बकरियों में पीपीआर : कारण एवं निदान
डॉ आदित्य अग्रवाल1, डॉ रोहिणी गुप्ता2, डॉ प्रतिभा शर्मा3, डॉ शैलेश कुमार पटेल1
- पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, रीवा, (म. प्र.)
- पशु चिकित्सा एवं पशुपालन महाविद्यालय, जबलपुर, (म. प्र.)
- पशुपालन विभाग, (म. प्र.)
पीपीआर (पेस्ट डेस पेटिट्स रूमिनेंट्स) बीमारी
पीपीआर (पेस्ट डेस पेटिट्स रूमिनेंट्स), इसे बकरियों की महामारी या बकरी प्लेग भी कहा जाता है। इस बीमारी से बकरियों और भेड़ में बुखार, मुंह में घाव, दस्त, निमोनिया और बकरियों की मौत तक हो जाती है। पीपीआर एक वायरल बीमारी है, जो पैरामाइक्सोवायरस के परिवार से जुडी है एवं रोगों की संख्या (Morbidity) का कारण होती है। कई अन्य घरेलू जानवर और जंगली जानवर भी इस बीमारी से संक्रमित होते हैं, लेकिन बकरी और भेड़ की प्रमुख बीमारी हैं। पीपीआर बीमारी में मृत्यु दर आमतौर पर 50 से 80 प्रतिशत होती है, जो बहुत गंभीर मामलों में 100 प्रतिशत तक बढ़ सकती है।
पीपीआर बीमारी फैलने के कारण
Ø पशुओं के अत्याधिक निकट संपर्क में रहने से ये रोग फैलता है। बकरियों में भेड़ों की अपेक्षा ये रोग जल्दी फैलता है।
- पीपीआर वायरस, बीमार जानवर के आंख, नाक, लार और मल में पाया जाता है।
- बीमार जानवर के छींकने और खांसने से यह हवा के माध्यम से तेजी से फैलता है।
- तनाव की स्थिति जैसे परिवहन, गर्भावस्था, परजीवीवाद, अन्य बीमारी आदि के कारण भी यह रोग लग सकता है।
- भेड़ और बकरियां, पीपीआर रोग के प्रति अधिक संवेदनशील होती हैं।
- सभी उम्र और दोनों लिंग (नर और मादा)अतिसंवेदनशील होते हैं।
- 4 महीने से 1 साल के बीच के मेमने, बकरियों को पीपीआर रोग होने का खतरा जायदा होता है।
रोग के लक्षण
- पीपीआर संक्रमण होने के दो से सात दिन में इसके लक्षण दिखाई देने लगते हैं।
- पीपीआर रोग सेभेड़-बकरियों में बुखार, मुंह के छाले, दस्त और निमोनिया हो जाता है, जिससे कभी-कभी इनकी मृत्यु हो जाती है।
- एक अध्ययन के अनुसार भारत में बकरी पालन क्षेत्र में पीपीआर रोग से सालाना साढ़े दस हजार करोड़ रुपये का नुकसान होता है।
- पीपीआर रोग मुख्य रूप से कुपोषण और परजीवियों से पीड़ित मेमनों, भेड़ों और बकरियों में बहुत गंभीर साबित होता है।
- इससे इनके मुंह से अत्यधिक दुर्गंध आना और होठों में सूजन आनी शुरू हो जाती है।
- आंखें और नाक चिपचिपे या पुटीय स्राव से ढक जाते हैं, आंखें खोलने और सांस लेने में कठिनाई होती है।
- कुछ जानवरों को दस्त और कभी-कभी खूनी दस्त होते हैं।
- पीपीआर रोग से गर्भवती भेड़ और बकरियों में गर्भपात हो सकता है।
- ज्यादातर मामलों में, बीमार भेड़ और बकरी संक्रमण के एक सप्ताह के भीतर मर जाते हैं।
निदान
पीपीआर वायरस का मुख और नाक के स्त्रावों में उचित प्रयोगशाला की जांच से, बीमारी के लक्षण आने के पहले ही पता लगाया जा सकता है। अतः पीपीआर के लक्षण दिखने पर लार व नाक से निकलने वाले स्त्रावों को प्रयोगशाला में जांच के लिए भिजवाना चाहिए।
उपचार
- पीपीआर को रोकने के लिए भेड़ और बकरियों का टीकाकरण ही एकमात्र प्रभावी तरीका है।
- वायरल रोग होने के कारण पीपीआर का कोई विशिष्ट उपचार नहीं है. हालांकि बैक्टीरिया और परजीवियों को नियंत्रित करने वाली दवाओं का उपयोग करके मृत्यु दर को कम किया जा सकता है।
- टीकाकरण से पहले भेड़ और बकरियों को कृमिनाशक दवा देनी चाहिए।
- सबसे पहले स्वस्थ बकरियों को बीमार भेड़ और बकरियों से अलग रखा जाना चाहिए ताकि रोग को नियंत्रित और फैलने से बचाया जा सके इसके बाद बीमार बकरियों का इलाज शुरू करना चाहिए।
- फेफड़ों के द्वितीयक जीवाणु संक्रमण को रोकने के लिए पशु चिकित्सक द्वारा निर्धारित ब्रॉड स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक का प्रयोग किया जाता है।
- आंख, नाक और मुंह के आसपास के घावों को दिन में दो बार रुई से साफ करना चाहिए।
- इसके अलावा, मुंह के छालों को 5% बोरोग्लिसरीन से धोने से भेड़ और बकरियों को बहुत फायदा होता है।
- बीमार बकरियों को पोषक, स्वच्छ, मुलायम, नम और स्वादिष्ट चारा खिलाना चाहिए। पीपीआर महामारी फैलने पर तुरंत ही नजदीकी सरकारी पशु-चिकित्सालय में सूचना देनी चाहिए।
- मरी हुई भेड़ और बकरियों को जलाकर पूरी तरह नष्ट कर देना चाहिए, साथ ही बाड़ों और बर्तन को शुद्ध रखना बहुत जरूरी है।
टीकाकरण
Ø रिकॉम्बिनेंट एंटी-आरपी वैक्सीन का प्रयोग करना चाहिए।
- टीकाकरण या दवा से भेड़ और बकरियों को तीन साल से अधिक समय तक पीपीआर रोग से बचाया जा सकता है।
- Live एटेन्युएटेड पीपीआर वैक्सीन उपलब्ध है।
– नाम: पीपीआर टीका, रक्षा पीपीआर- उपलब्धता: 100 और 50 खुराक के साथ- सूखे वैक्सीन शीशियों को पतला और फ्रीज करें- खुराक: 1 मिली- आयु समूह: 3 महीने के बच्चे- मार्ग: उपचर्म मार्ग- प्रतिरक्षण: 3 वर्ष
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