

 

तीन माह या ऊपर

 

इन्ट्रोटोक्सीमिया (ई.टी.)

 

त्वचा के नीचे

 

छः माह तक

 

पोक्स त्वचा के नीचे

 

एक वर्ष

 

 

  • टीकाकरण से पहले निर्माता कम्पनी के निर्देश पढ लें व उनका पालन करें।
  • एफ.एम.डी. एवं ई.टी. के टीकाकरण को प्रभावी बनाने के लिए 3.4 सप्ताह   बाद बूस्टर डोज अवश्य लगवायंे )
  • पी.पी.आर. को तीन वर्ष के अन्तराल पर एवं एफ.एम.डी. और ई.टी. के टीकों को छःमाह के अन्तराल पर अवश्य लगवायंे।
  • दो टीकों के मध्य कम से कम 15 दिन का अंतराल रखें। पहले पी.पी.आर का टीकाकरण करायें।
  1. सामान्य प्रबंध:
  • बकरी सामान्य प्रबंधन में निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए:
  • बच्चे के जन्म के तुरन्त वाद साफ कपडे़ से उसके नथुनों की सफाई करें।
  • नवजात मेमनों की नाभिनाल को शरीर से 3 से.मी नीचे बाँधकर उसके लगभग एक से. मी नीचे काटकर टिंचर आयोडीन 2-3 दिन तक लगायें।
  • प्रत्येक बकरी की पहचान के लिए टैगिंग अवश्य करें जिससे उसकी वंशावली , खान-पान आदि की सटीक जानकारी मिल सके।
  • बकरियों को साफ पानी दिन में (2-3 बार) पिलायें।
  • जिन बकरियों के नीचे दूध कम हो उनके बच्चों को उस बकरी के आस-पास ब्यायी बकरियों का दूध पिलायें।
  • बकरियों के बढे़ खुर समय पर काट दें।
  • प्रतिमाह बच्चों के शरीर भार का मापन करें जिससे उनकी बढ़वार व स्वास्थ्य का पता चलता रहे।
  1. बाजार प्रबन्ध:

बकरियों को बेचते समय निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए:

  • जानवरों को मांस के लिए शरीर भार के अनुसार बेचें।
  • शुद्ध नस्ल एवं उच्च गुणवत्ता के बकरियों को बकरी प्रजनन प्रक्षेत्र¨ं को बेचने पर अधिक लाभ होता है।
  • मांस उत्पादन के लिए पाले गए नरों को लगभग 1 वर्ष की उम्र पर बेच दें। इसके उपरान्त शारीरिक भार वृद्धि बहुत कम (10-15 ग्राम प्रतिदिन) एवं पोषण खर्च अधिक रहता है।
  • बकरी पालक संगठित होकर उचित भाव पर बकरियों को बाजार में बेचें।
  • बकरों को विशेष त्यौहार (ईद, दुर्गा पूजा) के समय पर बेचने पर अच्छा मुनाफा होता है।

उपरोक्त वैज्ञानिक तकनिकीयों एवं प्रबंधन सूत्रों को अपनाने से रेबड़ की उत्पादकता एवं बकरियों के स्वस्थ एवं जीवित रहने की दर बहुत अधिक बढ़ जाएगी। वैज्ञानिक पद्यति से बकरी पालन करने से 5-6 गुना तक लाभ प्राप्त किया जा सकता है।

अधिक जानकारी के लिए संपर्क करें:-  भा.कृ.अ.प.-केन्द्रीय बकरी अनुसंधान संस्थान, मखदूम, पोस्ट-फरह 281122, जिला-मथुरा (उ.प्र.) के हैल्प लाइन न. 0565-2970999 और संस्थान की वेबसाइट के सम्पर्क में आ सकते है।

https://www.pashudhanpraharee.com/goat-rearing-an-alternative-source-of-livelihood-for-landless-farmers/

https://www.tv9hindi.com/agriculture/know-here-the-scientific-method-of-goat-farming-1198623.html

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