पशुओं के लिए सदाबहार हरा चारा:अजोला
डॉ.विनय कुमार एवं डॉ.अशोक कुमार
पशु विज्ञान केंद्र, रतनगढ़ (चूरु)
राजस्थान पशु चिकित्सा और पशु विज्ञान विश्वविद्यालय, बीकानेर
हमारे देश में पोषण के लिए दूध की मांग दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। दुधारू पशुओं के पोषण में हरा चारा एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है,लेकिन यह भी सत्य है कि आज के वातावरण में हरे चारे की कमी एक बहुत बड़ी समस्या है। जनसंख्या बढ़ने से चारा उत्पादन हेतु जमीन भी कम होती जा रही है। पशुओं को पोष्टिक आहार देना भूमिहीन पशुपालको के लिए किसी चुनौती से कम नही है,ऐसे पशुपालकों के लिए अजोला एक वरदान साबित हो रहा है। चूँकि अजोला में पोषक तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं अतः दुधारू पशुओं को अजोला खिलाने से दूध का उत्पादन और गुणवत्ता बढ़ती है। इसके साथ ही अजोला में कई तरह के कार्बनिक पदार्थ होते हैं जो भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाते हैं।अजोला को पशुपालक कम लागत पर बेहतर जैविक खाद के रूप में भी काम में ले सकते हैं।
अजोला के गुण–
अजोला जल सतह पर मुक्त रूप से तैरने वाली जलीय फर्न है। यह छोटे- छोटे समूह में हरित गुच्छे की तरह तैरते है। भारत में मुख्य रूप से अजोला की पिन्नाटा जाति पाई जाती है, यह काफी हद तक गर्मी सहन करने वाली किस्म है। अजोला सस्ता,सुपाच्य एवं पोष्टिक पशु आहार है। सामान्य पशु आहार खाने वाले पशुओं को यदि अजोला खिलाया जाए तो उनके दुध उत्पादन में वृद्धि होती हैं। इसके सेवन से पशु स्वस्थ तो रहता ही है, साथ ही ताव में नहीं आना, गर्भधारण नहीं होना आदि अन्य समस्याओं के निजात में भी यह काफी फायदेमंद है।
1.यह जल में तीर्व गति से बढ़ती है।
2.इसके उत्पादन लागत काफी कम है।
3.पशुओं के पेशाब में खून व दुग्ध ज्वार जैसी समस्या भी कम होती है।अजोला से पशुओं में कैल्शियम, फास्फोरस, लोहे की आवश्यकता की पूर्ति होती हैं, जिससे पशुओं का शारीरिक विकास अच्छा होता है। अजोला में प्रोटीन, आवश्यक एमिनो एसिड, विटामिन्स(विटामिन A, विटामिन B12) तथा बीटा कैरोटीन एवं खनिज लवण जैसे केल्शियम, पोटेशियम, आयरन, कापर, मैग्नीशियम आदि प्रचुर मात्रा मेंपाए जाते हैं।
4.इसमें शुष्क वजन के आधार पर 20 से 25 प्रतिशत प्रोटीन, 10 से13 प्रतिशत रेशा तथा 10 से 15 प्रतिशत खनिज लवण एवं 8 से 10 प्रतिशत एमिनो अम्ल, पॉलिमर्स आदि पाए जाते हैं।
5.इसमें कार्बोहाइड्रेट एवं वसा की मात्रा कम होती है। इसके उच्च प्रोटीन एवं निम्न लिग्निनल तत्वो के कारण पशु इसे आसानी से पचा लेते हैं। इसीलिए इसे आदर्श पशु आहार माना जाता है।
6.रिजका एवं स्कर नेपियर की तुलना में अजोला में उच्च गुणवत्ता युक्त प्रोटीन पर्याप्त मात्रा में होती है,इसका उत्पादन भी अधिक होता हैं।
7.यह पशुओं के आहार के साथ- साथ भूमि उर्वरा शक्ति बढ़ाने के लिए खाद के रूप में भी उपयुक्त है।
अजोला तैयार करने की विधि :-
यह एक जल सतह पर मुक्त रूप से तैरने वाली जलीय फर्न है। इसके लिए तीन फुट चौड़ी, दस फुट लम्बी ओर एक फुट गहरी क्यारी(पक्की या कच्ची) तैयार करें। इसमें 8 से 10 किलो साफ़ उपजाऊ मिट्टी की परत और2-3 किलो गोबर क्यारी में फेलायें। क्यारी में 10 से 12 से.मी.पानी भरकर एक किलो शुद्ध अजोला कल्चर पानी पर एक समान फेलायें। इसकी तेज बढ़वार के लिए गोबर ओर (30- 50 ग्राम)सिंगल सुपर फास्फेट का प्रयोग भी किया जा सकता है।क्यारी को अब 50 प्रतिशत नायलोन नेट से ढक कर 15-20 दिन अजोला को वृद्धि करने दे। तैयार अजोला घास को छानकर व धोकर गाय व भैंस को 1से 2 किलो, बकरी-भेड़ को 200 से 300 ग्राम व मुर्गा -मुर्गी को 50 ग्राम प्रतिदिन खिलाने से दिनभर के पोष्टिक तत्वों की पूर्ति कर देता है। पशुओं को खिलाने से 10 से 15 प्रतिशत तकदूध उत्पादन की मात्रा बढ़ाई जा सकती है।यह मुर्गियों का भी पसंदीदा आहार है। मुर्गियों के आहार में अजोला का उपयोग करने से अण्डा उत्पादन अच्छा होता है।
अजोला उत्पादन में सावधानियां –
1.क्यारी में जल स्तर को 8 से 10 से.मी. बनाए रखे।
2.गर्मी व सर्दी में नायलॉन की नेट का प्रयोग करें।
3.प्रत्येक 3 माह पश्चात अजोला तैयार करने वाली क्यारी को पूरी तरह खाली कर साफ कर नए सिरे से मिट्टी, गोबर, पानी एवं अजोला दुबारा पुनः स्थापित करे।
4.अजोला की अच्छी बढ़वार हेतु 20-25 सेंटीग्रेड तापमान उपयुक्त रहता है।
5.शीत ऋतु में तापक्रम नीचे आने पर अजोला क्यारी के प्लास्टिक मल्च, नायलॉन की नेट एवं पुरानी बोरी अथवा चद्दर से रात्रि में ढकना चाहिए।
6.अजोला की अच्छी बढ़वार हेतु सुपरफॉस्फेट तथा गोबर का घोल बनाकर प्रतिमाह क्यारी में मिलाना चाहिए।
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