भेड़ व बकरियों में फड़किया रोग (एन्टेरोटोक्सिमिया)

0
3937

भेड़ व बकरियों में फड़किया रोग (एन्टेरोटोक्सिमिया)

डॉ.विनय कुमार एवं डॉ.अशोक कुमार

पशु विज्ञान केंद्र, रतनगढ़ (चूरु)

राजस्थान पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, बीकानेर

फिड़किया रोग भेड़ व बकरियों में होने वाली एक प्रमुख बीमारी है। यह रोग क्लोस्ट्रीडियम पर्फ्रिन्जेस नामक जीवाणु के कारण होता है। क्लोस्ट्रीडियम पर्फ्रिन्जेस टाइप डी द्वारा आंतो में उतपन्न किये गये ज़हर (टोक्सिन ) के आंतो द्वारा अवशोषण से होता है। यह जीवाणु सामान्यतः आंत में रहता है । यह बीमारी हर उम्र, नस्ल तथा लिंग की भेड़ व बकरियों में मुख्य रूप से देखी जाती है। हरे चारे को ज्यादा मात्रा में खाने से पशु इस रोग से ग्रसित होते हैं। वर्षा ऋतु में हरा चारा बहुतायत में मिलता है इसलिए यह बीमारी स्वस्थ भेड़ व बकरियों में मुख्यतः वर्षा ऋतु में होती है। लेकिन किसी भी मौसम में अत्यधिक मात्रा में चारा खाने से फिड़किया रोग की संभावना रहती है। मार्च-अप्रैल का महीना फसल कटाई का समय होताहै। फसल काटते समय काफी अधिक मात्रा में चारा खेतों में गिरता है, साथ ही अन्न व दलहन इत्यादि भी खेतों में गिर जाते हैं। सरसों व चने की फसल कटाई के बाद ऐसे खेतों में भेड़ –बकरियां चराते समय अत्यधिक मात्रा में चारा खा लेती हैं और इस रोग से ग्रसित हो जाती हैं तथा कई बार आहार में अचानक परिवर्तन एवं अधिक प्रोटीन युक्त हरा चारा खा लेने से भी यह रोग तीव्रता से बढ़ता है। खान -पान में अचानक से परिवर्तन होने से इस जीवाणु की व्रद्धि दर अचानक बढ़ जाती है जिसके फलस्वरूप टॉक्सिन का अत्यधिक उत्पादन होता है। इस रोग से पशुपालक को काफी आर्थिक नुकसान का सामना करना पड़ता है। कई बार पूरे रेवड़ की मौत हो जाती है।

READ MORE :  आधुनिक भेड़ और बकरी पालन हेतु वैज्ञानिक परामर्श एवं सुझाव

रोग के लक्षण

  • इस बीमारी में भेड़ व बकरियों में आफरा आ जाता है।
  • पशु की मांसपेशियों में खिंचाव हो जाता हैं।
  • रोगी पशु पेट में दर्द के कारणपिछले पैर मारता है तथा धीरे-धीरे सुस्त हो जाता है और जमीन पर गिर जाता है, उसकी टांगे एवं सिर खिंच जाते हैं।
  • पशु सिर को दीवार से टकराता है तथा अधिक ध्यान से देखने पर पशु के अंगों में फड़कन (कपन्न) सी दिखाई देती है।
  • इस रोग में पशु लक्षण प्रकट होने के 3 से 4 घंटे में मर जाता है।
  • रेवड़ का सबसे स्वस्थ मेमना सबसे पहले प्रभावित होता है तथा पशु जल्दी-जल्दी सांस लेता है और आंखें चौकन्नी नजर आती है एवं मुंह से झाग निकलते हैं।
  • इस रोग में पशु शाम को ठीक प्रकार चरकर आते हैं और सुबह पशु की अचानक मृत्यु हो जाती है।

 

रोग से बचाव के उपाए

  • अधिक प्रोटीन युक्त चारा कम मात्रा में खिलाना चाहिए।
  • पशुओं को दिये जाने वाले दाने व चारे में अचानक कोई परिवर्तन नही करना चाहिए ।
  • ताजा फसल कटाई के बाद पशुओं को अधिक समय के लिए खेतों में चरने नहीं देना चाहिए ताकि पशु अत्यधिक चारा नहीं खा पाये।
  • यदि किसी भेड़ – बकरी का पेट फूला हुआ हो तो उस पशु को 10 से 20 ग्राम मीठा सोडा देना चाहिए।
  • फिड़किया रोग से बचाव के लिए साल में दो बार पशुओं का टीकाकरण अवश्य करवाना चाहिए।
  • वर्षा का मौसम शुरू होने से पहले तीन माह से ऊपर के सभी पशुओं को टीका लगवा देना चाहिए।
  • पहली बार टीका लगे पशुओं को बूस्टर खुराक हेतु 15 दिन के अंतराल पर फिर टीका लगवा देना चाहिए।
  • टेट्रासाइक्लिन पाउडर का घोल दिन में 2-3 बार पिलाना चाहिए।
  • https://www.pashudhanpraharee.com/%E0%A4%B0%E0%A5%8B%E0%A4%97-disease-enterotoxaemia-%E0%A4%AB%E0%A4%A1%E0%A4%BC%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%AF%E0%A4%BE/
  • https://epashupalan.com/hi/10787/sheep-goat-husbandry/enterotoxemia-disease-in-sheep-and-goat/
Please follow and like us:
Follow by Email
Twitter

Visit Us
Follow Me
YOUTUBE

YOUTUBE
PINTEREST
LINKEDIN

Share
INSTAGRAM
SOCIALICON